सर्दियों के सीजन में भारत में हर साल दिल्ली समेत पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। पिछले साल प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था। केंद्र सरकार प्रदूषण रोकने के लिए एक अध्यादेश के जरिए कड़ा कानून लाई है। हालांकि जिस तरह से यह कानून लाया गया है और जो इसके प्रावधान हैं उनको लेकर कई जगह विरोध शुरू हो गया है। मामला पराली से भी जुड़ा है और इस कानून के तहत बनने वाले आयोग में किसानों की भागीदारी न होने पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन अध्यादेश, 2020 जो कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद अब कानून बन चुका है, के तहत दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण फैलाने का दोषी पाए जाने वालों पर पांच साल तक की जेल की सजा और एक करोड़ रूपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। प्रदूषण फैलाने वालों का बिजली पानी भी बंद किया जा सकता है। इसके अलावा इस कानून के तहत वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक आयोग (कमीशन) भी बनाया जाएगा, जो दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण पर लगातार निगरानी बनाए रखेगा।
यह आयोग वाहन प्रदूषण, धूलकण प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण के साथ-साथ पराली जलाने के मसले को मॉनीटर करेगी जिससे कि दिल्ली और एनसीआर में हवा की गुणवत्ता खराब होती है। आयोग प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ शिकायत की सुनवाई और उसके आधार पर कार्रवाई कर सकती है। इसके अलावा आयोग को प्रदूषणकारी इकाइयों को बंद करने और निरीक्षण करने का अधिकार भी होगा। हालांकि आयोग के आदेश के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में अपील की जा सकेगी। यह आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद के समक्ष पेश करेगा।
We are setting up a Commission for more concerted, well coordinated and effective action for control of #AirPollution in Delhi-NCR and adjoining areas.
Detailed gazette notification⬇️ https://t.co/UBvYj48DdE@narendramodi @moefcc @PIB_India pic.twitter.com/KxVEbjezNc
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) October 29, 2020
इस आयोग में कुल 18 सदस्य होंगे, जिसका अध्यक्ष पूर्णकालीन और सचिव रैंक का होगा। वह सत्तर साल की उम्र तक काम कर सकेंगे। वहीं 18 सदस्यों में नौकरशाही, पर्यावरण कार्यकर्ता और पर्यावरण विशेषज्ञ होंगे। सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होगा। सभी 18 सदस्यों का चयन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की अध्यक्षता वाली चयन समिति करेगी। इस आयोग का काम प्रदूषण की मॉनिटरिंग करना, पर्यावरण कानून से संबंधित मामले को देखना होगा और साथ ही प्रदूषण पर रिसर्च व नई तकनीकों पर भी यह आयोग काम करेगा।
इससे पहले केंद्र सरकार ने 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट से बताया था कि वह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पराली जलाने से रोकने और वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए सरकार एक कड़ा कानून लाने जा रही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस आदेश पर स्टे लगा दिया था जिसमें उसने जस्टिस मदन बी लोकूर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया था ताकि एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण पर निगरानी की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोरोना काल में लोग पहले से ही परेशान है, इसलिए जरूरी है कि प्रदूषण की समस्या इस बार बड़ी ना हो। ऐसे में वायु प्रदूषण रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जाएं। तब केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार इस मामले में एक व्यापक और समग्र कानून लाने जा रही है और इसका ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने चार दिनों के अंदर पेश कर दिया जाएगा।
आयोग को यह अधिकार होगा कि वह किसी उद्योग को वायु प्रदूषण फैलाने पर प्रतिबंधित करने का आदेश दे। इस अध्यादेश के अनुसार, “आयोग आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत तलाशी भी ले सकता है और प्रदूषण का सबूत पाए जाने पर उस स्थान को जब्त भी कर सकता है। इसके अलावा आयोग प्रदूषण के जिम्मेदार लोगों को वारंट भी जारी कर सकता है।” इस तरह से इस आयोग के पास समस्त कानूनी अधिकार होंगे।
सरकार के अनुसार यह नया आयोग 22 साल पुराने पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) की जगह लेगा। सुप्रीम कोर्ट से भी इसकी अनुमति मिल गई है। EPCA ने ही दिल्ली में सीएनजी वाहनों के संचालन का आदेश दिया था।
आयोग की संरचना पर हो रहा विवाद
इस कानून में जिस आयोग के गठन की बात की गई है, उसमें एक अध्यक्ष, एक सचिव और विभिन्न मंत्रालयों के 8 संबंधित सदस्य होंगे । इसके अलावा इस आयोग में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के प्रतिनिधि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, नीति आयोग और प्रदूषण के विशेषज्ञ और एनजीओ के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
यह आयोग प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ तालमेल स्थापित करेगा। हालांकि कुछ लोगों ने इसके गठन और सदस्यों की संख्या पर आपत्ति दर्ज कराई है। स्वराज इंडिया के संयोजक और कृषि कानूनों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे योगेंद्र यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा कि इस आयोग में किसानों का कोई प्रतिनिधि है जबकि यह आयोग देश के 5 बड़े और प्रमुख राज्यों के किसानों को कभी भी कोई आदेश दे सकता है।
So, a Commission without any farm representative, can order any farmer in 5 states to:
* Change cropping pattern
* Prescribe method for parali disposal
* Stop electricity, water
* Fine upto ₹1 cr
* Prison upto 5 yrs
* With no appeal except NGT
Can farmers accept this? pic.twitter.com/TGB9Y9fRl2— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) October 29, 2020
उन्होंने लिखा, “यह आयोग इन 5 राज्यों के किसानों को फसल उगाने और काटने के तरीकों में बदलाव करने, पराली का प्रबंधन करने के तरीके में परिवर्तन करने और यहां तक कि उनका बिजली-पानी काटने पर भी आदेश दे सकता है। क्या किसानों के प्रतिनिधि के बिना ऐसा करना न्यायोचित होगा?” इस अध्यादेश में आयोग को प्रदूषण फैलाने वाले लोगों और कारकों पर बिजली व पानी की आपूर्ति को भी नियंत्रित करने और उसे पूरी तरह प्रतिबंधित करने की शक्ति दी गई है।
वहीं पूर्व पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने इस कानून का स्वागत किया और कहा कि पूरे देश में दिल्ली सहित 88 ऐसी जगहें हैं, जहां की हवा की गुणवत्ता बहुत ही अधिक खतरनाक है। इसलिए सिर्फ दिल्ली एनसीआर नहीं पूरे देश को शुद्ध हवा की जरूरत है और हम इसकी मांग करते हैं।
Modi Sarkar has just issued an Ordinance to manage air quality in and around Delhi, the most pampered part of the country. There are at least 88 critically polluted clusters across India identified in 2010. The entire country demands and deserves clean air.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) October 29, 2020
हालांकि कई लोगों ने सरकार के इस कदम का स्वागत भी किया है। इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर दी सेमी एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) के निदेशक अरबिंद कुमार ने कहा, “यह स्वागतयोग्य कदम है। प्रदूषण से सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि आस-पास के राज्यों के आम लोग भी प्रभावित होते हैं। यह कानून प्रदूषण को रोकने में मदद करेगा, बशर्ते यह पूरी कड़ाई के साथ लागू हो।”
The Ordinance promulgated for constitution of a Commission for air quality management in NCR & adjoining areas is a welcome move. Besides for citizens of Delhi, poor air quality is harmful for people living around stubble burning areas in neighbouring States. Implementation key!
— Arabinda K Padhee (@arvindpadhee) October 30, 2020
इस मामले में अपने वकील साथी अमन बांका के साथ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने वाले 17 वर्षीय छात्र आदित्य दुबे ने भी केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया और कहा कि इस आयोग का जल्द से जल्द गठन करने की जरूरत है, क्योंकि दिल्ली एनसीआर की हवा दिन प्रतिदिन लगातार खतरनाक हो रही है और इसकी देखभाल करने वाला पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) भी अब अस्तित्व में नहीं रहा। उन्होंने प्रधानमंत्री और पर्यावरण मंत्रालय से जल्द से जल्द इस नए कानून के प्रावधानों को लागू करने की गुजारिश की।
आदित्य दुबे पिछले साल से ही लगातार दिल्ली एनसीआर की खराब होती हवा को लेकर सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सक्रिय रहे हैं। पहले उन्होंने अपने साथियों के साथ इंडिया गेट, संसद भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था और फिर जब उनकी बात इस माध्यम से नहीं सुनी गई तो उन्होंने वकालत पढ़ रहे अपने मित्रों के साथ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। इसी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे और फिर केंद्र ने भी एक सख्त कानून लाने की बात कही थी।
. @PrakashJavdekar Sir,
Request you to kindly notify the #AirPollution Commission today as the #AQI levels continue to spike & now we dnt even hav EPCA to manage it
So we immediately need the Commission to start functioning, else #Covid+ #AQI will hv catastrophic effect @PMOIndia https://t.co/7BmPkkOVQc pic.twitter.com/465y0LMxSc— Aditya Dubey (@AdityaDubey2003) October 30, 2020
लगातार बिगड़ रही है दिल्ली-एनसीआर की हवा
राजधानी दिल्ली की लगातार हवा बिगड़ रही है। शुक्रवार सुबह आनंद विहार सहित दिल्ली एनसीआर के सभी प्रमुख इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से 500 के बीच में रहा, जो कि बहुत ही खतरनाक (Hazardous) की श्रेणी में आता है। AQI में यह बढ़ोतरी हर साल अक्टूबर के शुरू में होती है, जब सर्दियां शुरू होती हैं, ये सीजन धान कटाई का भी होता है। दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण और स्मॉग के लिए ज्यादातर बार पराली जलाने को जिम्मेदार बताया जाता है हालांकि आकंड़ों में ये प्रतिशत बहुत कम होता है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ किसानों या पराली का मसला नहीं है, बल्कि यह कई तरह के प्रदूषण के एक साथ होने का मसला है, जिसमें निर्माण क्षेत्र में हो रहा प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण और यातायात से हो रहा प्रदूषण प्रमुख है।
पराली के प्रबंधन के लिए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट तीन राज्यों के किसानों को पराली न जलाने वाले किसानों को धान की हिसाब से 100 रुपए प्रति कुंतल आर्थिक अनुदान देने की बात की थी लेकिन उसका पालन नहीं हुआ। इस बार सुप्रीम कोर्ट की संख्ती को देखते हुई कई जगहों पर हलफनामें भरवाए गए हैं।
इस नए अध्यादेश को पूरा यहां पढ़ें-
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