इंसानी ज़िंदगियां लील रहा है जलवायु परिवर्तन, दि लैंसेट की रिपोर्ट का एक भयानक स्थिति की ओर ईशारा

जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है, लोगों की आजीविका छीन रहा है और जान-माल को नुकसान पहुंचा रहा है। स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर दि लैंसेट काउंटडाउन की हाल ही में जारी की गई 2020 की रिपोर्ट भारत की गंभीर तस्वीर को पेश कर रहा है।
#Global warming

वर्ष
2019 में
77.5 करोड़ भारतीय
हीटवेव्स (गर्म-हवा)
की चपेट में आए और वर्ष 2018 में एक लाख
से अधिक मौतें जीवाश्म
ईंधन के उपयोग
से हुईं। अंतर्राष्ट्रीय
मेडिकल जर्नल दि
लैंसेट की
वर्ष 2020 की रिपोर्ट
में यह खुलासा हुआ है।

अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल दि लैंसेट की साल 2020 की यह रिपोर्ट दर्शा
रही है कि मौत की
उल्टी गिनती अब
शुरू हो चुकी है। ये आंकड़े भारत
की एक बहुत ही भयावह
तस्वीर से रूबरू
करवा रहे हैं। अप्रत्याशित मौसमी घटनायें
लोगों के स्वास्थ्य
पर गहरा असर
डाल रही हैं, परिणामस्वरूप
लोगों की जानें
जा रही हैं।
अब अगर इसके
बावजूद भी हम सजग नहीं
हुए तो तस्वीरें
और भी भयानक
रूप लेने में
कोई कसर नहीं
छोड़ेंगी।

तेज़ी से हो
रहे जलवायु परिवर्तन
के ज़िम्मेदार हम
इंसान ही हैं। मानव निर्मित
कारक ही चरम मौसमी
स्थितियों के लिए
ज़िम्मेदार हैं। प्राकृतिक
आपदाएं बढ़ रही हैं, जिसकी वजह
से जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित
हो रहा है और लोगों
के स्वास्थ्य पर
बुरा असर पड़ रहा है।

वर्ष 2019 में भारत
देश ने बुजुर्गों
की
एक बहुत बड़ी
आबादी को खो दिया। गर्म हवाओं
की लहरों ने
अपना विकराल रूप दिखाते हुए पूरे विश्व में 77.5 करोड़ लोगों को अपनी
चपेट में
लिया। एक वर्ष पहले
वर्ष 2018 में हीटवेव्स
के कारण भारत
में 31 हज़ार (31,000) मौतें
हुईं थी। वैश्विक
स्तर पर जहाँ भारत दूसरे
स्थान पर था तो चीन
पहले स्थान पर
रहा। चीन
में मौत का आँकड़ा 62 हज़ार(62,000) था।
इसी वर्ष, घरों
में प्रयोग होने
वाले कोयले जैसे
ईंधन के प्रयोग
बिजली
संयंत्र और उद्योगों
की वजह से भी देश
भर में एक लाख के लगभग
मौतें हुईं।

हीटवेव में काम करते मजदूर (फोटो- गांव कनेक्शन)

हीटवेव में काम करते मजदूर (फोटो- गांव कनेक्शन)

जलवायु परिवर्तन तापमान
में वृद्धि और हीटवेव्स के लिए ज़िम्मेदार

तापमान में बढ़ोतरी
और तेज़ गर्म
हवाओं के कारण लोगों के
स्वास्थ्य पर बुरा
असर पड़ रहा है। वैश्विक
स्तर पर 302 अरब
काम
के घंटे प्रभावित
हुए है।
भारत में इसका
40 फीसदी का आंकड़ा दर्ज किया गया।

वर्ष 2020 की स्वास्थ्य
और जलवायु परिवर्तन
की दि लैंसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट, यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन के नेतृत्व में 35 शिक्षण
संस्थाओं के साथ
साथ विश्व स्वास्थ्य
संगठन और विश्व
मौसम विज्ञान संगठन
के सहयोग से
तैयार की गई है। इस
रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को
उजागर किया गया
है। रिपोर्ट में
इस बात का ज़िक्र है
कि जलवायु
और महामारी के
संकट से निपट कर लाखों
लोगों के स्वास्थ्य
में सुधार लाया
जा सकता है और जीवन
बचाया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार
पूर्व औद्योगिक स्तरों
की तुलना में
दुनिया पहले से ही 1.2 डिग्री
सेल्सियस गर्म हो
चुकी है। जिसके
परिणामस्वरूप लोगों का स्वास्थ्य
तेजी से बिगड़ रहा है।
पाँच वर्ष पूर्व 12 दिसंबर
2015 को पेरिस समझौतेॉ की
नींव रखी गई थी। पाँच
वर्ष पूर्व भारत
सहित दुनिया भर
के देश, समझौते
के अनुसार ग्लोबल
वार्मिंग को
2 डिग्री सेल्सियस से कम करने के
लिए प्रतिबद्ध हुए
थे। पाँचवी
सालगिरह आ गई, पर वैश्विक
स्तर पर कार्बन-डाइ -ऑक्साइड
का उत्सर्जन लगातार
बढ़ ही रहा है।

दि लैंसेट काउंटडाउन
की रिपोर्ट मानव
स्वास्थ्य पर
जलवायु परिवर्तन के
प्रभाव की पुष्टि
करती है। रिपोर्ट इस बात के लिए
आगाह करती है कि यदि
तत्काल कार्रवाई नहीं
की गई तो वैश्विक स्तर पर लोगों के
स्वास्थ्य पर बुरा
असर पड़ेगा और
जनजीवन अस्त-व्यस्त
हो जाएगा।

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

विनाशकारी
हीटवेव्स 65 वर्ष से अधिक
के लोगों के लिए
और भी खतरनाक है

दि लैंसेट काउंटडाउन
2020 की रिपोर्ट में
यह प्रकाशित हुआ
कि भारत में
हीटवेव्स से
बुजुर्ग आबादी पर
बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा
है।साल 2019 में 77.5 करोड़ बुजुर्ग
आबादी हीटवेव्स का
शिकार हुए हैं।
तापमान बढ़ने की वजह से
जंगलों में आग लगने की
घटनायें बढ़ती जा रही हैं।
इसके परिणामस्वरूप
पेड़-पौधे सूख
रहे हैं और फिर
भीषण गर्मी और
जानलेवा गर्म हवाएं विशेष
तौर पर बुजुर्गों
के स्वास्थ्य पर नकारात्मक
प्रभाव डाल रही है ।
हीट स्ट्रेस और
हीट स्ट्रोक(लू)
के कारण ह्रदय
व रक्त वाहिकाओं
और श्वसन से
सम्बंधित रोग हो
रहे हैं। यही
कारण है कि रोगियों की संख्या
और मृत्यु दर
में वृद्धि हुई
है।

रिपोर्ट के मुताबिक
भारत में 1986 -2005 के
मुकाबले साल 2010 से
हीटवेव्स बहुत ज़्यादा
बढ़ा है। इस दौरान , 2000 के शुरुआत
से ही 65 वर्ष
के ऊपर ,गर्मी
से सम्बंधित मौतें
दोगुनी हुई हैं।
2018 में देश में
31 हज़ार से अधिक मौतें हुईं।

जलवायु परिवर्तन , एक बुरा दौर
लेकर आया है, जो आने
वाले समय में और खतरनाक
होता जाएगा। जलवायु
परिवर्तन एक
क्रूर कील की भांति है,
जो देशों के
बीच और भीतर मौजूदा स्वास्थ्य
असमानताओं को बढ़ाता
है। रिपोर्ट के
अनुसार , कोविड -19 की
भाँति जलवायु परिवर्तन
के दुष्परिणाम भी
सबसे अधिक वृद्धों
में ही देखने
को मिल रहे हैं। यूनिवर्सिटी
कॉलेज लंदन के गहन चिकित्सा
इकाई (आई.सी.यू.) के
चिकित्सक और लैंसेट
काउंटडाउन के सह
अध्यक्ष हघ मोंट्गोमेरी का
कहना है कि 65
वर्ष से अधिक उम्र के
लोग ज़्यादा प्रभावित
हो रहे हैं।

रिपोर्ट में यह
प्रकाशित हुआ है
कि साल 2000 से
2018 में, वैश्विक
स्तर पर गर्मी
की वजह से
65 वर्ष से अधिक की मौत
में 53. 7 % की वृद्धि
हुई है। साल
2018 में मौत का
आँकड़ा 2 लाख 96 हज़ार
हो गया था। सबसे अधिक
मौत जापान, पूर्वी
चीन , उत्तर भारत
और मध्य यूरोप
में दर्ज की गई।

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

भारत में 1 लाख से
अधिक मौत कोयला जलाने
से हुई

जीवाश्म ईंधन जैसे कोयले
का प्रयोग भी खतरनाक माना गया है। लैंसेट की यह रिपोर्ट कहती है
कि भारत में
साल 2018 में 1 लाख
से अधिक मौत
सिर्फ़ कोयला जलाने
से हुई है। कोयले एवं
गैस जैसे जीवाश्म
ईंधन के जलने से वायु
प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे
पी.एम.2. 5 नामक
वायु प्रदूषण उत्पन्न होता
है , फेफड़ों
और ह्रदय को
नुकसान पहुँचाता है।
घरों और ऊर्जा
क्षेत्र जैसे बिजली
संयत्र और उद्योग
में जीवाश्म ईंधन
का प्रयोग इन
लाखों मौतों का
कारण हैं।

गौरतलब बात
यह है कि
विश्व भर में उत्सर्जन पर अंकुश
लगाये जाने के बाद भी
वायु प्रदूषण बढ़
रहा है। और विडंबना ऐसी कि बढ़ने की
आशंका आगे भी बरकरार रहेगी।
रिपोर्ट में
यह भी लिखा है कि
वायु प्रदूषण का
व्यापक प्रभाव कम और
मध्यम आय वाले देशों में
ज़्यादा हुआ है। और इसकी
वजह से वहाँ
91 % मौतें हुई हैं।
भारत जैसे देश
में लगभग डेढ़
लाख मौतें बाहरी
वायु प्रदूषण के
मुख्य स्रोत से
हुई हैं।

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

स्त्रोत- दि लैंसेट काउंटडाउन 2020 रिपोर्ट

कार्य करने के घंटे
बाधित हो रहे हैं

जलवायु परिवर्तन दुनिया को नए
नए झटकों से
अवगत करा रही है। झटके
बीमारी के रूप में हमारे
जीवन में प्रवेश
कर रही है। और इसका
नतीजा यह निकल रहा है
कि जनजीवन बाधित
हो रहा है। अत्यधिक गर्मी के
कारण लोगों की
कार्य करने की क्षमता और
योग्यता घट
रही है। ऐसे में ज़ाहिर
है कि अर्थव्यवस्था
चर्मरायेगी। पिछले साल
302 अरब कार्य करने
के घंटों का
नुकसान हुआ है ,
जिसमें से भारत का नुकसान 40 % दर्ज किया
गया है। साल
2019 में , भारत में कार्य
करने की संभावित क्षमता
11 हज़ार 830 करोड़ थी
, जो कि साल
2000 में खो गए 4300 करोड़ घंटों
से कहीं अधिक
थी।

जलवायु परिवर्तन विश्व को अपंग
बनाने पर आतुर

आने वाले समय
में जलवायु परिवर्तन
के कारण कई गंभीर
समस्यायें उत्पन्न
हो सकती हैं
। उत्सर्जन पर
अंकुश लगाने की
योजना भी विफल ही हो
रही है। परिणामस्वरूप
बीमारियां बढ़ेंगी। वायु प्रदूषण
और गहराता जाएगा
और इसके बाद
तापमान बढ़ेगा। तापमान
बढ़ने से चरम मौसमी घटनायें
घटित होंगी , जंगलों
में आग लगेगी
, चक्रवात तूफ़ान , बाढ़ और सूखे जैसी
समस्यायें हमारी ज़िन्दगी
का अहम् हिस्सा
बन जाएंगी। जंगलों
में लगी आग के धुएं
से अस्थमा जैसी
साँस की बीमारी
होती है। बाढ़ और
सूखे के कारण वेक्टर जनित
और जलजनित बीमारी
पैदा होती है।
एक श्रृंखला की
तरह सब एक दूसरे से
जुड़े हुए हैं। दर्द-तकलीफ़ , मौत जैसी
दुखद घटनाएं जनजीवन
पर नकारात्मक प्रभाव
डालेगी।

साल 2001-04 की तुलना
में 2016 -19 में
196 देशों में से
114 देश में जंगलों
में आग लगने का प्रतिशत
बहुत बढ़ा है। लेबनॉन, केनिया और
दक्षिण अफ्रीका के
जंगलों में सबसे ज्यादा
आग लगी है।

लगभग सभी महाद्वीपों
में जीवन प्रभावित
हुआ है। इंसान
तरह-तरह की बिमारियों से जूझ रहा है।
दक्षिण अमरीका में
डेंगू ने कहर मचा रखा
है। ऑस्ट्रेलिया,
पश्चिम-पूर्वी अमरीका
और पश्चिमी यूरोप
में ह्रदय व रक्त वाहिकाओं
और श्वसन से
सम्बंधित बीमारी ने अपना
आतंक फैला रखा
है। बाढ़
और सूखे की वजह से
चीन, बांग्लादेश, इथियोपिया
और दक्षिण अफ्रीका
में कुपोषण और
मानसिक रोग से लोग जूझ
रहे हैं।

भारत के एक ग्रामीण अस्पताल में भर्ती डेंगु के मरीज (फोटो- गांव कनेक्शन)

भारत के एक ग्रामीण अस्पताल में भर्ती डेंगु के मरीज (फोटो- गांव कनेक्शन)

हालिया प्रकाशित दि लैंसेट
की रिपोर्ट महामारी
की वजह से साफ़-सफ़ाई
रखने के कारण डेंगू, मलेरिया
और विब्रियोसिस जैसी प्राणघातक
संक्रामक बीमारियाँ कम हुई हैं। रिपोर्ट
के अनुसार तापमान को बढ़ने से रोकने की दिशा में कदम उठाने होंगे
और इसे 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना होगा, जलवायु
को संरेखित कर और
कोरोना महामारी से
रोकथाम कर दुनिया
निकट और दीर्घकालिक
स्वास्थ्य और
आर्थिक लाभ प्राप्त
कर सकता है।

उम्मीद है
तो सब कुछ हासिल किया
जा सकता है। इतनी
जल्दी हताश होकर
बैठना इंसान का
स्वभाव नहीं है।
हालांकि यह लड़ाई लम्बी
ज़रूर है। फिर भी
हार मानना हम
इंसानों ने कहाँ सीखा है। मानव
निर्मित कारकों की
वजह से जलवायु
परिवर्तन जैसी भीषण
समस्या हमारे सामने
उभर रही है और अपना
जाल फैलाती भी
जा रही है। इसे आगाज़
भी हमने दिया
है तो अंजाम
भी हमें ही देना
होगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के
पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन
और स्वास्थ्य विभाग
की निदेशक मारिया
नीरा का कहना है कि
वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़
बनाने के लिए अरबों डॉलर निवेश
किया जा रहा है। यह
समय ऐसे अवसरों
को प्रोत्साहित करने
का है। यदि महामारी
और जलवायु परिवर्तन
को काबू में
किया जा सकेगा
तो हम
एक साथ तीन जीत का
जश्न मनाएंगे। पहला
लोगों के स्वास्थ्य
में सुधार होने
का, दूसरा एक
स्थायी अर्थव्यवस्था के
निर्माण का और तीसरा पर्यावरण
को सुरक्षित करने
का।

वह आगे कहती
हैं कि दुर्भाग्य यह है कि हमारे
पास समय का अभाव है। इतने
कम समय में इतने सारे
संकट
से उबरना आसान
नहीं होगा और न ही विशाल
मात्रा में जीवाश्म
ईंधन के उत्सर्जन पर
रोक लगाया जा
सकता है। विश्व 1. 5 C का
लक्ष्य इतनी
जल्दी प्राप्त नहीं
कर सकेगा। जलवायु परिवर्तन
से होने वाली
हानि से नहीं निपट पाने
के लिए दुनिया
की हमेशा निंदा
होती रहेगी।

इस स्टोरी को अंग्रेजी में यहां पढ़ें- Over 100,000 coal burning related deaths in 2018: The Lancet Countdown 2020 report

अनुवाद- इंदु सिंह

ये भी पढ़ें- कृषि में जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी बड़ी चुनौतियां, हमें खोजने होंगे नए समाधान : पुरुषोत्तम रूपाला


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