– रफ़ीक़- उल- इस्लाम मोन्टू
बांग्लादेश के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर सतखीरा ज़िला के श्याम नगर उप-ज़िला के अंदर छह संघ(यूनियन) हैं। यहां के लोग, विशेष रूप से गबुरा, मुंशीगंज और बरीगोआलिनी की अस्सी फ़ीसदी आबादी जीवित रहने के लिए सुंदरबन के संसाधनों पर निर्भर हैं। लेकिन, यहां खतरा मंडरा रहा है।
भारत और बांग्लादेश के बीच 10,000 वर्ग किलोमीटर में फैले सुंदरबन का मैन्ग्रोव जंगल, कम से कम 86 बंगाल टाइगर्स का घर है, जिसमें से कई आदमखोर हैं।
इस इलाके में, कई महिलाओं के लिए जीवन ख़ुद को बचाए रखने की लड़ाई है। अपने दिनचर्या में मशगूल ये महिलाएं जो पहले अपने घरों तक सीमित थीं, अब रोजी-रोटी कमाने बाहर निकलती हैं। अपने पति को बाघ के हमले में खो देने के बाद इन पर अपने परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी है। इन्हें बाघ विधवा (टाइगर विडोज) कहा जाता है। इन महिलाओं को अपने साथी के बुरी किस्मत और असमायिक मौत के लिए दुत्कारा जाता है।
वृद्ध बाघ विधवाओं को अक्सर उनके वयस्क बेटे अपने साथ नहीं रखते। कम उम्र में विधवा हो चुकीं महिलाएं लिंग आधारित रूढ़ियों को तोड़कर, झींगा पालन, मछली और केकड़े पकड़ने जैसे कामों में संलग्न रहती हैं। यहां ये काम सामान्यत: पुरुषों के द्वारा किया जाता है।
स्थानीय पर्यावरण विकास एवं कृषि अनुसंधान सोसाइटी (लेडार्स), बांग्लादेश का एक गैर-सरकारी संगठन है, जो इन बाघ विधवाओं को अंधविश्वासी समाज में वापस लाने में मदद करता है। उनका एक अनुमान है कि 2001 से 2011 के बीच इस इलाके में बाघ हमलों में 500 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
इस क्षेत्र में बाघ विधवाओं की संख्या 520 से ऊपर है। जबकि स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि 2001 से पहले भी इस प्रकार की घटनाएं हुई हैं, इससे यह आंकड़ा हज़ार के पार होगा। गांव कनेक्शन ने कुछ बाघ विधवाओं से बात की।
बरीगोआलिनी संघ के दतिनखली गांव की रहने वाली 42 वर्षीय मंज़ीला बेगम अपने पति हसन अली को बाघ हमले में खो चुकी हैं। पूरा परिवार अली के आय पर ही निर्भर था, जो पेशे से किसान थे। वे जीवन यापन करने के लिए मछली पकड़ने के काम में लग गए थे। उनके पास अपनी नाव थी, जिससे सुंदरबन नहर से मछली और केकड़े पकड़ते थे। एक दिन अचानक अली और उसके सहयोगी पर एक बाघ ने हमला कर दिया। इस हमले में अली नहीं बच पाए, रातों-रात मंजिला का जीवन तबाह हो गया।
62 वर्षीय सोनामणि, श्याम नगर के मुंशीगंज मछुआरों के गांव की विधवा हैं। उन्होंने एक नहीं, बल्कि दो पतियों को बाघ हमलों में खोया है। अब गांव वाले इनके साथ अछूत की तरह बर्ताव करते हैं। वह गांव कनेक्शन से कहती हैं, “कोई मुझसे मिलना-जुलना नहीं चाहता क्योंकि बाघ मेरे पति को उठा ले गया है।”
मंज़ीला बेगम को गांव कनेक्शन से बात करते हुए देख कुछ महिलाएं भी आगे आती हैं, जो बाघ हमलों में अपनों को खो चुकी हैं। रज़िया बेगम, जो अपने पति अब्दुस्समद ग़ाज़ी को खो चुकी हैं। ज़हूरा ख़ातून और अमीना ख़ातून की शादी क्रमश: अब्दुल माजिद सरदार और असद ग़ाजी से हुई थी, अब वे भी इस दुनिया में नहीं रहें। तैबा बेगम ने अपने साथी महमूद हुसैन और राबिया बेगम ने अपने अब्दुस्समद सरदार को खो दिया है। राशिदा ख़ातून के पति मनु मोल्लाह, अनवरी खातून के पति अब्दुल माजिद और जहांरा खातून के पति मकसूद सरदार को भी बाघों ने मार डाला।
दीन हीन गरीबी और अछूतपन में फंसा जीवन
बाघ विधवाएं अत्यंत गरीबी के बीच अपना जीवन काट रही हैं। समाज में व्याप्त अंधविश्वास इनके जीवन को और भी दूभर बना देता है। गांव कनेक्शन से बात करते हुए कुछ गांव वाले बिना किसी हिचकिचाहट के इन महिलाओं को अपनी पति की मौत का दोषी ठहराते हैं।
इनके घर जर्जर स्थिति में हैं, जिसमें कुछ के छत आंधी-तूफ़ान में उड़ गए हैं। कुछ महिलाएं उस क्षेत्र के साहूकारों से पैसे उधार ले रखे हैं और कुछ अन्य ने गैर-सरकारी संगठनों से ऋण भी ले रखा है। किसी बीमारी के शिकार या प्राकृतिक आपदा के चपेट में आने के अलावा, ऋण चुकता करने का बोझ भी उनके सिर आ गया है। वे गांव कनेक्शन से शिकायत करती है कि यहां के अधिकारी उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देते हैं।
हालांकि मुंशीगंज संघ परिषद के अध्यक्ष अबुल कासिम मोरल कहते हैं कि समय के साथ चीज़ें बदल रही हैं। इलाके में शिक्षा की वृद्धि के साथ लोगों ने बाघ विधवाओं की दुर्दशा को समझा है। वह गांव कनेक्शन से कहते हैं, “हम यथासंभव उनकी मदद करते हैं, और कुछ गैर-सरकारी संगठन भी उन्हें रोज़गार प्रदान करते हैं।”
रोज़गार के विकल्पों की मांग
नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने बाघ विधवाओं के लिए वैकल्पिक रोज़गार का आह्वान किया है। वे इसके लिए सरकार से जरूरी कदम उठाने की मांग करते रहे हैं। इन महिलाओं को कम ब्याज पर ऋण की उपलब्धता के साथ-साथ आय सृजन के कार्यकर्मों में जोड़ने की मांग होती रही है, ताकि इनके बच्चे भी शिक्षा ले पाएं।
रंजीत बर्मन, जो श्याम नगर के सुंदरबन बालिका मध्य विद्यालय के शिक्षक हैं, बताते हैं, “इस क्षेत्र में झींगा पालन के कारण किसानों की आजीविका नष्ट होती है, और यही उन्हें सुंदरबन की ओर धकेलता है।”
सुंदरबन स्थित पर्यावरण संगठन ‘बांग्लादेश पर्यावरण और विकास सोसायटी’ (बीईडीएस) के कार्यकारी निदेशक मकसुदूर रहमान का कहना है कि सुंदरबन पर लोगों की निर्भरता कम होनी चाहिए और यहां रहने वाले लोगों की जीविका के लिए अन्य विकल्प तलाशने होंगे।
भारत की तरफ़ सुंदरबन के पास के गांवों में बाघ के हमलों में अपने पति को खोने वाली महिलाओं की दुर्दशा इससे अलग नहीं है।
अनुवाद- दीपक कुमार
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