कोरोना लॉकडाउन के कारण पिछले दस महीने से बंद स्कूलों को बजट से भी निराशा हाथ लगी है। कोविड की प्रतिकूल परिस्थितियों, डिजिटल शिक्षा पर बढ़ती निर्भरता और नई शिक्षा नीति को देखते हुए इस साल स्कूली शिक्षा के बजट में खासी बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी। वहीं कई शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता शिक्षा क्षेत्र के लिए विशेष कोविड पैकेज की मांग कर रहे थे, जिसमें शिक्षा बजट में कम से कम 10% की बढ़ोतरी का मांग शामिल थी। लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल भी शिक्षा बजट में कुछ खास वृद्धि नहीं की गई है। (बल्कि यह 2020-21 के मूल बजट की घोषणा से कम ही है।)
एक फरवरी 2020 को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश किया था, तो शिक्षा मंत्रालय को 99,311.52 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लेकिन संशोधित अनुमानों में इस राशि को कम कर 85,089 करोड़ रुपए कर दिया गया। अब इस साल के बजट में शिक्षा क्षेत्र को 93,224.31 करोड़ रुपए का बजट मिला है, जो कि 2020-21 के बजट से लगभग 8 हजार करोड़ रुपए अधिक तो है लेकिन शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता यह भी याद दिला रहे हैं कि यह 2020-21 के मूल बजट से 6 हजार करोड़ रुपए कम है, जो कि शिक्षा की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए निराशाजनक है।
अगर इस साल के स्कूली शिक्षा बजट की बात करें तो स्कूली शिक्षा विभाग को इस साल की बजट से 54,873 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया। 2020-21 के बजट में यह राशि 52,189 करोड़ रुपए थी, जबकि फरवरी 2020 में पेश बजट में इसके लिए 59,845 करोड़ रुपए से का आवंटन किया गया था। यानी संशोधित अनुमानों में इसे लगभग 7 हजार करोड़ रुपए कम कर दिया गया। जबकि 2019-20 इस मद पर 52,520 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे।
कोविड महामारी के कारण शिक्षा जगत पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वहीं नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण भी कई तरह के नए बदलाव हुए हैं और आगे भी होने हैं।
शिक्षा जगत से जुड़े लोगों ने महामारी के कारण स्कूली शिक्षा के इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देने के लिए इसमें कम से कम 10 फीसदी की बढ़ोतरी की मांग की थी। नई शिक्षा नीति के लागू होने और उसके इर्द-गिर्द नई संस्थाओं, पाठ्यक्रमों व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण होने के कारण भी शिक्षा बजट में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी।
राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय, गांव कनेक्शन से बातचीत में कहते हैं, “देश की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था पहले से ही ढेर सारी चुनौतियों से जूझ रही है। कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने भी शिक्षा क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऐसे में जरूरी था कि सरकार शिक्षा के मद में सामान्य से अधिक बजट और अतिरिक्त कोविड पैकेज की घोषणा करे। लेकिन सरकार ने निराश किया है।”
कोरोना लॉकडाउन और उससे हुई स्कूल बंदी के कारण बालिकाओं की शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित हुई है और उन्हें घरेलू कामों और बाल विवाह की तरफ मजबूरन जाना पड़ा है।
हाल ही में सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS), चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) और राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने एक साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक सर्वे किया था, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है।
घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी गई, वहीं कोरोना के कारण आर्थिक तंगी से भी लड़कियों की पढ़ाई छूटने का डर शामिल हो गया। इस सर्वे के अनुसार 37% लड़कों की तुलना में महज 26% लड़कियों को ही पढ़ाई के लिए फोन मिल पाया। इस तरह मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा देने में घर और परिवार वाले लड़कों को ही प्राथमिकता देते हैं।
इसी सर्वे में ही 71 प्रतिशत लड़कियों ने माना था कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और ऑनलाइन पढ़ाई के समय में भी उन्हें घरेलू काम करने के लिए कहा जाता है। ऐसे सवाल पर सिर्फ केवल 38 प्रतिशत लड़कों ने ही कहा कि उन्हें पढ़ाई के समय घरेलू काम करने को कहा जाता है। इस सर्वे में लंबे समय तक स्कूल बंद होने के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने और उनके जल्दी शादी करने के भी कई मामले उदाहरणस्वरूप दिए गए थे।
यही कारण है कि बजट से पहले शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं ने वित्त मंत्री को चिट्ठी लिखकर बालिका शिक्षा के लिए बजट में अलग और विशेष प्रावधान की मांग की थी। लेकिन इसके उलट इस साल के बजट में लड़कियों के लिए नेशनल स्कीम फॉर इनसेंटिव टू गर्ल्स फॉर सेकंडरी एजुकेशन के तहत दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि को सिर्फ एक करोड़ रखा गया है। पिछले साल के मूल बजट में इस योजना के लिए 110 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया था लेकिन बाद में इसे संशोधित कर सिर्फ 1 करोड़ रुपये कर दिया गया था, जो कि 99.1% की एक अप्रत्याशित कमी थी।
इसके अलावा नई शिक्षा नीति में बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन के लिए लैंगिक समावेशी कोष (जेंडर इंक्लूसिव फंड) की बात की गई थी, जिसकी कोई चर्चा बजट में नहीं हुई। यह तब है, जब भारत में लगभग 57% लड़कियों को को 10वीं या उसके बाद स्कूल छोड़ना पड़ता है।
ऑक्सफ़ेम इंडिया की स्वास्थ्य और शिक्षा इकाई की प्रमुख एंजेला तनेजा ने कहा कि ऐसे समय जब लाखों बच्चे महामारी के कारण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं, उस समय शिक्षा के बजट के लिए कुछ खास नहीं करना और बालिका शिक्षा के लिए कोई विशेष कदम ना उठाना निराशाजनक हैं। इसके अलावा गरीब बच्चे डिजिटल डिवाइड का भी शिकार हो रहे हैं, उनके बारे में भी कोई प्रावधान इस बजट में नहीं किया गया है। यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है।
अम्बरीष राय करते हैं कि बजट के ये प्रावधान गरीब, हाशिए पर रहने वाले समुदायों, विशेषकर लड़कियों के नामांकन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे और स्कूलों में ड्रॉप आउट रेट और बढ़ेगा।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में बताया कि पीपीपी मॉडल पर गैर सरकारी संगठनों, निजी स्कूलों और राज्यों की भागीदारी के साथ देशभर में 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाएंगे। इसके अलावा आदिवासी इलाकों में 750 एकलव्य स्कूल और नई शिक्षा नीति के तहत देश भर में 15,000 आदर्श स्कूल बनाए जाएंगे। ये आदर्श स्कूल अन्य विद्यालयों के लिए उदाहरण होंगे।
अम्बरीष राय ने इस पर भी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक समावेशी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए सरकार को बजट आवंटन बढ़ाना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय सरकार पीपीपी मॉडल की तरफ जाते हुए शिक्षा के क्षेत्र में भी निजीकरण का मार्ग प्रशस्त कर रही है। यह बहुत खतरनाक है और ‘राइट टू एजुकेशन’ की मूल धारणा के विपरीत है।
एंजेला तनेजा ने कहा कि एक तो देश में भारी आदिवासी जनसंख्या को देखते हुए 750 एकलव्य स्कूलों की संख्या बहुत कम है। यह एक तरह से फिजूलखर्ची है, जो 750 स्कूलों को उच्च स्तरीय बनाने में होगी, बाकी देश के लाखों आदिवासी छात्र फिर भी शिक्षा से वंचित रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ 15,000 नहीं बल्कि देश भर के सभी 15 लाख स्कूल ‘आदर्श स्कूल’ होने चाहिए। सिर्फ एक प्रतिशत स्कूलों को आदर्श और गुणवत्तापूर्ण बनाकर हम देश में शिक्षा का स्तर नहीं सुधार सकते।
हालांकि उन्होंने अनुसूचित जाति के बच्चों को दिए जाने वाले पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की बजट राशि बढ़ाने की प्रशंसा की। इस बार के बजट में अनुसूचित जाति छात्रों के लिए दी जाने वाली पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आगामी 6 वर्षों के लिए 35,219 करोड़ रुपए की घोषणा की गई है, जिससे देश के अनुसूचित जाति के लगभग 4 करोड़ छात्रों को लाभ होगा।
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