पत्रकारिता किसके लिए और किनके विषय में हो यह महत्वपूर्ण विषय है

30 मई 1826 को कोलकाता से ‘उदंतमार्तण’ (उगता हुआ सूर्य) नामक भारत के प्रथम समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था, उसके मुख्य पृष्ठ पर नारद का चित्र प्रकाशित किया गया और समाचार पत्र भी नारद को ही समर्पित था
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डॉ. नरेंद्र तिवारी

नारद ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माने गए हैं। वे विष्णु के अनन्य भक्त हैं और बृहस्पति के शिष्य हैं। ये प्रत्येक युग में मानव कल्याण के लिए सदैव सदा विचरण करते रहते हैं। इनकी वीणा ‘महती’ से नारायण-नारायण की ध्वनि निकलती रहती है।

नारद आद्य पत्रकार माने जाते हैं। नारद का जन्म, लोगों को सन्मार्ग पर लाकर विश्व का कल्याण करने के लिए हुआ है। ‘नारं ददाति सः नारदः’। ”गीता-विद्या प्रभावेन देवर्षि नार्रदोमहान। मान्यो वैष्णव लोके वे श्री शम्भोच्च्श्र तिवल्लभः”। अर्थात जो अनवरत ज्ञान दान करता हुआ जगत के कल्याण में रत हो वहीं नारद है। भगवान विष्णु के वरदान से तीनों लोकों में निरन्तर, सभी युगों में, भ्रमण करने वाले देवर्षि नारद हर समाचार या सम्वाद को इधर से उधर पहुंचाने में प्रवीण हैं। इसीलिए इनको आद्य पत्रकार कहा जाता है।

इनका जन्म ज्येष्ठक कृष्णा की द्वितीय यानी दिनांक 30 मई सन् 1826 को कोलकाता से ‘उदंतमार्तण’ (उगता हुआ सूर्य) नामक भारत के प्रथम समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। उसके मुख्य पृष्ठ पर नारद का चित्र प्रकाशित किया गया और समाचार पत्र भी नारद को ही समर्पित था। इसका कारण यह है कि हर काम में सामर्थ के साथ एक दैवी अधिष्ठान होना आवश्यक है, तभी वह लोक कल्याणकारी होगा। इसलिए प्रत्येक कार्य के लिए एक अधिष्ठात्रा देवता होता है, यह भारत की परम्परा है- जैसे विद्या के उपासक, गणेश या सरस्वती का आव्हान कर कार्य प्रारम्भ करते हैं।

शक्ति के उपासक, हनुमान या दुर्गाजी का आव्हान कर कार्य प्रारम्भ करते हैं। संगीत-नृत्य-नाट्य के कलाकार, कला प्रस्तुति से पहले सरस्वती या नटराज का आव्हान करते हैं। उद्योग कर्मी, विश्वकर्मा की पूजा करके प्रारम्भ करते हैं। वैद्यलोग, धनवन्तरि की पूजा करके प्रारम्भ करते हैं। इसी परम्परा के निर्वहन में पत्रिका ‘नारद’ के नाम से प्रारम्भ की गई। नारद का एक उपनाम भी है ‘आचार्यपिशुनः’।

‘पिशुन’ शब्द का अर्थ है ‘सूचना’ देने वाला संचारक। भारतीय जीवन का विचार या विश्वदृष्टि का आधार आध्यात्मिकता है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है “Spirituality is the soul of India” भौतिक समृद्धि के साथ-साथ यह आध्यात्मिक या दैवी अधिष्ठान होने के कारण ही समृद्धि के शिखर प्राप्त करने पर भी यहां प्रकृति या पर्यावरण का सन्तुलन बना रहा।

स्वामी विवेकानन्द जी ने नारद भक्तिसूत्र पर भाष्य लिखे हैं। इनकी अन्य और पुस्तकें हैं – ‘नारद पुराण’, ‘नारद स्मृति’ ‘नारद पंचरात्न’, नारद-श्रुति और ‘नारद संहिता’। नारद द्वारा प्रेरित हर घटना का परिणाम लोकहित से निकला। इसलिए वर्तमान सन्दर्भ में यदि नारद को आज तक के विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक

कहा जाय तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनके सम्वाद में हमेशा लोककल्याण की भावना रहती थी। इनके ‘भक्तिसूत्र’ में 84 सूत्र हैं। इनको सूक्ष्मता से देखें तो मिलेगा कि पत्रकारिता ही नहीं पूरे मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धान्तों का प्रतिपालन दृष्टिगत होता है – 15 वां सूत्रः- ”तल्लक्षणानि वच्यन्ते नानामत भेदान।” अर्थात् सन्तों में या सबमें विभिन्नता व अनेकता है, यही पत्रकारिता का मूल सिद्धान्त है।

वर्तमान समय में भी एक ही विषय पर अनेक दृष्टियां होती हैं। परन्तु पत्रकार या मीडियाकर्मी को सभी दृष्टियों का अध्ययन करके निष्पक्ष दृष्टियां होती हैं, परन्तु पत्रकार या मीडियाकर्मी को सभी दृष्टियों का अध्ययन करके निष्पक्ष दृष्टि लोकहित में प्रस्तुत करनी चाहिए। यह आदर्श पत्रकारिता का मूल सिद्धान्त है या हो सकता है सूत्र 63 में:- मीडिया का विषय-वस्तु के बारे में मार्गदर्शन करते है- ”स्त्रीधननास्तिकवैरिचरित्रं न श्रवणीयम्”।

नारद ने संवाद में कुछ विषयों का निषेध किया है

1. स्त्रियों व पुरूषों के शरीर व मोह का वर्णन।

2. धन, धनियों व धनोपार्जन का वर्णन।

3. नास्तिकता का वर्णन।

4. शत्रु की चर्चा।

आज तो ऐसा लगता है कि मीडिया के लिए विषयवस्तु इन चारों के अतिरिक्त है ही नहीं। नारद समाज में भेद उत्पन्न करने वाले कारकों का निषेध करते है। ”नास्तितेषुजाति विद्यारूपक कुलधनक्रियादिभेदः। अर्थात् जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। पत्रकारिता किसके लिए हो व किनके विषय में हो यह आज एक महत्वपूर्ण विषय है। जिसका समाधान इस सूत्र में मिलता है। नेताओं,

फिल्मीकलाकारों, क्रिकेट व अपराधियों का महिला मंडल करती हुई पत्रकारिता समाज के वास्तवकि विषयों से भटकती है।

आज दिग्भ्रमित भारतीय समाज को, चैथे स्तम्भ को देखना हमारी बाध्यता हो गई है। यद्यपि हमने अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त की है, मगर समाज के माहौल में आशा एवं आशावादिता की कमी सर्वत्र महसूस की जा रही है। जीवन स्तर में वृद्धि के साथ जीवन में तनाव एवं असन्तोष बढ़ गया है। प्रसन्नता की भावना नजर नहीं आती। जीवन के मूलभूत मूल्य-प्यार एवं सहयोग तथा दूसरों के लिए त्याग और बलिदान की भावना का क्षरण हो रहा है। मानव आत्मकेन्दि्रत होते जा रहे हैं। जिससे सामाजिक तनाव एवं हिसा का जन्म हो रहा है समस्याओं के समाधान में सहयोगी केवल चौथा स्तम्भ ही हो सकता है।

मीडिया का पूर्वकाल गरिमामय रहा है। दुर्भाग्यवश आज हम मीडियावाले अपनी सामाजिक प्रतिवद्धता के बारे में अनजान सा बनते जा रहे हैं। हमें पुनः नारद को याद करना ही पडे़गा। प्रान्त की सरकार हो या केन्द्र की सरकार हो, जब किसी विकास के कार्य के लिए धन आता है तो पत्रकार अगर जागरूक होकर उसके कार्य पर अपनी निगाहें रखें, उसे प्रकाशित करते रहें तो इतने से बहुत बड़ा काम हो जाएगा।

न कोई घोटाला होगा, न जांच की आवश्यकता पड़ेगी, न कोई जेल जाएगा। इन घोटालों में परिवार भी नष्ट हो जाता है साथ में राष्ट्र का कितना धन बेकार में नष्ट हो जाता है पता लगाने में । इतने जागरूक पत्रकार हो जाय तो नारद का जन्मदिन मनाना सार्थक हो जाय। नारद ने कलियुग में धर्मरक्षा के लिए ‘सत्यनारायण कथा’ को प्रकट किया। महर्षि वाल्मीकि को ‘रामायण’ लेखन की प्रेरणा दी। ‘श्रीमद्भागवत’ लिखने की पेरणा वेदव्यास को दी। ध्रुव को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया।

प्रहलाद को भक्ति तथा आध्यात्म का उपदेश दिया। ऐसे नारद जिनमें अरति (उद्वेग), क्रोध, भय, का सर्वथा अभाव रहा, जो लोभी नहीं, जितेन्दि्रय है, यथार्थवक्ता, जो भगवान में दृढ़ भक्ति रखते हो, जो अनासक्त हैं, जो उत्तम वक्ता हैं, जो अपने मन को सदा वश में रखते हैं उन श्री नारद को मैं प्रणाम करता हूँ

 लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और यह इनके निजी विचार हैं।

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