पॉक्सो संशोधन विधेयक लोकसभा में पास, बाल यौन अपराधियों को अब हो सकेगा मृत्युदंड

प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (पॉक्सो) संशोधन विधेयक गुरूवार को संसद में पास हो गया। इस संशोधित विधेयक में नाबालिगों के खिलाफ अपराध के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा बिल में चाइल्ड पोर्नोग्रॉफी को भी परिभाषित और उसे रोकने का प्रावधान किया गया है। राज्यसभा में यह बिल पहले ही पारित हो चुका है ।

लोकसभा में बिल पर चर्चा करते हुए महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि इस विषय को राजनीति के चश्मे से नहीं देखे जाने की जरूरत है। बिल पास हो जाने के बाद उन्होंने ट्वीट किया, “इस बिल को पास कराने के लिए सभी सदस्यों का धन्यवाद। यह बिल देश के भविष्य को सुरक्षा उपलब्ध कराने में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।”

इस बिल की प्रमुख बात यह है कि नाबालिगों के साथ यौन शोषण के मामले में दोषियों के खिलाफ न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान रखा गया है। जबकि असाधारण (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान रखा गया है। हालांकि लोकसभा में चर्चा के दौरान विपक्षी दलों के कुछ सासंदों ने इसमें मृत्युदंड के प्रावधान पर पुनर्विचार करने की भी मांग की थी।

बिल में प्रावधान किया गया है कि नाबालिगों के खिलाफ गंभीर यौन अपराध साबित होने पर दोषी को कम से 20 वर्ष की कठिन कारावास की सजा सुनाई जाएगी। इसमें ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास, मृत्युदंड और जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है।

सदन में क्या हुआ?

बिल पर चर्चा की शुरूआत करते हुए तमिलनाडु के तिरूचपल्ली के कांग्रेसी सांसद सुब्रमण्यम तिरुनवुक्करासर ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए लाया गया यह संशोधन बिल स्वागत योग्य हैं। आज के समय में यह कानून जरूरी है क्योंकि हर साल बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि उन्होंने बिल में मृत्युदंड को शामिल करने पर पुनर्विचार करने को कहा और कहा कि इसे संसदीय समिति को भेजा जाना चाहिए। तिरुनवुक्करासर ने कहा कि बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के कई मामले सामने नहीं आ पाते और लोग पुलिस में नहीं जाते। इनके अलावा अदालतों में भी मामले लंबे समय तक लंबित रहते हैं। इन पर ध्यान देना जरूरी है।

इलाहाबाद की सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि पहली बार चाइल्ड पोर्नोग्राफी को परिभाषित करने के लिए संशोधन लाना प्रशंसनीय है। उन्होंने इसमें सजा को सख्त किए जाने और मृत्युदंड तक के प्रावधान को शामिल करने का भी स्वागत किया। जोशी ने कहा कि इस तरह के मामलों में अपराध अधिकतर घरों में ही, पड़ोसियों द्वारा, परिचितों द्वारा और नशे की हालत में किये जाते हैं। उन्होंने कहा कि अपराधियों में डर पैदा करने के लिए इस तरह की सख्त सजा जरूरी है।

विपक्ष ने कहा- मृत्युदंड की सजा पर हो पुनर्विचार

जोशी ने साथ ही में कहा कि जांच और न्याय में तेजी लाना भी जरूरी है। इसके अलावा बच्चों को सामाजिक रूप से तैयार करना होगा, उनमें जागरुकता लानी होगी। चर्चा में हिस्सा लेते हुए डीएमके की कनिमोई ने कहा, “लड़कों के साथ भी शोषण के मामले सामने आते हैं और केवल पुरुष ही अपराधी नहीं होते। कई मामले पारिवारिक दबाव के कारण सामने नहीं आ पाते। सरकार की मंशा अच्छी है लेकिन मृत्युदंड किसी अपराध को रोकने के लिए जवाब नहीं है। इस पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए।”

तृणमूल कांग्रेस की शताब्दी राय ने भी बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के शामिल होने के मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते। उन्होंने विधेयक में मृत्युदंड के प्रावधान पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि क्या फांसी की सजा से अपराध कम हुए हैं? राय ने निर्भया कांड का उदाहरण भी दिया जिसके बाद से इस तरह की घटनाएं और बढ़ी ही हैं। राय ने कहा, “इसके बजाय सरकार को अपराधों की रोकथाम पर अधिक ध्यान देना होगा। जागरुकता बढ़ानी होगी और पीड़ितों की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान देना होगा, जिन्हें धमकी और दबाव का सामना करना पड़ता है।”

शताब्दी राय ने उन्नाव मामला भी उठाया और कहा कि सरकार बताए कि इसमें पीड़ित लड़की का क्या कसूर है? वाईएसआर कांग्रेस के टी रंगैया ने कहा कि बाल अपराधों के अपराधियों को जल्द और कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने भी मृत्युदंड की सजा के प्रावधान की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कहीं इसकी वजह से पीड़ितों के साथ कोई अनहोनी नहीं हो। शिवसेना के विनायक राउत ने कहा कि मोबाइल फोन के दुष्परिणामों की वजह से भी बच्चों तक पोर्न पहुंच रहा है, इस नाते सरकार द्वारा विधेयक में लाये गये संशोधन प्रशंसनीय हैं।

‘बाल यौन अपराधों के मामले में हो त्वरित कार्रवाई’

चर्चा में भाग लेते हुए जेडीयू के राजीव रंजन सिंह ने कहा कि समाज में जघन्य अपराधों की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसे में मामलों को तार्किक परिणाम तक पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि पूरे देश में विशेष अदालतें बनें, अदालती प्रक्रिया को त्वरित बनाया जाए और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

बीजू जनता दल(बीजेडी) की शर्मिष्ठा सेठी ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में दोष साबित होने की दर बहुत कम है। आशा की जाती है कि इस विधेयक के पारित होने के बाद इसमें तेजी आएगी। वाईएसआर कांग्रेस के प्रभाकर रेड्डी ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून का प्रभावी क्रियान्वयन होना चाहिए।

एनसीपी की सुप्रिया सुले ने कहा कि बाल कल्याण केंद्रों पर बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न होता है और ऐसे में हर सांसद के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे महीने में कम से कम एक बार अपने क्षेत्र के बाल कल्याण केंद्रों का दौरा करें। उन्होंने कहा कि सरकार को छेड़छाड़ मुक्त भारत बनाने की पहल भी करनी चाहिए।

बसपा के कुंवर दानिश अली ने कहा कि वह मौत की सजा के खिलाफ हैं, लेकिन बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध के मामले में इस सजा का वह समर्थन करते हैं। कांग्रेस की ज्योति मणि ने कहा कि समाज में बाल यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरुकता पैदा करने की जरूरत है। भाजपा के निशिकांत दुबे ने कहा कि विशेष अदालतों के गठन के साथ न्यायाधीशों की जवाबदेही तय होनी चाहिए ताकि मामलों का त्वरित निस्तारण हो सके।

‘संवेदनहीन रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया समूहों के खिलाफ भी हो दंड का प्रावधान’

तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न के मामलों की संवेदनहीन रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया समूहों के खिलाफ दंड का प्रावधान होना चाहिए। बीजेपी की प्रीतम मुंडे ने कहा कि पीड़ितों के पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए।

बच्चों से बलात्कार के दोषियों को सार्वजनिक फांसी, रासायनिक रूप से नपुंसक बनाने की भी उठी मांग

पॉक्सो कानून में हो रहे संसोधन बिल पर चर्चा करते हुए लोकसभा के कुछ सदस्यों ने दोषियों को सार्वजनिक फांसी और रासायनिक रूप से नपुंसक बनाने की भी मांग की। आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा कि बच्चों से घृणित अपराध के दोषियों को सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी जानी चाहिए ताकि लोगों में डर पैदा हो। वहीं बीजेपी की सांसद किरण खेर ने कहा कि ऐसे दोषियों को रासायनिक रूप से नपुंसक बना देना चाहिए, ताकि उन्हें महसूस हो कि दर्द क्या होता है। 

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