“हमने 40-45 साल की उम्र में प्रतियोगी परीक्षाएं दी और उसे पास किया। अब अंतिम समय में हमारा चयन होने के बाद भी विद्यालय आंवटित नहीं हो रहा है, तो डर लगने लगा है कि सरकारी नौकरी का सपना अधूरा ही रह जाएगा। क्या 40 की उम्र में सरकारी नौकरी का सपना देखना गुनाह है? यह सब निराश कर देने वाला है,” राजन कुशवाहा (बदला हुआ नाम, 42 वर्ष) कहते हैं।
राजन कुशवाहा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के निवासी हैं और उन्होंने पिछले साल हुई 69000 शिक्षक भर्ती परीक्षा के कई चरणों को पास कर नियुक्ति पाई है। लेकिन वह अभी इस वक्त निराश हैं क्योंकि नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी उन्हें विद्यालय का आवंटन नहीं मिला है, इसलिए उन्हें अब समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें?
उत्तर प्रदेश में 69,000 शिक्षक भर्ती परीक्षा मामले में हर रोज एक नया पेंच आता है। लंबे समय तक भर्ती प्रक्रिया कोर्ट में लंबित होने के बाद अब प्रदेश में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हालांकि यह भर्ती भी अधूरी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अभी सिर्फ 31,277 शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। बाकी बचे 37,723 अभ्यर्थियों का चयन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद होगा।
फिलहाल चयनित 37,723 अभ्यर्थियों का हर जिला बेसिक शिक्षा विभाग के कार्यालय पर दस्तावेज़ सत्यापन हो रहा है और उसके बाद उन्हें नियुक्ति पत्र देकर विद्यालयों का आवंटन किया जा रहा है। हालांकि कुछ सफल अभ्यर्थी ऐसे भी हैं, जिन्हें नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी विद्यालयों का आवंटन नहीं हो रहा है। ऐसे अभ्यर्थी फिर अपनी नियुक्ति को फंसता देख परेशान हो रहे हैं।
दरअसल ये अभ्यर्थी प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग में ही कार्यरत शिक्षामित्र हैं, जिन्होंने शिक्षामित्र बन जाने के बाद ग्रेजुएशन और उसके बाद फिर शिक्षक प्रशिक्षण (बीएड या बीटीसी) किया था। शिक्षा विभाग का कहना है कि ऐसे लोगों ने किसी सरकारी पद पर रहते हुए संस्थागत शिक्षा (बीए, बीएससी, बीकॉम रेगुलर) हासिल की, जो कि नियमों के विपरीत है। इसलिए फिलहाल इन्हें नियुक्ति पत्र तो दे दिया गया है, लेकिन अभी विद्यालय का आवंटन नहीं किया जा रहा है। आपको बता दें कि 37,723 चयनित अभ्यर्थियों में कुल 6675 शिक्षामित्र हैं।
वहीं ऐसे शिक्षामित्रों का कहना है कि उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों में विद्यालय और ग्राम शिक्षा समिति से आदेश लेकर अपना ग्रेजुएशन पूरा किया था ताकि वे शिक्षक प्रशिक्षण (बीएड या बीटीसी) के योग्य हो जाए। बाराबंकी के एक ऐसे ही शिक्षामित्र ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि 2008 में जब उनका ग्राम पंचायत समिति द्वारा शिक्षामित्र के रूप में चयन हुआ, तो वह एक कॉलेज से ग्रेजुएशन कर ही रहे थे। चूंकि शिक्षामित्र के लिए जरूरी अहर्ता सिर्फ इंटरमीडिएट थी और वह अन्य सभी योग्यताएं भी रखते थे इसलिए उनका चयन शिक्षामित्र के रूप में हो गया।
लेकिन ड्यूटी के दौरान वह अपनी संस्थागात शिक्षा नहीं जारी रख सकते थे इसलिए उन्होंने ग्राम पंचायत शिक्षा समिति से इसके लिए विशेष अनुमति ली और अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। इस दौरान उन्होंने हलफनामा भी भरा कि जिस-जिस दिन वह परीक्षा व किसी अन्य पढ़ाई के कारणों से विद्यालय में अनुपस्थित रहते हैं तो इसके बदले उनको मिलने वाला उस दिन का अनुदान (वेतन) भी कट जाएगा।
वह कहते हैं, “हमने सेवा में रहने के दौरान सभी नियमों का पालन करते हुए अपना ग्रेजुएशन पूरा किया, फिर शिक्षक प्रशिक्षण (बीएड या बीटीसी) भी पूरा किया और इसके बाद टीईटी, सुपर टेट जैसे परीक्षाओं में भी सफल हुए। अब जाकर वर्षों के संघर्ष और मेहनत के बाद जब हमें नियुक्ति पत्र मिला है, तो विद्यालय का आवंटन नहीं हो रहा है। यह सब कुछ अंदर से परेशान कर देने वाला है।”
उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही ऐसा आदेश लिया। उत्तर प्रदेश में उस समय कई जगहों पर ऐसे इंटर पास शिक्षामित्र थे, जिन्होंने बाद में स्नातक या बीएड-बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त किया है। ऐसे लोगों की अहर्ता पर उठ रहे किसी भी तरह के प्रश्न चिन्हों को पहले कोर्ट के 2011 के एक आदेश और फिर 2012 के शासनादेश ने खत्म कर दिया है। अब 10 साल बाद उस पर प्रश्न उठाना समझ से परे है,। उन्होंने बताया कि अगर उनका ग्रेजुएशन का डिग्री मान्य नहीं होता तो शासन और शिक्षा विभाग उन्हें बीटीसी शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करने का अनुमति ही नहीं देता।
एक और शिक्षामित्र ने नाम ना छपने की शर्त पर बताया, “ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में ऐसा किया जा रहा है। हमारे साथ ही ऐसे कई सफल शिक्षामित्र हैं, जिनका चयन इससे पहले हुए 68,500 शिक्षक भर्ती और 12,460 शिक्षक भर्ती में हुआ था। अभी भी कई जिलों में हमारे जैसे लोग, जिन्होंने शिक्षामित्र पद पर रहते हुए नियमों के अनुसार ग्रेजुएशन किया और उनको विद्यालय आवंटन हो रहा है, लेकिन बाराबंकी, मथुरा, मुरादाबाद, प्रयागराज, संत कबीर नगर और गोरखपुर जैसे कई जिले हैं, जहां पर विद्यालय आवंटन पर रोक लगा दी गई है। यह सब निराशाजनक है”, वह कहते हैं।
फिलहाल ये चयनित शिक्षामित्र बेसिक शिक्षा विभाग के अपने जिला कार्यालयों और राजधानी लखनऊ स्थित शिक्षा निदेशालय (डायट) की तरफ भटक रहे हैं, ताकि इनके मामले की सुनवाई हो जाए। लेकिन इन्हें आश्वासन के सिवा अब तक कुछ नहीं मिल सका है। वहीं इस भर्ती प्रक्रिया में इतने अवरोध आ चुके हैं कि चयनित शिक्षामित्र अब भर्ती में किसी भी तरह की बाधा आने की बात पर भी डर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि उनकी संख्या बहुत कम है, शायद यह भी है कि अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हो पाई है। आपको बता दें कि चयनित अभ्यर्थियों के सकूल आवंटन की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर ही था।
जब गांव कनेक्शन ने इस संबंध में सबसे अधिक प्रभावित बाराबंकी जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी वीपी सिंह से बात की तो उन्होंने फोन पर बताया, “ऐसे कई चयनित लोग हैं, जिनका कोई ना कोई तकनीकी खामी की वजह से विद्यालय आवंटन नहीं हो पाया है। चूंकि सभी प्रक्रिया ऑनलाइन है इसलिए किसी भी तरह का मानवीय हस्तक्षेप पोर्टल में संभव भी नहीं है।”
“जहां तक शिक्षामित्रों का यह मामला है, इसके बारे में हमने शासन को अवगत करा दिया है। शासन इस संबंध में जो निर्णय लेगी उस आधार पर हम आगे की कार्यवाही करेंगे,” वीपी सिंह ने बताया।
(नोट- चूंकि यह एक सरकारी नौकरी से जुड़ी स्टोरी है, इसलिए किसी भी चयनित शिक्षामित्र ने गांव कनेक्शन से अपना नाम, उम्र, पता नहीं छापने का अनुरोध किया है।)
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