उत्तर प्रदेश के बिजनौर के राजन दलेल (24 वर्ष) ने जुलाई, 2015 में जब उत्तराखंड के पतंजलि आयुर्वेदिक कॉलेज, हरिद्वार के बीएएमएस कोर्स में एडमिशन लिया था तब उनकी सालाना फीस 80 हजार रुपये थी। एडमिशन के तीन महीने बाद अक्टूबर, 2015 में उन्हें पता चला कि उन्हें अब इस कोर्स के लिए हर साल 2 लाख 15 हजार रुपये देने होंगे, क्योंकि फीस बढ़ा दी गई है।
एक किसान पिता के बेटे राजन को इसके बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एडुकेशन लोन लेना पड़ा। राजन सहित ऐसे लगभग हजारों छात्र-छात्राएं हैं, जिन्हें उत्तराखंड के प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में बढ़ी हुई फीस के कारण अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एडुकेशन लोन लेना पड़ा। अब इन छात्रों की चिंता है कि वह इस लोन को कैसे भरेंगे क्योंकि कॉलेज प्रशासन उन्हें धमकी दे रहे हैं, परीक्षा में बैठने से रोक रहे हैं और डिग्री रोकने की चेतावनी दे रहे हैं।
मामला उत्तराखंड के 16 प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की पढ़ाई कर रहे 4000 से अधिक आयुष छात्रों का है, जिनकी सालाना फीस 80 हजार रुपये से बढ़ाकर 2 लाख 15 हजार रुपये कर दी गई थी। हालांकि हाईकोर्ट ने इस फीस वृद्धि को नियमों के विरुद्ध माना और राज्य सरकार को आदेश दिया कि वे छात्रों की फीस वापस कराएं।
कोर्ट और शासन के आदेश के बावजूद ये प्राइवेट कॉलेज लगातार मनमानी कर रहे हैं और छात्रों पर बढ़ी हुई फीस वसूलने का दबाव बना रहे हैं। आंदोलन करने वाले छात्रों का आरोप है कि कॉलेज प्रशासन उन्हें परीक्षा में ना बैठने देने और डिग्री रोकने की धमकी दी जा रही है। इस वजह से छात्र परेशान हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई लगातार प्रभावित हो रही है और वे लोग मानसिक रुप से खुद को तंग महसूस कर रहे हैं।
इन छात्रों की मांग है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार बढ़ी हुई फीस वापस ली जाए और जिन छात्रों से बढ़ी हुई फीस वसूली गई है, उन्हें कोर्ट के आदेश के अनुसार ही छात्रों का वापस दिया जाए। वहीं कॉलेजों ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया हुआ है। वह फीस वापसी के सख्त खिलाफ हैं और उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला सबसे पहली बार अक्टूबर, 2015 में सामने आया था, जब उत्तराखंड के प्राइवेट कॉलेजों में बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) कोर्स की सालाना फीस को 80 हजार रुपये से बढ़ाकर 2 लाख 15 हजार रुपये कर दिया गया था। इस बढ़ी हुई फीस के खिलाफ छात्र हाईकोर्ट चले गए। छात्रों का तर्क था कि यह शुल्क वृद्धि नियमों के खिलाफ है क्योंकि यह बिना किसी शुल्क नियामक कमेटी के सुझाव से सत्र के बीच में हुआ है।
दिसंबर, 2016 में उत्तराखंड हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस फीसवृद्धि पर रोक (स्टे) लगा दिया। जुलाई, 2018 में कोर्ट ने भी माना कि यह शुल्क वृद्धि नियमों के खिलाफ है। कोई भी शुल्क वृद्धि शुल्क नियामक कमेटी के सलाह के बिना नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट ने कॉलेजों को उन बच्चों के फीस वापिस करने का भी आदेश दिया, जिन्होंने बढ़ी हुई फीस के आधार पर शुल्क भरे थे।
कॉलेजों ने हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के इस आदेश के खिलाफ डबल बेंच में अपील की। लेकिन डबल बेंच ने भी कॉलेजों के इस अपील को ठुकरा दिया और अक्टूबर, 2018 में राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि किसी भी छात्र से बढ़ा हुआ फीस नहीं वसूला जाए। इसके अलावा यह भी आदेश दिया गया कि 6 महीने के भीतर उन छात्रों के फीस वापिस लिए जाए, जिनसे बढ़ी हुई फीस वसूली गई है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार ने शासनादेश जारी करते हुए फीस बढ़ोतरी को वापिस ले लिया। लेकिन कॉलेज प्रशासन बढ़ी हुई फीस वसूलने को लेकर अड़े रहे। उन्होंने छात्रों और अभिभावकों पर दबाव बनाया कि अगर वे फीस नहीं जमा करेंगे तो उनका करियर बर्बाद हो जाएगा। छात्र हमें कुछ ऑडियो और वीडियो भी दिखाते हैं, जिसमें कॉलेज प्रशासन के लोग छात्रों को एक कमरे में बंद कर उन पर दबाव बनाते, धमकी देते दिख रहे हैं। दूसरी तरफ कॉलेजों ने डबल बेंच के इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार दायर कर दी, जो कि अभी तक अदालत में पेंडिंग है।
कॉलेजों द्वारा सुप्रीम कोर्ट और शासनादेश ना मानता देख छात्र अक्टूबर, 2019 में धरने पर बैठ गए। फीस वृद्धि के खिलाफ आयुर्वेद छात्रों ने उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों से अपना धरना और विरोध प्रदर्शन किया था। राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में भी लगातार 62 दिनों तक हजारों आयुर्वेद छात्रों ने धरना दिया। कुछ छात्र भूख हड़ताल पर भी बैठे।
भूख हड़ताल करने वाले एक छात्र ललित मोहन तिवारी गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “यह कॉलेजों की पूरी मनमानी है, जिसे आप साफ-साफ देख सकते हैं। छात्रों के धरने-प्रदर्शन का उन पर कोई दबाव नहीं था लेकिन हाई कोर्ट और शासन का आदेश ना मानना दिखाता है कि कॉलेज प्रशासन को छात्र, सरकार, कोर्ट किसी से भी डर नहीं लगता।”
ललिल मोहन इस दौरान कॉलेज प्रबंधन और राजनेताओं के सांठ-गांठ की भी बात करते हैं। वह कहते हैं, “ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तराखंड के अधिकतर कॉलेज या तो राज्य के बड़े नेताओं के रिश्तेदारों के हैं या फिर किसी वर्चस्व वाले आदमी के। जैसे- राज्य के आयुष शिक्षा मंत्री हरक सिंह रावत के बेटे तुषित रावत ‘दून इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज‘ के डॉयरेक्टर हैं, इसी तरह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी आरुषि निशंक ‘हिमालयन आयुर्वेदिक कॉलेज’ की चेयरमैन है। ठीक इसी तरह बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का प्रदेश और देश में अपना राजनीतिक वर्चस्व है, जो कि ‘पतंजलि आयुर्वेदिक कॉलेज’ के कर्ता धर्ता है।” फीसवृद्धि के मुद्दे पर बालकृष्ण पर भी छात्रों को धमकाने का आरोप लगा था। उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल भी हुआ था।
मुख्यमंत्री और उत्तराखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के आश्वासन के बाद आंदोलनरत छात्र 62 दिनों बाद धरने से उठे। इसके बाद मुख्यमंत्री ने फिर से शासनादेश जारी करते हुए आदेश दिया कि फीस वापस नहीं करने वाले कॉलेजों की संबद्धता यूनिवर्सिटी एक्ट की धारा 37ए के तहत समाप्त की जाएगी।
छात्रों का आरोप है कि इसके बाद भी कॉलेज, हाईकोर्ट और सरकार की बात नहीं मान रहे हैं और छात्रों पर दबाव बना रहे हैं कि वे बढ़ी हुई फीस जमा कर दें। छात्रों का यह भी आरोप है कि कॉलेज प्रशासन के द्वारा उन्हें धमकाया जाता है, उन्हें मानसिक रुप से प्रताड़ित किया जाता है और भविष्य खराब करने की धमकी दी जाती है। छात्रों और कॉलेज के बीच चल रहे इस द्वंद से अध्य्यन-अध्यापन के साथ-साथ सेशन प्रभावित हो रहा है और परीक्षाएं भी देर से हो रही हैं।
देहरादून के देवभूमि कॉलेज में बीएएमएस तीसरे वर्ष के छात्र प्रखर मिश्रा गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “कॉलेज वाले फीस वापिस करने के बिल्कुल भी मूड में नहीं दिख रहे। वे हाई कोर्ट, सरकार किसी से भी नहीं डरते। मुख्यमंत्री ने कहा था कि शासन और कोर्ट का आदेश नहीं मानने वाले कॉलेजों पर कार्रवाई होगी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही। वे लोग लगातार मनमानी कर रहे हैं। उनके पास छात्रों का पैसा पड़ा हुआ है, जो इन्होंने बढ़ी हुई फीस के नाम पर वसूले थे। लेकिन ये लोग उसे वापिस करने की बजाय हम छात्रों से और फीस मांग रहे हैं।”
ताजा घटनाक्रम में कई छात्रों के परीक्षा प्रवेश पत्र नहीं जारी किए गए और उन्हें मुख्य परीक्षा से पहले होने वाले सेशनल परीक्षा में बैठने से रोकने की कोशिश की गई। 24 जनवरी, 2020 की रात को छात्रों ने इसके खिलाफ उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के सामने प्रदर्शन किया तब जाकर छात्रों को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली। इस दौरान 25 जनवरी की परीक्षा को टाल दिया गया।
प्रखर कहते हैं, “इससे अधिक दुःख की बात क्या होगी कि हमें परीक्षा के एक रात पहले प्रवेश पत्र के लिए धरना देना पड़ता है, जबकि उस वक्त हमें परीक्षा की तैयारी के लिए अपने कमरे में होना चाहिए। वे (कॉलेज प्रशासन) यह दिखाना चाहते हैं कि तुम भले ही कोर्ट में जीत जाओ लेकिन कॉलेज परिसर में नहीं जीत सकते। वे सामने से बोल देते हैं कि पैसा वापिस नहीं करेंगे।”
निराश प्रखर अंत में कहते हैं, “हर जगह से हम छात्रों को निराशा मिल रही है। न्याय होने के बावजूद हमको न्याय नहीं मिल रहा।”
उत्तराखंड के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के एसोसिएशन के चेयरमैन अश्विनी कम्बोज ने छात्रों के इन आरोपों पर कहा, “यह मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है। हमने हाईकोर्ट के डबल बेंच के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर फैसला आ जाने के बाद ही हम कोई टिप्पणी कर सकेंगे।” इसके बाद उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया।
गांव कनेक्शन ने इस संबंध में उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील कुमार दोषी से फोन और ई-मेल द्वारा संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका कोई भी जवाब नहीं मिला। उनका जवाब मिलते ही स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी।
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