शुक्रवार यानी 24 जुलाई की सुबह बिहार के गोपालगंज जिले के दसियों हजार ग्रामीण जब सोकर उठे तो उन्हें गहरा सदमा लगा। बाढ़ का पानी उनके गांवों और घरों में घुस चुका था। ग्रामीणों को पता चला कि गंडक नदी का तटबंध जिसे सारण तटबंध भी कहा जाता है दो स्थानों (देवपुर और पुरैना गांवों के पास) से टूट गया है। इस वजह से पानी पूरी ताकत के साथ गांवों में घुसा चला आ रहा है।
सिर्फ इतना ही काफी नहीं था। जल्द ही खबर आई कि गंडक का पूर्वी तटबंध, जो भवानीपुर गांव के पास है, टूट गया है। इस वजह से पूर्वी चंपारण जिले में भारी बाढ़ आ गई।
राज्य के जल संसाधन विभाग के अनुसार गोपालगंज का कम से कम 1,700 हेक्टेयर और पूर्वी चंपारण का 3,550 हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के कारण जलमग्न हो चुका था। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल( एनडीआरएफ) बाढ़ प्रभावित लोगों के बचाव के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहा है।
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These are inundation maps of 24 July. Hope you will find it helpful. pic.twitter.com/rmPRvXRrZ7
— Water Resources Department, Government of Bihar (@WRD_Bihar) July 24, 2020
इस बीच राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग ने बताया कि 10 जिलों के 74 ब्लॉकों की 529 पंचायतों में कुल 9.60 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। यह बाढ़ राज्य और नेपाल में हो रही भारी वर्षा का परिणाम हैं। नेपाल से हिमालय की नदियां उत्तर बिहार में बहती हैं जिस कारण बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ वाला राज्य बन जाता है। नेपाल भी बड़े पैमाने पर बाढ़ का सामना कर रहा है। वहां पर 132 लोगों की मौत हो चुकी है।
उफान पर बह रही नदी ने मुख्य रूप से नीचे की ओर बसे गांवों को ढहा दिया और तटबंधों को तोड़ दिया है। तटबंधो से बाढ़ में लोगों की रक्षा की उम्मीद की जाती है लेकिन अक्सर वही भयावह बाढ़ का कारण बनते हैं।
पश्चिम चंपारण के जगदीशपुर निवासी विनय कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “हाल ही में वाल्मीकि बैराज से चार लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया था और लगभग हर दिन एक से दो लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। बैराज इतना पानी का दबाव कैसे सह सकता है? इसलिए पानी नीचे बहता है और हमें प्रभावित करता है। ” वह एक स्थानीय नॉन प्राफिट वाटर एक्शन के सचिव भी हैं जो पानी और स्वच्छता के मुद्दों पर काम करता है।
विनय के अनुसार पश्चिम चंपारण जिले के भी कई गांव पानी से लबालब हैं और भारत-नेपाल सीमा पर बसे गांवों को नियमित रूप से बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है।
विनय ने डर व्यक्त करते हुए कहा, “अभी तक तो गोपालगंज में गंडक का पूर्वी तटबंध टूटा है लेकिन इस बात की काफी संभावना है कि पश्चिमी तटबंध भी टूट जाए और इससे पश्चिमी चंपारण में भी बाढ़ आ सकती है।” उन्होंने आगे कहा,”पिछले 15 दिनों से यहां बारिश हो रही है। गांवों में बाढ़ आ गई है और लोग अपना जीवन बचाने के लिए इधर- उधर भाग रहे हैं।”
मौसम पूर्वानुमान के अनुसार अगले सप्ताह राज्य में और अधिक बारिश होने की संभावना है। यह बाढ़ के परिदृश्य को और खराब कर सकती है।
मानसून के मौसम के दौरान तटबंधों के टूटने की सूचना बिहार से नियमित रूप से आती रहती है। उत्तर बिहार में पानी और बाढ़ पर काम करने वाले मेघ पाइन अभियान के साथ कार्यक्रम अधिकारी रहे सहरसा के रहने वाले प्रदीप पोद्दार ने गांव कनेक्शन को बताया, “इस बार गोपालगंज में दो स्थानों पर सारण तटबंध टूट गया है। लेकिन यह पहली बार नहीं है कि तटबंध उस स्थान पर टूटा है। इससे पहले 2001 में भी यह उसी स्थान पर टूट गया था। ”
उन्होंने आगे कहा, “वर्तमान में सारण तटबंध टूटने के कारण कम से कम 500 गांव प्रभावित हैं।”
पिछले साल जुलाई के ही महीने में कमला बलान नदी का पश्चिमी तटबंध बढ़ते बाढ़ के दबाव से टूट गया था और इसने मधुबनी जिले के नरुआर गांव सहित कई गांवों को बहा दिया था। बाढ़ प्रभावित लोग अभी भी तटबंध के पास तिरपाल के नीचे रह रहे हैं।
हर साल राज्य सरकार मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करती है जिसमें बाढ़ आने से पहले और बाद की तैयारी शामिल होती है। यह दिशानिर्देशों का एक सेट होता है जिसमें बाढ़ से लड़ने के के विभिन्न उपाय, तटबंधों / बैराज का रखरखाव, राहत शिविर और अन्य चीजों की जानकारी शामिल होती है। इसके बावजूद तटबंध टूटने की कई रिपोर्ट अक्सर आती रहती हैं।
मेघ पाइन अभियान के मेनेजिंग ट्रस्टी एकलव्य प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, “साल 2000 और 2018 के बीच बिहार में कई नदियों के तटबंध असंख्य मौकों पर टूटे। इनमें से साल 2004, 2007, 2008, 2010, 2013 और 2017 प्रमुख हैं। राज्य सरकार के प्रयासों को पिछले पांच दशकों से तटबंधों में उल्लंघनों के द्वारा नियमित रूप से नष्ट कर दिया गया है।”
बाढ़ बिहार के लिए कोई अजनबी बात नहीं है। यह भारत का सबसे अधिक बाढ़-ग्रस्त राज्य है। देश के कुल बाढ़-ग्रस्त क्षेत्र का 17 प्रतिशत से अधिक बिहार में है। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा बिहार के कुल 38 जिलों में से 28 को बाढ़-ग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सीधे शब्दों में कहें तो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73 फीसदी हिस्सा बाढ़ की चपेट में है।
बिहार के भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से बाढ़ की चपेट में होने के बावजूद राज्य सरकार आपदा से निपटने के लिए हमेशा अनजान नजर आती है।
बाढ़ नियंत्रण के नाम पर राज्य सरकार ने राज्य की सभी प्रमुख नदियों की प्रवाह को काबू करने के लिए उन पर लंबे मिट्टी के बांधों का निर्माण कर दिया है। हालांकि ऐसा करने से बाढ़ को नियंत्रित करने के बजाय इन तटबंधों से बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
उदाहरण के लिए 1954 में बिहार का बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र 2.5 मिलियन हेक्टेयर (mha) था और राज्य में केवल 160 किलोमीटर तटबंध थे। वहीं साल 1974 की बाढ़ के दौरान बिहार में 2,192 किलोमीटर तटबंध थे जबकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 4.26 एमएचए (mha) हो गया था।
तेरह साल बाद 1987 की बाढ़ में राज्य ने खुद को 3,321 किलोमीटर के तटबंधों में विभाजित किया लेकिन बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6.461 एमएचए हो गया। वर्ष 2004 में सबसे खराब बाढ़ दर्ज की गई जिसमें 885 लोग मारे गए। तब तक बिहार में 3,465 किलोमीटर लंबे तटबंध और 6.88 एमएचए (mha) का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था।
जैसे-जैसे बिहार में तटबंधों की लंबाई बढ़ी है वैसे-वैसे बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र भी बढ़ गए हैं।
प्रसाद कहते हैं “राज्य की बाढ़ नियंत्रण रणनीति मुख्य रूप से चरित्र में संरचनात्मक है या दूसरे शब्दों में कहें तो तटबंध आधारित है। इसने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को नष्ट कर दिया और बाढ़ की तीव्रता, आवृत्ति और पैटर्न को बदल दिया है।” उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा इसने बाढ़ मुक्त क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच सुरक्षा की गलत भावना पैदा कर दी है।”
प्रसाद के अनुसार पानी की बड़ी मात्रा को रोकने के लिए नदियों के किनारे तटबंधों का निर्माण और हिमालयी कैचमेंट से तलछट के प्रवाह ने उत्तर बिहार में बाढ़ की समस्या को और जटिल कर दिया है। उत्तर बिहार के लोगों के लिए संरचनात्मक, तकनीकी, ढांचागत, पूंजीगत और संविदा संबंधी संचालन रणनीति की सनक सबसे अधिक हानिकारक रहा है।
प्रसाद ने सुझाव दिया कि यह राज्य में सभी तटबंधों की व्यापक समीक्षा का प्रस्ताव करने का समय है। इसके बाद संरचनात्मक बाढ़ नियंत्रण और गैर-संरचनात्मक बाढ़ प्रबंधन उपायों के बीच प्राथमिकताओं को फिर से संगठित करना चाहिए।
अनुवाद- सुरभि शुक्ला
यह खबर मूल रूप से अंग्रेजी में पढ़ें।
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