महानगरों में मेट्रो बन रहा परिवहन सेवाओं का प्रमुख साधन, कनेक्टिंग फीडर सेवाओं से मिल सकता है इसे और विस्तार

दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, कोलकाता और कोच्चि जैसे महानगरों में मेट्रो अब परिवहन का मुख्य साधन है। अब लखनऊ, जयपुर जैसे टियर-टू शहरों में भी इसका विस्तार हो रहा है लेकिन इन शहरों में यात्रियों की संख्या के लिहाज से मेट्रो सेवा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है।
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सुभादीप भट्टाचार्यजी, चैतन्य कनूरी, सुदीप्त मैती और साई आर. चैतन्य

तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जाम की बढ़ती समस्या से निजात पाने के लिए अनेक भारतीय शहरों ने मेट्रो रेल नेटवर्क में निवेश किया है। इसका उद्देश्य बड़ी संख्या में यात्रियों को एक किफायती परिवहन सुविधा उपलब्ध कराना है। हालांकि, ज्यादातर मेट्रो प्रणालियां अपनी अनुमानित यात्री संख्या को नहीं छू सकी हैं। मेट्रो स्टे्शनों को घरों, दफ्तरों और विभिन्न गतिविधियों वाले दूसरे केन्द्रों से सीधे तौर पर जोड़ने में अपेक्षित सफलता न मिलना इसका प्रमुख कारण है।

वर्ल्ड रिसोर्च इंस्टिट्यूट (डब्यूआरआई) के एक सर्वे के मुताबिक वर्ष 2016 में बेंगलुरू मेट्रो के 70 प्रतिशत ऐसे लोग जो मेट्रो का इस्तेमाल कर सकते थे, मगर उन्होंने मेट्रो स्टेशन तक आने और निकटतम मेट्रो स्टेशन से गंतव्यो तक जाने के लिए कनेक्टिविटी न होने को मेट्रो रेल से सफर न करने का सबसे बड़े कारण बताया।

मेट्रो यात्री नजदीकी स्टेशन तक आने-जाने के लिये या तो पैदल चलते हैं या फिर रिक्शॉ, दोपहिया वाहन अथवा बस का इस्तेमाल करते हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान नये मोबिलिटी इंटरप्राइजेज ने मेट्रो स्टेशन तक जाने और वहां से निकलकर अपनी मंजिल तक जाने वाले लोगों की सहूलियत के लिये लास्ट-माइल सेवा शुरू की है।

चित्र 1 : एकीकृत परिवहन तंत्र का हिस्साो नहीं होने से परेशान होते हैं मेट्रो यात्री। क्रेडिट : डब्यूताय आरआई इंडिया

अंतिम छोर तक पहुंचने के विकल्पों के तौर पर फल-फूल रही है नयी परिवहन सुविधा

नये मोबिलिटी इंटरप्राइजेज में प्रौद्योगिकी और व्यापार मॉडल में हो रही नयी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। ये चीजें शहरों में आवागमन के विकल्प के तौर पर दिन-ब-दिन लोकप्रिय होती जा रही साझा सेवाओं से जुड़ी हैं। मेट्रो एजेंसियों के सहयोग से ये नये मोबिलिटी ऑपरेटर अंतिम छोर तक पहुंचने के लिये समाधानों की एक पूरी श्रृंखला पेश कर रहे हैं। इनमें ई-स्कूटर, दोपहिया मोटर वाहन, ऑटो‍ रिक्शॉ और शटल बस शामिल हैं।

इन लास्ट-माइल सेवाओं की गुणवत्ता और दक्षता काफी हद तक नये मोबिलिटी इंटरप्राइजेज और मेट्रो रेल ऑपरेटर्स के बीच हुए समझौते पर निर्भर करती है। यह विभिन्न शहरों और कम्पनियों के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। भूमिकाओं और जिम्मेभदारियों का फर्क, संचालन की स्थितियां और विभिन्न अनुबंधों से जुड़े जोखिम भी यात्रियों को मिलने वाली सेवा की गुणवत्ता और शामिल सभी पक्षों की फाइनेंशियल सस्टेनेबिलिटी पर असर डालते हैं। कोच्चि, बेंगलूरू और दिल्ली की मेट्रो प्रणाली पर गौर करके और मेट्रो रेल ऑपरेटर्स और विभिन्न प्राइवेट मोबिलिटी इंटरप्राइजेज के बीच लास्ट–माइल सेवा को लेकर हुए बनी व्यपवस्था का जायजा लेकर इस पर गहरी निगाह डाली जा सकती है।

इस तालिका में देश के कुछ बड़े शहरों में मेट्रो रेल के लिये लास्ट-माइल सेवाएं देने वाले विभिन्नो प्रतिष्ठाानों को सूचीबद्ध किया गया है।

इस तालिका में देश के कुछ बड़े शहरों में मेट्रो रेल के लिये लास्ट-माइल सेवाएं देने वाले विभिन्नो प्रतिष्ठाानों को सूचीबद्ध किया गया है।

सेवा समझौतों में भिन्नता के कारण मिलते हैं अलग-अलग नतीजे

मेट्रो रेल ऑपरेटर्स और प्राइवेट फीडर सेवा प्रदाता के बीच तय हुई शर्तें आमतौर पर दोनों के बीच हुए समझौते (एमओयू) या सेवा अनुबंध में लिखी होती हैं। एमओयू दोनों पक्षों के बीच बाध्य कारी समझौता नहीं होता, जबकि सेवा अनुबंध बाध्य्कारी होते हैं और अक्सर फीडर सेवा प्रदाता के चयन के लिये निविदा की प्रक्रिया के बाद ही किये जाते हैं।

वित्तीय जोखिम का बंटवारा भी अलग-अलग तरह के समझौतों पर निर्भर करता है। एमओयू कम जोखिम वाला विकल्पा माना जाता है। हालांकि सेवा अनुबंधों के मामले में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये जोखिम का बंटवारा एक उल्लेैखनीय कारक है, क्योंकि प्राइवेट इंटरप्राइजेज सिर्फ तभी साझीदारी करते हैं या करना जारी रखते हैं जब जोखिम का स्तर उनके लिहाज से स्वी्कार करने लायक हो।

कोच्चि :

कोच्चि में मेट्रो रेल ऑपरेटर, एक प्राइवेट इंटरप्राइज और स्थानीय ऑटो रिक्शॉ एसोसिएशन के बीच एमओयू पर हस्ताेक्षर किये गये थे। बैटरी से चलने वाले एक वाहन निर्माता कम्पनी ने चालकों के लिये ई-ऑटो खरीदे। चालक उस रिक्शा् के किराये के तौर पर रोजाना एक निर्धारित रकम चुकाते हैं, जबकि बाकी की कमाई अपने खर्च के लिये रखते हैं।

इसके बदले में कोच्चि मेट्रो उन्हें पार्किंग के लिये जगह और चार्जिंग की सुविधा देती है। मेट्रो रेल ऑपरेटर्स और फीडर सेवादाताओं के बीच होने वाला एमओयू एक कम जोखिम भरी व्यगवस्था है क्योंंकि अगर किसी पक्ष को लगता है कि उसे कोई फायदा नहीं हो रहा है तो वह समझौते से बाहर आ सकता है। हालांकि इस व्यरवस्था से मेट्रो यात्रियों पर बुरा असर भी पड़ सकता है क्योंकि तब फीडर सेवा देने वाली कम्पनी किसी भी वक्त अपना संचालन बंद कर सकती है।

बेंगलूरू:

बेंगलूरू मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमआरसीएल) ने लास्ट-माइल सेवा के लिये अपने मेट्रो स्टेंशनों पर पार्किंग की जगह के आवंटन के लिये तीन साल के अनुबंध के पर निजी दोपहिया वाहन देने वाली कम्पनियों से निविदा मांगी थीं। निर्धारित सेवा स्तरों की कमी का मतलब है कि फीडर सेवा की विश्वसनीयता का आश्वासन नहीं दिया गया था। निर्धारित सेवा स्तरों की कमी का अर्थ है- जैसे कि किसी भी समय मेट्रो यात्रियों को उपलब्ध होने वाले वाहनों की संख्या या स्थिति।

यहां रेवेन्यू से जुड़े जोखिम का ज्याादा हिस्सा इस अनुबंध में शामिल प्राइवेट इंटरप्राइजेज के कंधों पर होता है और वे इस समझौते के तहत बीएमआरसीएल को पार्किंग शुल्क अदा करते हैं। अगर किराये सम्बन्धीे नियम-कायदे तय नहीं हुए तो यात्रियों को अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ सकती है या फिर अगर वे प्रतिष्ठािन अपना लागत मूल्य भी नहीं निकाल पाये तो खुद को अनुबंध से अलग भी कर सकते हैं। इस तरह के अनुबंध उन स्टेशनों के लिये अच्छां काम कर सकते हैं, जहां पर यात्रियों की आवाजाही काफी ज्याट हो न कि उन स्टे्शनों के लिये जहां से कम संख्या में लोग मेट्रो से सफर करते हैं।

दिल्लीे :

दिल्लीे मेट्रो ने फीडर बस सेवा उपलब्धा कराने के लिये एक ग्रॉस-कॉस्ट कांट्रैक्ट (जीसीसी) किया है। यह विशुद्ध रूप से बस सेवा के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला अधिक सुगठित स्वरूप है। इसमें ऑपरेटर को एक निश्चित अवधि में निर्धारित सेवा के लिये तयशुदा धनराशि चुकायी जाती है। बसों के लिये सेवा के स्तरों- जैसे किराया, रूट और यात्रा का कार्यक्रम वगैरह तय करने का काम दिल्लीै मेट्रो करती है। रेवेन्यू- इकट्ठा करने का काम भी मेट्रो ऑपरेटर ही करते हैं, जबकि अनुबंध में शामिल प्राइवेट इंटरप्राइजेज को सेवा के एवज में निर्धारित अंतराल पर निश्चित दरों पर प्रतिपूर्ति की जाती है।

इस तरह के अनुबंध ज्यादा भरोसेमंद और आसानी से उपलब्ध होने वाली फीडर बस सेवा सुनिश्चित करते हैं और संचालनात्मक लागत की जिम्मेेदारी मेट्रो रेल ऑपरेटर की होती है। निजी कम्पनियां किसी खास जोखिम के बगैर अपनी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं, क्योंकि उन्हें उनके अनुबंध के मुताबिक धन चुकाया जाता है। ऐसे मॉडल उस जगह बेहतर काम करते हैं, जहां यात्रियों के अधिक और कम आवागमन का मिश्रण होता है, ताकि मेट्रो रेल ऑपरेटर पर किराये सम्बन्धी जोखिम का अत्यधिक बोझ न पड़े।

फीडर सेवाओं का सही मिश्रण

जहां प्राइवेट फीडर सेवाएं मेट्रो रेल तक पहुंच में सुधार लाते हैं, वहीं इन सेवाओं द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली सहूलियतों और यात्रा के अनुभवों में बहुत ज्याुदा फर्क होता है। यह मेट्रो रेल ऑपरेटर्स और फीडर सेवादाताओं के बीच विभिन्न सम्बद्धता मॉडल्स से जुड़ा है जो विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग प्रभावोत्पाकदकता को दिखाता है। समुचित नियमों एवं शर्तों के साथ सही मॉडल तय करना, निजी क्षेत्र की सहभागिता को सुनिश्चित करने और लास्ट–माइल कनेक्टिविटी को अनुकूल बनाने के लिहाज से यह जरूरी है।

समझौतों में फीडर सेवा के स्तरों के लिये शर्तों और समुचित जोखिम आबंटन को शामिल किया जाना चाहिये। साथ ही उन समझौतों की योजना इस तरह की होनी चाहिये कि उनसे यात्रियों को पर्याप्त और भरोसेमंद सेवा मिल सके। वित्तीय जोखिमों का आकलन किया जाना चाहिये और उन्हें समुचित तरीके से साझा किया जाना चाहिये ताकि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़े और सभी पक्षों को उनके निवेश का ज्यातदा से ज्यादा फायदा मिल सके।

आखिरकार, विभिन्न सम्बद्धता मॉडल्स के प्रदर्शन को बेहतर तरीके से समझने से भविष्य में होने वाली साझीदारियों की सम्भावनाओं को परिभाषित करने में मदद मिलेगी। ऐसा होने से अधिक विविधतापूर्ण और विस्तृत फीडर नेटवर्क बनाने और मेट्रो रेल को उसके उपयोगकर्ताओं के और नजदीक लाने में मदद मिलेगी।

साई आर. चैतन्य डब्यूआरआई-इंडिया की सिटीज एण्ड ट्रांसपोर्ट टीम के सलाहकार हैं। सुभादीप भट्टाचार्यजी, चैतन्य कनूरी, सुदीप्त मैती भी डब्यूआरआई-इंडिया से जुड़े हैं।

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