– प्रेम परिवर्तन पीपल बाबा
जिस दिन से जंगल लगाने का कार्य शुरू होता है उसी दिन से इन जंगलों के सबसे ढलान वाली ऐसी जगह पर तालाब बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है, जहां पर चारों तरफ से पानी आकर रुके और इस तालाब के प्रवेश द्वार पर अम्ब्रेलापोम के पौधे लगाए जाते हैं। अम्ब्रेलापोम पूरे विश्व में पाया जाता है, लेकिन जापानी लोग इसका खूब उपयोग करते हैं।
इन पौधों की जड़ों से होकर गुजरने पर यह जल शुद्ध हो जाता है। 3-4 सालों में वर्षा जल प्राप्त करने के बाद ये तालाब सालों साल पानी से भरे रहने लगते हैं, इसका कारण हर साल हो रहा जलसंचयन होता है। इसके कारण जमीन का जलस्तर काफी ऊंचा उठ जाता है और भूमिगत जल से ये तालाब हमेशा स्वतः रिचार्ज होते रहते हैं।
तालाब बनाने की प्रक्रिया भूमि को समतल करने, गड्ढा बनाने और हैंडपम्प लगाने के साथ शुरू होती है। पूरे जगल में पानी के लिए मात्र एक तालाब सबसे ज्यादे ढलान वाली जगह पर होता है। तालाब के 10% हिस्से पर जलकुम्भी लगाई जाती है इससे मिट्टी तालाब में आने से रुक जाता है। लेकिन, जलकुम्भी के ज्यादे हो जाने पर तालाब में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए समय समय पर जलकुम्भी को साफ करते रहना चाहिए।
तालाब के सभी किनारों पर घास और पेड़ भी लगाए जाते हैं। ये मिट्टी को जकड़ कर रखते हैं और तालाब में मिट्टी को जाने से रोकते भी हैं। यहां पर मुख्य बात यह है कि तालाब के एंट्रीपॉइंट्स पर अम्ब्रेलापोम नामक घास लगाई जाती है, जो घास वाटरफिल्टर का काम करती है। गौरतलब है कि अम्ब्रेलापोम नामक घास पूरी दुनियां में पाया जाता है, लेकिन जापान में इसका प्रयोग तालाब के जल के शुद्धिकरण के लिए खूब किया जाता है।
शुरुआती समय में हैंडपम्प और पानी टैंकर से पौधों को पानी पिलाया जाता है, लेकिन धीमे-धीमे जैसे जैसे पेड़ बड़े होने लगते हैं वैसे वैसे पानी टैंकर जंगलों के बीच नहीं आ पाते। तब तक (2-3 सालों में) तालाब तैयार हो जाते हैं।
तालाब में जल के आने का मार्ग
जलसंरक्षण के लिए जंगलों के बीच हर ढलान वाली जगह के सबसे निचले बिन्दु पर तालाब और जंगलों के बीच ढेर सारी जगहों पर छोटे छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं, जिसमें आसानी से पानी जमा रहता है। 3-4 साल में जलस्तर काफी ऊपर आ जाता है। गर्मियों में ये छोटे गड्ढे तो सूख जाते हैं, लेकिन तालाबों में लबालब पानी भरा रहता है। जंगलों के बीच जगह-जगह पर छोटे गड्ढ़े इसलिए खोदे जाते हैं, क्योंकि दूर तालाब और नल से पानी लाने में समय अधिक लगता है।
मानसून का मौसम चल रहा है। इस मौसम में होने वाली झमाझम बारिश पेड़ पौधों से लेकर जीव जंतुओं सबके लिए अनुकूल होती है। इस मौसम में पृथ्वी के सभी जंतुओं और वनस्पतियों का खूब विकास होता है। इस मौसम में अगर हम थोड़ी सक्रियता बरतें तो इसका फायदा सालों साल उठाया जा सकता है। बरसात के मौसम में अगर हम जल संरक्षण का काम करें तो भूमिगत जल को ऊपर उठाया जा सकता है। साथ ही सालों साल चली आ रही जल की कमी को दूर भी किया जा सकता है। लेकिन हर साल गिर रहे जलस्तर के बीच इंसान मोटर, समर्सिबलपंप और इंजन लगाकर जमीन से पानी खींचकर अपना काम चला रहे हैं।
जल सरंक्षण के लिए कार्य न होने की वजह से वर्षा का जल नालियों के रास्ते नदियों में होते हुए समुद्र में विलीन हो जाता है। वर्षा जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन की तमाम तकनीकियां पूरी दुनियां में उयलब्ध हैं, लेकिन इन तकनीकियों का प्रयोग करने वालों की संख्या काफी कम है। ऐसे प्रयोगों को बड़े स्तर पर बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
देश में जल संसाधन मंत्रालय जल के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। इन सरकारी विभागों के अलावा देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जो जल संरक्षण के लिए अनोखे विधियों से जल संरक्षण के कार्य में लगे हुए हैं। इन सबमें भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जंगलों के बीच तालाबों का निर्माण करके पौधों को पानी पिलानें का कार्य किया जाता है।
जंगलों के विकास के लिए तालाब बनाने क्यों हैं जरूरी
जैसे जैसे पेड़ बढ़ते हैं इन पेड़ों के बीच पानी टैंकरों के आने की संभावना घटती जाती है। ऐसे में तालाब और हैंडपम्प की जरूरत होती है। पीपल बाबा की टीम के अहम सदस्य जसवीर मलिक बताते हैं, “कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा तो पानी के टैंकर बाहर से आने बंद हो गए और प्रचंड गर्मियों में जंगलों के बीच के तालाबों से ही पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जाने लगी।”
कौन हैं पीपल बाबा?
पीपल बाबा देश के हर नागरिक को पर्यावरण संवर्धन कार्य से जोड़ने हेतु हरियाली क्रांति का आधार तैयार कर रहे हैं। पीपल बाबा के इस अभियान से देश के हर हिस्सों से लोग जुड़ रहे हैं। जल संरक्षण के सन्दर्भ में पीपल बाबा ने उत्तर प्रदेश में जंगलों के विकास के लिए 30 तालाब बनाएं हैं। पिछले दशक में पीपल बाबा ने उत्तर प्रदेश में नॉएडा के सोरखा गाँव, ग्रेटरनॉएडा के मेंचा और लखनऊ के रहीमाबाद में 15-15 एकड़ के 3 विशाल जंगलों के विकास का कार्य कर रहे हैं।
अब तक पूरे देश में पीपल बाबा के नेतृत्व में 2.1 करोड़ से ज्यादे पेड़ लगाए जा चुके हैं, इनमें से सबसे ज्यादे पीपल के 1 करोड़ 27 लाख उसके बाद नीम, शीशम आदि के पेड़ हैं। पीपल बाबा के पेड़ लगाओ अभियान से अब तक 14500 स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और इनका कारवां देश के 18 राज्यों के 202 जिलों तक पहुँच चुका है। पीपल बाबा आने वाले समय में देश के हर व्यक्ति को हरियाली क्रांति से जोड़कर पूरे देश को हरा भरा बनाना चाहते हैं, इसके लिए पीपल बाबा की टीम देश में अनेक अभियान चलाने जा रही हैं। इसी कड़ी में आगामी सितंबर महीने की 1 तारीख से 30 तारीख तक हरिद्वार के ऋषिकेश में पीपल बाबा नीम अभियान चलाने जा रहे हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
ये भी पढ़ें- पेड़ लगाना हो मौलिक कर्तव्य, तभी हो सकती है हरियाली क्रांति: पीपल बाबा
संवाद: कोरोना काल में सरकार मनरेगा में भी शुरू कराए पेड़ लगाने का कार्यक्रम