सब का साथ, सब का विकास, लेकिन डगर क्या होगी

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मोदी सरकार ने सबका साथ और सबका विकास का नारा देकर चुनाव जीता था इसलिए सभी वर्गों, धर्मों और जातियों को मोदी सरकार से अपेक्षाएं हैं लेकिन विकास के लिए जरूरी है कि नेता पर भरोसा हो और जनता में परस्पर विश्वास हो। इसके लिए सबको समान अवसर हों, सबके लिए समान कानून हों, अलग पहचान की जगह सबकी एक पहचान हो भारतीय होने की पहचान। सह अस्तित्व के लिए जरूरी है सहिष्णुता। यदि दो अलग-अलग धर्मों के लड़के-लड़कियां आपस में शादी करते हैं तो शादी के पहले या बाद में धर्म परिवर्तन की नौबत ना आए। गौतम बुद्ध, विवेकानन्द और गांधी के विचारों के धरातल पर मिलेगा सब का साथ।

सरकार ने नोटबन्दी का बड़ा कदम उठाया जिसकी चोट से उबरने में लगे हैं। दुर्भाग्यवश ओवैसी जैसे कुछ लोगों को लग रहा है कि इसमें भी हिन्दू-मुस्लिम पर चोट अलग-अलग है। अलग पहचान और अलग हितों की मंजिल थी पाकिस्तान और कोई भी भारतीय उस मंजिल को पसन्द नहीं करेगा। शायद आम पाकिस्तानी भी पछता रहा होगा अपने हालात देखकर। इसी तरह प्रान्तीय गौरव और पहचान भी अलगाव का भाव पैदा करती है, क्षेत्रीय दलों का जन्म होता है।

मोदी ने नोटबन्दी के माध्यम से भ्रष्टाचार, आतंकवाद और कालेधन को समाप्त करने का लक्ष्य रखा था उसको हासिल करने का इन्तजार न करके कैशलेस का लक्ष्य चुन लिया। मोदी भी नेहरू की तरह जल्दी में हैं लेकिन तेज दौड़ में गिर न जाए हमारा देश। लक्ष्य वही ठीक है जो प्राप्त किया जा सके। अमेरिका जैसे देशों ने कैशलेस तक पहुंचने में सैकड़ों साल लगाए हैं।

रेलमंत्री प्रभु के प्रयासों के बावजूद अभी न्यायसंगत व्यवस्था सम्भव नहीं। जब कोई आदमी द्वितीय श्रेणी का टिकट खरीदता है तो उसे पता नहीं होता कि वह बैठेगा कहां। यदि सरकार पैसा लेकर टिकट बेचती है और बैठने की जगह सुनिश्चित नहीं करती तो यह बेइमानी की श्रेणी में आएगा।

एसी प्रथम, द्वितीय और तृतीय को समाप्त करके केवल एसी और नॉन एसी की श्रेणियां होनी चाहिए। उचित तो यह है कि सभी गाड़ियां जनता गाड़ियां हों जैसा जनता पार्टी सरकार में तत्कालीन रेलमंत्री मधु दंडवते ने किया था। हर टिकट पर सीट नम्बर लिखा होना चाहिए, और वह सीट उपलब्ध भी होनी चाहिए।

विकास के लिए हड़तालें समाप्त होनी चाहिए और हड़तालों के कारणों का निवारण भी होना चाहिए। हड़तालें प्रायः वेतन या वेतन विसंगतियों के कारण होती हैं, अब तो डॉक्टरों और अध्यापकों की भी खूब हड़तालें होती हैं। यदि समान अवसर देकर राष्ट्रीय वेतन आयोग बनाकर पूरे देश के लिए एक वेतनमान बनाया जाए जो समान काम का समान वेतन के आधार पर बने। नीति निर्धारण राष्ट्रीय स्तर पर हो, कार्यान्वयन प्रान्तीय स्तर पर। यदि ऐसा सम्भव नहीं तो अधिकाधिक प्राइवेटाइजेशन हो हड़तालें बन्द हो सकती हैं जैसे अमेरिका जैसे देशों में है।

खेती की आय पर कोई कर नहीं पड़ता लेकिन कितने ही सरकारी अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर, सोने चांदी के व्यापारी और नेता इस प्रावधान का दुरुपयोग करके इसे कालाधन सफेद करने की मशीन समझ बैठे हैं। खेती की आय करमुक्त उन्हीं के लिए रहनी चाहिए जिनके पास खेती के अलावा कोई दूसरा व्यवसाय नहीं है, कोई दूसरी आमदनी नहीं है।

यदि कोई दवाई बनाने वाला नकली दवाई बनाता और बेचता है जिसे खाकर सैकड़ों लोग मरते हैं, कोई ठेकेदार घटिया सामान लगाकर पुल बनाता है उसके गिरने से अनेक लोग मरते हैं, ठेकेदार स्कूल बनाता है और उसकी छत गिरने से बच्चे मरते हैं तो यह दुर्घटना नहीं है, इन मौतों को इरादतन हत्या मानना चाहिए। सीमेन्ट खराब थी, नक्शा गलत था यह सब बहाना नहीं चलना चाहिए, सीमेन्ट और नक्शे की जांच पहले करें तब निर्माण करें।

जिस तरह जिलों की सरहद पर चुंगी नाका समाप्त किए गए हैं प्रान्तीय सरहदों पर भी समाप्त होने चाहिए। यदि देश के किसी कोने में बिना रोक टोक सामान लाया ले जाया जा सके तो प्याज, आलू और टमाटर के दाम नियंत्रित हो सकते हैं। खाद्य पदार्थों को ढोने के लिए अलग से रेलगाड़ियां हो तो कम समय में सामान पहुंच सकेगा, महंगाई घटेगी। आशा की जानी चाहिए कि हम सही डगर पर सही गति चलते हुए सबका विकास कर सकेंगे।

sbmisra@gaonconnection.com

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