जलवायु परिवर्तनशील विकास के दौर में मनरेगा बन सकता है भारत की बढ़ती जनसंख्या का भविष्य

यह देखते हुए कि भारत की 70% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, मनरेगा भारत में जलवायु परिवर्तनशील विकास को लागत-प्रभावी तरीके से परिवर्तित करने में मदद कर सकता है। हालांकि यह कार्य बहुत ही चुनौतीपूर्ण है।
#MGNREGA

– पार्वती प्रीतन, शुभम गुप्ता और नकुल शर्मा

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही प्रमुख योजना है, जो लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा के रूप में गारंटी रोजगार देने का काम करती है। यह एक रोजगार गारंटी स्कीम है, जिसमें ग्रामीण लोगों को अपने क्षेत्र में ही रोजगार प्राप्त होता है। मनरेगा ने ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन क्या मनरेगा का प्रयोग जलवायु परिवर्तनशील विकास और जलवायु अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने में कारगर है?

जलवायु अनुकूलन, जलवायु के बदलते रूप को समझने के लिए ज़रूरी है। धीमी गति से शुरू होने वाली चरम घटनाएं जैसे समुद्र का स्तर बढ़ना, बढ़ता तापमान, तेज़ी से बदलता मौसम का पैटर्न आदि हमारे अस्तित्व को प्रभावित करती हैं। इस वजह से स्थानीय समुदायों के सामने आने वाले विशिष्ट जलवायु जोखिमों को दूर करने के लिए विकेंद्रीकृत योजना की आवश्यकता होती है।

मनरेगा समान सिद्धांतों पर लागू किया जाता है। ये ग्रामीण आबादी पर केंद्रित स्कीम है जो योजना के चरण से अनुमोदन तक ‘बॉटम- अप’ एप्रोच पर आधारित है। इस योजना के अंतर्गत 260 विभिन्न कार्य कराए जाते हैं, जिनमें से 181 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन से जुड़े हैं और 164 कृषि और संबंधित गतिविधियों से जुड़े हैं। इनमें से अधिकांश कार्य जलवायु अनुकूलन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।

मनरेगा में आवंटित रक़म इसका एक महतवपूर्ण भाग है। मनरेगा भारत सरकार से भारी धन प्राप्त करता है। वर्तमान वर्ष में, इस योजना को पूरे देश में लागू करने के लिए 61,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। COVID-19 से लड़ने के लिए देशव्यापी तालाबंदी के बाद मई के महीने में वित्त मंत्री ने आर्थिक पैकेज में इसे एक लाख करोड़ तक बढ़ा दिया था।

यह देखते हुए कि भारत की 70% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, मनरेगा भारत में जलवायु परिवर्तनशील विकास को लागत-प्रभावी तरीके से परिवर्तित करने में मदद कर सकता है।

इसका एक सफल उदाहरण सिक्किम राज्य में देखने को मिलता है, जहां ग्रामीण विकास विभाग (आरडीडी) ने 2008 में धरा विकास परियोजना को लागू करने के लिए मनरेगा और राष्ट्रीय अनुकूलन कोष से जलवायु परिवर्तन (एनएएफसीसी) के फण्ड का उपयोग किया था। साल 2008 में लागू होने के बाद से, यह सिक्किम के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल सुरक्षा और फुव्वारों (स्प्रिंग) को बढ़ाने के लिए एक अभिनव कार्यक्रम है।

सिक्किम के लगभग 80% ग्रामीण घर पीने के पानी और सिंचाई के लिए स्प्रिंग्स पर निर्भर हैं और भूजल स्तर में गिरावट और जल निकायों के सूखने के कारण दबाव में थे। कार्यक्रम में इन स्प्रिंग्स के लिए रिचार्ज क्षेत्रों की पहचान करने के लिए स्थानीय विशेषज्ञता और वैज्ञानिक जीआईएस दोनों तकनीकों का उपयोग किया जाता है। मनरेगा के माध्यम से स्थानीय श्रम का उपयोग विभिन्न प्रकार की संरक्षण गतिविधियों के लिए किया जाता है जैसे कि वर्षा जल संचयन, लघु सिंचाई नेटवर्क का विस्तार करना आदि।

ऐसी गतिविधियाँ जल के परावर्तन दर को बढ़ाने और सतह की जांच करने, भूजल स्तर में सुधार लाने में योगदान करती हैं और साथ ही समुदायों को अधिक जल सुरक्षा प्रदान करती हैं। धरा विकास अभिसरण मॉडल एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे कमजोर लोगों के लिए समग्र आय और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देकर, मनरेगा को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर के जलवायु अनुकूलन को मुख्यधारा में लाया जा सकता है और उसे विकास के रास्ते में अपनाया जा सकता है। यह स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित करने में सामुदायिक स्तर पर ज्ञान और कौशल के विकास को सुनिश्चित करता है।

जलवायु अनुकूलन को मनरेगा का हिस्सा बनाने के लिए जलवायु की जानकारी, निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों को अपनाने और आपदारोधी बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन के लिए राज्य एक्शन योजनाएं (SAPCCs) जो ऊपर से संचालित होती हैं। इसके उलट मनरेगा में बड़े पैमाने पर जागरूकता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आजीविका के मद्देनज़र ग्राम और ब्लॉक पंचायतों के क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

यह कार्य चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसमें जटिल और वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन डेटा को सूचना में बदलना शामिल है जिसे समझकर स्थानीय समुदाय कार्य कर सकें। इसमें कई संस्थागत परिवर्तन भी शामिल होंगे जैसे कि परियोजना के डिजाइन के लिए नए दिशानिर्देश और कम कार्बन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने की अतिरिक्त लागत को समायोजित करना और बुनियादी ढांचे को अधिक जलवायु अनुकूल बनाना। यदि मनरेगा को इन चुनौतियों को अवसरों में बदलने में सक्षम बना दिया जाए, तो यह भारत के प्रयासों को और अधिक अनुकूल भविष्य बनाने में कारगर साबित होगा और कमज़ोर आबादी की अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने में मदद करने के लिए एक बहुत ही उपयोगी उपकरण हो सकता है।

धरा विकास कार्यक्रम कई पहलुओं को सामने रखता है- जैसे स्थानीय संस्थागत क्षमताओं और हितधारकों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना और एक अभिसरण मॉडल को बढ़ावा देना, जो विकास और जलवायु दोनों चिंताओं को एकीकृत कर सकता है। इस तरह के कार्यक्रम और उनसे मिले अनुभवों को साझा करना महत्वपूर्ण है। उम्मीद है कि राज्य इस तरह की पहल को दोहरा सकें और साथ ही साथ जलवायु जोखिम को कम करने की तरफ एक अहम समाधान के साथ आग आए।

अनुवाद: शिवांगी सक्सेना

यह लेख WRI India से साभार लिया गया है। मूल रूप से इसे यहां क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।

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