कोरोना संकट में दिहाड़ी से भी कम स्टाइपेंड पर काम कर रहे हैं उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मेडिकल इंटर्न

उत्तर प्रदेश में एक मेडिकल इंटर्न का एक दिन का स्टाइपेंड 250 रूपये है, वहीं राजस्थान में यह महज 235 रूपये है। इन मेडिकल इंटर्न का कहना है कि उन्हें जो स्टाइपेंड मिलता है, वह अकुशल मजदूरों के लिए तय सरकारी मानक वेतन से भी बहुत कम है जबकि उनका काम पूरी तरह से स्किल्ड और रिस्क से भरा हुआ है।
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“कोरोना के मरीज सबसे पहले हमारे पास आता है, लेकिन अगर हमें एन-95 मास्क खरीदना हो तो अपने दो दिन का मेहनताना लगाना होगा,” बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में एमबीबीएस की पढ़ाई कर इंटर्नशिप कर रहे हेमंत राय (25 वर्ष) गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं।

हेमंत राय बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर से एमबीबीएस हैं और कोरोना के खिलाफ देश की लड़ाई लड़ रहे लाखों ‘कोराना योद्धाओं’ में से एक हैं। कोरोना काल में बढ़े हुए काम के दबाव से हेमंत राय को कोई खास दिक्कत नहीं है। उनका कहना है कि यह उनकी ‘ड्यूटी’ है और वह अपना काम ही कर रहे हैं। लेकिन इस काम के बदले मिलने वाले मेहनताने, जिसे तकनीकी भाषा में ‘स्टाइपेंड’ कहा जाता है, से वह खुश नहीं हैं।

हेमंत की ही तरह स्थिति दिनेश चौधरी (26 वर्ष) की है, जो जोधपुर, राजस्थान के एस.एन. मेडिकल कॉलेज में इंटर्न है। कोरोना के इस संकट काल में उन्हें जोधपुर से 200-250 किलोमीटर दूर गांवों में ड्यूटी के लिए भेजा जा रहा है। उन्हें भी इससे कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि उनके मुताबिक यह उनका ‘फर्ज’ है। लेकिन वह भी इसके बदले मिलने वाले सरकारी स्टाइपेंड से नाराज हैं।

देश में कोरोना से लड़ाई में डॉक्टरों के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग जैसे- नर्स, पैरामेडिकल स्टॉफ, लैब टेक्नीशियन, मेडिकल इंटर्न और आशाकर्मी भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन उनको इसके बदले मिलने वाला वेतन या मानदेय उनकी इस भूमिका से न्याय करता हुआ नहीं दिख रहा है। इस वजह से उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लगभग 4000 मेडिकल इंटर्न इसको लेकर लामबंद हुए हैं।

वे कोरोना के इस संकट भरे दौर में अपनी सेवाएं तो दे रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ अपना स्टाइपेंड बढ़ाने को लेकर अपना विरोध भी दर्ज करा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक मेडिकल इंटर्न को 7500 रूपये मासिक स्टाइपेंड मिलता है, वहीं राजस्थान में यह महज 7000 रूपये प्रति माह है। इन मेडिकल इंटर्न का कहना है कि उन्हें जो स्टाइपेंड मिलता है, वह अकुशल मजदूरों के लिए तय सरकारी मानक वेतन से भी बहुत कम है जबकि उनका काम पूरी तरह से स्किल्ड है और रिस्क से भरा हुआ है।

जयपुर, राजस्थान के मूल निवासी दिनेश चौधरी बताते हैं, “कोरोना काल में हमारा काम और बढ़ गया है। हमें बिना किसी खास सुविधा के 200-250 किलोमीटर दूर ऐसे गांवों में भेजा जा रहा है, जहां कोई अस्पताल और मेडिकल सुविधा नहीं है। पिछले हफ्ते मुझे 200 किलोमीटर दूर सिरोही भेजा गया था। ऐसी जगहों पर खाने-पीने और रहने का इंतजाम भी हमें खुद करना पड़ता है। आप ही बताइए कोरोना लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद है, हम कहां से खाने-पीने का इंतजाम कर पाएंगे। वो तो गांव वालों की मेहरबानी होती है, जिससे हम भूखे नहीं सोते।”

वहीं यूपी के हेमंत बताते हैं, “मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने वाला कोई भी मरीज सबसे पहले चेकअप के लिए हमारे सामने ही लाया जाता है। हम उनके शरीर का तापमान, बल्ड प्रेशर, सुगर आदि चीजों की जांच करते हैं और फिर उनके दिक्कतों और लक्षणों के अनुसार उन्हें संबंधित विभागों में भेजते हैं।”

“सभी विभागों और लैब में भी डॉक्टरों के सहयोग के लिए हमारी तैनाती होती है। कुल मिलाकर हम लोग उन सभी कामों को करते हैं, जो एक नर्स और पैरामैडिकल स्टाफ से लेकर एक डॉक्टर करता है। 8 घंटे की ड्यूटी कब 12 से 14 घंटे की हो जाती है, पता ही नहीं चलता। लेकिन इसके बदले में जो हमें मिलता है, उससे हम अपना खुद का खर्चा भी नहीं चला सकते। यह एक कड़वी सच्चाई है,” हेमंत की बातों में अफसोस झलकता है।

देश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए 4.5 साल के मेडिकल कोर्स के बाद एक साल का इंटर्नशिप करना होता है। इसके बाद ही उनका कोर्स पूरा होता है और उन्हें एमबीबीएस की डिग्री और प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस मिलता है। यह इंटर्नशिप उनके मेडिकल कॉलेज या किसी नजदीकी सरकारी अस्पताल में होता है। इन प्रशिक्षु डॉक्टरों को इस इंटर्नशिप के बदले सरकार की तरफ से हर महीने स्टाइपेंड मिलता है। लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों में इंटर्न को मिलने वाले स्टाइपेंड में बहुत ज्यादा अंतर है।

केंद्रीय मेडिकल कॉलेजों में एक मेडिकल इंटर्न को हर महीने 23,500 रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है। वहीं असम में यह 30,000, छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक और ओडिशा में 20,000, त्रिपुरा में 18,000, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में 17,000, पश्चिम बंगाल में 16,590, पंजाब और बिहार में 15,000, गुजरात में 13,000, जम्मू और कश्मीर में 12,300 और महाराष्ट्र में 11,000 रूपये है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मिलने वाले स्टाइपेंड की तुलना में यह दो से चार गुना अधिक है।

बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक ने भी 10 मई को मेडिकल इंटर्न को मिलने वाले स्टाइपेंड को बढ़ाकर 30,000 रूपये प्रतिमाह कर दिया। आनंदनगर, महाराजगंज (यूपी) के रहने वाले मेडिकल इंटर्न फरहान (24 वर्ष) कहते हैं कि स्टाइपेंड का यह जो अंतर है, वह समझ से परे हैं। जबकि काम हमें लगभग एक जैसा ही करना पड़ता है। वह उदाहरण देते हुए कहते हैं, “मेरे कई ऐसे साथी हैं जो बीएचयू, बनारस या एएमयू, अलगीढ़ में यही काम कर रहे हैं, लेकिन सेंट्रल मेडिकल कॉलेज होने की वजह से उन्हें इसी काम के बदले 23 हजार रूपये मिल रहा है। आप ही बताइए क्या यह न्याय है? कोई भले ही नहीं जाहिर करें, लेकिन अंदर ही अंदर यह अंतर हमें बहुत अखरता है।”

उत्तर प्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले इंटर्न्स की हालत और भी खराब है। इन इंटर्न डॉक्टरों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि कुछ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सिर्फ 6 हजार रूपये का स्टाइपेंड देते हैं, वहीं कई प्राइवेट कॉलेज मुफ्त में ही इन इंटर्न डॉक्टरों से सेवाएं ले रहे हैं।

इसको लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, स्टूडेंट मेडिकल नेटवर्क और ऑल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट्स एशोसिएशन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा है और मेडिकल इंटर्न्स के स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग है। इस पत्र में मेडिकल इंटर्न के सामने कोरोना काल में आ रही दिक्कतों और सामान्य कठिनाईयों को भी सीएम के संज्ञान में लाने की कोशिश की गई है। इस मांग का समर्थन सीनियर डॉक्टरों के संगठन यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर्स एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एशोसिएशन ने भी किया है।

यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष (उत्तर प्रदेश) डॉ. नीरज कुमार मिश्रा मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहते है, “कोरोना कॉल में अगर रिस्क फैक्टर की बात करें तो इंटर्न्स सबसे ज्यादा रिस्क में हैं, क्योंकि मरीज सबसे पहले उनके ही पास आता है। इन सबके बावजूद ये इंटर्न्स ग्राउंड पर रहकर अपना काम बखूबी निभा रहे हैं। इसलिए हमारी यह अपील है कि इन लोगों के काम के रिस्क को देखते हुए और इनका उत्साह वर्धन करने के लिए इनका स्टाइपेंड बढ़ाया जाए और कम से कम इसे केंद्रीय मेडिकल कॉलेजों में मिलने वाले स्टाइपेंड के बराबर किया जाए।”

फरहान भी इसी बात को दोहराते हैं और जोर देकर कहते हैं कि जो केंद्र सरकार ने स्टाइपेंड तय की है, वह जरूर हमें मिलना चाहिए। उत्तर प्रदेश में प्राइवेट और सरकारी मिलाकर कुल 50 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं, जिसमें लगभग 2500 मेडिकल इंटर्न हैं। वहीं राजस्थान में कुल 8 सरकारी मेडिकल कॉलेज में लगभग 1300 मेडिकल इंटर्न हैं। उत्तर प्रदेश में इससे पहले मेडिकल इंटर्न का स्टाइपेंड 2100 रूपये था, जिसे 2010 में मायावती के शासनकाल में बढ़ाकर 7500 रुपये किया गया था। लेकिन तब से 10 साल हो गया और जमाना बदलने के साथ-साथ महंगाई बहुत बढ़ गई है।

वहीं राजस्थान में यह बदलाव 2017 में आया था, जब राज्य सरकार ने स्टाइपेंड को बढ़ाकर 3500 रूपये से 7000 रूपये किया था। उस समय इन इंटर्न डॉक्टरों को सड़क पर उतर कर हड़ताल करनी पड़ी थी। हालांकि कोरोना लॉकडाउन के इस समय में ये इंटर्न डॉक्टर हड़ताल भी नहीं कर सकते। इसलिए इन डॉक्टरों ने इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। ये लोग ट्वीटर पर हैशटैग #WeDemandstipendincrement के साथ मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और प्रधानमंत्री को टैगकर वीडियो, फोटो और पोस्ट्स के माध्यम से अपनी बातें रख रहे हैं।

हालांकि इन चिट्ठियों का जवाब और ट्वीट्स का रिप्लाई सरकार की तरफ से अभी नहीं मिला है। हमने भी इस संबंध में मेडिकल शिक्षा एवं प्रशिक्षण निदेशालय, उत्तर प्रदेश (UPDGME) में संपर्क करने की कोशिश करने की लेकिन कोई भी संतुष्टिजनक जवाब नहीं मिला। यूपीडीजीएमई का जवाब आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा।

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