पिछले एक महीने से नौकरियों की मांग को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार आवाज उठा रहे प्रतियोगी परीक्षा के छात्रों ने एक बार फिर ट्वीटर पर ट्रेंड चलाया। इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस का दिन चुना और इसे ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया। इन छात्रों ने अब तक #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस और #NationalUnemploymentDay हैशटैग पर 50 लाख से अधिक ट्वीट कर डाले हैं, जिससे यह हैशटैग भारत में टॉप ट्रेंड चल रहा है।
इन युवा प्रतियोगी छात्रों की मांग है कि देश और अलग-अलग राज्यों में प्रतियोगी परीक्षाओं की जो स्थिति है, उसमें आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। भर्ती प्रक्रिया की समय-सीमा को सुधारा जाए और इसे 6 महीने से एक साल के बीच नियत किया जाए, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है और कार्मिक मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर इसे तय किया है। गौरतलब है कि लाखों अभ्यर्थियों और प्रतियोगी छात्रों के युवा जीवन का कई-कई वर्ष सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में ही बीत जाता है और वे अपना बहुमूल्य समय इन परीक्षाओं की तैयारी करने, परीक्षा देने, उसके परिणाम का इंतजार करने और फिर परिणाम आने के बाद कोर्ट-कचहरी में दौड़ने में बीताते हैं।
एक ऐसे ही अभ्यर्थी शिवेंद्र सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं कि सरकारें खुद नहीं चाहती कि भर्तियां अपने नियत समय से हो, इसलिए उसमें कई तरह की प्रशासनिक बाधाएं आती हैं। शिवेंद्र उत्तर प्रदेश में चल रही 69000 शिक्षक भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थी हैं और परीक्षा में सफल होने के बावजूद पिछले एक साल से पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दौड़ लगा रहे हैं। इस परीक्षा की अधिसूचना को जारी हुए लगभग दो साल का समय होने जा रहा है।
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शिवेंद्र कहते हैं कि इस भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ गंभीर ही नहीं है। यही कारण है कि सरकार अपने ही फैसले का बचाव करने के लिए कोर्ट में सरकारी अधिवक्ताओं को जल्दी नहीं भेजती है। इसलिए अभ्यर्थियों को पहले धरना और फिर खुद के खर्चे से महंगे-महंगे वकील करने पड़ते हैं ताकि वे सुप्रीम या हाई कोर्ट में सरकार के फैसले का बचाव कर सकें।
Don’t forget to raise the very important issue today of india by #17Baje17Minute with #NationalUnemploymentDay
Dear PM modi ji should remember this day as the end to his psudeo legacy.
Youth is coming..!! @Bankers_United@idesibanda @baujidesi pic.twitter.com/n0GJoAJmhM
— आवाज़ – ऐ – आग़ाज़।। (बी. यू.) (@LadkaDigital) September 17, 2020
शिवेंद्र ने हमें बताया कि बड़े वकील एक-एक सुनवाई का एक-एक लाख लेते हैं, जिसकी फीस अभ्यर्थी चंदा जुटा कर देते हैं। ‘यह सरकार की नाकामी नहीं तो क्या है?,’ शिवेंद्र के शब्दों में सवाल के साथ गुस्से और नाराजगी का पुट शामिल रहता है। उन्होंने कहा कि वह एक समय योगी और मोदी सरकार के समर्थक हुआ करते थे लेकिन धीरे-धीरे सरकार की नीतियों ने उन्हें मजबूर कर दिया और अब वह और उनके हजारों साथी पीएम मोदी के जन्मदिन को राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मना रहे हैं।
#NationlUnemploymentDay#राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस#17Baje17Minute
Unemployment ismore dangerous than COVID19pandemic.
Employment is the rightfor youngsters. They will fight for their right.
Stopजुमेलाबाजी
Giveरोज़गार @ArvindKejriwal @yadavakhilesh @yadavtejashwi @ashokgehlot51 pic.twitter.com/664SydXbcw— Utkarsh Krishnawat (@utkarshyaduvnsi) September 17, 2020
शिवेंद्र और उनके जैसे कई साथी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तावित सरकारी नौकरियों में 5 साल की संविदा नीति से भी नाराज हैं। उनका कहना है कि इससे सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वाले छात्रों में अनिश्चितता की भावना बढ़ेगी और प्राइवेट नौकरियों की तरह ही सरकारी नौकरियों में शोषण और भ्रष्टाचार बढ़ जाएगा।
ऐसे ही एक अभ्यर्थी अंकित श्रीवास्तव गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “सरकार कह रही है कि इस नीति से सरकारी काम-काज में अनुशासन बढ़ेगा और लालफीताशाही, अफसरशाही, सरकारी नौकरी में हीलाहवाली जैसी शिकायतों से निजात मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं है। इससे सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार और शोषण का मामला बढ़ेगा और ऊपर के अधिकारी नौकरी को नियत करने के लिए नए कर्मचारियों से घुस की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा इससे सरकारी कार्यलयों में जातिगत और लैंगिक भेदभाव बढ़ेगा और उच्च अधिकारी अपने जाति, धर्म, वर्ग और लिंग के लोगों को नौकरियों में स्थायित्व देना शुरू करेंगे।”
#NationalUnemploymentDay#राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस
Farmers- Dissatisfied.
Youth – Unemployed.
Economy – Worst
Small businessman – Collapsed#NationalUnemploymentDay #NationlUnemploymentDay @PMOIndia @narendramodi pic.twitter.com/r86rNNyQy8— Nela Varahala Rao (@varahalaraonela) September 17, 2020
अंकित ने कहा कि इससे सरकारी कार्यलयों में फेविरिटिज्म और पक्षपात को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि पहले से ही सरकारी नौकरियों में नई नियुक्तियों के लिए प्रोबेशन पीरियड का प्रावधान है, जो एक से दो साल का होता है। उसके बाद ही नौकरी स्थायी होती है। इसलिए ऐसे नए नियमों की जरूरत नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक यह एक ड्राफ्ट के रूप में प्रस्तावित है और नियम नहीं बन पाया है, लेकिन ऐसा ड्राफ्ट भी लाना सरकार की नियत पर शक पैदा करता है।
यूपीएससी और अन्य राज्यों के सिविल सेवाओं के अभ्यर्थी सन्नी कुमार कहते हैं कि सरकारी नौकरी में किसी भी सामान्य प्राइवेट नौकरी से कम तनख्वाह और बाहरी आकर्षण होता है लेकिन इसमें सामजिक सुरक्षा, कार्यस्थल पर सम्मान, वेतन की बराबरी और नियुक्ति में पारदर्शिता की बात होती है, जो इसे प्राइवेट नौकरियों से भिन्न बनाती है। यह समाज के कमजोर वर्गों के लिए एक भरोसे की तरह है कि मेहनत करेंगे तो किसी दिन मिल ही जाएगी। लेकिन संविदा लाकर सरकार इस सुरक्षा की भावना को खत्म कर इसे भी एक असुरक्षित क्षेत्र बनाना चाह रही है, जो कि कतई भी उचित कदम नहीं है।
Its my humble request to Honerable @narendramodi Ji that youth require your help to prevent unemployment in India. @Mmeenajohar @VijayPrakashJi @AnilHadal4 @KhatikHu @AmitIndigenous @FOUNDERofMMES #17Baje17Minute#NationalUnemploymentDay #राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस pic.twitter.com/rh9ileNaxg
— Rajkumar Tabiyad 100%FB (@RajkumarAdivasi) September 17, 2020
सन्नी कहते हैं कि सरकार ‘योग्यता’ के नाम पर ऐसा कर रही हैं लेकिन सरकार को अगर योग्यता ही जांचनी है तो बिना विवादों के पारदर्शी ढंग से समयबद्ध परीक्षा कराए और फिर लोगों को नौकरी दे। वह कहते हैं कि इस नीति से सीनियर अधिकारी नीचे के कर्मचारियों को अपना गुलाम बनाए रखेंगे, चापलूसी कराएंगे, भ्रष्टाचार कराएंगे नहीं तो ये ही अधिकारी आपकी नौकरी खा जाएंगे।
समयबद्ध परीक्षा, संविदा पर नौकरी के अलावा एक और कारण है जिससे ये प्रतियोगी छात्र उग्र है। इन युवा प्रतियोगियों का कहना है कि सरकार साल दर साल विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरियों की संख्या कम करती जा रही है, जबकि युवा जनसंख्या इस दौरान बढ़ ही रही है। ऐसा एसएससी, रेलवे, बैंकिंग सहित राज्यों के तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं में हो रहा है।
*#জাতীয়_বেকারত্ব_দিবস*
We request the Government to bring in Quick Reforms in the recruitment and examination process used for filling vacancies in State and Central Governments. Let’s fill the open vacancies soon.#NationalUnemploymentDay
*#জাতীয়_বেকারত্ব_দিবস* pic.twitter.com/DjmtCXJoFQ— @Kandi’erGorboMamata (@MISTARULSK15) September 17, 2020
इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि एसएससी सीजीएल (कम्बाइंड ग्रेजुएट लेवल) की परीक्षा में पहले हर साल लगभग 15 हजार से 16 हजार तक वैकेंसी आती थी, जो अब घटकर लगभग आधा हो चुकी हैं और अब 8 से 10 हजार तक वैकेंसी आती है। इसे भी पूरा होने में तीन से चार साल लग जाते हैं, जबकि पहले यह एक से 1.5 साल के भीतर पूरी हो जाती थी।
इसी तरह बैंकों में अधिकारी पदों के लिए होने वाली आईबीपीएस-पीओ परीक्षा में पहले जहां 20 हजार तक वैकेंसी निकलती थी, वह अब लगभग 20 गुना कम होकर एक हजार तक सिमट गई है। यह एक तरह से भयानक गिरावट है, जिस वजह से प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थी परेशान हैं। हमने यहां एसएससी सीजीएल और बैंक पीओ की बात इसलिए कि एक युवा ग्रेजुएट के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण और पसंदीदा परीक्षाओं में से एक होता है और इसमें हर साल लगभग 10 लाख से युवा प्रतियोगी भाग लेते हैं। इसी तरह से राज्यों की भी प्रतियोगी परीक्षाओं में यही स्थिति हैं।
समयबद्ध प्रतियोगी परीक्षा, संविदा नियम और वैकेंसी में गिरावट के अलावा निजीकरण (प्राइवेटाइजेशन) भी इस बेरोजगारी के आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा है। अभ्यर्थियों का कहना है कि यह सरकार लगातार सार्वजनिक क्षेत्रों को निजीकरण करने में लगी है, जिसमें बीएसएनएल, एमटीएनएल, कोल इंडिया, इंडियन ऑयल, सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी बैंक शामिल हैं। इसके अलावा रेलवे की निजीकरण की भी बात हो रही है। अभ्यर्थियों का कहना है कि अगर ऐसे ही निजीकरण होता रहेगा तो कम होती सरकारी रिक्तियां और कम हो जाएंगी व सरकारी नौकरी के बहुत कम ही मौके बचेंगे।
In the history of rail apprentices since 1927,Those who got trained in railway got immediate employment
. Govt should respect the rail apprentices & recruit them .#रेलअप्रेंटिस_बेरोज़गार#राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस#राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस#NationalUnemploymentDay#17Baje17Minute pic.twitter.com/XZWsgtH4kS— All India Railway Act Apprentice Association (@AIRAAAOFFICIAL) September 17, 2020
राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के इस कार्यक्रम को युवा अभ्यर्थियों ने ना सिर्फ सोशल मीडिया पर मनाया बल्कि कई जगहों पर सड़कों पर भी लोग उतरें और अपना विरोध जताया। कई जगहों पर ये युवा पकौड़ियां तलते और मूंगफली भी बेचते नजर आए जो इनका प्रतीकात्मक विरोध था।
PM Modi’s birthday celebrations in Delhi.#NationalUnemploymentDay #राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस pic.twitter.com/sY9HpfQyLD
— Ruchira Chaturvedi (@RuchiraC) September 17, 2020
Unemployed youth is celebrating Modi Ji’s Birthday means #NationalUnemploymentDay #राष्ट्रीय_बेरोजगारी_दिवस outside Rajasthan university campus. #RozgarDo pic.twitter.com/tZHwYRfb1Y
— Neeraj Kundan (@Neerajkundan) September 17, 2020
इलाहाबाद में ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान युवा प्रतियोगी छात्रों पर पुलिस ने लाठी गिरफ्तारी भी की। प्रतियोगी छात्रों के इस आंदोलन को कई छात्र-युवा संगठनों और राजनीतिक दलों ने अपना समर्थन भी दिया है, जिसमें युवा हल्ला बोल, यूथ कांग्रेस, समाजवादी युवजन सभा, एनएसयूआई और तमाम वाम छात्र संगठन भी शामिल हैं।
The young on the roads are asking for employment and the government is letting loose police force on them instead #NationalUnemploymentDay pic.twitter.com/MXt5NxGO2o
— Juhie Singh (@juhiesingh) September 17, 2020
छावनी में तब्दील ये इलाहाबाद का बालसन चौराहा है. बेखौफ युवाओं का हुजूम अब बागी बन चुका है.पहले भी कई सरकारों के ताबूत में अंतिम कील यही ठोकी गई थी.@PMLUCKNOW @Gauraw2297 pic.twitter.com/op6P28PuSS
— Neelesh Samarpit (@nsamarpit_Live) September 17, 2020
युवा हल्ला बोल ने इसे बेरोजगारी दिवस के साथ-साथ ‘जुमला दिवस’ के रूप में मनाया। युवा हल्ला बोल के संयोजक अनुपम ने कहा कि बेरोजगारी को लेकर युवाओं के मन में मोदी सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है। अब सरकार को युवाओं से किया गया वादा पूरा करना होगा नहीं तो हर साल 17 सितंबर का दिन ‘जुमला दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा। युवा हल्ला बोल के गोविंद मिश्रा ने कहा कि मीेडिया या राजनीतिक दल की मदद के बिना बेरोज़गारी का एजेंडा सेट करके युवाओं ने मोदी जी को दिखा दिया कि वे आत्मनिर्भर हैं। दोनों ने यूपी सरकार की संविदा नीति के खिलाफ इलाहाबाद में प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर लाठीचार्ज और गिरफ्तारी पर रोष जताया और कहा कि बेरोजगारी को मिटाए बिना देश का विकास संभव नहीं है।
रोज़गार नहीं है सपना,
रोज़गार नहीं कहानी।
रोज़गार मिलने से ही,
बनती है जिंदगानी।।#जुमला_दिवस pic.twitter.com/02JxE8mpLd— Yuva Halla Bol | युवा-हल्लाबोल (@yuvahallabol) September 17, 2020
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