भारत में सिर्फ 8.5% स्कूली छात्रों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है। इस वजह से कोरोना काल में भारतीय बच्चों की पढ़ाई बहुत ही अधिक प्रभावित हुई। ऐसा यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘COVID-19 and School Closures: One year of education disruption’ में सामने आया है। कोरोना के एक साल पूरा होने पर यूनिसेफ ने यह रिपोर्ट जारी कर बताया कि कोरोना, लॉकडाउन और स्कूलबंदी के कारण दुनिया भर के 21 करोड़ से अधिक बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है, जिसमें 17 करोड़ छात्र ऐसे हैं, जिनकी पढ़ाई सालभर पूरी तरह ठप रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन शिक्षा इन बच्चों के लिए विकल्प नहीं है क्योंकि विश्व के चार में से सिर्फ एक बच्चे (25 फीसदी) के पास मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा है। इनमें से अधिकतर बच्चे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समाज से हैं। भारत के लिए यह प्रतिशत और भी कम है और यहां पर सिर्फ 8.5% बच्चों के पास ही इंटरनेट सुविधा है, जो कि दक्षिण एशियाई देशों में अफगानिस्तान के बाद सबसे कम है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण एशियाई देशों में श्रीलंका के 74.6%, मालदीव के 69.7%, बांग्लादेश के 36.6%, नेपाल के 13%, पाकिस्तान के 9.1%, भारत के 8.5% और अफगानिस्तान के 0.9% बच्चों के पास ही मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा है, इसलिए ऑनलाइन शिक्षा का भी लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
वहीं अगर स्कूल बंदी की बात की जाए, तो दक्षिण एशियाई देशो में बांग्लादेश के 198 दिनों के बाद सबसे अधिक भारत में कुल 146 दिन स्कूल पूरी तरह से बंद रहें। चूंकि बांग्लादेश में 36.6% स्कूली छात्रों के पास और भारत के सिर्फ 8.5% छात्रों के पास इंटरनेट की पहुंच थी और आबादी की दृष्टि से भी भारत में स्कूली छात्रों की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए दक्षिण एशियाई देशों में भारत के बच्चों की पढ़ाई पूरे एक साल के दौरान सबसे अधिक प्रभावित रही। अगर हम अन्य दक्षिण एशियाई देशों की बात करें तो कोविड वर्ष के दौरान श्रीलंका में 141, नेपाल में 131, अफगानिस्तान में 115, पाकिस्तान में 112 और मालदीव में सिर्फ 70 दिन ही पूरी तरह से स्कूल बंद रहें।
यूनिसेफ की यह रिपोर्ट कहती है कि इन परिस्थितियों में स्कूलों में ड्रॉप आउट रेट और बढ़ सकता है, जो कि पहले से ही भारत में बहुत अधिक है। यूनिसेफ ने अपनी इस रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 60 लाख से अधिक लड़के-लड़कियां कोविड-19 महामारी की शुरुआत से पहले भी स्कूल नहीं जा पा रहे थे। कोरोना के बाद यह संख्या और बढ़ने का खतरा है।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हैनरिएटा फोर ने यह रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, “हर दिन बीतने के साथ, बच्चों से स्कूलों में निजी अनुभव और शिक्षा हासिल करने के अवसर पीछे छूटते जा रहे हैं। वंचित और हाशिए पर रहने वाले बच्चों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।”
यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया, “ऑनलाइन शिक्षा सभी के लिए विकल्प नहीं हो सकता है क्योंकि केवल चार बच्चों में से एक के पास ही डिजिटल डिवाइस और इंटरनेट कनेक्टिविटी है। कोरोना के कारण यह डिजिटल डिवाइड और बढ़ा भी है। इसलिए जरूरी है या तो सरकारें स्कूल खोलें या फिर बच्चों को शिक्षा देने के लिए कोई विकल्प उपलब्ध कराएं।”
गौरतलब है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में फरवरी के बाद से ही स्कूल खुलने लगे हैं। फरवरी में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों के खोले जाने के बाद से एक मार्च से अनेक राज्यों में प्राथमिक स्कूल भी खोले जाने लगे हैं। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि स्कूल खोले जाने के बाद से अनेक राज्यों में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ी है और स्कूलों से भी कोरोना के मामले सामने आने लगे हैं।
भारत में अब तक केवल आठ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने सभी कक्षाओं के स्कूल खोले हैं। वहीं 11 राज्यों ने 6-12 तक की कक्षाओं के लिए स्कूलों को फिर से खोला है, जबकि 15 राज्य ऐसे हैं जिन्होंने 9-12 तक की कक्षाएं खोली हैं। सिर्फ तीन राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने आंगनवाड़ी केंद्रों को फिर से खोला है।
रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना लॉकडाउन के कारण दुनिया भर के लगभग 90 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इन बच्चों को उनके स्कूल पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद होने के कारण स्कूली शिक्षा में व्यवधानों का सामना करना पड़ा है। सबसे अधिक प्रभावित लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देश रहे हैं, जहां के लगभग 16 करोड़ स्कूली बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। उसके बाद दक्षिण एशिया के लगभग 15 करोड़ बच्चों को स्कूल ना खुलने से नुकसान हुआ।
‘स्कूल खुलने को प्राथमिकता मिले’
यूनिसेफ का कहना है कि स्कूल बंद होने से बच्चों की शिक्षा और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ा है। वंचित हालात में रहने वाले बच्चे दोबारा कभी स्कूली शिक्षा में वापस नहीं लौट पाने के हालात का सबसे अधिक सामना कर रहे हैं। इन बच्चों को बाल विवाह या बाल श्रम में धकेल दिए जाने का भी जोखिम बहुत अधिक हो गया है। यूनिसेफ ने कहा है कि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी स्कूल का विकल्प नहीं हो सकता है।
जनवरी-फरवरी, 2021 में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक सर्वे रिपोर्ट में भी सामने आया है कि कोरोना के कारण लगभग एक साल तक स्कूलों के लगातार बंद रहने से बच्चों की सीखने की क्षमता पर गंभीर असर पड़ा है। इस सर्वे के अनुसार बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में कुछ नया सीखने की बजाय अपनी पिछली कक्षाओं में जो सीखा था उसे भी भूल रहे हैं। 82% छात्र गणित के सबक भूले हैं, वहीं 92% भाषा के मामले में पिछड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा अध्यापक-छात्र के सीधा संवाद न होने और ऑनलाइन कक्षाओं के प्रभावी ढंग से काम न करने के कारण हो रहा है।
इसके अलावा राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS) और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक अध्ययन किया था, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है और उनका ड्रॉपआउट रेट बढ़ने की संभावना है। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण ऑनलाइन पढ़ाई में भी लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है।
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