शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं की मांग, बजट में बालिका शिक्षा के लिए बढ़ोत्तरी की जाए

हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार कोरोना के बाद लगभग 37% छात्र और छात्राएं इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हैं कि वे अब कभी स्कूल लौट सकेंगे। इसमें भी अधिकतर ग्रामीण और आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों की लड़कियाँ शामिल हैं।
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शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं ने आने वाले बजट में बालिका शिक्षा के लिए पर्याप्त बजट की मांग की है। इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश में पहले से ही छात्राओं की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की दर सबसे अधिक थी और कोरोना महामारी ने इसमें और बढ़ोत्तरी कर दी है। इसलिए ना सिर्फ इसके बजट में बढ़ोतरी की ज़रूरत है बल्कि सरकार को कुछ नीतिगत बदलाव भी करने होंगे, ताकि इस पैटर्न को कम से कम किया जा सके।

राइट टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम के तले आए इन शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक पॉलिसी ब्रीफ़ जारी करते हुए बताया है कि भारत में एक करोड़ से अधिक लड़कियों को 8वीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ता है। 15 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की लगभग 40 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूल से बाहर हो जाती हैं। इन लड़कियों की जल्दी शादी होने का ख़तरा रहता है और इसके बाद इनके किशोरावस्था में गर्भधारण, मानव-तस्करी, बाल श्रम, गरीबी और हिंसा के शिकार होने का अंदेशा बना रहता है। इसलिए जरूरी है कि बजट में बालिकाओं की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए उचित प्रबंध किए जाएं और कुछ बेहतर नीतियाँ भी बनाई जाएं।

आपको बता दें कि 2020-21 के बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए 99 हजार 312 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था, जो कि संपूर्ण बजट (30.42 लाख करोड़ रूपये) का 3.26% था। हालांकि इस बजट में से कितना खर्च हुआ है इसका पता साल 2022 में ही चल पाएगा। इस साल कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों और नई शिक्षा लागू होने की वजह से शिक्षा बजट में और बढ़ोतरी होने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा बजट में बढ़ोतरी ज़रूर हो लेकिन बालिका शिक्षा के लिए बजट में कुछ विशेष प्रावधान भी हों।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ शांता सिन्हा कहती हैं, “बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल प्रणाली और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है। लेकिन यह बेहतर बजट के बिना संभव नहीं है। इसलिए हम बजट में इसके लिए प्रावधान करने की अपील वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से करते हैं।”

शिक्षा पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) के साथ मिलकर दिसंबर, 2020 में देश के 5 राज्यों में एक अध्ययन किया था, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल न होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं कोरोना के कारण आई आर्थिक तंगी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने का भी डर शामिल हो गया है।

‘Gendered impact of COVID -19 on education of school-aged children in India’ नाम से हुए इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश के 11, बिहार के 8, असम के 5, दिल्ली के एक और तेलंगाना के 4 जिलों के 3,176 परिवारों को शामिल किया गया। आर्थिक तौर पर कमजोर इन परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70% लोगों ने माना कि कोरोना लॉकडाउन के बाद उनके घर में आर्थिक तंगी हो गई है और उनके पास खाने को भी पर्याप्त नहीं बचा है। ऐसे हालात में बच्चों खासकर लड़कियों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी उठाने की स्थिति में ये परिवार नहीं हैं।

इस अध्ययन के अनुसार लगभग 37% छात्र और छात्राएं इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं थे कि वे अब कभी स्कूल लौट सकेंगे। ग्रामीण और आर्थिक तौर पर कमजोर परिवारों की लड़कियाँ पहले से ही इस जद में हैं, अब शहरी स्कूली लड़कियाँ भी इसकी ज़द में आ रही हैं।

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय कहते हैं कि शिक्षा के बाज़ारीकरण और तेजी से बढ़ते निजीकरण ने शिक्षा क्षेत्र में लैंगिक असमानताओं को बढ़ाया ही है। उन्होंने कहा कि देश के अधिकतर ग़रीब तबके और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे सरकारी स्कूलों पर ही निर्भर हैं। चूंकि यह सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली सरकारी संसाधनों पर ही निर्भर है, इसलिए इसके लिए बजट में जरूरी प्रावधान करने होंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार आने वाले बजट में इस पर विशेष ध्यान देगी।

आरटीई फोरम ने वित्त मंत्री से बजट में शिक्षा पर बजट बढ़ाने के संदर्भ में एक पिटीशन भी दायर किया गया है, जिस पर 75,000 से अधिक लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं। अम्बरीष राय ने कहा कि शिक्षा पर जीडीपी का न्यूनतम 6% और वार्षिक बजट का 10% खर्च किए बगैर प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के बेहतर होने की कल्पना करना बेमानी है।”

ऑक्सफैम इंडिया में कार्यरत एंजेला तनेजा कहती हैं, “कोरोना काल में ऑनलाइन एवं डिजिटल शिक्षा का एक बड़ा कारोबार शुरू हुआ है। एक खास वर्ग ने डिजिटल शिक्षा को अपनाया है, जबकि ग़रीब और वंचित तबके के अधिकांश बच्चे ऐसी शिक्षा व्यवस्था से वंचित हो गए हैं।” 

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