मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के नेउसा गांव के रहने वाले बिरगेंद्र सिंह (24 वर्ष) महाराष्ट्र के जालना में रहकर एक स्टील फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन जब लगा तब उन्हें घर आने के लिए सरकार द्वारा घोषित किसी भी सहायता का लाभ नहीं मिला। इसके बाद बिरगेंद्र और उनके साथियों ने रेलवे पटरियों को ही सहारा बनाया और पटरी पर चलते-चलते ही घर पहुंचने की कोशिश करने लगे। रात के चौथे पहर में उन्हें और उनके कुछ साथियों को नींद आ गई और वे पटरियों के किनारे ही सो गए क्योंकि उन्हें जानकारी थी कि लॉकडाउन के दौरान कोई ट्रेन नहीं चल रहा। हालांकि माल गाड़ियां तब भी चल रही थी। इस दौरान एक मालगाड़ी आई और बिरगेंद्र और उनके 16 साथियों को रौंदते हुए चली गई और कोई भी अपने घर नहीं पहुंच पाया। यह घटना लॉकडाउन लगने के लगभग 1.5 महीने के बाद 8 मई की है।
इस घटना के लगभग एक हफ्ते के बाद 16 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में हाईवे पर खड़ी एक ट्रक कंटेनर को पीछे से आ रही एक गाड़ी ने टक्कर मार दिया। इस कंटेनर में पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के 80 प्रवासी मजदूर सवार थे, जो राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से अपने घरों की तरफ आ रहे थे। इस भीषण टक्कर में 25 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई जबकि 35 गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
लॉकडाउन के दौरान जब प्रवासी मजदूर अपने घरों की तरफ पैदल ही या ट्रक से अपने घरों की तरफ वापस लौटने की कोशिश कर रहे थे, तो उस दौरान लगभग हर रोज कोई ना कोई हादसा हो रहा था और प्रवासी मजदूरों की जान जा रही थी। ये मजदूर कभी सड़क हादसे का शिकार हो रहे थे तो कभी भूख-प्यास या बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा रहे थे। लेकिन अब सरकार का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई डाटा नहीं है जिससे वह बता सकें कि लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मजदूरों की मौत घर वापसी करते हुई।
केंद्र सरकार ने ये बातें चल रहे वर्तमान संसद सत्र के पहले दिन कही जब उनसे प्रवासी मजदूरों की मौत और मुआवजे के संबंध में सवाल किया गया। इस पर श्रम मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने कहा, “भारत ने बतौर एक देश कोरोना महामारी और लॉकडाउन की स्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें केंद्र, राज्य सरकारें और स्थानीय निकायों ने मिलकर लड़ाई लड़ी है। जहां तक मौत के आंकड़े का सवाल है तो सरकार के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।”
संतोष गंगवार ने कहा कि जब ऐसे मजदूरों का डाटा ही नहीं उपलब्ध है तो उन्हें मुआवजा देने के सवाल का जवाब भी नहीं दिया जा सकता। हालांकि स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारें और संबंधित निकायें प्रभावित परिवार को मुआवजा दे रही हैं। जैसे- औरंगाबाद रेल हादसे में मृतक परिजनों को महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने 5-5 लाख रुपए देने की घोषणा की थी। हालांकि औरैया हादसे में ऐसा देखने को नहीं मिला, उन्हें सरकार की तरफ से बस जरूरी चिकित्सीय सुविधा प्रदान की गई थी। इस तरह ऐसे हजारों मजदूर थे जिन्हें लॉकडाउन के दौरान तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा, कई को जान गंवानी पड़ी, कई घायल तो कई बीमार हुए लेकिन उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिली।
तकनीकी जानकारों पर काम करने वाली एक निजी वेबसाइट www.thejeshgn.com ने लॉकडाउन के दौरान उन मौतों का डाटा रिकॉर्ड किया है, जिनकी वजह कोरोना महामारी नहीं बल्कि लॉकडाउन के कारण हुई अव्यवस्था थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक 4 जुलाई तक देश भर में कुल 906 मौतें हुईं। इसमें सबसे अधिक 216 आर्थिक तंगी और भूखमरी से, 209 रोड या ट्रेन एक्सीडेंट से और 96 लोग श्रमिक ट्रेनों में मरें। वहीं इस दौरान 133 लोगों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े देशभर की मीडिया रिपोर्टस को लेकर तैयार किये गये हैं।
हालांकि सरकार ने यह जवाब दिया कि लॉकडाउन के दौरान कितने मजदूरों ने घर-वापसी की। सरकार की डाटा के अनुसार कुल एक करोड़ 4 लाख 66 हजार 152 लोगों ने लॉकडाउन के दौरान घर-वापसी की। इसमें सबसे अधिक 32 लाख 49 हजार 638 मजदूर उत्तर प्रदेश और 15 लाख 612 मजदूर बिहार से थे। गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, ओडिसा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने आंकड़ें नहीं दिए हैं।
हालांकि सरकार के इन आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं। बिहार सरकार के आधिकारिक डाटा के अनुसार लगभग 25 लाख लोग लॉकडाउन के दौरान अपने गांव लौटे थे। वहीं उत्तर प्रदेश के श्रम विभाग के डाटा के अनुसार लगभग 35 लाख मजदूर लॉकडाउन के दौरान रिवर्स पलायन किए। प्रवासी मजदूरों पर शोध करने वाले शोधार्थियों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या और अधिक थी और ऐसे प्रभावित मजदूरों की संख्या लगभग 2 करोड़ से 2.2 करोड़ के बीच में रही।
सरकार से लोकसभा में यह भी सवाल पूछा गया कि लॉकडाउन के दौरान कितने लोगों को मुफ्त राशन मिला। इस पर सरकार की तरफ से यह जवाब आया कि उन्हें राज्यों से आंकड़ा उपलब्ध नहीं हुआ है, इसलिए वे इसका भी डाटा नहीं दे सकते। गौरतलब है कि लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर तक देश के 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अतिरिक्त चावल या गेहूं और एक किलो दाल देने की बात कही थी।
सरकार के इस रवैये की विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह ने कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि श्रम मंत्रालय कह रहा है कि उसके पास प्रवासी मजदूरों की मौत पर कोई डाटा नहीं है, ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि या तो हम सब अंधे हैं या फिर सरकार को लगता है कि वह सबका फायदा उठा सकती है।”
वहीं कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा, “मोदी सरकार नहीं जानती कि लॉकडाउन में कितने प्रवासी मजदूर मरे और कितनी नौकरियां गईं।” आगे कटाक्ष करते हुए उन्होंने लिखा,
‘तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई?
हां मगर दुख है सरकार पे असर ना हुआ,
उनका मरना देखा जमाने ने,
एक मोदी सरकार है जिसे खबर ना हुई।’
मोदी सरकार नहीं जानती कि लॉकडाउन में कितने प्रवासी मज़दूर मरे और कितनी नौकरियाँ गयीं।
तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई?
हाँ मगर दुख है सरकार पे असर ना हुई,
उनका मरना देखा ज़माने ने,
एक मोदी सरकार है जिसे ख़बर ना हुई।— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 15, 2020
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एक और प्रवासी मजदूर की घर पहुंचने से पहले रास्ते में भूख से मौत