चोट के बाद टूट गया था, कर्ज भी सिर पर था लेकिन मेहनत और भरोसे ने कामयाब बनाया: सुरेश रैना

क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शतक जड़ने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज सुरेश रैना ने 'दी स्लो इंटरव्यू' में बचपन से लेकर अपने क्रिकेट करियर की तमाम अनकहे किस्सों को नीलेश मिसरा के साथ साझा किया।
#The Slow Interview with Neelesh Misra

“वह मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत ही कठिन समय था। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सफल शुरूआत के बाद अचानक चोट लग जाना, टीम से बाहर होना, घर की ईएमआई, कर्ज, लोन और सर्जरी के लिए लखनऊ, मुंबई से लेकर ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड तक के चक्कर काटना। यह सब बहुत ही मुश्किल था। लेकिन मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझे एक बहुत ही सपोर्टिव परिवार मिला है।”

“इसके अलावा मैंने टीम में काफी कम वक्त ही बिताए थे लेकिन टीम के सीनियर्स से भी काफी मदद मिली। खासकर उस समय के कप्तान राहुल द्रविड़ ने मुझे बहुत मोटिवेट किया। उसके बाद मुझे लगा कि मुझे अपने लिए ना सही लेकिन अपने परिवार, टीम और देश के लिए ठीक होना होगा। सर्जरी के बाद मैंने अपनी फिटनेस पर बहुत मेहनत की और फिर से टीम इंडिया में वापसी की। इसके बाद जो सफर शुरू हुआ, वह लगभग एक दशकों तक चला। अब मैं अपने करियर से काफी हद तक संतुष्ट हूं।”

यह कहना है टीम इंडिया के बाएं हाथ के सबसे सफलतम सीमित ओवर के बल्लेबाजों में से एक सुरेश रैना का। 2005 में श्रीलंका के खिलाफ दाम्बुला में डेब्यू करने वाले सुरेश रैना ने 2005 से लेकर जनवरी, 2007 तक लगातार क्रिकेट खेला और अपने आप को टीम इंडिया के वन डे टीम में स्थापित करने में सफल रहे। अपनी आक्रामक बल्लेबाजी और खतरनाक फील्डिंग के लिए जाने जाने वाले इस बल्लेबाज ने द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण, गंभीर, कैफ और युवराज जैसे दिग्गजों के रहते हुए टीम इंडिया के मिडिल ऑर्डर में एक महत्वपूर्ण जगह बनाई। लेकिन इसके बाद वह घुटने की चोट से लगातार परेशान रहे।

यह चोट इतनी अधिक गंभीर थी कि उन्हें लगभग डेढ़ साल तक क्रिकेट और टीम इंडिया से दूर रहना पड़ा। इस दौरान वह वन डे और फिर टी-20 वर्ल्ड कप, 2007 में भी भाग नहीं ले पाए। सुरेश रैना कहते हैं कि उस समय एक बार को लगा था कि मैं अभी फिर से टीम इंडिया के लिए क्रिकेट नहीं खेल पाऊंगा। लेकिन मेरे परिवार वालों, दोस्तों और टीम के कुछ साथियों और सीनियर्स ने मुझ पर भरोसा रखा, जिससे मैं वापसी करने में कामयाब रहा। उसके बाद फिर लगातार मैंने क्रिकेट खेला और 2011 के विश्व विजेता टीम का सदस्य बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ। वह अपने आप में अलग ही सुखद एहसास था।

हाल ही में अपने सबसे करीबी दोस्त महेंद्र सिंह धोनी के साथ क्रिकेट से संन्यास लेने वाले सुरेश रैना ने बचपन से लेकर अपने क्रिकेटिंग करियर के कई राज एक इंटरव्यू में खोले। क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शतक जड़ने वाले इस पहले भारतीय बल्लेबाज ने नीलेश मिश्रा के साथ ‘दी स्लो इंटरव्यू’ को अपने जीवन का सबसे अच्छा इंटरव्यू माना और कहा कि यह सबसे अलग था। इसलिए उन्हें इसे करने में बहुत मजा आया।

अपने बचपन के बारे में बताते हुए रैना ने कहा कि वह एक कश्मीरी पंडित हैं और उनके पिता जी दंगा फैलने पर श्रीनगर के रैनाबाड़ी को छोड़कर यूपी के गाजियाबाद के मुरादनगर में आ गए थे। रैना का बचपन मुरादनगर में ही बीता, जहां वह आस-पास के गांवों में टेनिस बॉल टूर्नामेंट खेलने जाते थे। रैना ने बताया कि कभी-कभी उन्हें अच्छा प्रदर्शन करने पर 11 या 21 रुपए का ईनाम भी मिलता था, जो कई बार चेक के रूप में भी होता था। वे अभी ऐसे चेक को बचा कर रखे हैं।

रैना कहते हैं कि क्रिकेट खेलते-खेलते मुझे लगा कि मैं इसमें आगे जा सकता हूं, इसलिए घर वालों ने मुझे स्पोर्ट्स हॉस्टल में भर्ती कराने का निर्णय लिया। चूंकि गाजियाबाद से दिल्ली नजदीक था तो हमने वहां पर कुछ क्लब और एकेडमी में पता किया। लेकिन वहां पर एक महीने की फीस ही 6000 से 8000 रुपये थी, जिसे मेरे घर वाले भरने में सक्षम नहीं थे। रैना के पिता की तनख्वाह 10 हजार रुपये थे, जिसका एक बड़ा हिस्सा वह अपने सिर्फ एक बेटे पर नहीं खर्च कर सकते थे क्योंकि उनकी 5 और संतानें और एक परिवार भी था।

इससे रैना को थोड़ी निराशा हुई, लेकिन थोड़े ही समय बाद उनका चयन लखनऊ के गुरु गोबिंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में हो गया, जिसके लिए उन्होंने ट्रायल दिया था। इस स्पोर्ट्स कॉलेज की सालाना फीस महज 5000 रुपये थी, जिसे उनका परिवार आसानी से दे सकता था। हालांकि इसके लिए उन्हें अपना मुरादनगर का घर छोड़कर कुछ सालों तक लखनऊ में रहना पड़ा। इसके बाद वह अंडर-165, अंडर-17, अंडर-19, रणजी ट्रॉफी और इंडिया-ए खेलते हुए टीम इंडिया के द्वार तक पहुंच गए और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

रैना ने इस इंटरव्यू में लखनऊ के मशहूर शर्मा चाय, शीशमहल ट्रॉफी, टेढ़ी पुलिया, मुंशी पुलिया जैसी जगहों की यादों को भी साझा किया और कहा जब उन्हें 2007 में चोट लगी थी तब भी लखनऊ के कई दोस्त उनके काम आए। इस दौरान सुब्रत रॉय सहारा ने भी उन्हें आर्थिक मदद की और उन्हें लखनऊ में रुकने, रिहैब करने के लिए अपने होटल का कमरा मुफ्त में दिया।

महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर से जुड़ी एक कहानी को याद करते हुए रैना ने कहा कि मास्टर बल्लेबाज ने 2009 से ही 2011 विश्व कप की तैयारियां शुरू कर दी थी। उस समय तक आईपीएल शुरू हो गया था और दुनिया भर के खिलाड़ी एक टीम में थे और एक दूसरे के साथ ड्रेसिंग रूम और होटल रूम साझा कर रहे थे। उस समय सचिन ने रैना सहित टीम इंडिया के सभी सभी खिलाड़ियों को सलाह दी थी कि वे एक टीम में रहते हुए भी अपनी खूबियों, कमजोरियों और रणनीतियों को विदेशी टीम के खिलाड़ियों से नहीं साझा करें, नहीं तो इससे 2011 विश्व कप में टीम इंडिया को नुकसान हो सकता था। इसी सलाह को तत्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी दुहराया था। बाद में टीम इंडिया 2011 विश्व कप की विजेता बन कर उभरी।

आईपीएल के अनुभवों को साझा करते हुए रैना ने कहा कि यह भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत बेहतर चीज हुई, जिससे युवा खिलाड़ियों को भी विदेशी खिलाड़ियों के साथ रहने, उनके अनुभव जानने का मौका मिला जिससे वे और निर्भीक बने। अपना खुद का किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें मैथ्यू हेडेन के साथ चेन्नई सुपरकिंग्स में ड्रेसिंग रूम साझा करने का मौका मिला, जिससे उन्हें बहुत आत्मविश्वास मिला। रैना ने बताया कि हेडेन कहा करते थे कि अगर पहली ही गेंद मारने वाली मिले तो उसे मारना चाहिए। इससे पहले उन्हें सिखाया गया था कि शुरू के कुछ गेंदों को सम्मान देना चाहिए ताकि गेंद की मूवमेंट और पिच को समझा जा सके।

रैना ने राहुल द्रविड़ की तारीफ करते हुए कहा कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान किसी से कम नहीं है। रैना ने कहा, ”राहुल द्रविड़ ने 2008 से 2011 तक भारतीय टीम को जीतने में बहुत योगदान दिया। वह एक बहुत मजबूत नेतृत्वकर्ता भी थे और वे बहुत अनुशासित थे।”

धोनी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उनका रवैया हमेशा ईमानदार और नि:स्वार्थ रहा है। वह एक बहुत बड़े कप्तान और बहुत अच्छे दोस्त हैं। वह एक अच्छे इंसान भी हैं, जो हमेशा जमीन से जुड़े रहते हैं, खेती करते हैं और मीडिया व स्टारडम के शोर-शराबों से दूर रहते हुए सुकून से अपनी जिंदगी जीना जानते हैं।

अपनी पत्नी प्रियंका रैना से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी मां ने उन्हें शादी करने के लिए 2015 तक का समय दिया था। हालांकि वह और परिवार वाले 2011 विश्व कप के बाद ही उनकी शादी की जिद करने लगे थे। इस वजह से उन्हें ऑस्ट्रेलिया में हुए 2015 के विश्व कप के बीच से ही अपनी होने वाली पत्नी से मिलने के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा था, जहां प्रियंका रैना रहती थीं। उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें लगातार 24 घंटे से अधिक की यात्रा करनी पड़ी क्योंकि उन्हें अपने जीवनसाथी से मिलना था। इसी मुलाकात के बाद रैना ने प्रियंका से शादी करने का निर्णय लिया।

रैना ने बताया कि 2013 के बाद से उनका करियर खराब फॉर्म और चोटों से फिर से प्रभावित होने लगा था। इस बार फिर उनकी मदद सचिन तेंदुलकर ने की जो उस समय क्रिकेट से संन्यास ले चुके थे। रैना कहते हैं, “एक मैसेज करने पर ही पाजी (सचिन) ने मुझे मुंबई बुला लिया और फिर मैंने 15 दिनों तक उनके साथ नेट पर कड़ा अभ्यास दिया। इस दौरान वह मेरी डाइट, फिटनेस, टाइमिंग से लेकर हर चीज पर नजर रखते थे। वह मुझसे कहते थे कि अगर मुझ पर विश्वास है तो खुद पर विश्वास (बिलीव) रखो। इसके बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैं फिर से टीम इंडिया में वापसी करने में सफल रहा और फिर टी-20 और वन डे विश्व कप भी खेला।”

वह कहते हैं कि सचिन की बातों का उन पर इतना असर हुआ कि उन्होंने अपने हाथ पर ‘Believe’ लिखवाते हुए टैटू बनवा लिया। अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में बात करते हुए रैना ने कहा कि वह एक अच्छे पति और पिता बनने के लिए पुरजोर कोशिश करते रहते हैं। रैना ने इस दौरान कुकिंग और गायकी से जुड़ी शौक को भी जाहिर किया और स्लो कैम्पस में खाना भी बनाया।

आप इस इंटरव्यू को स्लो की वेबसाइट turnslow.com पर पूरा देख सकते हैं।

अपडेटिंग… 


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