कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे से जूझ रहा है महाराष्ट्र

दक्षिण पश्चिमी मानसून का आधा सीजन बीत जाने के बाद भी पूर्वी महाराष्ट्र के 10 से अधिक जिले ऐसे हैं, जो सूखे से प्रभावित चल रहे हैं। वहीं पश्चिमी और मध्य महाराष्ट्र बाढ़ से जूझ रहा है।
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जहां पश्चिम और मध्य महाराष्ट्र का एक हिस्सा बाढ़ से प्रभावित है। वहीं पूर्वी महाराष्ट्र के कई जिले अभी भी सूखे की मार झेल रहे हैं। दक्षिण पश्चिमी मानसून का आधा सीजन बीत जाने के बाद भी महाराष्ट्र के 10 से अधिक जिले ऐसे हैं, जो सूखे से प्रभावित चल रहे हैं। इन इलाकों में सामान्य से काफी कम बारिश हुई है।

इन जिलों में मराठवाड़ा का बीड, लातूर, परभनी, जालना, सोलापुर और वासिम जिले प्रमुख हैं, जहां पर सामान्य से 20-25 प्रतिशत कम बारिश हुई है। मराठवाड़ा और विदर्भ के ये हिस्से लगातार तीसरे साल सूखे की मार झेल रहे हैं। इससे पहले बिहार में राज्य के एक हिस्से में बाढ़ और एक हिस्से में सूखे की स्थिति देखने को मिला था।


 ‘ग्लोबल वार्मिंग और असमान मानसून पैटर्न की वजह से आ रही समस्या’

आईआईटी मुंबई में क्लाइमेट स्टडीज विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर श्रीधर बालासुब्रमण्यम कहते हैं कि असमान मानसून पैटर्न और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से किसी राज्य के एक हिस्से में भारी बारिश और दूसरे हिस्से में सूखे की स्थिति आ रही है।

उन्होंने समझाते हुए बताया कि पिछले कुछ सालों में मानसून का पैटर्न लगातार बदला है, इसकी वजह से हवा के दबाव क्षेत्र का भी पैटर्न लगातार बदल रहा है। जहां हवा का दबाव क्षेत्र कम होता है, वहां बारिश अधिक और जहां पर हवा का दबाव क्षेत्र अधिक होता है, वहां पर बारिश सामान्य से कम हो रही है।

बाल सुब्रमण्यम ने बताया, “मराठवाड़ा पश्चिमी और पूर्वी घाट के बीच में पड़ता है। दोनों तरफ पहाड़ी क्षेत्र होने से वहां पर बादल पहुंच नहीं पाते, जिसकी वजह से वहां पर कम बारिश होती है। लेकिन लगातार कई सालों से इस क्षेत्र में सूखा पड़ने का कारण कहीं ना कहीं ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज भी है।”


खरीफ की फसल की बुआई में आ रही समस्या

मराठवाड़ा क्षेत्र में रहने वाले किसानों ने बताया कि कम बारिश के कारण उनके क्षेत्र में खरीफ की फसल की बुआई में काफी समस्या आ रही है। लातूर के किसान संदीप बदगिरे बताते हैं, “हमारे वहां अभी भी खुल के बारिश नहीं हुई है। 10 दिन पहले छिट-पुट बारिश हुई थी। उसके बाद से हम लगातार आसमान की तरफ नजर गड़ाए हुए हैं कि बारिश हो और हम बुआई कर सकें। लेकिन पिछले 10 दिनों से थोड़ी सी भी बारिश नहीं हुई है।”

संदीप बदगिरे ने बताया कि सिंचाई और बुआई की समस्या के साथ ही पीने के पानी की भी समस्या आ रही है। उन्होंने बताया कि वे घरेलू उपयोग के लिए टैंकर से पानी खरीदते हैं जो कि 100 रूपये में 500 लीटर पानी देते हैं। इसके अलावा पीने के पानी के लिए आरओ बोतल पानी खरीदना पड़ता है।


पशुओं के लिए चारे की समस्या

ओस्मानाबाद और बीड में कम बारिश की वजह से पशुओं के चारे की समस्या बन गई है। इन जानवरों को चारा उपलब्ध कराने के लिए चारा कैंप चलाए जा रहे हैं। राज्य सरकार के मुताबिक बीड में 42 और ओस्मानाबाद में 54 चारा कैंप चल रहे हैं।

हालांकि यवतमाल और परभनी जिले में पिछले कुछ दिनों में अच्छी बारिश हुई है। इसलिए वहां के किसानों ने अब बुआई शुरू कर दी है। यवतमाल जिले के किसान गजानन दिवाकर ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में बारिश होने के बाद किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौटी है और वे बुआई करने लगे हैं। वहीं परभनी के किसान विलास बाबर ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से बारिश होने के कारण खेती की समस्या तो दूर हुई है लेकिन पीने के पानी की समस्या अभी भी बनी हुई है।

‘महाराष्ट्र की अगली पीढ़ी भूल जाएगी सूखा’

जहां एक तरफ महाराष्ट्र बाढ़ और सूखे की दोहरी मार झेल रहा है, वहीं राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने दावा किया कि महाराष्ट्र की अगली पीढ़ी सूखा नहीं देखेगी। उन्होंने ऐसा महाजनादेश यात्रा शुरू करने से पहले। महाराष्ट्र में इसी साल के अंत तक चुनाव होने हैं। महाजनादेश के यात्रा की शुरूआत करते हुए उन्होंने एक जनसभा की और कहा, ‘अगली बार हमारी सरकार आएगी तो महाराष्ट्र में सूखे को घुसने नहीं देगी।’  


 

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