अब गाँव के लोगों की जीवन शैली बदल रही है और उनका स्वास्थ्य वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था। वहां भी गम्भीर शहरी बीमारियां फैल रही हैं जिनका मुकाबला करने के लिए गाँव तैयार नहीं हैं। उस दिशा में किए गए सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं ।
केन्द्र सरकार ने स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था की है और राज्य सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन की राशि बढ़ाकर 400 रुपए प्रतिमाह कर दी है लेकिन इलाज के लिए तो डाक्टर और अस्पताल चाहिए। गाँवों में देश की 70 फीसदी आबादी रहती है परन्तु केवल 26 फीसदी डॉक्टर वहां उपलब्ध हैं। इसके विपरीत 30 फीसदी आबादी के साथ शहरों में 74 फीसदी डॉक्टर रहते हैं। शहरों में 20,000 की आबादी पर जहां 12 डॉक्टरों का औसत है वहीं गाँवों में 3 डाक्टरों का।
बीमार होने पर बीपीएल कार्ड धारकों को सुविधा है और बाकी लोग किसी तरह पैसा इकट्ठा भी कर लें तो गाँवों में दूर-दूर तक अस्पताल नहीं। उन्हें मज़बूर होकर ऐसे लोगों से इलाज कराना पड़ता है जिन्हें झोलाछाप डॉक्टर कहा जाता है। यदि तथाकथित अंग्रेजी डॉक्टर देश की 70 फीसदी आबादी के बीच जाकर सेवा नहीं करना चाहते तो किस काम के ऐसे मेडिकल कालेज, अस्पताल, डॉक्टर और दवाएं?
कई बार गाँव का आदमी आज भी झाड़ फूंक में काफी समय बिता देता हैं और शहर पहुंचने तक बहुत देर हो चुकी होती है। सरकार ने भले ही गाँवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले हैं लेकिन इनकी हालत परिषदीय स्कूलों जैसी ही है। गाँववालों को अपने इलाज के लिए इन्हीं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों की नर्सों और दाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है। कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि अंग्रेजी डॉक्टरों को देहात भेजना ही नहीं चाहिए बल्कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाइयां देने का लाइसेंस दे दिया जाना चाहिए। सोचने की बात है कि वर्तमान में आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक पद्धतियों में यह नहीं पढ़ाया जाता कि कौन सी अंग्रेजी दवाएं एक साथ दी जा सकती हैं और कौन सी रिएक्शन कर जाएंगी। जिस तरह गाँवों में इंजीनियरिंग कॉलेज खुल रहे हैं वैसे ही मेडिकल कॉलेज खोलने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए।
यदि गाँवों के लिए और कुछ नहीं कर सकते तो एलोपैथिक, आयुर्वेद और होम्योपैथिक का बंटवारा समाप्त करके ऐसे डॉक्टर तैयार करें जो गाँवों में काम करने के इच्छुक हों। डॉक्टरों में गाँव और शहर के कैडर बना दिए जाएं जिनमें गाँव में काम करने वालों का वेतन और सुविधाएं अधिक हों। जब तक विशेष आकर्षण नहीं होगा, गाँवों को डॉक्टर जाएंगे नहीं और जब तक अच्छे डॉक्टर वहां नही होंगे, गाँवों को उचित इलाज नहीं मिलेगा।
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