बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संघ मुक्त भारत का आवाहन सभी राजनैतिक दलों से किया है। अभी कल तक नीतीश कुमार संघ के समर्थन से सत्ता सुख भोग रहे थे लेकिन जब लगा कि प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो चुका है तो भाषा बदल गई। कौन किसे सहन कर सकता है यह स्वार्थसिद्धि के पैमाने से देखा जाता है। सोनिया गांधी के समर्थकों ने एक अनुसूचित जाति के भले नेता सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से भरी सभा से बेइज्जत करके बाहर कर दिया था।
जब 1975 में उस समय की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो सहिष्णुता और असहिष्णुता में अन्तर पता चला था। हमारी संस्कृति की विशेषता रही है असहमति को सुनना और जवाब देना, लेकिन हिंसा नहीं करना। भारत की हजारों साल पुरानी सहिष्णुता को मुहम्मद अली जिन्ना ने झकझोर दिया था यह कहकर कि हिन्दू और मुसलमान इस देश में एक साथ नहीं रह सकते।
बंटवारे के बाद बचे हुए भारत में असहिष्णुता तब देखने को मिलीं थी जब नेहरू सरकार ने 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाकर उसकी ज़ुबान बन्द कर दी। 1975 में दोबारा असहिष्णुता देखने को मिली जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर जयप्रकाश नारायण सहित हजारों लोगों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया था। असहिष्णुता तब भी सामने आई जब 1984 में कांग्रेसियों ने नारे लगाए थे खून का बदला खून से लेंगे और सिखों को जान बचाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा था। वैसे नीतीश कुमार जिस संघ से भारत को मुक्त कराना चाहते हैं उसके विषय में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने क्या कहा था यह उन्हें पता होगा।
असहिष्णुता के उदाहरण उन्हें माना जाएगा जैसे कोणार्क और खजुराहो की मूर्तियों का तोड़ा जाना, मन्दिरों को तोड़ा जाना और अफगानिस्तान में दुनिया की सबसे बड़ी बुद्ध की मूर्ति को नष्ट किया जाना। इसी तरह नेहरू द्वारा पटेल की अन्त्येष्टि में जाने से तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू को मना करना भी असहिष्णुता थी। कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर पुरुषोत्तम दास टंडन को स्वीकार न करना नेहरू की असहिष्णुता थी। स्मरण रहे असहमति को सहन करना और उसके साथ जीना हमारी विरासत का अंग है।
कम्युनिस्ट देशों में या फिर इस्लामिक देशों में विरोधी विचारों की असहिष्णुता हैं। विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं लेकिन छात्र आन्दोलन को कुचलने के लिए चीन के थ्येन मेन चौक की घटना जहां छात्रों को बुल्डोजर से कुचल दिया गया था और ऐसी विचारधारा के लोग भारत में असहिष्णुता की बात कर पाते हैं क्योंकि यहां सहिष्णुता है। सच्चाई यह है कि भारत में दुनियाभर से अधिक सहिष्णुता है। बिना वजह लोग ‘‘भेड़िया आया, भेड़िया आया” चीख रहे हैं। इससे देश का हित नहीं होगा।