लखनऊ। “धरने पर बैठना कोई फन (मनोरंजन) नहीं है, यह हमारी मजबूरी है। हमें धरना इसलिए देना पड़ रहा है ताकि आयोग को याद रहे कि उन्हें हमको हमारी नौकरी का ज्वाइनिंग लेटर देना है। नहीं तो जैसे ये लोग डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन कराने का काम भूल रहे हैं, वैसे ये भी भूल जाएंगे कि हमने कोई परीक्षा दी थी और सफल भी हुए थे,” प्रिया शर्मा गुस्से में कहती हैं।
बाराबंकी की प्रिया शर्मा सहित लगभग 500 से अधिक अभ्यर्थी उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (यूपीएसएसएससी) के लखनऊ स्थित मुख्यालय पर गुरुवार को धरने पर बैठे हुए थे। इन अभ्यर्थियों ने यूपीएसएसएससी के अन्तर्गत होने वाली ग्राम विकास अधिकारी (VDO) पद के लिए 2018 में परीक्षा दी थी।
दिसंबर, 2018 में इसकी परीक्षा हुई और अगस्त, 2019 में इसका अंतिम परिणाम आया। 14.27 लाख अभ्यर्थियों में से कुल 1952 अभ्यर्थी सफल हुए। इसके बाद इन अभ्यर्थियों का सिर्फ डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन (अभिलेख सत्यापन) होना बाकी था, जिसके बाद इन्हें नौकरी मिलती। लेकिन 6 महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी आयोग द्वारा डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरु नहीं हो पाई है। जिसकी वजह से ये अभ्यर्थी परेशान हैं और धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
सीतापुर से आए सुधीर सिंह (26 साल) कहते हैं, “अगस्त, 2019 में जब इस परीक्षा का परिणाम आया था, तो हमें लगा था कि दो-तीन महीनों के अंदर हमारे हाथ में सरकारी नौकरी होगी और हम अपने ऑफिस में बैठकर गांवों का विकास कार्य देख रहे होंगे। लेकिन आज देखिए हम लोग पहले की ही तरह बेरोजगारों की भांति धरने पर बैठे हैं।”
सुधीर सिंह ने बताया कि पिछले 6 महीनों से वे लोग कई बार धरना दे चुके हैं। इसके अलावा वे लोग लगातार यूपीएसएसएससी के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, नेताओं और मंत्रियों से मिल रहे हैं, लेकिन उन जैसे ‘चयनित बेरोजगारों’ को अभी तक आश्वासन और निराशा के सिवा कुछ नहीं मिला है। गुरुवार को फिर से आयोग ने अभ्यर्थियों का आश्वासन दिया कि 20 फरवरी तक इस संबंध में जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
सुधीर कहते हैं कि यह यूपीएसएसएससी की यह पहली या आखिरी परीक्षा नहीं है, जिसका परिणाम आधा-अधूरा बाकी है। मंडी परिषद 2019, युवा विकास कल्याण अधिकारी 2019, लोअर पीसीएस 2019, फॉरेस्ट गॉर्ड 2019, जेई 2016, लोअर पीसीएस 2 सहित ऐसी दर्जन भर परीक्षाएं हैं, जिनकी परीक्षा प्रक्रिया या परिणाम बीच में रुका हुआ है। इसके अलावा ग्राम विकास अधिकारी 2016, 2018 की परीक्षा का वेटिंग लिस्ट अभी तक नहीं आया है, जिसके लिए भी लगातार अभ्यर्थी धरना प्रदर्शन और अनशन करते रहते हैं। इस तरह से लाखों अभ्यर्थी या बेरोजगार आयोग की लापरवाही से प्रभावित हैं।
प्रिया कहती हैं, “हम जब अपनी मांगों को लेकर आयोग के सचिव और अन्य अधिकारियों से मिलते हैं, तो हमें कहा जाता है कि वेबसाइट देखते रहें। लेकिन वेबसाइट पर हर महीने डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की तारीख बदल दी जाती है। दिसंबर महीने में वेबसाइट पर दिखा रहा था कि जनवरी के अंत तक डॉक्यूमेंट वेरिफाई हो जाएगा लेकिन जब जनवरी बीतने लगा तो उस तारीख को बढ़ाकर फरवरी कर दिया गया। इसी तरह हमारे साथ पिछले 6 महीनों से हो रहा है। आप ही बताइए ये सब निराश करने वाला है या नहीं?”
प्रिया धरने के दौरान आयोग के अधिकारियों द्वारा विद्यार्थियों के साथ किए गए दुर्वय्वहार का भी जिक्र करती हैं। वह कहती हैं, “कुछ अधिकारी कहते हैं, ‘एक ही नौकरी के पीछे क्यों पड़े हो और भी वैकेंसीज आ रही हैं, उनकी परीक्षाएं दो। नेतागिरी क्यों कर रहे हो?’ बताइए क्या यह सही है? हमने दिन-रात मेहनत कर के यह परीक्षा दी थी और सफल हुए हैं। यह नौकरी अब हमारा अधिकार है और हमें अपना अधिकार मांगने से भी रोका जा रहा है।”
इटावा से आए राहुल सिंह भी प्रिया की बातों की पुष्टि करते हैं। बकौल राहुल, “वे हमारा भविष्य खराब करने की धमकी देते हैं। कहते हैं कि धरने से उठो नहीं तो तुम्हें यह क्या कोई भी नौकरी नहीं मिल पाएगी। इस तरह धरने में आए साथियों को अधिकारियों द्वारा डराने की कोशिश की जाती है ताकि वे लोग धरने से उठ जाए। कई अभ्यर्थी करियर की डर की वजह से इसलिए भी धरने पर नहीं आते। यह सरासर अधिकारियों की निरंकुश मानसिकता है। हम लोकतांत्रिक तरीके से धरना देते हैं, जो कि हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी।”
प्रिया यह भी बताती हैं कि एक लड़की होते हुए उनके लिए धरने में आना कितना मुश्किल है। उन्हें अपने घर वालों, माता-पिता को इसके लिए मनाना पड़ता है। वह कहती हैं, “कोई भी मां-बाप यह नहीं चाहता कि उनकी लड़की जाकर धरने पर बैठे। लेकिन जब पढ़-लिख कर नौकरी हमने पाई है, तो धरने पर भी हमें ही बैठना होगा। हमारी लड़ाई कोई और नहीं लड़ेगा, हमें खुद ही यह लड़ाई लड़नी होगी।”
प्रिया के बगल में बैठी मुरादाबाद की नीलू सैनी भी प्रिया की बातों पर सहमति जताती हैं। विज्ञान में स्नातक नीलू सैनी सुरक्षा की वजह से अपने किसान पिता के साथ धरने में आई हैं। उनके पिता ईश्वर सैनी (55 वर्ष) धरना दे रहे अभ्यर्थियों से दूर एक कोने में बैठे हुए हैं।
वह बताते हैं कि उनके 5 बेटे-बेटियों में नीलू पहली संतान है, जिसकी सरकारी नौकरी लगने की उम्मीद जगी है। लेकिन जब ये लोग देर कर रहे हैं तो थोड़ी निराशा भी हो रही है। ईश्वर सैनी बताते हैं कि वह पूरी तैयारी के साथ आए हैं। उनके बैग में खाने के लिए कुछ भूजा और बिस्तर-कंबल भी रखा है। मुस्कुराते हुए वह कहते हैं कि अगर धरना कुछ दिनों तक चला तो वे अपनी बेटी को लेकर वापस नहीं जाएंगे बल्कि जब तक बच्चे टिके हुए हैं तब तक वह भी उन लोगों का साथ देंगे।
इस बीच आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी अभ्यर्थियों के सामने उपस्थित होते हैं और उन्हें 20 फरवरी तक इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई करने का आश्वासन देते हैं। वह कहते हैं कि चूंकि आयोग आश्वासन दे रहा है, इसलिए अभ्यर्थियों को धरने से उठ जाना चाहिए। अभ्यर्थी भी आपस में विचार-विमर्श करके उठ जाते हैं। धरना समाप्त हो जाता है।
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