एक तरफ जहां कोरोना के कारण देश भर में बेरोज़गारी बढ़ी है और सरकार से लोग रोज़गार की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने श्रम मंत्रालय के रोज़गार सृजन कार्यक्रमों का बजट कम कर दिया है। एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने के दौरान श्रम मंत्रालय को 13,306 करोड़ रूपए का आवंटन किया, जो कि पिछले साल के संशोधित अनुमान, 13,719 करोड़ रूपये से लगभग 713 करोड़ रूपये कम है।
श्रम मंत्रालय के इस बजट में सबसे अधिक कटौती केंद्र सरकार के रोज़गार सृजन कार्यक्रमों में हुई है। पिछले साल के बजट में रोज़गार सृजन कार्यक्रमों के लिए श्रम मंत्रालय के बजट का लगभग 10% यानी 1,364.80 करोड़ रूपए मिले थे, जो कि इस साल लगभग 465 करोड़ रूपए कम होकर सिर्फ 900 करोड़ रूपए रह गए हैं। यह लगातार तीसरा साल है जब इस मद में के बजट कमी की गई है।
केंद्र सरकार ने रोज़गार सृजन कार्यक्रमों पर वित्त वर्ष 2018-19 में 1,652.09 करोड़ रुपए और 2019-20 के बजट में 3,400 करोड़ रूपए ख़र्च किए थे। वित्त वर्ष 2020-21 की बजट घोषणा में इसके लिए 2,550 करोड़ रुपए के बजट का आवंटन किया गया जो वित्त वर्ष 2019-20 में हुए कुल ख़र्च से 25% कम था। 2020-21 में महामारी के दौरान जब सरकार ने बजट में संशोधन किया तो इसमें और कमी कर दी गई। संशोधित अनुमानों में ये बजट 1364.80 करोड़ रुपए कर दिया गया। यानी अगर हम संशोधित बजट की तुलना वित्त वर्ष 2019-20 में इस मद में हुए खर्च से करते हैं तो इस बजट में लगभग 60% की कटौती हुई थी। अब वित्त वर्ष 2021-22 के लिए इस बजट को और कम करके 900 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यानी वित्त वर्ष 2019-20 में इस योजना पर जो ख़र्च हुआ, उसमें अब 73.5% तक की कटौती कर दी गई है।
वित्त वर्ष 2017-18 में शुरू हुई प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना एक समय बेरोज़गारी को कम करने के लिए मोदी सरकार की एक फ्लैगशिप योजनाओं में से एक थी। लेकिन कोरोना काल में जब बेरोजगारी अपने चरम पर है और लगभग 3 करोड़ लोग अभी भी श्रम बल क्षेत्र से बाहर हैं, तो सरकार ने इसका बजट एक चौथाई तक कम कर दिया है।
आपको बता दें कि रोज़गार सृजन कार्यक्रमों के अंतर्गत सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के युवाओं को रोज़गार कौशल के प्रशिक्षण दिलाती है। इसके अलावा प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत नए उद्यमियों और नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ईपीएफ और ईपीएस के मद में आर्थिक मदद देती है ताकि वे ना सिर्फ अपना खुद का रोज़गार शुरू कर सकें, बल्कि अपने क्षेत्र के अन्य लोगों को भी रोज़गार दे सकें।
यह योजना साल 2017 में शुरू की गई थी, तब इसके बजट में कुल 1,000 करोड़ रूपए दिए गए थे। उस समय तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा था कि संगठित क्षेत्र में नए रोज़गार बढ़ाने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई है। इससे लघु व मध्यम क्षेत्र के उद्यमी ना सिर्फ अपना रोज़गार खोलने के लिए प्रोत्साहित होंगे बल्कि कई और लोगों को भी रोज़गार पर रखेंगे। ईपीएफ और ईपीएस के मद में बजट उपलब्ध कराए जाने के कारण कर्मचारियों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाएगा।
वहीं दूसरी तरफ लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाली एक दूसरी रोजगारपरक योजना प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) का बजट भी पिछले सालों की तुलना में कम किया गया है। इस योजना के तहत लघु एवं मध्यम उद्योग खोलने वाले नियोक्ताओं और उनके कर्मचारियों को सरकार की तरफ से ब्याज रहित सब्सिडी लोन व अन्य सुविधाएँ देकर स्वरोज़गार के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। योजना के अंतर्गत बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार शुरू करने के लिए 25 लाख रूपए तक का लोन दिया जाता है।
साल 2021-22 के बजट में प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम के तहत कुल 2,000 करोड़ रूपये दिए गए हैं, जो कि पिछले बार के मुकाबले 500 करोड़ रूपए कम हैं। हालांकि 2020-21 के संशोधित अनुमानों में इस योजना के तहत बजट में मिली राशि को 2,500 करोड़ रूपए से कम कर 1,650 करोड़ रूपए कर दिया गया था। जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में इस योजना पर सरकार ने 2,464.44 करोड़ रूपए खर्च किए थे।
हालांकि इस बजट में श्रम क्षेत्र को देखते हुए एक खास बात यह है कि पहली बार सरकार असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का डाटाबेस तैयार करने के लिए कोई कार्यक्रम चलाने जा रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसका जिक्र अपने बजट भाषण में भी किया था। श्रम मंत्रालय के बजट में इस काम के लिए 150 करोड़ रूपए दिए गए हैं। वहीं कोरोना काल में शुरू हुए ‘आत्मनिर्भर भारत’ के बजट को भी 1,000 करोड़ रूपये से बढ़ाकर 3,130 करोड़ रूपये कर दिया गया है।
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