कुछ समय पहले मीडिया में जब हाहाकार मचा तो नैस्ले की मैगी में पाए गए रसायनों के कारण उस पर प्रतिबन्ध लगा था। अब डबल रोटी और बन में कैंसर पैदा करने वाले तत्व पाए गए हैं और हल्ला मचेगा फिर मामला टांय-टांय फिस हो जाएगा लेकिन जब इन कम्पनियों को लाइसेंस दिया जाता है तो कोई जांच पड़ताल होती होगी। कौन थे वे लोग जिन्होंने लाइसेंस दिया था। सरकार को इसके सहारे नहीं रहना चाहिए कि मीडिया में हाहाकार मचे और मंत्री जी का बयान आ जाय ‘‘हम जांच कराएंगे।” जहरीले रसायन तो आंख से नहीं दिखते लेकिन जो दिखता है उसकी भी परवाह नहीं हमारे प्रशासन तंत्र को।
सड़क किनारे खोम्चे वाले खाने-पीने का सामान खुले में रखकर बेचते रहते हैं और पुलिस वाले उधर से निकलते हैं अधिकारी भी आते जाते होंगे लेकिन कॉलरा फैलने का किसी को डर नहीं। रेलगाड़ी के डब्बों में चीखते चिल्लाते हॉकर खाने का सामान बेचते हैं यात्रियों के सामान की सुरक्षा और उनका स्वास्थ्य दोनों ही दांव पर चढ़े रहते हैं। वे चाहे बासी बेचें, सड़ा बेचें या होटलों का बचा हुआ। क्या गारंटी है उस सामान के गुणवत्ता की। हम सोच रहे हैं बुलेट ट्रेन की।
स्कूलों में दोपहर का भोजन यानी मिड डे मील बनता है और बच्चे आए दिन बीमार होते रहते हैं। छिपकिली गिर गई ऐसी खबरें छपती रहती हैं, कभी कभी बच्चों की मौतें भी होती हैं लेकिन इसकी जिम्मेदारी निर्धारित नहीं हो पाती। दावतें होती हैं और बासी बचा खाना परजों यानी काम करने वालों को दे दिया जाता है फिर चाहे वे खाकर बचें या नहीं। होटलों का बचा हुआ खाना दूसरे दिन ग्राहकों को बदले रूप में खिला दिया जाता है। सरकारी मशीनरी हरकत में आ सकती है यदि कोई शिकायत करे। यदि समय-समय पर जांच परख का रिवाज़ हो तो कुछ नियंत्रण हो सकता है।
यदि आप को मिठाई खाने का शौक है तो अपने सामने बनवाकर खाइए। चींटे, चींटिया और मक्खियां निकाल-निकाल कर फेंकते हुए हलवाई को डाबी चलाते देखेंगे तो मिठाई खाना छोड़ देंगे। दूध सिंथेटिक है या प्राकृतिक और यदि प्राकृतिक है तो इंजेक्शन लगाकर निकाला गया है या सामान्य रूप से आप को कुछ नहीं पता। मोदी ने शौच की सफाई पर अच्छा आग्रह किया है लेकिन भोज्य पदार्थों की साफ सफाई पर चर्चा की भनक नहीं। बाहर शौच जाने से कम बीमारी होती है सड़ा गला खाने से अधिक।
बाजार में आम आ रहा है वह डाल का है या पाल का, यह सामान्य सवाल है। यदि पाल का है तो उसे पकाने में कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग किया गया होगा। यह बात दूसरे फलों पर भी लागू होती है और हम शौक से खाते हैं। खूब बड़ी लौकी देखकर आप ने भी सोचा होगा क्या कमाल की लौकी है लेकिन उसे इंजेक्शन लगाकर बढ़ाया गया है। सब्जियों में विशेष हरापन लाने के लिए सस्ते रंगों का प्रयोग होता है और मीडिया वाले छापते रहते हैं लेकिन प्रशासन का परवाह नहीं। यह सब बातें साधारण मिलावट की श्रेणी में नहीं आती हैं यह लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ है इसलिए जुर्माना लेकर छोड़ देना उचित नहीं है।
यदि हम कैन्ड या पैक्ड फूड का सेवन करेंगे तो उसमें रसायनिक पदार्थों से बचा नहीं जा सकता। उसे आप जंक फूड कहिए या न कहिए वह है तो जंक ही। इसके विपरीत यदि खुले में धूल खाते खाद्य पदार्थो का सेवन करेंगे तो साफ-सफाई की समस्या रहेगी। यदि मौसमी फलों सब्जियों से सन्तुष्ट हो सकें तब थोड़ी सावधानी के साथ अपना स्वास्थ्य बचा सकते हैं लेकिन यदि हमारी सरकारी मशीनरी का यही रवैया रहा तो सुरक्षित खाद्य पदार्थ नहीं मिल सकते। जब लाइसेंस या बिना लाइसेंस खाने की चीजें बेच सकते हैं या लाइसेंस खरीदे जा सकते हैं या फिर चेकिंग को रिश्वत देकर टाला जा सकता हो तो सुरक्षित खाद्य पदार्थ कैसे मिलेंगे।