आगरा, उत्तर प्रदेश। एक कमरे वाले घर की जर्जर दीवार, जिस पर पुता नीला रंग सीमेंट के साथ पपड़ी बनकर उतर गया है। दीवारों से बाहर झांकती ईंटें घर की आर्थिक स्थिति को बयां करने के लिए काफी है। इसी दीवार के सामने 25 वर्षीय रिंकी बघेल सीमेंट के फर्श पर सिर झुकाए बेसुध बैठी है। उसके दो छोटे बच्चों – तीन साल की परी और दो साल के अंशु की मौत हो गई है। शोक मनाने आए कुछ रिश्तेदार से घिरी रिंकी के भावहीन चेहरे पर दुख की लकीरें साफ नजर आ रही हैं।
रिंकी पूरी तरह निराशा और एक धुंधली-सी आशा के भंवर में फंसी हुई हैं। दरअसल पिछले 48 घंटों में, उसने अपने दो बच्चों को तो खो ही दिया है। लेकिन उसके तीन अन्य बच्चे, आगरा के दो निजी अस्पतालों में भर्ती हैं। उनका इलाज चल रहा है। इन तीनों को भी बुखार है। वही बुखार जिसने पिछले दो दिनों में बघेल परिवार के इन दो बच्चों की जान ले ली थी।
पिछले 48 घंटों में, उत्तर प्रदेश के आगरा में महादेवी नगर के विपिन कुमार ने अपने दो छोटे बच्चों को ‘बुखार’ से खो दिया। अभी भी उनके तीन बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं।
जल्द ही @GaonConnection पर आगरा में बुखार से हो रही मौतों पर @Mirzapuriy की ग्राउन्ड रिपोर्ट pic.twitter.com/CUbaO5BaR1
— GaonConnection (@GaonConnection) September 17, 2021
आगरा के महादेवी नगर की रहने वाली रिंकी की आंखें अंदर की तरफ धंस गई हैं। वह पिछले कुछ दिनों से एक पलक भी नहीं सोई । उन्होंने दुखी मन से गांव कनेक्शन को बताया कि उसके तीन बच्चे दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं और अपने जीवन के लिए लड़ रहे हैं।
उनके पति 31 वर्षीय विपिन बघेल अपने दो साल के बेटे को दफनाकर अभी-अभी घर लौटे थे। बदकिस्मत पिता ने गांव कनेक्शन को बताया, “मैंने लगातार दो दिनों में अपने दो बच्चों का अंतिम संस्कार किया है।”
एक लाचार पिता, रोते हुए अपनी बात कहता है, “मैं अपनी बेटी (तीन साल की परी) को इलाज के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लेकर भाग रहा था। उसने 15 सितंबर को मेरे हाथों में दम तोड़ दिया था। जबकि मेरे बेटे (दो वर्षीय अंशु) की 16 सितंबर को एक निजी अस्पताल में मौत हो गई। बहुत बुरी हालत है, भइया।”
बुखार की चपेट में
उत्तर प्रदेश राज्य में रिंकी और विपिन अकेले ऐसे माता-पिता नहीं हैं, जिन्होंने अपने छोटे बच्चों को बुखार के कारण खो दिया है। राज्य के विभिन्न जिलों में हजारों हताश माता-पिता अपने बच्चों को यहां से वहां लेकर दौड़ रहे हैं। स्वास्थ्य केंद्रों, सरकारी, निजी या झोलाछाप, जो भी डॉक्टर, जहां भी मिल रहा है उससे अपने बच्चों का इलाज करा रहे हैं। इन सभी बच्चे को ‘बुखार’ है। यह डेंगू है जिसने राज्य को अपनी चपेट में ले लिया है।
आगरा से करीब 47 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद में इस ‘बुखार’ से कम से कम 62 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर बच्चे हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि मरने वालों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है। गांव कनेक्शन फिरोजाबाद और उसके आसपास के जिलों में इस बुखार के फैलने की खबर लगातार दे रहा है।
बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों से भी बच्चों के बुखार की चपेट में आने की खबरें आ रही हैं। बीमारी के लक्षण बुखार से लेकर, पेट दर्द, दस्त, शरीर में दर्द और कमजोरी हैं। कई मरीज़ ब्लड प्लेटलेट्स काउंट में गिरावट की शिकायत भी कर रहे हैं। ऐसा आमतौर पर डेंगू के बुखार में होता है।
रोजी-रोटी के लिए सड़क किनारे ठेले पर मोमोज़ बेचने वाले विपिन ने गांव कनेक्शन से कहा कि डॉक्टरों ने बताया था कि उनके बच्चों की मौत डेंगू से हुई है। लेकिन उन्हें अभी तक मौत का कारण बताने वाली रिपोर्ट नहीं मिली है।
गांव कनेक्शन ने आगरा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) अरुण श्रीवास्तव से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई। गांव कनेक्शन को मिले दस्तावेजों के मुताबिक आगरा में डेंगू के 52 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 20 मामले 15 साल से कम उम्र के बच्चों के हैं।
समय पर इलाज का अभाव
विपिन ने कहा कि अपने बच्चों के जीवन को बचाने के लिए संघर्ष करते समय उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इलाज की थी। स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी थी और पहुंच से भी काफी दूर। मरने वाले दो बच्चों के अलावा, उनके तीन भाई-बहन – शालू (8), राशि (6), और चिराग (7)- फिलहाल आगरा के दो अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। इन सभी को बुखार है। इनमें डेंगू के लक्षण नजर आ रहे हैं। लेकिन अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
विपिन की 22 वर्षीय बहन सोमवती भी डेंगू जैसे लक्षणों के साथ एक अन्य सरकारी अस्पताल में भर्ती है।
फिरोजाबाद में कई ‘बुखार’ के मरीजों को इलाज के लिए आगरा रेफर किया जा रहा है। 6 सितंबर को राजकुमारी अपनी पांच साल की बेटी के मृत्यु प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए फिरोजाबाद के जिला अस्पताल के बाहर इंतजार कर रही थी। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरी बेटी की 28 अगस्त को रात नौ बजे डेंगू से मौत हो गई… डॉक्टरों ने कहा कि मेरी बेटी की हालत गंभीर है और मुझे उसे आगरा ले जाना चाहिए। लेकिन मेरी बेटी मर गई,”
उनकी तरह कई माता-पिता, अपने गंभीर रूप से बीमार बच्चों का समय पर इलाज नहीं होने की शिकायत कर रहे थे।
सफाई की घटिया व्यवस्था
आगरा के महादेवी नगर में बच्चों की मौत ने जिला प्रशासन को कार्रवाई के लिए मजबूर कर दिया है। 17 सितंबर को जब गांव कनेक्शन शोक में डूबे बघेल परिवार के पास गया था। तब एक बुलडोजर सड़े हुए कचरे को साफ करने में व्यस्त था, जबकि आस-पास के इलाकों में रुका हुआ पानी भरा पड़ा था और नालियों खुली थीं।
क्षेत्र में स्वच्छता अभियान की देखरेख कर रहे, आगरा नगर निगम के स्वच्छता और खाद्य निरीक्षक नीरज सिंह, ने गांव कनेक्शन को बताया, “यह वार्ड नंबर 28 और इलाका महादेवी नगर है। रहस्यमयी मौत से दो बच्चों की मौत के बाद हमने इलाके में एक स्वच्छता अभियान शुरू किया है। नालों की सफाई की जा रही है, ठहरे हुए पानी पर एंटी लार्वा केमिकल का छिड़काव किया जा रहा है। फॉगिंग भी की जा रही है।”
स्वच्छता निरीक्षक ने बताया कि इलाके में एक विशेष सफाई अभियान (विशेष स्वच्छता मिशन) शुरू किया जा रहा है। हालांकि विपिन ने शिकायत की कि उनके घर के आसपास हर जगह मच्छर हैं।
महादेवी नगर में पड़ोस के घरों से भी ऐसी ही शिकायतें आ रहीं थीं। विपिन के पड़ोसी 25 वर्षीय पुष्पेंद्र तोमर ने गांव कनेक्शन को बताया, “यह पहली बार है कि अधिकारियों ने इलाके में फैली गंदगी पर ध्यान दिया है। इससे पहले कभी भी इस तरह का स्वच्छता अभियान नहीं चलाया गया था।”
तोमर शिकायत करते हुए कहते हैं “गरीब परिवारों के बच्चे रोजाना इन्हीं इलाकों में खेलते हैं। यहां बहुत से खाली प्लॉट हैं, जहां बारिश का पानी जमा हो गया है। कचरे के निपटान की कोई व्यवस्था नहीं है। घरों का कचरा यूं ही खुले में फेंक दिया जाता है। अधिकारियों को यहां नियमित तौर पर साफ-सफाई करनी चाहिए।”
फिरोजाबाद में जांच जारी
उत्तर प्रदेश में फैले ‘बुखार’ से बच्चों की लगातार मौत हो रही है। राज्य सरकार ने डेंगू के बढ़ते मामलों की जांच के लिए 15 चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम फिरोजाबाद जिले में भेजी है।
फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग के निदेशक और संचारी रोगों के विशेषज्ञ जी एस वाजपेयी के नेतृत्व में, टीम को समय पर चिकित्सा उपचार न मिलने के कारणों की जांच करने का काम सौंपा गया है।
वाजपेयी ने स्वीकार किया कि इस इलाके में वास्तव में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है। उन्होंने प्रेस को आश्वासन दिया कि फिरोजाबाद में डेंगू की रोकथाम में, मदद के लिए और डॉक्टरों को भेजा जा रहा है।
वाजपेयी ने 17 सितंबर को प्रेस को बताया, “हम आसपास के प्रभावित घरों का भी दौरा कर रहे हैं और मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए उपाय कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में रसायनों का छिड़काव किया जा रहा है।”
इस बीच, फिरोजाबाद में मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल संगीता अनेजा के हवाले से कहा गया कि टीम मरीजों के बेहतर इलाज के तरीके तलाश रही है और जिले में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को सुव्यवस्थित करने के प्रयास कर रही है।
डेंगू का D2 वेरिएंट
अगस्त में जब फिरोजाबाद में बुखार से बच्चों की मौत होने लगी, तो मौतों के लिए ‘रहस्यमयी बुखार को जिम्मेदार ठहराया गया। हालांकि, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), जिसे बुखार की जांच करने का काम सौंपा गया था, ने नौ सितंबर को खुलासा किया कि अधिकांश मौतें डेंगू के ‘D2’ वेरिएंट के कारण हुई थीं।
ICMR के महानिदेशक प्रो. बलराम भार्गव ने 9 सितंबर को एक मीडिया ब्रीफिंग में प्रेस को बताया कि फिरोजाबाद, आगरा और मथुरा में ज्यादातर मौतें डेंगू वायरस के टाइप-2 स्ट्रेन के कारण हुईं।
भार्गव ने एक प्रेस वार्ता में कहा था, “मथुरा, आगरा और फिरोजाबाद में मौतें डेंगू के ‘D2’ वेरिएंट के कारण हुई हैं। इसमें रक्तस्राव (आंतरिक रक्तस्राव) हो सकता है जो काफी घातक है। प्रभावित क्षेत्रों में मच्छरों के प्रजनन की तत्काल जांच की जानी चाहिए। “
डेंगू पैदा करने के लिए जिम्मेदार वायरस को डेंगू वायरस कहा जाता है और इसे DENV के रूप में दर्शाया जाता है। चार तरह के DENV सीरोटाइप्स हैं और इनमें से जो एक बार संक्रमण हो जाता है वह दुबारा नहीं होता है। एक संक्रमण उस विशेष सीरोटाइप के खिलाफ जीवन भर प्रतिरक्षा सुनिश्चित करता है। इसका मतलब यह भी है कि वायरस से चार बार संक्रमित होना संभव है। ये चार सीरोटाइप्स (जिसे वेरिएंट या स्ट्रेन के रूप में भी जाना जाता है) हैं:- DENV 1, DENV 2, DENV 3 और DENV 4। इनमें से DENV 2 को सबसे घातक माना जाता है।
जहां एक और जांच चल रही है और एक के बाद एक कमेटी उत्तर प्रदेश में छोटे बच्चों की हो रही मौत के कारणों के अध्ययन करने में लगी हैं, रिंकी और विपिन जो पहले ही अपने दो बच्चों को खो चुके हैं, उम्मीद कर रहे हैं कि उनके तीन अन्य बच्चे जीवित घर लौट आएं।
अनुवाद- संघप्रिया मौर्या