– अमित पांडेय, शिवांगी सक्सेना
“हमें पता भी नहीं चलता की इतना खाना कहां से आ जाता है। यहाँ सेवादारों की कमी नहीं है,” हरी पगड़ी पहने हुए सिमरनजीत किसान आंदोलन में खाने की प्रबंधन के बारे में बताते हैं।
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर 27 नवंबर से चल रहे किसान आंदोलन में लंगर और भोजन की व्यवस्था की देश भर में चर्चा हो रही है। ये तो पहले से तय था दिल्ली आ रहे पंजाब हरियाणा के किसान अपने साथ कई महीनें का राशन साथ लेकर आ रहे हैं लेकिन दिल्ली में डेरा डालने के बाद इस आंदोलन में जिस तरह खाने की व्यवस्था रही है वो लगातार सुर्खियों में है।
दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बार्डर हरियाणा की साइड में कई किलोमीटर तक ट्रैक्टर ट्रालियों की कतारे लगी हैं। ये कतारें ही अब कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई लड रहे आंदोलनकारी किसानों का बसेरा भी हैं। सड़क के दोनों तरफ, हर सौ मीटर की दूरी पर कोई न कोई लंगर चलता रहता है। यहां 3 तरह की व्यवस्थाएं हैं तो किसानों के खुद के अपने खाने का इंतजाम है, दूसरा बड़े पैमाने वाले लंगर हैं तीसरी व्यवस्था सामाजिक संगठनों, गुरुद्वाराओं आदि धार्मिक संगठनों आदि की है। कुछ लोग पिज़्ज़ा, गोलगप्पे, बिरयानी भी खिला जा रहे हैं, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया में घूमती रही हैं।
सिमरनजीत बताते हैं, “सभी लंगर लगभग 24 घंटे सभी के लिए खुले हुए हैं। करीब में रहने वाले लोगों (झुग्झी झोपड़ी वाले) को भी हम प्रसाद देते हैं , यह सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं है।” खाने के अलाव यहां हर कुछ दूरी पर बड़े बड़े भगौनों में चाय उबलती नजर आएगी। साथ ही पंजाब के घरों से भी पिन्नियां और दूसरे मेवे वाले पकवान बनकर सिंघु बॉर्डर पहुंच रहे हैं। पंजाब से आने वाले खाने में इसका भी ध्यान रखा जाता है कि खाना ऐसा हो जो इस सर्दी में किसानों को सेहतमंद रखे। साथ ही हरियाणा के आसपास के गांवों से भी खाने पीने का लगातार प्रबंध हो रहा है।
दर्शन सिंह, जो पिछले एक हफ्ते से खाना बना रहे हैं, बताते हैं, “सुबह पाँच बजे से वह खाने की तैयारी में लग जाते हैं और बाकि लोग भी उनके साथ सब्ज़ी काटने और आटा मलने (गूंथने) में मदद करते हैं। हरप्रीत सिंह मुण्डे बताते हैं कि वो सेवा भाव से ये काम करते हैं। “मैं यहाँ दिहाड़ी पर नहीं हूँ, मैं सेवा करने आया हूँ, मैं बर्तन भी धोता हूँ, खाना भी बनता हूँ और अगर कूड़ा उठाने की जरूरत होती है तो वह भी करता हूँ,” वह कहते हैं।
दर्शन सिंह के आगे कुछ मीटर चलने पर किसान सुबह के लंगर के लिए मूली के पराठों की तैयारी में लगे हुए थे। उन्हीं किसानों में से एक अमरदीप सिंह कहते हैं कि खाने में लगभग अभी तक सवा लाख रुपये का खर्च हो गया है,जो किसानों द्वारा दिए गए चंदे से हुआ है। (अमरदीप अपने जत्थे की बात कर रहे थे)
अमरदीप के मुताबिक वह 24 घंटे किसानों के लिए खाने का प्रबंध में लगे रहते हैं। खाने की तैयारी की तरफ इशारा करते हुए वो कहते हैं, “आज सुबह हमने बिरयानी बनाई और श्याम को दाल फूलका (रोटी) बनाएंगे।”
खाने की कमी न पड़े इसलिए किसानों ने आंदोलन की शुरुआत में ही खाने की व्यवस्था कर ली थी। किसान अपने साथ ट्रैक्टरों में अनाज़ और बाकि ज़रूरत का सामान लाये थे। सिंघु बार्डर पर हज़ारों की संख्या में मौजूद ट्रैक्टरों में कई ट्रक सिर्फ राशन से भरे हुए हैं।
पंजाब के किसान सतीश सिंह बताते हैं कि उनके ट्रक में क़रीब पांच से दस बोरी चीनी की है और नमक, गैस और सभी जरूरी सामान है। खाना बनाने की बात पर वो बोलते हैं हम सभी लोग खाना बनाने में कुशल हैंI इसलिए खाना बनाने की ज़िम्मेदारी किसी एक व्यक्ति के कंधे पर नहीं है।
इस आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ज्यादातर लोग अपने खाने के भाव को सिख धर्म से जोड़ कर देखते हैं और खुद को सेवादार कहते हैं। किसानों के अलावा कई गुरुद्वारों ने भी अपने लंगर किसानों के सेवा में आंदोलन स्थल पर लगाए हैं।
दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधन कमेटी (DSGMC) ने भी किसानों के लिए खाने, नाश्ते और प्राथमिक चिकित्सा का प्रबंध सिंघु बॉर्डर पर किया हुआ है। DSGMC के मीडिया प्रभारी इंदरप्रीत सिंह गांव कनेक्शन से बातचीत में कहते हैं, “रोज कितने लोग लंगर खा रहे हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है और ना ही गुरूनानक जी हमें ऐसा करने की इजाजत देते हैं। हम लगातार लोगों को लंगर बांट रहे हैं जब खाना खत्म होने वाला होता है, तो खाने की एक गाड़ी फिर से आ जाती है। इसी तरह से लगातार काम चल रहा है। हम भोजन के अलावा लोगों को चाय, नाश्ता, बिस्किट और दूध भी उपलब्ध करवा रहे हैं।”
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