सीमा (12 वर्ष) और हिमानी (10) के गांवों के बीच लगभग 1,000 किलोमीटर का फ़ासला
है। लेकिन दोनों के हालात, दोनों की समस्याएं और दोनों का डर एक जैसा है। सीमा आठवीं
और हिमानी चौथी कक्षा में पढ़ती हैं। कोरोनावायरस और लॉकडाउन की वजह से दोनों के स्कूल
बंद हैं और दोनों का ज़्यादा वक्त घरेलु कामों में बीत जाता है। दोनों को डर है कि
कहीं इस वायरस की वजह से उनकी पढ़ाई न छूट जाए।
सीमा, उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के रहने वाली हैं। लॉकडाउन में स्कूल बंद होने से पहले रोज़
साइकिल से अपने घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित माध्यमिक विद्यालय, बयारा में पढ़ने
जाती थी। लड़की होने के कारण स्कूल जाने से पहले और आने के बाद सीमा को घर का भी कुछ
काम निपटाना पड़ता था। कभी-कभी वह अपने पिता के साथ खेत पर काम करने भी जाती थी। कोरोना
और लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए। सीमा, अब पढ़ाई पर बहुत कम समय दे पाती है। उसका
अधिकतम समय घर के और खेत के कामों में बीत जाता है। सीमा, नहीं जानती है कि वो इसके
बाद पढ़ाई जारी कर पाएगी या नहीं।
सीमा की तरह ही छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले
के अटारिया गांव की रहने वाली हिमानी के सामने भी कुछ ऐसे ही हालात है। हिमानी भी पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं, लेकिन उसका
अधिकतर समय अभी घर के कामों और खेलने में जा रहा है। वह ऑनलाइन पढ़ाई में भी भाग नहीं ले पाती है, क्योंकि सीमा के घर में स्मार्टफोन नहीं है।
सीमा और हिमानी की तरह देश
की हज़ारों लड़कियां चाहते हुए भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रही हैं। ऐसे में
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों, शिक्षा अधिकार कार्यकर्ताओं को उम्मीद
थी कि इस साल के बजट में शिक्षा खासकर बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ताकि
सीमा और हिमानी जैसी लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर न होना पड़े। लेकिन ऐसे
लोगों को उस वक्त निराशा हाथ लगी जब उन्होंने पाया कि बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित
करने वाली योजनाओं का बजट बढ़ाने की बजाय कम कर दिया गया।
सेंटर फ़ॉर बजट एंड पॉलिसी
स्टडीज (CBPS), चैंपियंस फ़ॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) और
राइट टू एजुकेशन फोरम (RTE Forum) ने हाल ही में एक सर्वे कर बताया था कि लॉकडाउन
के समय से हुए स्कूलबंदी के कारण लड़कियों की पढ़ाई खासा प्रभावित हुई है और एक साल
बाद अब जब स्कूल खुलने जा रहे हैं, तो लगभग एक करोड़ लड़कियों की पढ़ाई छूटने की
आशंका
(ड्रॉप आउट) भी बन गई है।
‘बेटी
बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना
यह केंद्र सरकार की फ्लैगशिप
योजना है, जिसके अंतर्गत सुकन्या समृद्धि योजना, बालिका समृद्धि योजना, लाडली लक्ष्मी
योजना, कन्याश्री प्रकल्प योजना और धनलक्ष्मी योजना जैसी छोटी-छोटी योजनाएं आती हैं,
जिसमें कन्या का जन्म होने पर प्रोत्साहन राशि, छात्राओं के लिए एक निश्चित छात्रवृत्ति
और उच्च शिक्षा व शादी के लिए सरकारी वित्तीय सहायता और गारंटीड बैंकिंग स्कीम आदि
की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई है। इन योजनाओं के संचालन के लिए एक निश्चित बजट और
संसाधन की जरूरत होती है।
वित्त
वर्ष 2017-18 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 200 करोड़ रूपये, 2018-19 में
280 करोड़ रूपये, 2019-20 में 85.78 करोड़ रूपये खर्च हुए थे जबकि 2020-21 में
220 करोड़ रूपए प्रस्तावित किए गए थे, जिसे बाद में संशोधित कर 100 करोड़ रूपए कर
दिया गया। लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने इस योजना को अलग से कोई बजट ना देते हुए इसे
प्रधानमंत्री मातृ वंदना, महिला शक्ति केंद्र और महिलाओं के लिए शोध, मॉनीटरिंग जैसी
योजनाओं के साथ मिलाकर इसे ‘सामर्थ्य योजना’ का नाम दिया है और कुल 2,522 करोड़ रूपये
दिए हैं।

अगर इन चारों योजनाओं के
पिछले साल के मूल बजट को एक साथ मिलाया जाए, तो यह राशि 2,828 करोड़ रूपए थी। आरटीई
फोरम के मीडिया कोर्डिनेटर मित्र रंजन कहते हैं कि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ योजना का
लगभग 70 फीसदी हिस्सा पहले भी सिर्फ विज्ञापन और प्रचार पर खर्च होता था, अब इसे अन्य योजनाओं के साथ मिलाकर और इसका बजट
कम कर इसे और महत्वहीन कर दिया है। जबकि यह लड़कियों का ड्रॉप आउट रोकने के लिए एक
महत्वपूर्ण योजना साबित हो सकती थी।
यूएन के सतत विकास लक्ष्यों
और सार्वजनिक नीतियों पर लंबे समय से शोध कार्य कर रही मिताली निकोरे कहती हैं, “महामारी
के इस समय में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना बहुत ही काम की साबित हो सकती थीं। स्कूली
लड़कियों को मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा प्रदान कराई जाती। प्राइवेट और ऐडेड स्कूलों
में भी 12वीं तक की शिक्षा को कम से कम महामारी के इस कठिन दौर तक मुफ्त कर दिया जाता
ताकि स्कूल खोलने पर लड़कियों का ड्रॉप आउट रेट कम होता।”
राष्ट्रीय
बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना
आठवीं कक्षा पास कर नौवीं
कक्षा में जाने वाली अनूसूचित जाति व जनजाति की छात्राओं को प्रोत्साहित करने के लिए
केंद्र की तरफ से ‘राष्ट्रीय बालिका शिक्षा प्रोत्साहन
योजना’
भी चलाई जाती है। इस योजना के तहत आठवीं कक्षा पास करने वाली अनुसूचित जाति व जनजाति
की लड़कियों, कस्तूरबा गांधी स्कूल में पढ़ने वाली सभी जाति की छात्राओं और विवाहित
हो चुकी 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को आगे की कक्षाओं में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित
किया जाता है और उनके लिए सरकार एक निश्चित रकम देती है। यह रकम ब्याज सहित दसवीं
पास करने और 18 साल की होने के बाद इन लड़कियों को मिलती है। यह योजना 8वीं पास लड़कियों
का नामांकन दर बढ़ाने के लिए शुरु की गई थी। भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की
रिपोर्ट ‘चिल्ड्रेन इन इंडिया 2018’ के मुताबिक आठवीं पास करने के बाद 30 प्रतिशत
जबकि दसवीं पास करने के बाद लगभग 57 प्रतिशत लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। (2018
के बाद के आंकड़े अभी नहीं आए हैं।) कोरोना के बाद की परिस्थितियों में यह संख्या
और भी बढ़ने का अनुमान है।
जब देश की हज़ारों लड़कियों
पर पढ़ाई छूट जाने का ख़तरा मंडरा रहा है, तब इस योजना के बजट बढ़ाए जाने की बजाए
सरकार ने पिछले साल के वास्तविक बजट से 99.1% तक कम कर दिया है। इस
साल इस योजना के लिए सिर्फ एक करोड़ रूपए का बजट प्रस्तावित किया गया है। पिछले साल
के बजट में भी इसे संशोधित कर एक करोड़ रूपये किया गया था, जबकि 202021 के मूल बजट
में इसके तहत 110 करोड़ रुपए का प्रस्ताव था। 2019-20 में इस योजना के तहत 87 करोड़
रूपए और 2018-19 में 164.58 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे।

समग्र
शिक्षा
इसके
अलावा ‘समग्र शिक्षा‘
कार्यक्रम पर इस बजट में 7,000 करोड़ रूपए कम आवंटित किए गए हैं। साल 2019-20 के बजट
में इसके तहत 32,376.52 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे। 2020 में इस योजना के तहत
38,750.50 करोड़ रूपए की राशि प्रस्तावित थी जिसे संशोधित अनुमानों में घटाकर
28,077.57 करोड़ रुपए कर दिया गया। इस साल समग्र शिक्षा के तहत बजट में 31,300.16
करोड़ रूपए दिए गए हैं। समग्र शिक्षा कार्यक्रम शिक्षा के क्षेत्र
की सबसे प्रमुख योजना है और इसका उद्देश्य तमाम नीतियों और संसाधनों के ज़रिये शिक्षा
की गुणवत्ता में सुधार करना और शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सभी के लिए प्राथमिक
और माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराना है। इसका एक बड़ा हिस्सा, बालिका शिक्षा के लिए भी
खर्च किया जाता है।

ऑक्सफ़ेम इंडिया की स्वास्थ्य
और शिक्षा इकाई की प्रमुख एंजेला तनेजा ने गांव कनेक्शन से कहा, “ऑनलाइन पढ़ाई के
इस दौर में लड़कियां डिजिटल डिवाइड की सबसे अधिक शिकार हुई हैं। घरों में पढ़ाई के
लिए फोन या लैपटॉप देने में लड़कों को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में हमें उम्मीद
थी कि सरकार बालिका शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए अलग से बजट का प्रावधान करेगी। लेकिन
उन्होंने तो पहले की ही बजट में कटौती कर दी। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक
है।”
सीबीपीएस,
चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन (Champions for Girls’ Education) और आरटीई फोरम द्वारा
किए गए सर्वे में भी यह निकल कर सामने आया था 37% लड़कों की तुलना में महज 26% लड़कियों
को ही ऑनलाइन पढ़ाई के लिए फोन और इंटरनेट की सुविधा मिल पाती है। इसी सर्वे में ही
71 प्रतिशत लड़कियों ने माना था कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और ऑनलाइन
पढ़ाई के समय में भी उन्हें घरेलू काम करने के लिए कहा जाता है। वहीं ऐसे सवाल पर
सिर्फ केवल 38 प्रतिशत लड़कों ने ही कहा कि उन्हें पढ़ाई के समय घरेलू काम करने को
कहा जाता है।

कोराना काल में ऑनलाइन शिक्षा, तकनीक व स्मार्टफोन तक पहुंच और लैंगिक विभेद, सोर्स- सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज (CBPS)
एंजेला आगे कहती हैं कि
ड्रॉपआउट को रोकने के लिए सरकार को विशेष फंड की घोषणा बजट में करनी चाहिए थी, लेकिन
उन्होंने इस मामले में भी निराश किया है।
स्कूली शिक्षा पर काम करने
वाली संस्था आरटीई फोरम की रिसर्च व एडवोकेसी कोर्डिनेटर सृजिता मजूमदर गांव कनेक्शन
से बातचीत में कहती हैं, “महामारी के इस दौर में जहां एक तरफ उनकी पढ़ाई छूटने का
डर है, वहीं दूसरी तरफ उनके बाल विवाह, कम उम्र में गर्भधारण, मानव तस्करी या फिर
देह-व्यापार में जाने के मामले भी देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे है।”
“सरकार ने पिछले साल नई
शिक्षा नीति को लागू करते समय, लैंगिक विभेद कम करने और लैंगिक समानता बढ़ाने के लिए
अलग से फंड की भी बात की गई थी। लेकिन लगता है सरकार अपनी ही नीतियों पर भी अमल नहीं
करना चाहती है,” सृजिता मजूमदर ने आगे कहा।
सृजिता उन लोगों में से हैं, जो हर बजट से पहले एक ऑनलाइन अभियान चलाकर उसे शिक्षा मंत्री और वित्त मंत्री को भेजती हैं, जिसमें शिक्षा के मद में बजट बढ़ाने और उसे कोठारी आयोग (1966) के सुझावों के अनुसार जीडीपी के 6% तक करने व आरटीई (शिक्षा के अधिकार कानून) का विस्तार करने की अपील की जाती है। इस ऑनलाइन पीटिशन पर अब तक लगभग 80 हजार लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसमें कुछ सांसद, पुराने अधिकारी और सिविल सोसायटी के लोगों के साथ-साथ आम लोग भी शामिल हैं।
ये भी पढ़ें- शिक्षा बजट 2021-22: उम्मीदों पर कितना खरा उतरा स्कूली शिक्षा का बजट?
कोरोना लॉकडाउन के कारण प्रभावित हो रही ग्रामीण छात्रों की पढ़ाई, नहीं ले पा रहे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ