लॉकडाउन से डेयरी और पोल्ट्री व्यवसाय को नुकसान तो हुआ ही है, बकरी पालन से जुड़े लोगों की भी मुश्किलें बढ़ीं हैं। इस समय वो न तो बकरी बेच पा रहे हैं और न ही उनके लिए चारा इकट्ठा कर पा रहे हैं।
राजस्थान के झुंझनु जिले के अबुसर के नीरज सिरोही नस्ल की बकरियों का फार्म चलाते हैं। इनके फार्म से झुंझनु और आसपास के जिलों के साथ ही दूसरे प्रदेशों से भी लोग बकरे और बकरियां खरीदकर ले जाते हैं। लेकिन लॉकडाउन के बाद एक भी बकरी नहीं बिकी। वो बताते हैं, “हमारे से लोग बकरी पालन के लिए बकरियां लेकर जाते हैं, बकरियां बिकती रहती हैं तो दूसरी बकरियों के लिए चारे का भी इंतजाम हो जाता है। लेकिन अब बकरियां ही नहीं बिकेंगी तो क्या खिलाएंगे।”
बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय जिससे छोटे किसानों से लेकर बड़े किसान जुड़े हुए हैं। देश में 3.301 करोड़ लोग बकरी पालन से जुड़े हुए हैं। बकरी पालन मांस और दूध उत्पादन के लिए किया जाता है। लेकिन लॉकडाउन के बाद देश के ज्यादातर राज्यों में मांस के बिक्री पर प्रतिबंध लग गया है, जिससे इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले स्वप्निल बाघमारे भी बकरी पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वो मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे प्रदेशों से बकरियां खरीदकर महाराष्ट्र में बेंचते हैं। स्वप्निल बताते हैं, “जब से लॉकडाउन शुरू हुआ बहुत नुकसान हुआ है, हमारा तो यही धंधा है। अब तो बस लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। हमारे मध्य प्रदेश जैसे प्रदेशों से बकरियां आती हैं, जिन्हें यहां लोकल मार्केट में बेंचते हैं। मैं खुद भी बकरी पालन करता हूं। सरकार ने दूसरी चीजों के लाने ले जाने पर छूट दे रखी है तो इस पर भी छूट देनी चाहिए। अगर ट्रांसपोर्ट की सुविधा ही नहीं मिलेगी तो बाहर से कैसे लाएंगे।”
20वीं पशु गणना के अनुसार देश बकरियों की संख्या 148.9 मिलियन है। देश में कुल मांस उत्पादन में बकरे की मीट की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत है। एनडीडीबी 2016 के आंकड़ों के मुताबिक प्रतिवर्ष 5 मीट्रिक टन बकरी का दूध उत्पादन होता है, जिसका अधिकांश हिस्सा गरीब किसानों के पास है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में दुबग्गा में बकरी फार्म चलाने वाले मोहम्मद जावेद के फार्म से बिहार और कलकत्ता तक से व्यापारी बकरे खरीदकर ले जाते हैं। लेकिन अभी सब कुछ ठप पड़ा है। न तो बकरियों के लिए चारा मिल रहा है और न ही वो बिक रहीं हैं। वो बताते हैं, “लॉकडाउन में तो बकरी पालन का खर्च दोगुना बढ़ गया है, मान लीजिए अगर जिस बकरी पर दिन का 15 रुपए खर्च होता था अब वो 30 रुपए हो गया है। चारा बड़ी मुश्किल से मिल रहा है, मिल भी रहा है तो बहुत मंहगे दाम पर। अगर ज्यादा दिन तक यही चलता रहा तो बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है।”
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग नस्ल की बकरियों का पालन होता है। इनमें सिरोही, बीटल, मारवाड़ी, बरबरी, झलवड़ी जैसी प्रमुख नस्लें हैं। इनमें से कुछ का पालन दूध और मीट और कुछ का मीट के लिए ही किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में विवेक सिंह बरबरी नस्ल की बकरियों का फार्म चलाते हैं। उनके यहां से लोग बकरी पालन के लिए बकरियां खरीदकर ले जाते हैं। वो बताते हैं, “हम बकरी पालन शुरू करने वालों को ही बकरियां देते हैं, इसलिए लॉकडाउन से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। अगर आज नहीं बिकेंगी चार महीने बाद बिक जाएंगी। लेकिन लॉकडाउन से चारे की समस्या आ गई है, बरबरी बकरियों को हम सरसों का भूसा देते हैं तो जालौन जिले के उरई से लाते हैं, लेकिन लॉकडाउन से भूसा नहीं ला पाएं हैं, जिससे मजबूरी में गेहूं का भूसा ही खिलाना पड़ रहा है।”
कई छोटे और बड़े बकरी पालक साल भर ईद का इंतजार करते हैं, जिसमें बकरों का अच्छा दाम मिल जाता है। बकरीद के साथ ही ईद और होली में बकरे अच्छे दाम पर बिक जाते हैं। कई ऐसे पालक हैं जिन्होंने ईद के लिए बकरों को तैयार करते हैं। इस बार होली में बिक्री नहीं हो पायी और अब मई में ईद भी आने वाली है। ऐसे में अगर ईद तक लॉकडाउन बढ़ता है तो बकरी पालकों की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी।
झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे कई राज्यों में छोटे बकरी पालक हैं, जो बकरियों को चराकर ही उनका पेट भरते हैं। जब उन्हें पैसों की जरूरत होती है तो बकरियों को बेंच देते हैं। लेकिन अभी लॉकडाउन से वो बाहर चराने ले जाने में भी डर रहे हैं और अभी उन्हें ग्राहक भी नहीं मिल रहा जिसे वो बकरियां बेंच पाएं।
भारत बकरे के मांस का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक देश है। एपीडा के आंकड़ों के अनुसार भारत ने साल 2018-19 में 18,425 मिट्रिक टन मांस का निर्यात किया था, जिसकी कुल की कीमत 790.65 करोड़ रुपए थे। भारत यूएई, सउदी अरब, कतर, कुवैत और ओमान जैसे देशों को मांस निर्यात करता है।
महाराष्ट्र के बकरी पालक स्वप्निल बाघमारे कहते हैं, “अगर ऐसे ही लॉकडाउन बढ़ता रहा तो बहुत नुकसान हो जाएगा। सभी को ईद का इंतजार रहता है, जब अच्छी कमाई हो जाती है। सरकार को चाहिए जैसे दूसरी जरूरी चीजों को लाने के लिए ट्रांसपोर्ट को छूट दी है, हमें छूट दें जिससे हम भी अपना व्यापार शुरू कर पाएं।”
केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) के आंकड़ों के अनुसार साल में देश में लगभग 942.93 हजार टन बकरे के मांस का उत्पादन होता है।
राजस्थान के अजमेर में महीने में दो बार बकरा मंडी लगती है, जिसमें अजमेर ही नहीं दूर-दूर के व्यापारी भी बकरे खरीदने आते हैं। लेकिन एक महीने से ज्यादा समय से मंडी नहीं लग पायी। अजमेर के बकरी पालक जवालुद्दीन खान के पास इस समय पचास से ज्यादा बकरे-बकरियां हैं। वो बताते हैं, “अजमेर के बकरा मंडी में दूर-दूर से व्यापारी आते हैं, लेकिन अब तो मंडी ही बंद हो गई। जैसी दूसरी मंडियां खुल रहीं हैं, बकरा मंडी भी खुलनी चाहिए, हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे। अभी मेरे यहां हर दिन 20 लीटर बकरी का दूध हो जाता है, पहले वो आसानी से बिक जाता था। लेकिन अभी वो नहीं बिक रहा तो हमने उसे यहां के मजदूरों में बांटना शुरू कर दिया है।”