बिहार के चुनाव में मोदी का विजय रथ रुक गया। ध्यान रहे राम का विजय रथ रोकने वाला कोई और नहीं उनके अपने लव और कुश थे। साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह, साध्वी निरंजन, महन्त अवैद्यनाथ जैसे लोगों को उतावलेपन में अचानक हिन्दू राष्ट्र बनाने, गोहत्या रोकने, मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की जल्दी मच गई, मानो इससे अधिक वोट मिल जाएंगे।
विरोधियों ने चतुराई से असहिष्णुता का मुद्दा उठाया। उनके समर्थक साहित्यकारों और कलाकारों ने अवार्ड लौटाए तो अरुण जेटली जैसे वरिष्ठ लोगों ने कलाकारों व साहित्यकारों का तिरस्कार शुरू कर दिया।
साथ ही जब शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद या रामसेना के मुट्ठीभर लोग हिंसात्मक काम करते रहे और स्वयं भाजपा के लोग दादरी जैसी घटना में शामिल होते रहे तो उनको बर्दाश्त किया गया। इससे गलत सन्देश गया। गुलाम अली और शाहरुख खान के फेन्स क्यों वोट देंगे आपको।
विडम्बना है मोदी से कहीं ज्यादा असहिष्णु थे जवाहर लाल नेहरू जिन्होंने जनमत से चुने गए अध्यक्ष नेताजी के साथ बिना वैचारिक मतभेद काम करने से इनकार कर दिया था, पटेल की अन्त्येष्टि तक में जाने से राजेन्द्र बाबू को मना किया था और विधिवत चुने गए कांग्रेस अध्यक्ष पुरुषोत्तम दास टंडन को अस्वीकार किया था।
सोनिया गांधी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ तथा लालू यादव ने ‘नरभक्षी’ कहा, इरफान हबीब ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना आतंकवादी इस्लामिक संगठन से की और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य अब्दुल रहीम कुरेशी ने राम का जन्म अयोध्या में नहीं, पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खां में बताया, परन्तु सरकारी पक्ष को इन सबको नजरअंदाज करना था, ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देना था। कुछ विरोधी लोगों को देश में सांस्कृतिक आपातकाल दिखाई दे गया। शायद उन्होंने देखा नहीं है कि आपातकाल कैसा होता है और आपातकाल में क्या होता है। इन्दिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगाया था लेकिन उसके बाद आपातकाल न तो लगा है और न लगाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने सबका साथ सबका विकास की बात कही थी और लोकसभा चुनाव में उसका लाभ भी मिला था। लेकिन अपने को हिन्दूवादी कहने वाले कुछ लोग उतावलेपन में इस अवधारणा में पलीता दाग रहे हैं। पहले गाजीपुर, आगरा और अलीगढ़ में ‘घर वापसी’ के नाम पर मुस्लिमों का धर्मान्तरण, फिर हिमाचल प्रदेश को अगले साल हिन्दू राज्य घोषित करने की बात, सर संघ चालक मोहन भागवत का कहना कि प्रत्येक भारतीय हिन्दू है, आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए और मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है आदि ने नुकसान किया। इन्हें शायद भ्रम हो गया कि वर्तमान सरकार हिन्दुत्व के नाम पर बनी है और सबको हिन्दू बनाने में लग गए। यदि सभी ने तिलक लगा कर कह भी दिया कि हम हिन्दू हैं तो क्या अजूबा हो जाएगा।
यदि सशक्त और अखंड भारत चाहिए तो मोदी के मार्ग पर चलना होगा। यदि धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों, क्षेत्रों की दरारों वाला कमजोर भारत चाहिए तो वह अब तक चल ही रहा है। औरों की बेतुकी बातों को नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन जब सरकार चलाने वाले लोग बेतुकी बातें करेंगे तो कठिनाई होगी क्योंकि उनके द्वारा संविधान की लक्ष्मण रेखा लांघने का मतलब होगा एनार्की।
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भगवत गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की वकालत कर दी। भगवत गीता के लिए ढफली बजाकर घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है। एक केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ने रामभक्तों को रामजादा और बाकी को हरामजादा कहकर मोदी विरोधियों की संख्या बढ़ा दी। चुनाव प्रचार के समय गिरिराज सिंह का यह कहना कि शाहरुख खान पाकिस्तान चले जाएं, अक्षम्य है।
तथाकथित मोदी समर्थक उतावलेपन में कड़वाहट को जीवित रखना चाहते हैं। देश का मुस्लिम और दलित हिन्दू समाज मोदी को स्वीकार करने के लिए तैयार है परन्तु संघ और सवर्णवाद को नहीं मानेगा। चुनाव प्रचार में मोदी ने कहा था कि संसद चलाने के लिए हमें दूसरों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी परन्तु देश चलाने के लिए सबकी जरूरत होगी। देखना है कि संघ परिवार मोदी को देश चलाने देगा या फिर केवल सरकार चलाने देगा। लोगों को समझना होगा कि मोदी के विकास मंत्र में ही समस्याओं का हल है।
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