”भारत में जो एजेंट हैं, वह वापस जाने के लिए दबाव बना रहे हैं। कॉलेज भी पांच महीने के लिए आने के लिए कह रहे हैं। वहां कोविड के हालात अभी भी खराब हैं। कोविड के दौरान एक भारतीय छात्र की मौत हो गई थी, उसका शव लाने में परिजनों के 60 लाख रुपए खर्च हो गए। वहां जाना खतरे से खाली नहीं है,” ये कहना है झारखंड के रहने वाले और रूस के एक कॉलेज में मेडिकल के छात्र उज्जवल कुमार (बदला हुआ नाम) का।
उज्जवल ने बताया कि अगर उन्होंने अपनी पहचान ज़ाहिर कर दी तो बाद वीज़ा लेने में या फिर वहां रहने में परेशानी हो सकती है। उज्जवल, इस परेशानी में अकेले नहीं फंसे हैं, केवल झारखंड में ही रूस में पढने वाले ऐसे लगभग 200 छात्र हैं। देश भर से लगभग 6,000 छात्र रूस में पढ़ाई कर रहे हैं, इनमें से 95 प्रतिशत मेडिकल के छात्र हैं। बाकी अन्य तकनीकी कोर्स में दाखिला लेते हैं. हर साल लगभग 6000 छात्र भारत से रूस पढ़ाई करने जाते हैं।
कोविड की वजह से रूस से वापस आने के बाद इन छात्रों की ऑनलाइन क्लासेज़ चल रही थी। लेकिन अब अचानक इन्हें कॉलेज आने को कहा जा रहा है। कॉलेजों के इस आदेश से छात्र और परिजन परेशान हैं। वह यूनिवर्सिटी और मॉस्को में भारतीय दूतावास से मामले में हस्तक्षेप की अपील कर चुके हैं। इधर वीज़ा बनवाने के लिए कंसल्टेंट छात्रों पर लगातार दवाब बना रहे हैं। कोविड के दौरान बीते साल जून के महीने में बिहार की एक छात्रा की किर्गिस्तान में मौत हो गई थी, उसका शव अभी तक भारत नहीं लाया जा सका है।
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में मौजूद ये कंसलटेंट और रूस के ये कॉलेज इन छात्रों पर चार महीने के लिए रूस आने का दवाब क्यों बना रहे हैं? अल्ताई स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे एक छात्र ने बताया, ”अभी हॉस्टल और मेस की फीस जमा नहीं हो पाई है। अभी ये बुलाकर फीस ले लेंगे, लेकिन अगर कोविड की दूसरी लहर आई भी तो ये वापस भी नहीं आने देंगे। पिछले साल भी यही हुआ था। इसलिए हम वहां जाने से डर रहे हैं।”
भारत को छोड़ अन्य देशों के छात्र पहुंच चुके हैं
दिल्ली स्थिति वीज़ा कंसल्टेंट चलाने वाले और रूस में अल्ताई स्टेट यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष के छात्र डॉ अंकित कहते हैं, ”रूस की हेल्थ मिनिस्ट्री में स्टूडेंट्स का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होता है। इसलिए उन्हें बुलाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत के सभी छात्र नहीं जाना चाहते हैं, कई वहां जाकर पढ़ाई करना चाहते हैं। भारत के अलावा अन्य देशों के छात्र वहां पहुंच चुके हैं।”
अल्ताई स्टेट यूनिवर्सिटी के ही फर्स्ट ईयर के एक छात्र ने बताया, ”फर्स्ट और फोर्थ ईयर के छात्रों को ऑफ़लाइन पढ़ाई अनिवार्य कर दी गई है, जबकि बाकियों को ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा दी गई है। यह अजीब इसलिए भी है कि फर्स्ट और सेकेंड ईयर में कोई भी क्लिनिकल सब्जेक्ट नहीं पढ़ाए जाते हैं।”
बिहार की एक छात्रा की हो चुकी है मौत, आज तक नहीं लाया गया शव
छात्रों के डर को बिहार के वारिसलीगंज के रहनेवाले कृष्ण कुमार के शब्दों में समझिये। पिछले साल एक जून को उनकी 22 साल की बेटी की मौत रूस के किर्गिस्तान में हो गई थी। वो मेडिकल के चौथे वर्ष की छात्रा थी। उसका शव तक उन्हें नहीं मिल पाया। उन्होंने बताया कि वे बिहार के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी से लेकर केंद्र के मंत्रियों तक से अपील कर चुके थे। दूतावास में कुछ दिन बात हुई, बाद में उन्होंने भी फोन उठाना बंद कर दिया। फिर उनकी बेटी को वहीं दफ़ना दिया गया।
इसी तरह किर्गिस्तान में रह रहे एक भारतीय छात्र की को निमोनिया हो गया था. उसे भारत वापस नहीं भेजा गया। बाद में उस छात्र की मौत हो गई थी। उसके शव को भारत लाने में परिजनों को 60 हज़ार डॉलर खर्च करने पड़े थे।
वहीं कजान फेडरल यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने बताया, ”15 दिन क्वारंटीन में रहना होगा जिसका खर्च भी खुद ही उठाना पड़ेगा। यही नहीं, सामान्य दिनों में भारत से मास्को का हवाई जहाज़ का किराया 20-25 हजार रुपए होता है, जबकि फिलहाल यह 50 हजार से एक लाख रुपए तक हो गया है।”
रांची में रह रही एक छात्र की मां विनिता प्रकाश ने कहा कि अगर कोई अभिभावक अपना बच्चा रूस भेजने में सक्षम है तो उसके लिए पैसा मुद्दा नहीं है। फिलहाल जो माहौल है, उससे डर लगता है। डर के माहौल में बच्चा क्या पढ़ पाएगा? वैसे भी फिलहाल नॉन क्लिनिकल पढ़ाई चल रही है। भारत सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए।
दिल्ली की एक अभिभावक अंजली ने बताया कि उनके बेटे का इसी साल रूस की अल्ताई यूनिवर्सिटी में दाखिला हुआ है। हमें इस वक्त भेजने में बहुत डर लग रहा है। केवल और केवल कोविड के कारण।
भारतीय दूतावास ने कहा, ये यूनिवर्सिटी का मामला है
ओरेनबर्ज स्टेट यूनिवर्सिटी की एक छात्र ने बताया, ”500 से अधिक छात्रों ने अपने संस्थानों को मेल किया है। वहां के डीन से बात की है, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं है। भारतीय कंसल्टेंट हर दिन पासपोर्ट मांग रहे हैं, ताकि वीजा की प्रक्रिया शुरू की जाए।”
बातचीत का स्क्रीन शॉट साझा करते हुए एक छात्र ने बताया कि उन्होंने इस मसले पर मास्को में भारतीय दूतावास के अधिकारियों से भी बात की। लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि वह यूनिवर्सिटी से बात करें, दूतावास से इस मसले का कोई लेना देना नहीं है।
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