“खेत से सब्जियां तुड़वा कर जब तक मंडी तक पहुँचते है, तब तक मंडी बन्द होने का समय हो जाता है। ऐसे में औने पौने दामों पर सब्जियों को बेचना पड़ रहा है। इस बार ईश्वर ने ऐसी तबाही मचा रखी है, जिसके चलते किसान ख़त्म होने के कगार पर पहुच गया है,” यह बात कहते-कहते किसान अमरदीप सिंह दुखी हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद के हरगांव ब्लाक के नौनेर के रहने वाले किसान अमरदीप सिंह ने अपने 5 एकड़ की खेत में खीरा, तरबूज, खरबूज, लौकी और कद्दू जैसी सब्जियां लगाई हैं। इसमें उनका करीब ढाई लाख का लागत आया है। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के चलते इस बार फसल का सही मूल्य नही मिल पा रहा है।
कोरोना वायरस से लड़ते भारत में लॉकडाउन के दौरान सब्जी और फल को जरूरी चीजों की लिस्ट में रखा गया है, लेकिन पुलिस प्रशासन की सख्ती और शुरुआती दो हफ्तों तक विशेष गाइडलाइंस न होने के चलते किसानों का मंडी पहुंचना मुश्किल रहा। अभी भी कई जगहों पर कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने पर मंडियों तक किसानों का पहुंचना मुश्किल हो रहा है।
लॉकडाउन में निर्यात बंद है। कई राज्यों में मंडियां ठप पड़ी हैं। जो मंडियां खुल रही हैं वहां सिर्फ रात में काम हो रहा। साप्ताहिक बाजारों और सड़क किनारे लगने वाले बंद होने के चलते टमाटर, हरी मिर्च, गोभी, शिमला मिर्च, धनिया, कद्दू लौकी, खीरा जैसी सब्जियां और फलों की खेती करने वालों को भारी नुकसान हुआ है। शहरों में सब्जियां कई गुना महंगी बिक रही हैं, लेकिन गांवों में किसानों को उनका लागत भी नहीं मिल पा रहा।
अमरदीप कहते हैं, “लाकडाउन के चलते मजदूर समय पर मिलते नही है, जिसके कारण मंडी में समय से पहुच पाना मुश्किल हो रहा है। जब मंडी पहुँचते है तो वहां व्यापारी मनमाने दामों पर सब्जियां ख़रीदते हैं। ऐसे में हम लोगो के लिए इस बार फ़सल की लागत जितना भी कमाई नहीं कर पा रहे हैं। यह मुश्किल अमरदीप ही नहीं सीतापुर जिले के हजारों किसानों की है, जिन्हें लॉकडाउन के कारण अपनी सब्जियों का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है और वे निराश हैं।
अमरदीप सिंह ने इस बाबत जिला उद्यान अधिकारी को पत्र भी लिखा है। उस पत्र में उन्होंने जिला उद्यान अधिकारी से सीधे ग्राहकों को माल बेचने की अनुमति मांगी है, ताकि किसान ग्राहकों से सीधे जुड़ कर अपनी फसल की लागत तो निकाल सके।
सब्जी उत्पादक किसानों के संगठन वेजिटेबल ग्रोवर एसोशिएन के चेयरमैन श्रीराम गढ़वे कहते हैं, “भारत में सब्जी किसान पहले ही मौसम की मार से परेशान था, कई राज्यों में मार्च की बारिश से भारी नुकसान हुआ था, और जो बचा था वो लॉकडाउन में चला गया। हमारे साथ करीब 20 हजार किसान जुड़े हैं। सबके सामने दिक्कत ट्रांसपोटेशन की है। अब मजदूर भी नहीं मिल रहे। सप्लाई चेन प्रभावित होने से भी दिक्कतें आ रही हैं।”
सीतापुर के मिश्रिख तहसील के बेलहरी गांव के किसान सुधीर गांधी बताते हैं कि उन्होंने दो एकड़ खेत में भिन्डी, लौकी और मक्का लगा रखा है। इस समय भिन्डी की फसल अच्छी निकल रही है, लेकिन लाकडाउन के चलते व्यापारी न मिलने के कारण सब्जी का रेट नही मिल पा रहा हैं। उन्हें अपनी भिन्डी महज 6 से 7 रुपये प्रति किलो की दर से बेचना पड़ रहा है, जबकी बाजार में इसी भिन्डी का रेट 40-50 रूपया प्रति किलो है।
भारत में फल और सब्जियों की खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2004-05 में भारत में 101.2 मिलियन टन सब्जी की पैदावार हुई थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 184.40 मिलियन टन तक पहुंच गई। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत में सबसे ज्यादा खराब सब्जियां ही होती हैं।
इमर्सन क्लाइमेट टेक्नोलॉजी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, “विश्व में फल और सब्जी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश अपनी खराब सप्लाई चेन, ट्रांसपोटेशन और कोल्ट स्टोरेज की पर्याप्त व्वयस्था न होने से हर साल करीब 13,300 करोड़ रुपए के उत्पादन बर्बाद कर देता है।”
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन: किसान की फ़ैक्टरी चालू है, पर ख़रीदार नहीं, सब्जी किसान तबाह हो गए
लॉकडाउन: अरब देशों तक थी यहां के हरी मिर्च की मांग, अब अच्छी कीमत को तरस रहे किसान