मौर्यकाल से ही मगध क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित रही है। चूंकि मगध की भौगोलिक स्थितियां पहाड़ी और सूखाग्रस्त क्षेत्र की रही है लिहाज़ा जल संचयन के लिए अहर-पईन (नहर) और तालाबों का निर्माण किया गया। जैसे-जैसे शहरीकरण और बसावटें बढ़ती गईं तालाबों और अहर-पईनों को भर दिया गया। जल संचयन की पारंपरिक व्यवस्थाएं खत्म कर दी गईं। एक अनुमान के अनुसार गया जिले में कभी 200 तालाब थे। जानकार बताते हैं कि इनमें से आधे तालाबों को पाट दिया गया है।
मगध क्षेत्र में पानी की समस्या की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र से पलायन करने की एक बड़ी वजह जल संकट भी है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कुछ एक स्वतंत्र विशेषज्ञों ने जल संचयन की मौर्यकालीन व्यवस्था को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया है। इनमें रवींद्र पाठक का काम बेहद महत्वपूर्ण है।
गंगा का पानी गया जिले में दो तरीके से लाया जा रहा है। एक तो पाइपलाइन योजना के तहत पेयजल की व्यवस्था की जा रही है। दूसरी, फल्गु नदी में गंगा का पानी लाया जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक फल्गु नदी को सीता का शाप लगा है। शाप के अनुसार फल्गु नदी में बरसात के अलावा कभी भी पानी नहीं रहेगा। भूगोल के मुताबिक फल्गु एक बरसाती नदी है। लेकिन बीते वर्षों में गया के लोगों की चिंता रही है कि आम दिनों में बीस से तीस फीट खुदाई करने पर भी फल्गु का पानी नसीब नहीं होता।
“पितृपक्ष में जब देश के कोने-कोने से लोग पिंडदान के लिए गयाजी आते हैं तब फल्गु नदी में पानी नहीं होता। बीते वर्षों में स्थानीय प्रशासन फल्गु में ही बड़े-बड़े कुंड खुदवाता रहा है ताकि तीर्थ यात्रियों को तकलीफ न हो। छठ के वक्त भी कमोबेश फल्गु की यही स्थिति रहती है। तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के कार्यकाल में बीथोशरीफ में डैम (बीयर) बांध बनाकर जल संचयन की योजना पर काम शुरू हुआ था। काम तेज़ी से बढ़ रहा है। उम्मीद है कि अगले एक साल में यह योजना पूर्ण रूप से लागू हो चुकी होगी,” गया के विष्णुपद क्षेत्र में रहने वाले निरंजन पंडा ने गांव कनेक्शन से कहा।
हटाना था हुगली से गाद, जमा दिया गंगा में गाद
गंगा में गाद की समस्या अब नई नहीं है। यह समस्या बीते दो दशकों से चली आ रही है। गाद की वजह से नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और उत्तर बिहार में बाढ़ की समस्या को और भी विकराल बना देता है। गर्मी के मौसम में गाद की वजह से नदी का बहाव धीरे हो जाता है। भारत की महत्वकांक्षी इंलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट (अंतर्देशीय जल परिवहन) के लिए भी गाद सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं गंगा में गाद जमने का असर मोकामा-बड़हिया टाल क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाने वाली हरोहर नदी में भी देखने को मिल रहा है। हर साल बारिश के दिनों में पूरे टाल क्षेत्र में पानी जमा हो जाता है। यह पानी गंगा नदी और दक्षिण बिहार से आने वाली दूसरी नदियों का अतिरिक्त जल होता है। यह कहना गलत न होगा कि मोकामा टाल गंगा नदी के जल संचयन का प्राकृतिक रिजर्व है। बीते वर्षों में हरोहर की तलहटी में भी गाद जमने की समस्या गंभीर हो चली है।
मोकामा टाल क्षेत्र में मोरहर, लोकायन, पंचाने, सेइवा, कुम्हरी समेत एक दर्जन से अधिक छोटी नदियाँ बहती हैं। इन नदियों का उद्गम स्थल बिहार का दक्षिणी पठार क्षेत्र व झारखंड है। इन नदियों से सैकड़ों अहर-पईन जुड़े हुए हैं। अहर-पईनों से होकर मोकामा टाल क्षेत्र के खेतों में पानी पहुँचता है। बारिश के दिनों में इन नदियों से होकर पानी टाल क्षेत्र के खेतों में अपना ठिकाना बनाता है। अमूमन, सितंबर में जब गंगा नदी का जलस्तर कम होने लगता है तो अहर-पईनों के रास्ते पानी हरोहर नदी में पहुँचता है। हरोहर नदी से होकर यह पानी आगे गंगा नदी में मिल जाता है।
आपको बता दें कि नहर और पईन दो अलग-अलग शब्द हैं लेकिन अंग्रेज़ी में दोनों के लिए चलन में एक ही शब्द है – कैनाल (Canal)। नहर में एक इनपुट प्वाइंट होता है, जिसे ‘छेद’ कहा जाता है। पानी एक जगह से घुसता है और कई जगहों पर निकलता है। नहर की संरचना लिनियर (रेखीय) होती है। वहीं पईन में कई इनपुट और आउटपुट प्वाइंट होते हैं। जहां से भी पानी आने की संभावना होती है, पईन के ब्रांच को मेन इनपुट प्वाइंट से जोड़ दिया जाता है। पईन सर्पिलाकार (सरपेंटाइल) का होता है। पईन में ढ़ाल भी होता है। चूंकि पईन में कई जगहों से पानी घुसने और निकलने की संभावना होती है इसीलिए प्राकृतिक ढाल के हिसाब से उसका निर्माण होता है। पईन का भी प्रयोग सिंचाई के लिए होता है।
बहरहाल, हरोहर और गंगा नदी में गाद जमने के कारण दोनों ही नदियों की जल संचयन क्षमता घट गई है। पानी निकासी का एक ही तरीका है कि पानी हरोहर नदी से होकर गंगा पहुंचे। चूंकि गंगा में भी भीषण गाद जमी है लिहाज़ा मोकामा टाल क्षेत्र में पानी निर्धारित समय से अधिक समय तक जमा रह जाता है। स्थानीय लोगों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक बीते 25 से 30 सालों से हरोहर नदी में ड्रेजिंग नहीं हुई है। ड्रेजिंग न होने के कारण गाद भीषण स्वरूप लेती जा रही है। बावजूद इन सबके गाद की समस्या से निबटने के लिए सरकार की ओर से अब तक कोई गंभीर और स्थायी प्रयास नहीं किए गए हैं।
सबसे रोचक तथ्य यह है कि हावड़ा के हुगली नदी से गाद हटाने के लिये बना फरक्का बराज का निर्माण किया गया था। बीते चार दशकों में नतीज़ा देखने को मिला है कि जिस बराज को हुगली से गाद हटाना था, वह गंगा में गाद जमाने लगा। गंगा बिहार की एक बहुत बड़ी आबादी के लिये जीवनरेखा है। लेकिन गाद के कारण लोगों का जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।106200 हेक्टेयर में पसरा मोकामा टाल क्षेत्र भी गंगा में गाद का दंश झेल रहा है।
पिछले वर्ष केंद्र सरकार द्वारा एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने गंगा के बहाव क्षेत्र में 11 हॉटस्पॉट चिन्हित किए जहां से अविलंब गाद हटाए जाने की अनुशंसा की गई। फिलहाल यह रिपोर्ट सेंट्रल वाटर रिसॉर्स डिपार्टमेंट के पास है। महीनों बाद भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
मीडिया से बात करते हुए एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य रामाकर झा ने चेताया था, “बिहार में बक्सर से लेकर पश्चिम बंगाल में फरक्का तक, गंगा का लगभग 544 किलोमीटर का स्ट्रेच गाद से बुरी तरह प्रभावित है। हमने अपनी रिपोर्ट में 11 जगहों से गाद हटाने की बात कही है। अगर अगले पांच वर्षों में इन 11 जगहों से गाद नहीं हटाया गया तो बिहार में बाढ़ का और भी विकराल रूप देखने को मिल सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि गाद हटाने से नदी का बहाव सही रहेगा। बाढ़ के वीभत्स स्वरूप को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
2018 में पटना में आयोजित ईस्ट इंडिया क्लाइमेट चेंज कॉनक्लेव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गाद की वजह से मालवाहक जहाज के फंसने का जिक्र किया था। दरअसल, 2018 में बक्सर के रामरेखा घाट के समीप एक जहाज़ मालवाहक जहाज फंस गया था। इस जहाज को निकालने में अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
सवाल यह उठता है कि जब गंगा और टाल क्षेत्र में गाद की समस्या इतनी गंभीर है तो सरकार क्यों नहीं गया और नालंदा में पानी सप्लाई करने की बजाय दोनों जिलों में जल संचयन की सुचारू व्यवस्था कर रही है? क्या मोकामा टाल क्षेत्र में ही गंगा का पानी नहीं रोका जा सकता है?
जल संचयन क्यों नहीं?
मगध क्षेत्र में आधे से अधिक ज़मीन पथरीली है। शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में पानी की समस्या है। शहरी क्षेत्र के ज्यादातर घरों में निजी बोरिंग ही पेयजल का साधन बनता है।
फल्गु नदी को अतिक्रमण मुक्त कराने का संघर्ष कर रहे बृज नंदन पाठक ने जल संचयन की संभावनाओं पर गांव कनेक्शन से विस्तार पूर्वक बात की। उन्होंने बताया कि गया में गंगा वाटर लिफ्टिंग की योजना जो अब धरातल पर दिखने लगी है, उसकी कहानी दरअसल एक दशक पुरानी है।
आज से करीब दसेक साल पहले गया के धर्मसभा भवन में प्रबुद्ध लोगों की एक बैठक बुलाई गई थी। बैठक की अध्यक्षता गया शहर के विधायक और तत्कालीन प्रेम कुमार ने की थी। उस वक्त मोकामा से पानी लाने की योजना का विरोध बृज नंदन पाठक ने किया था। “चूंकि आप गया के फल्गु के पानी के जल संचयन की संभावनाओं की अवहेलना कर रहे हैं, मुझे संदेह है कि यह योजना आने वाले समय में ‘व्हाइट एलिफैंट’ साबित होगी,” कहते हुए बृज नंदन पाठक ने अपनी आपत्ति दर्ज़ करवाई थी। व्हाइट एलिफैंट का जिक्र बृज नंदन पाठक ने योजना में लगने वाली भारी भरकम रकम के संदर्भ में कहा था।
आपको बता दें कि बृज नंदन पाठक फल्गु नदी में अतिक्रमण के खिलाफ बहुत ही मुखर पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वह इसके लिए पटना हाईकोर्ट में केस भी लड़ रहे हैं। उनकी याचिका पर फल्गु नदी में अतिक्रमण पर कई बार कार्रवाई हुई है। वह राज्य में पर्यावरण पर काम करने वालों में प्रबुद्ध लोगों में शामिल हैं। “सरकार चाहे लोन लेकर इसे बनाए या राजस्व का पैसा लगाए आखिरकार भरना तो पड़ेगा जनता को ही। आप समस्या के निदान के नाम पर हज़ारों करोड़ रुपये लगाने जा रहे हैं तो क्यों नहीं पहले शहर के भीतर मौजूद संसाधनों पर भी गौर कर लेते,” बृज नंदन पाठक पूछते हैं।
बृज नंदन पाठक के अनुसार, गया के विष्णुपद के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है दंडीबाग। शहर में पानी सप्लाई का सबसे बड़ा केंद्र है दंडीबाग। दंडीबाग से थोड़े ही दूर पर है ब्रह्मजोनी पहाड़। यह पहाड़ तीन दिशाओं के खुला हुआ है। अगर इसे एक तरफ से बंद कर दें, तो कई किलोमीटर के प्राकृतिक डैम का निर्माण हो सकता है। फल्गु में प्रत्येक वर्ष बरसात में दो-तीन बार ऐसा मौका आता है जब नदी में लबालब पानी होता है। अगर इसी पानी को ब्रह्मयोनी पहाड़ पर रोक लिया जाए, तो गया शहर की पानी की समस्या खत्म की जा सकती है। पास में ही दंडीबाग है जहां शहर में पानी सप्लाई करने के लिए बहुत सारे पंपिंग स्टेशन लगे हैं। उनके इस्तेमाल से पूरे शहर को पानी की सप्लाई की जा सकती है। बृज नंदन पाठक यह भी जोड़ते हैं कि दंडीबाग क्षेत्र का पानी कंपनियों के बोतल बंद मिनिरल वाटर से भी अच्छी गुणवत्ता का है।
“बावजूद इसके सैकड़ों किलोमीटर से पानी लाने की योजना बनी है। भारी भरकम खर्च किया जा रहा है। यह ठीक बात नहीं है,” बृज नंदक पाठक ने चेताया।
वहीं मगध क्षेत्र में अहर पईन पर काम करने वाले रवींद्र पाठक ने शहरों में मृत प्राय तालाबों पर चिंता जाहिर की। “तालाबों को भरकर मोहल्ले बसा दिए गए हैं। चारों तरफ निजी बोरिंग हो चुकी है। दो-दो, तीन-तीन सौ फीट नीचे से पानी खींच रहे हैं, यह स्थिति कहीं भी भूजल के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। प्रशासन और सरकार इस ओर ध्यान क्यों नहीं देती है?,” रवींद्र पाठक पूछते हैं।
रवींद्र पाठक के मुताबिक, दो सौ तालाबों वाले शहर में अब सिर्फ़ कुछ तालाब बचे हैं। अगर इन तालाबों को भी जीर्णोद्धार कर दिया जाए तो शहर की बड़ी आबादी को पानी की समस्या से उबारा जा सकता है।
दोनों ही विशेषज्ञों ने मोकामा से गंगा वाटर लिफ्टिंग योजना को पर्यावरण के लिहाज़ से सही नहीं माना। उनके मुताबिक इन शहरों में पहले से जो संसाधन मौजूद हैं, उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे शहरों की जो ऐतिहासिक, पौराणिक और पारंपरिक महत्ता है, उसे बरकरार रखा जा सकता है। साथ ही अहर पईन और फल्गु के पानी का जल संचयन शहरों की भौगोलिक परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाता है।
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