किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट: विरोध करना संवैधानिक अधिकार, किसानों का पक्ष सुने बिना आंदोलन रोकने का आदेश नहीं

बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी गठित करने की बात कही थी, जो सरकार और किसान संगठनों के बीच मध्यस्थता करे। हालांकि कोर्ट में सभी पक्षों के उपस्थित ना होने के कारण समिति का गठन नहीं हो पाया और सुनवाई टल गई।
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किसान आंदोलन को लेकर जनहित याचिका पर सुनवाई गुरुवार को टल गई। मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि कोर्ट किसान पक्षों को सुने बिना कोई फैसला नहीं सुना सकता है। इस मामले में पहले किसान पक्ष को पक्षकार बनाया जाएगा और फिर ही कोई सुनवाई हो सकती है।

इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि मामले के निस्तारण के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और किसान संगठनों को मिलाकर एक कमेटी बनाई जानी चाहिए। इस मामले में किसान संगठनों और संबंधित राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली को नोटिस देने की बात कही गई थी, ताकि एक पक्षकार के रूप में वे सुनवाई में शामिल हों।

लेकिन आज सुनवाई के दौरान किसान संगठनों की तरफ से कोर्ट में कोई नहीं मौजूद था। भारतीय किसान यूनियन, दोआबा के किसान नेता एमएस राय ने कहा कि उन्हें कोर्ट की तरफ से कोई नोटिस नहीं मिला है,जब उन्हें नोटिस मिलेगा तब वे कोर्ट में जाएंगे और कोर्ट में भी अपने मसले को लड़ेंगे। वहीं जम्हूरी किसान सभा, पंजाब के अध्यक्ष सतनाम सिंह ने भी यही बातें दोहराई।

सतनाम सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उनके पास कोर्ट का कोई लिखित नोटिस नहीं आया है और उन्होंने इसके बारे में जो भी सुना है, वह मीडिया से ही सुना है। हालांकि चीफ जस्टिस बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोर्ट के द्वारा सभी किसान संगठनों को लिखित नोटिस भेजा जाजे चुका है।

उन्होंने आगे कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट में अब शीतकालीन अवकाश होने जा रहा है, इसलिए अब इस मसमले की सुनवाई कोई और बेंच करेगी। अगली सुनवाई की अभी तक कोई तारीख नहीं दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध करना एक संवैधानिक अधिकार है, इसलिए वे अभी किसानों के आंदोलन पर कोई आदेश नहीं दे सकते। हालांकि किसानों को भी समझना चाहिए कि इस आंदोलन से आम नागरिकों को भी कोई दिक्कत या परेशानी का सामना ना करना पड़े। कोर्ट ने कहा कि इसलिए उन्होंने एक समिति के गठन का प्रस्ताव दिया है, जिसमें केंद्र व राज्य सरकारों के प्रतिनिधि और किसानों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और कृषि विशेषज्ञ पी. साईनाथ सहित कुछ विशेषज्ञ दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करेंगे। कोर्ट ने कहा कि केवल रास्ता जाम करने से नहीं बल्कि आपस में बातचीत करने से मामले का हल निकलेगा।

गौरतलब है कि लॉ स्टूडेंट ऋषभ शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें कहीं हैं। ऋषभ शर्मा ने अपने याचिका में कहा था कि आंदोलन के चलते दिल्ली को तीन राज्यों से जोड़ने वाली हाईवे पूरी तरह से जाम हैं, जिससे यातायात, आवागमन, व्यापार, एम्बुलेंस व मेडिकल इमरजेंसी जैसे आपातकालीन सेवाओं के लिए आम लोगों बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आंदोलन में कोविड-19 सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का भी पालन नहीं किया जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि आंदोलनकारी रास्ते से हटकर सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जगह पर अपना आंदोलन करें।

आज की सुनवाई के दौरान भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी कहा कि आंदोलन में शामिल लोग ना मास्क पहने हुए हैं और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहे हैं। यही लोग फिर अपने गांवों में जाएंगे तो कोरोना फैलने का खतरा और बढ़ जाएगा।

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