जैसे-जैसे कोरोना वैक्सीन के
आने की खबरें नजदीक आती जा रही हैं, वैसे-वैसे इसके दाम की भी चर्चा पूरे देश
में चर्चा तेज हो गई है। मसलन- कोरोना वैक्सीन का मूल्य
कितना होगा या यह अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की तरह सरकारी अस्पतालों में मुफ्त या
बेहद कम दाम में मिलेगा? वैक्सीन आने के बाद किसको प्राथमिकता
दी जाएगी, क्या यह भ्रष्टाचार को बढ़ाएगा और पहुंच
(प्रभुत्व) वाले लोगों को ही शुरू में वैक्सीन का डोज मिल पाएगा?
देश के सबसे बड़े ग्रामीण
मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन ने कोविड-19 वैक्सीन से जुड़े इन सभी
सवालों को लेकर एक सर्वे किया है। इस सर्वे में शामिल 46.5% ग्रामीण भारतीयों ने कहा कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी
बिहार की तरह मुफ्त में कोरोना वैक्सीन लगाने का वादा करती है, तो
वे उस पार्टी को ही वोट देंगे। वहीं 26.8% लोगों ने कहा कि
यह स्वास्थ्य से जुड़ा बेहद ही संवेदनशील मामला है, इसलिए इसे
राजनीति व वोट से परे रखते हैं और उन्होंने नहीं में इसका जवाब दिया। जबकि लगभग
इतने ही लोगों (26.7%) ने कहा कि उन्होंने इसको लेकर
कुछ तय नहीं किया है।
गांव कनेक्शन ने यह सर्वे देश
के 16 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के 60 जिलों के 6040 परिवारों में एक
दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच किया। इस सर्वे में देश की विविधता को ध्यान में रखते
हुए सभी जाति, धर्म, लिंग, आय-वर्ग,
समुदाय और क्षेत्र के लोगों को शामिल किया गया। जहां उत्तरी क्षेत्र
से जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा,
हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्य शामिल किए गए। वहीं दक्षिणी क्षेत्र से कर्नाटक,
केरल और आंध्र प्रदेश शामिल हुए।
पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात
और मध्य प्रदेश को शामिल किया गया, जबकि पूर्वी व पूर्वोत्तर
राज्यों में असम, अरूणाचल प्रदेश, ओडिशा
और पश्चिम बंगाल इस राष्ट्रव्यापी सर्वे में शामिल हुए। राज्यों की जनसंख्या और
कोविड से प्रभावित सरकारी आंकड़ों के अनुसार अलग-अलग राज्यों से सैंपल का चुनाव
किया गया ताकि कोरोना और वैक्सीन को लेकर देश की सही राय को उचित ढंग से जाना जा
सके।
इस सर्वे में कोरोना मरीजों की
संख्या के आधार पर सभी 17 राज्यों को तीन जोन- कोरोना से बहुत अधिक प्रभावित, कोरोना
से प्रभावित और कोरोना से कम प्रभावित राज्यों में बांटा गया। यह संख्या देश के
स्वास्थ्य विभाग के मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर ली गई थी और उसके अनुसार आंध्र
प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, कर्नाटक,
केरल और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश,
जम्मू कश्मीर, ओडिशा, पंजाब
और पश्चिम बंगाल प्रभावित राज्यों में और बिहार, गुजरात,
झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश कम
प्रभावित राज्यों में आते हैं।
इस सर्वे के अनुसार कोरोना से
सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में सिर्फ 42.3 फीसदी लोगों ने कहा कि वे फ्री
में वैक्सीन का वादा करने वाले राजनीतिक दल को वोट देंगे, जबकि
कोरोना से मध्यम रूप से प्रभावित जोन के सबसे अधिक 48.6 फीसदी लोगों ने कहा कि वे
फ्री वैक्सीन के बदले में राजनीतिक दल को वोट देंगे। कोरोना से सबसे कम प्रभावित
जोन में भी लगभग बराबर की ही संख्या यानी 48.1 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मुफ्त
वैक्सीन के बदले वोट देंगे।
हाल ही में हुए बिहार विधानसभा
चुनाव में हमें यह देखने को मिला था, जब केंद्र और राज्य में शासित एनडीए
गठबंधन ने चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के लोगों को फ्री वैक्सीन का वादा किया था
और इसका फायदा उन्हें चुनाव परिणामों में भी देखने को मिला था, जब 15 साल की एंटी-इनकम्बेंसी के बावजूद नीतीश
कुमार की अगुवाई वाली एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था।
22 अक्टूबर को पटना
में एक एनडीए के ‘संकल्प पत्र’ (मैनफिस्टो) की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता निर्मला सीतारमण ने
बिहार के लिए मुफ्त वैक्सीन का वादा किया था। हालांकि तब इसका बहुत विरोध भी हुआ
था और लोगों ने कहा था कि देश की वित्त मंत्री किसी एक राज्य के लिए कैसे ये घोषणा
कर सकती हैं? कई राजनीतिक दल इसके खिलाफ
चुनाव आयोग में भी गए थे लेकिन चुनाव आयोग ने इस घोषणा को आदर्श आचार संहिता के
विरुद्ध नहीं माना था।
हाल ही में,
15 दिसम्बर को केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी अपने राज्य में मुफ्तकोरोना वैक्सीन की घोषणा की। उन्होंने भी एक चुनावी जनसभा में यह घोषणा की। दरअसल
केरल में इस समय नगर निकाय के चुनाव चल रहे हैं। इसके अलावा हैदराबाद नगर निगम चुनावों में भी बीजेपी
ने अपने मैनफिस्टो में फ्री वैक्सीन देने की बात कही थी।
राजनीतिक पार्टियों द्वारा
चुनावों के समय मुफ्त वैक्सीन के मुद्दे का राजनीतिकरण करने और इसे चुनाव प्रचार
का जरिया बनाकर चुनावी फायदा उठाने की मंशा पर स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं ने
कड़ा विरोध व्यक्त किया है। अर्थशास्त्री और स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता रवि
दुग्गल कहते हैं कि यह बहुत अफसोसजनक बात है कि महामारी को भी राजनीतिक पार्टियां
अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।
जन स्वास्थ्य अभियान, दिल्ली से जुड़े रवि दुग्गल गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत
में कहते हैं, “अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं, टीकों
की तरह कोरोना का भी टीका मुफ्त होना चाहिए। अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश में यह
मुफ्त हैं, बाकी के यूरोपीय देशो में भी इसे निःशुल्क किया
जा रहा है। लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में इसका राजनीतिकरण किया जा
रहा है। बिना किसी विवाद के कोरोना का टीका मुफ्त होना चाहिए और इसे तय करने की
जिम्मेदारी सरकारों और नीति नियंताओं की होनी चाहिए ना कि कोई राजनीति दल सत्ता का
फायदा उठाते हुए अपने राजनीतिक फायदे के लिए ऐसा करे।”
कुछ ऐसी ही बात जन स्वास्थ्य अभियान, मध्य प्रदेश से जुड़े स्वास्थ्य
अधिकार कार्यकर्ता अमूल्य निधि भी कहते हैं। गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में वह
कहते हैं, “कोविड वैक्सीन के लिए पैसे लगने ही नहीं चाहिए, यह राष्ट्रीय
टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। कोरोना महामारी की वजह से सबकी आर्थिक
स्थिति पहले से ही बिगड़ी हुई है। बेरोजगारी अपने चरम पर है और लोगों से उनके
रोजगार छीन गए हैं। वहीं सरकार के पास महामारी के नाम पर पैसे आए हैं, कई कॉर्पोरेट घरानों ने दान दिया है, जबकि पीएम केयर
फंड के जरिये आम लोगों ने भी इस महामारी से निपटने के लिए सरकार को मदद दी है। इन
सबका प्रयोग टीकाकरण के लिए होना चाहिए। चुनाव और वोट के नाम पर सिर्फ बिहार या
किसी अन्य विशेष राज्य को ही मुफ्त टीका नहीं बल्कि सभी राज्यों को मिलना चाहिए।”
वैक्सीन की एक निश्चित लागत तो होगी, जिसे सरकार को वैक्सीन बनाने वाली
कंपनी को भुगतान करना होगा और भारत की एक बड़ी जनसंख्या को देखते हुए क्या इससे
राजकोष पर भार नहीं पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में अमूल्य निधि
कहते हैं कि महामारी एक आपातकालीन स्थिति है और आपातकालीन स्थिति में सरकारों को
सब कुछ रोककर महामारी के रोकथाम पर ही खर्च करना चाहिए। लेकिन सरकार तो सब कुछ कर
रही है, कहीं कुछ भी नहीं बंद है। सड़कें बन रही हैं,
बड़ी-बड़ी सरकारी इमारतें बन रही हैं। ‘सरकारी खर्च को संतुलित और राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार को इन सब
खर्चों को थोड़े समय के लिए रोक देना चाहिए और महामारी से उबरने के लिए स्वास्थ्य
सुविधाओं पर खर्च करना चाहिए,’ वह आगे कहते हैं।
“पोलियो के खुराक का पैसा नहीं
लगता, टीबी की दवा का पैसा नहीं लगता और ना ही हेपटाइटिस, चेचक
सहित कई टीकों का। सरकारी अस्पतालों में अधिकतर टीकें मुफ्त या बेहद मामूली दाम
में लग जाते हैं, तो हम कोरोना के टीके के लिए पैसा क्यों
दें,” उत्तर प्रदेश के बेहद पिछड़े
जिले संत कबीर नगर की दुर्गावती देवी (63 वर्ष) सवाल करती हैं। सर्वे के दौरान लगभग
ऐसा ही सवाल देश के अलग-अलग कोनों से आया।
गांव कनेक्शन के इस सर्वे में लगभग 36% लोगों ने कहा कि वे वैक्सीन फ्री में चाहते हैं। हालांकि 44% लोगों ने
कहा कि वे वैक्सीन के लिए पैसे खर्च कर सकते हैं। जो लोग पैसे खर्च करने
के लिए तैयार हैं उनमें से 66% लोग चाहते हैं कि कोविड वैक्सीन की कीमत
500 रुपए या उससे कम होनी चाहिए।
हालांकि कई
राज्यों ने अब मुफ्त वैक्सीन के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है
और बिहार की तरह अपने राज्यों में भी मुफ्त वैक्सीन की मांग की है। इन राज्यों में
छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना
प्रमुख राज्य हैं। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सभी के लिए मुफ्त वैक्सीन की बात उठाई है, जबकि केंद्र के
साथ होने वाले राज्यों की बैठक में भी ऐसे मांग उठते रहते हैं। हालांकि अब देखना
होगा कि वैक्सीन आने के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकारें क्या निर्णय लेती हैं?
गांव कनेक्शन के
इस सर्वे में एक बेहद महत्वपूर्ण आंकड़ा यह भी निकल कर सामने आया कि शिक्षित लोगों
की तुलना में कम पढ़े लिखे या निरक्षर लोगों की संख्या अधिक है, जो
मुफ्त वैक्सीन के नाम पर किसी भी राजनीतिक पार्टी को वोट देने को तैयार हैं।
जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता गया, वैसे-वैसे लोग इस बेहद
संवेदनशील और गंभीर मसले को राजनीति से जोड़ने से पीछे हटते दिखें।
सबसे अधिक
निरक्षर लोगों (59.1%) लोगों ने और सबसे कम ग्रेजुएट
लोगों (39.3%) लोगों ने कहा कि वे मुफ्त
वैक्सीन का वादा करने वाले पार्टी को वोट देंगे। हालांकि ग्रेजुएट लोगों की तुलना
में पोस्ट ग्रेजुएट लोगों की संख्या (46.5%) अधिक रही।
51 फीसदी लोगों के मुताबिक कोरोना चीन की साजिश, 18 फीसदी ने बताया सरकार की नाकामी: गांव कनेक्शन सर्वे