ओडिशा: आग की चपेट में सिमिलिपाल का जंगल और कुलडीहा अभ्यारण्य

सिमिलिपाल राष्ट्रीय उद्यान में 21 में से 12 रेंज आग की चपेट में हैं। वन अधिकारियों का कहना है कि आग पर काबू पा लिया गया है लेकिन पर्यावरणविदों का दावा है कि ऐसा नहीं है। सवाल यह है कि ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाएं क्यों बढ़ रही है?

भुवनेश्वर, ओडिशा। बीते एक पखवाड़े से ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व जल रहा है। समाचार रिपोर्ट्स का दावा है कि 2,750 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में 21 में से 12 रेंज आग की चपेट में हैं। वन अधिकारी जंगल की आग को नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहे हैं। इस टाइगर रिजर्व के बारिपदा सर्कल के क्षेत्रीय मुख्य संरक्षक एम योगजयानंद ने मीडिया को बताया, “आग को और अधिक फैलने से बचाने के लिए कुछ मात्रा में बारिश का होना आवश्यक है।”

इस बीच, कुछ नए मीडिया रिपोर्ट्स से यह बहु पता चला है कि पास ही में स्थित कुलडीहा अभ्यारण्य में भी आग लग गई है। ‘भांजा सेना’ नामक एक स्थानीय संगठन ने 10 मार्च को मयूरभंज जिले में 12 घंटे के बंद का आह्वान भी किया था। उन्होंने टाइगर रिजर्व में लगी आग पर काबू नहीं कर पाने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है।

सिमिलिपाल के बेतनोटी, देउली, पिथाबाटा, कपटीपाड़ा और उडाला रेंज में 22 फरवरी को कई जगह पर आग लगने की सूचना मिली थी। इसके बाद बांग्रीपोसी, डकुरा, रसगोविंदपुर, पोड़डिया, ठाकुरमुंडा बरही पानी और अस्ताकुआन पर्वतमाला के भी आग की चपेट में आने की बात सामने आई। वन अधिकारियों का दावा है कि आग पर काबू पा लिया गया है, लेकिन 7 मार्च की शाम को सोशल मीडिया यूजर्स ने भांजाबसा रेंज में आग लगने की एक और वीडियो साझा की।

सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व के उप निदेशक जेडी पाटी ने कहा, “आग नियंत्रण में है और विभाग ने इसे नियंत्रित करने के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि की है। जब भी हमें आग के बारे में कोई जानकारी मिलती है, हम उसे बुझाने के लिए तुरंत आगे आते हैं।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ जाता है और इस वजह से आग की घटनाएं बढ़ी हैं।

उनके अनुसार, पिछले साल सितंबर से ओडिशा में बारिश नहीं हुई है, और 1 फरवरी से ही तापमान बढ़ने लगा है। पाटी ने कहा, “यही कारण है कि हम सिमिलिपाल में ही नहीं बल्कि ओडिशा के अन्य हिस्सों में भी आग लगने की घटनाएं देख रहे हैं। यह पूरे पूर्वी क्षेत्र की स्थिति है।”

फिलहाल सिमिलिपाल में आग पर काबू पाने के लिए 1,200 से अधिक लोग लगे हुए हैं। इसमें 750 वन विभाग के कर्मचारी और 450 अस्थायी कर्मचारी शामिल हैं। एक उच्च श्रेणी के वन अधिकारी ने कहा कि वे आग पर काबू पाने के लिए 40 चौपहिया वाहनों और 320 ब्लोअर की मदद ले रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि रिजर्व में लगभग 2,000 किलोमीटर तक एक फायर लाइन बनाई गई है।

सिमिलिपाल की आग में किसी भी जानवर या पक्षी को नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन जानवरों, सरीसृपों, उभयचरों और पक्षियों की दुर्दशा को लेकर चिंता जताई जा रही है।

कुलडीहा अभ्यारण्य के रेंजर बिजोय कुमार महापात्र ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अभ्यारण्य में आग की कुछ घटनाएं सामने आई थीं, लेकिन उन्हें नियंत्रित कर लिया गया है। हमने लगभग सौ किलोमीटर तक एक फायरलाइन बनाई थी, लेकिन यह देखा गया कि ग्रामीणों ने जंगली सूअरों को पकड़ने के लिए दूसरे इलाके में आग लगा दी।”

टाइगर रिजर्व के 21 में से 12 रेंज में लगी है यह आग (Photo: By arrangement)

टाइगर रिजर्व के 21 में से 12 रेंज में लगी है यह आग (Photo: By arrangement)

ओडिशा के लगभग 50 फीसदी जंगल आग से प्रभावित

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) 2019 के अनुसार, ओडिशा के कुल वन क्षेत्र 51,618.51 वर्ग किलोमीटर में से लगभग आधा हिस्सा अलग-अलग डिग्री में आग के खतरे से प्रभावित क्षेत्र में आता है। इसमें से 2.82 प्रतिशत आग से अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसी तरह 7.73 प्रतिशत बहुत अधिक प्रभावित, 13.32 प्रतिशत अधिक प्रभावित, 19.96 प्रतिशत मध्यम प्रभावित और 56.17 प्रतिशत कम प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

पाटी ने बताया कि आमतौर पर आग लगने की घटनाएं फरवरी से अप्रैल के बीच के महीनों में होते हैं। हालांकि, तापमान में वृद्धि की वजह से आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। दरअसल, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल 27 फरवरी से 1 मार्च के बीच ओडिशा के जंगलों में 10,000 से अधिक आग लगने की घटनाओं की सूचना मिली है।

ढेंकेनाल जिले के हिंडोल जंगल में 4 मार्च को आग लगने की सूचना मिली थी। वहां कुछ हाथी भी फंसे हुए थे, हालांकि वे बच गए और आग पर भी काबू पा लिया गया। अधिकारियों ने बताया कि किंजर, गंजाम, परलाखेमूंदी, रायगड़ा और अन्य जिलों से भी जंगल में आग की सूचना मिली है।

पाटी ने बताया, “ओडिशा में, हर तीन साल में एक बार सामान्य से ज्यादा गर्मी और तापमान की स्थिति बनती है। यही वजह है कि जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके अलावा, सर्दियों के दौरान ओडिशा के जंगलों में फैले साल पेड़ों की पत्तियां गिर जाती हैं और इसकी वजह से भी आग लगने की घटनाएं (मनुष्यों द्वारा) बढ़ रही हैं।”

भुवनेश्वर के पर्यावरणविद् रंजन पांडा ने भी जंगल में आग की घटनाओं में वृद्धि के लिए बढ़ती गर्मी को जिम्मेदार ठहराया। पांडा ने कहा, “बढ़ती गर्मी की वजह से जंगल की आग भड़क रही है। गर्मी बढ़ रही है और हम जंगल के सूखे का सामना कर रहे हैं। बढ़ती गर्मी और तापमान में वृद्धि ऐसे कारक हैं जिसकी वजह से आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।”

ओडिशा के वन वन्यजीव विभाग के मुख्य संरक्षक साशी पॉल ने वन क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों के नुकसान का आकलन करने के लिए 5 मार्च को सिमिलिपाल के लगभग 1,194 वर्ग किलोमीटर के मुख्य क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने स्वीकार किया कि आग ने ठाकुरमुंडा और पोदडीहा पर्वतमाला में व्यापक नुकसान पहुंचाया है लेकिन दावा किया गया कि इसे नियंत्रित किया गया था। अन्य अधिकारियों ने बताया कि सिमिलिपाल में आग से प्रभावित अधिकांश क्षेत्रों पर काबू पा लिया गया था।

हालांकि, 6 मार्च को एफएसआई और अमेरिका स्थित नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) फायर इंफोर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम की सैटेलाइट इमेज में सैकड़ों ‘रेड’ फायर स्पॉट दिखी।

पाटी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सिमिलिपाल में अधिकांश हिस्से में आग को नियंत्रित कर लिया गया है। आग के बड़े पैमाने पर फैलने का कोई खतरा नहीं है क्योंकि सिमिलिपाल में बांस या देवदार का जंगल नहीं है।”

पाटी ने यह भी दावा किया कि सैटेलाइट इमेज पर फायर पॉइंट वन विभाग द्वारा बनाए गए फायर लाइन्स, कंट्रोल बर्निंग और काउंटर बर्निंग जैसे फायर पॉइंट हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि उपग्रह केवल तापमान की पहचान कर सकते हैं।

पिछले कुछ दिनों से आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, Photo: Kalinga Institute of Social Sciences/twitter

पिछले कुछ दिनों से आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, Photo: Kalinga Institute of Social Sciences/twitter

ज्यादातर घटनाएं इंसानों की वजह से!

आनंदपुर के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) और सिमिलिपाल के पूर्व डीएफओ अजीत सतपथी ने कहा कि ओडिशा के जंगलों में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “यहां आग लगने की घटनाएं आमतौर पर मनुष्यों के कारण होती है और सूखे पत्तों की अधिकता के अलावा प्राकृतिक कारकों जैसे हवा और उच्च तापमान पर भी आग का फैलाव निर्भर करता है। इस साल, फरवरी के अंत से ही तापमान काफी बढ़ गया है और इसलिए, आग लगने की घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है।”

कुछ रिपोर्ट्स हैं जिसमें शिकारियों या जनजातीय लोगों पर महुआ संग्रह के दौरान जंगल में आग लगाने का आरोप भी लगाया गया है।

भुवनेश्वर स्थित राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य बिस्वजीत मोहंती ने कहा कि जंगल में सबसे ज्यादा आग शिकारी लगाते हैं। उन्होंने विस्तार से बताया, “हमारे शोध के अनुसार लगभग साठ फीसदी आग की घटनाओं के लिए शिकारी जिम्मेदार होते हैं। 20 फीसदी घटनाएं महुआ संग्रह के दौरान घटती हैं, तेंदू (केंदू) के पत्तों के संग्रह के दौरान दस फीसदी घटनाएं और बाकी की घटनाओं के लिए शहद इकट्ठा करने वाले खानाबदोश जनजातियों के लोग जिम्मेदार होते हैं।”

वन अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि जंगल में आग की अधिकांश घटनाएं ग्रामीणों द्वारा महुआ के पेड़ में आग लगाने की वजह से होती है। पाटी ने कहा कि कई बार सुलगती बीड़ी या सिगरेट की वजह से भी ऐसी घटनाएं होती हैं।

वनवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले वसुंधरा के गिरी राव ने दावा किया कि सिमिलिपाल जंगल के अंदर महुआ के पेड़ नहीं हैं। वे केवल बफर जोन के बाहर ही मिल सकते हैं।

उनके अनुसार वन क्षेत्रों में रहने वाला आदिवासी समुदाय अक्सर जंगल की रक्षा के लिए मिलकर काम करते हैं। राव ने बताया कि जब जंगल में आग लगती है तो हर घर से एक सदस्य आग बुझाने के लिए जरूर बाहर आता है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें आदिवासी बुजुर्गों द्वारा तय किए गए हजार रुपए का जुर्माना देना पड़ता है। इसलिए, जंगल की आग के लिए ग्रामीणों को दोष देना सही नहीं है। इसके बजाय वन अधिकारियों को ऐसी आग को नियंत्रित करने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेना चाहिए।

कुछ सरकारी और मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि स्थानीय जंगली आदिवासियों के गतिविधियों से भी जंगल में आग की घटनाएं बढ़ी हैं, Photo: Kalinga Institute of Social Sciences/twitter

कुछ सरकारी और मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि स्थानीय जंगली आदिवासियों के गतिविधियों से भी जंगल में आग की घटनाएं बढ़ी हैं, Photo: Kalinga Institute of Social Sciences/twitter

भड़क रही है जंगल की आग

मयूरभंज जिले के जशीपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता धनेश्वर मोहंतो ने दावा किया कि उन्होंने 6 मार्च को भी सिमिलिपाल के अंदर फायर प्वाइंट देखे थे। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि सिमिलिपाल अभी भी जल रहा है। यह दावा करना कि आग नियंत्रण में है गलत है क्योंकि हम अभी भी रिजर्व के कई हिस्सों में आग देख सकते हैं। हर दिन वन अधिकारियों की एक टीम आग बुझाने के लिए जाती है।

मयूरभंज के शाही परिवार की राजकुमारी अक्षिता भंजदेव, जिनका निवास स्थान मयूरभंज में बेलगड़िया पैलेस है, जो कि सिमिलीपाल और बारीपाड़ा के बीच स्थित है, ने एक मार्च को इसे लेकर एक ट्वीट किया था। उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा, “सैटेलाइट इमेज सिमिलिपाल के बफर जोन में आग दिखाती है। क्षेत्र के जिन गाँवों में मैंने दौरा किया उसमें आग लगने से संबंधित संकेत मिलते हैं। धुआं हम सभी को प्रभावित कर रहा है।”

राव ने गाँव कनेक्शन को बताया कि आग की वजह से कई ग्रामीणों की आजीविका प्रभावित हो रही है। ये लोग पहले ही कोविड -19 लॉकडाउन की वजह से आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कई ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी चली गई है। वे भोजन के लिए जंगल पर निर्भर हैं। राव ने आगे बताया कि सिमिलिपाल का खारिया समुदाय अपने शहद संग्रह के लिए जाना जाता है। उन्हें डर है कि आग में छत्ते नष्ट हो सकते है, या हो सकता है कि धुएं के कारण मधुमक्खियों ने छत्ता छोड़ दिया हो। इस तरह यह आग उनकी आजीविका के लिए संकट बनकर आया है।

मोहंती के अनुसार सिमिलिपाल की आग ने जमीन पर रहने वाले प्राणियों जैसे कि नेवला, सांप, छिपकली, मेंढक और पैंगोलिन को बहुत नुकसान पहुँचाया होगा। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “आग ने कई पौधों को भी नष्ट कर दिया होगा। जंगल को ठीक होने में समय लगेगा।”

इस स्टोरी को मूल रूप से अंग्रेजी में पढ़ें- Odisha forest fires: Similipal Tiger Reserve continues to burn; Kuldiha sanctuary in flames too

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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