लम्बे समय से देश में प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों के निशाने पर रहने वाली और सरकारी दस्तावेजों यानि सीएसओ तथा आर्थिक सर्वे आदि, में खरी उतरती हुयी न दिखने वाली सरकार को अंततः डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। वल्र्ड बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग’ में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष तीस अंकों की बढ़त पाकर सरकार फ्रंट फुट पर आ गयी और वित्त मंत्री ने बिना देर किए हुए ही 50 देशों में भारत को शामिल करने वाली स्वप्नदर्शी घोषणा भी कर डाली।
इसमें कोई संशय नहीं है कि सरकार ने पिछले तीन वर्षों में कम से कम कानून की सतह पर बेहतर कदम उठाए हैं या उठाने का प्रयास किया है। इसलिए उनका परिणाम दिखना चाहिए था और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग रिपोर्ट में दिखा भी। लेकिन ग्लोबल हंगर रिपोर्ट का क्या करें, क्या मानव पूंजी भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई महत्व नहीं रखती ? सवाल यह है कि यदि भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में 100वें स्थान पर है तो वैश्विक भूख सूचकांक में भी वह उसी स्थान पर है, लेकिन सरकार एक पर अपनी पीठ ठोक रही है और दूसरे पर चुप है, क्यों ?
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यदि बिजनेस डूइंग सूचकांक में सुधार सरकार के प्रयासों का नतीजा है तो फिर वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 119 देशों में से 100वें स्थान पर और बांग्लादेश व उत्तर कोरिया जैसे देश से भी पीछे रहना भी सरकार की असफलता का नतीजा होना चाहिए। क्या हमारे नीति निर्माता यह तथ्य पहचान पाने में असमर्थ हैं कि जब तक भारत भूख की सीढ़ियों पर बैठा रहेगा तब निवेशक भारत की ओर स्थायी रुख नहीं करेंगे ? इसके साथ ही एक प्रश्न यह भी है कि इस रिपोर्ट में केवल दिल्ली एवं मुंबई शहर को ही शामिल किया गया है। तो क्या केवल दिल्ली और मुंबई ही सम्पूर्ण भारत हैं? इस स्थिति में विश्व बैंक की इस रिपोर्ट को क्या भारत की स्थिति का न्यायसंगत एवं यथार्थ आकलन माना जा सकता है?
यदि केवल रैंकिंग के लिहाज से देखें तो वास्तव में सरकार की तारीफ का पक्ष विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में मौजूद है क्योंकि भारत ने पहली बार इस क्षेत्र में इतनी बड़ी छलांग लगायी है। भारत इस वर्ष बिजनेस करने में सुविधाओं के मामले में भारत 130 वीं रैंकिंग से सीधे 100वीं रैंकिंग पर पहुंच गया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वल्र्ड बैंक ने भारत को इस वर्ष सबसे ज्यादा सुधार करने वाले दुनिया के शीर्ष 10 देशों की सूची में शामिल किया है और भारत इस सूची में शामिल होने वाला दक्षिण एशिया एवं ब्रिक्स समूह का इकलौता देश बन गया है।
स्वाभाविक रूप से इस उपलब्धि ने सरकार की कार्यक्षमता और प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने सुधारों के 10 मीजर्स में से 6 पर बेहतर प्रदर्शन दर्ज कराया है। यह इस बात का संकेत है कि सरकार सुधारों की दिशा में सही कदम बढ़ा रही है। लेकिन सरकार ने जो दो सबसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं जिसका श्रेय स्वयं प्रधानमंत्री ने लिया है और वे उनकी दृष्टि में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सबसे क्रांतिकारी कदम हैं, उन्हें ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग का निर्माण करते समय वल्र्ड बैंक ने शामिल नहीं किया है। इनमें एक है 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा की गयी विमुद्रीकरण की घोषणा और दूसरी है 30 जून की मध्य रात्रि से देश की न्यू डेस्टिनी के रूप में जीएसटी का शुभारम्भ।
असल तो यह है कि यह रिपोर्ट दो जून 2016 से एक जून 2017 के दौरान दिल्ली एवं मुंबई में आर्थिक नीतियों के प्रभावों के अध्ययन पर आधारित है। इन दो शहरों में वल्र्ड बैंक को उपलब्ध कराए गये तथ्यों के आधार पर उसने अपनी जो रिपोर्ट तैयार की है उसके अनुसार भारत ने बिजनेस शुरू करने, निर्माण कार्य के लिए परमिट लेने और दिवालिएपन से जुड़े मामलों के निपटारे को लेकर बेहतर प्रयास किया है। रिपोर्ट में कहा गया है भारत सरकार ने कंपनी कानून और प्रतिभूति नियमन को काफी उन्नत माना है और छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा करने, समय पर ऋण उपलब्ध कराने और पर्याप्त बिजली मुहैया कराने पर भी ध्यान दिया है।
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इस ऐतिहासिक उछाल पर प्रधानमंत्री का कहना है कि यह टीम इंडिया के प्रयास का नतीजा है। वास्तव में यदि ये परिणाम समग्र भारत के बिजनेस वातावरण को व्यक्त करते हैं तो टीम इंडिया प्रशंसा की हकदार है क्योंकि कारोबारी माहौल में सुधार के दृष्टिकोण से भारत दुनिया का 5वां श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला देश बन गया है और देश में कारोबारी सुगमता के लिए विश्व बैंक द्वारा तय 10 श्रेणियों में से 6 में भारत ने सुधार दर्ज किया है।
लेकिन विश्व बैंक के एक अधिकारी के अनुसार विश्व बैंक ने प्रतिभागियों से विशेष तौर पर जीएसटी के बारे में नहीं पूछा था। सवाल यह उठता है कि क्यों? बहुपक्षीय एजेंसियों का कहना है कि प्रतिभागियों ने जीएसटी का अहम मसले के तौर पर उल्लेख नहीं किया था। फिर भी यह माना जा रहा है कि कर प्रणाली में इसे सुधार से देश की रैंकिंग सुधार में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
अल्पांश निवेश श्रेणी के हितों की रक्षा के मामले में भारत दुनिया का चैथा सर्वश्रेष्ठ देश है और इस पैमाने पर वह पिछले वर्ष के मुकाबले 13वें स्थान से 9 सीढ़ियां पार कर चौथे स्थान पर पहुंच गया है। लेकिन इस श्वेत पक्ष के विपरीत कुछ अश्वेत पक्ष भी हैं। जैसे नया बिजनेस शुरू करने मामले में भारत 156वें स्थान पर है, कंस्ट्रक्शन परमिट देने के मामले में 181वें, बिजनेस के लिए बिजली कनेक्शन देने के मामले में 129वें, प्रापर्टी की रजिस्ट्री के मामले में 29वें, बिजनेस के लिए क्रेडिट मिलने के मामले में भारत 29वें, ट्रेड अक्रॉस द बॉर्डर के मामले में 146वें और कॉन्ट्रैक्ट लागू करने के मामले में 164वें स्थान पर है।
इन जिन क्षेत्रों में भारत 150वें स्थान से आगे है, वह भारत के आशावाद पर पानी फेरने के लिए पर्याप्त है क्योंकि यही वे कारक हैं जो विदेशी पूंजी के इनफ्लो को प्रोत्साहित करते हैं। फिलहाल रैंकिंग में सुधार का तात्कालिक लाभ यह होगा कि विश्व की प्रमुख रेटिंग एजेंसियां भारत की क्रेडिट रेटिंग सुधार सकती हैं। ऐसा हुआ तो देश में आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मात्रा में तेजी आ सकती है और भारत सरकार को सस्ते ऋण प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन अभी भी स्थानीय उद्यमियों के लिए प्रक्रियाओं की जटिलता वैसी ही बनी हुयी है, निचले स्तर पर भ्रष्टाचार में कहीं कोई कमी नहीं आयी है। दिल्ली और मुंबई बड़े कारोबार के केन्द्र हैं, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा भाग छोटे कारोबार पर निर्भर है।
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कुल मिलाकर जमीनी सच्चाई वल्र्ड बैंक द्वारा दी गयी रिपोर्ट से काफी हद तक भिन्न है। सच तो यह है कि विमुद्रीकरण के बाद बड़े पैमाने पर छोटे कारोबार बंद हो गये हैं। लोगों के कारोबार बंद हो रहे है। स्टार्ट अप इंडिया अभियान ने उम्मीद जगाई थी, लेकिन उसका भी बड़ा फायदा नहीं हुआ है। हो सकता है कि बड़ी या बहुत बड़ी कंपनियों के लिए या विदेशी कंपनियों के लिए काम करना आसान हुआ हो, पर छोटे और मझोले कारोबारियों की परेशानी विमुद्रीकरण एवं जीएसटी ने और बढ़ा दी है।
इसलिए भारत के नीति निर्माताओं को डाटा इकोनॉमिक्स की बजाय रियल इकोनॉमिक्स और ह्यूमन इकोनॉमिक्स पर ध्यान देना चाहिए। हममें से वे सभी जो यह मानकर चल रहे हैं कि वल्र्ड बैंक द्वारा आंशिक आंकड़े एकत्रित कर उच्च रैंकिंग दे देने से बाहर से पूंजी भागती चली आएगी, उन्हें इस बात का अध्ययन करने की जरूरत है कि भारत में ‘मेक इन इण्डिया’ स्कीम क्यों सफल नहीं हो पायी?
भारत में ‘मेक फॅार इण्डिया’ स्कीम के सफल होने की संभावना एवं क्षमता है लेकिन इसके लिए जरूरी होगा कि लोगों की क्रय क्षमता बढ़े। लेकिन सीएसओ और आर्थिक सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि रोजगार गिरा है, लोगों की आय घटी है और ग्लोबल हंगर इंडेक्स बताती है कि भारत में भूख एक गम्भीर समस्या है, फिर पर्चेजिंग पावर कैसे बढ़ेगी? बिना पर्चेजिंग पावर बढ़ाए, बाहरी निवेशकों को भारत में मुनाफे के आकाश में आशा की किरणें बेहद कम ही दिखेंगी, हम चाहे जितने कारपेट बिछा लें।