असम में पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदे (EIA 2020) का विरोध, बाघजान और डेहिंग पटकई से सीख लेने की अपील

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) और सिटिजनशिप एमेंडमेंट एक्ट (सीएए), 2019 के बाद अब विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (ईआईए), 2020 के खिलाफ़ पूर्वोत्तर राज्यों खासकर असम में आंदोलन आकार लेता दिख रहा है।
#Eia 2020

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी ड्राफ्टविवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (ईआईए,2020) को एंटी-नॉर्थइस्ट (पूर्वोत्तर विरोधी) कहा जा रहा है। वैसे तो ईआईए में संशोधित प्रस्तावाओं का देशभर में विरोध हो रहा है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ईआईए के अपने निहितार्थ है।

असम और ड्राफ्ट ईआईए 2020

1984 भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1986 में पहली बार भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून बनाया गया था। इसी कानून के तहत साल 1994 में पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) नियमों का जन्म हुआ। इसके पहले तक भारत ने पर्यावरण पर स्टॉकहोम डेक्लरेशन 1972, जल नियंत्रण 1974 और वायु प्रदूषण 1981 के संबंध में कानून बनाया था। ईआईए के तहत विभिन्न परियोजनाओं का पर्यावरणीय आकलन होता था। ईआईए की शर्तों का अनुपालन किए जाने की स्थिति में ही परियोजनाओं को शुरू करने की मंजूरी मिल पाती थी। वर्ष 2006 में 1994 की ईआईए अधिसूचना में बदलाव किए गए। अब केंद्र सरकार इसी 2006 की अधिसूचना में बदलाव करने का मसौदा लेकर आई है।

हालांकि यह भी सत्य है कि पूर्ववर्ती सभी सरकारों ने ईआईए को कमजोर ही किया है। जिस ईआईए अधिसूचना की परिकल्पना पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए की गई थी, उसका पर्यावरण विरोधी गतिविधियों को मंजूरी देने के लिए धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल किया गया।

ईआईए अधिसूचना का एक सबसे जरूरी भाग ये है कि पर्यावरण संबंधी परियोजनाओं को मंजूरी के पहले परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन रिपोर्ट पेश करना होता है। लेकिन बीते वर्षों में तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कंपनियों को न सिर्फ मंजूरी मिलती है बल्कि उन्हें जवाबदेहियों से भी जैसे मुक्त कर दिया जाता है।

साल दर साल ईआईए अधिसूचना में संशोधन करके विभिन्न परियोजनाओं अथवा उद्योगों को इसके दायरे से बाहर करने के प्रयास किए जाते हैं। सरकारें इसे “इज़ ऑफ डूइंग बिजनेस” कहती रही हैं। कंपनियों के साथ-साथ सरकार का भी तर्क होता है कि पर्यावरण प्रभाव आकलन जैसे नियमों की वजह से उद्योग लगाने में देरी होती है, लालफीताशाही बढ़ जाती है।

असम के संदर्भ में ईआईए ड्राफ्ट और भी बारीक अध्ययन की मांग करता है। ईआईए 2020 में ऑनशोर (तटवर्ती) और ऑफशोर (अपतटीय) तेल व गैस ड्रिलिंग से जुड़ी सभी गतिविधियों को बी2 कैटेगरी में चिन्हित किया गया है। इस कैटेगरी में शामिल परियोजनाओं को किसी भी तरह की इंवॉयरमेंट क्लियरेंस रिपोर्ट की जरूरत नहीं होगी।

इसका मतलब यह भी हुआ कि भविष्य में होने वाले तेल व गैस संबंधी ऑपरेशन्स के लिए किसी तरह का इंवॉयरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट लेने की जरूरत नहीं होगी। नये ड्राफ्ट के अनुसार कंपनियों को प्रत्येक वर्ष खुद ही इंवॉयरमेंट मैनेजमेंट रिपोर्ट देना होगा। पहले यह प्रक्रिया हर छह महीने में करना अनिवार्य था। इससे होगा कि प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना मुश्किल होगा। पर्यावरण संरक्षण के नियमों की अनदेखी करने पर कंपनियों की कोई जवाबदेही तय नहीं की जा सकेगी।

नये ड्राफ्ट के मुताबिक ऐसे कई प्रोजेक्ट बिना मंजूरी यानि ईआईए के भी शुरू किया जा सकता है। जबकि यह खुद ही एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। वहीं कई प्रोजेक्ट के लिये जन सुनवाई की जरुरत को ही खत्म करने का प्रस्ताव है। बी2 कैटेगरी के प्रोजेक्ट्स को जन सुनवाईयों की जरूरत से मुक्त कर दिया गया है।

इसका मतलब हुआ कि प्रभावित क्षेत्रों के लोग कंपनियों की जवाबदेही तय नहीं कर सकेंगे। विशेषज्ञ इसे एक बेहद खतरनाक कदम बताते हैं। सुंदरवन में पिछले एक दशक से काम करने वाले सुदीप भट्टाचार्यजी कहते हैं, “हमें एक मजबूत ईआईए नोटिफिकेशन की जरूरत है। बीते कुछ महीनों में ही हमें ऐसी घटनाएं देखने को मिली हैं जिससे मजबूत पर्यावरण आकलन नियमों के न होने का एहसास होता है। हमें ऐसे कानून बनाने हैं जिससे कंपनियों की जवाबदेही तय की जा सके. हमें कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां नहीं बनानी है जिससे पर्यावरण और लोगों को खतरे में डाल दिया जाए।”

ईआईए ड्राफ्ट 2020 में परियोजनाओं के लिए पूर्व निर्धारित ए, बी1 और बी2 कैटेगरी हैं। इसमें कौन सी परियोजना केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आएंगीं इसका स्पष्ट विभाजन कर दिया गया है। दरअसल, इंवॉयरमेंट एसेसमेंट के चार चरण होते हैं- स्क्रिनिंग, स्कोपिंग, पब्लिक हियरिंग और एप्रेजल। बी कैटेगरी के प्रोजेक्ट्स के लिए स्टेट लेवल इंवॉयरमेंट एसेसमेंट ऑथोरिटी तय करेगी कि किस प्रोजेक्ट को बी1 या बी2 कैटेगरी में रखा जाएगा। बी1 कैटगरी के प्रोजेक्ट्स को स्टेट लेवल इंवॉयरमेंट एसेसमेंट ऑथोरिटी से से इंवॉयरमेंट क्लियरेंस लेने की जरूरत होगी। बी2 में किसी तरह के इंवॉयरमेंट क्लियरेंस की जरूरत नहीं होगी।

तकरीबन 40 प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं जिसमें इंवॉयरमेंट क्लियरेंस या परमिशन की जरूरत ही नहीं होगी। मसलन, सोलर पार्क, सोलर थर्मल प्लांट, बारूद और ज्वलनशील पदार्थों के निर्माण के लिए भी इंवॉयरमेंट क्लियरेंस की जरूरत नहीं होगी। इन्हें नॉन-माइनिंग प्रोजेक्ट्स बताकर ड्राफ्ट ईआईए में छूट प्रदान की गई है। कई प्रोजक्ट्स के जन सुनवाई के लिए सिर्फ 20 दिन की समय सीमा का निर्धारण किया गया है। कई ज्वलनशील व विषैले उद्योगों को सुरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय उद्यान/अभ्यारणय) से 0-5 किलोमीटर की दूरी में भी कार्य करने की अनुमति मिल सकेगी।

असम के लोगों का ईआईए के इन्हीं सारे नये नियमों पर भारी विरोध है। असम के संदर्भ में ही देखें तो बीते कुछ महीनों दो बड़ी और भयावह घटनाएं सामने आईँ हैं। दोनों ही घटनाओं में पर्यावरण को भारी नुकसान झेलना पड़ा। विस्थापन हुआ और दोनों ही घटनाओं में इंवॉयरमेंट क्लियरेंस में घालमेल की बात सामने आई। सरकारों और कंपनियों के गठजोड़ पर गंभीर सवाल उठे।

बाघजान

9 जून 2020 को असम के तिनसुकिया के बाघजान तेल कुएं में भयानक आग लगी थी। इस घटना में दो लोगों की जान गई और करीब 7000 लोगों को विस्थापित होना पड़ा। डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को भारी नुकसान हुआ।

650 वर्ग किलोमीटर में फैले डिब्रू सैखोवा और उसके साथ लगे मागुरी मोटापुंग बील क्षेत्र को पर्यावरण के लिहाज से अति-संवेदनशील इलाकों में शामिल किया जाता है। डिब्रू-सैखोवा में पक्षियों की 483 प्रजातियां और मागुरी मोटापुंग में 293 प्रजातियां पाई जाती हैं। डिब्रू-सैखोवा बायोस्पेयर रिसर्व को दुनिया के 35 सबसे संवेदशनशील बायोस्फेयर रिजर्व में शामिल किया गया है।

पर्यावरणविदों के अनुसार, बाघजान की घटना पर्यावरण को तीन चरणों में प्रभावित कर सकती है। पहले चरण में हवा, पानी और मिट्टी को नुकसान पहुंचता है। मसलन आग से निकलने वाले धुएं, जहरीले हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोऑक्साइड से पक्षियों को सांस संबंधी परेशानियां होती हैं। पानी में तेल के रिसाव से ऑक्सिजन की कमी होती है और वह जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा करता है। दूसरे चरण में जहरीले रिसाव जो जीवों के शरीर में प्रवेश करता है, उससे होता है। हाइड्रोकार्बन पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन बनाते हैं और ये पूरे फूड चेन को प्रभावित करता है। तीसरे चरण का नुकसान लंबे वक्त में दिखता है। जैसे खास किस्म के पेड़-पौधों या जीवों के प्रजनन पर असर पड़ना।

बावजूद इसके की ईआईए को ठोस किया जाता, लॉकडाउन के दौरान ही 11 मई, 2020 को पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ऑयल इंडिया को डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में सात नए जगहों पर ड्रिलिंग की मंजूरी दे दी। प्रबजन विरोधी मंच के कवेंनर उपमन्यु हज़ारिका बाघजान और डेहिंग पटकई की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहते हैं, “हमें बार-बार याद दिलाने की है कि डेहिंग पटकई या डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क का क्षेत्र असम का एकमात्र ट्रॉपिकल रेन फॉरेस्ट रिजन है। यह एक अति संवेदनशील क्षेत्र है। ऐसे में बिना इंवॉरमेंट क्लियरेंस के डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में ड्रिलिंग के विस्तार देना चिंतनीय है।” असम में लोगों का विरोध सरकार की इन्हीं नाफरमानियों को लेकर है।

डेहिंग पटकई

अप्रैल 2020 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत काम करने वाले नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने डेहिंग पटकई में कोल इंडिया को 41.39 हेक्टेयर ज़मीन पर कोयला खनन की मंजूरी दे दी। जबकि डेहिंग पटकई में पहले से ही 57.20 हेक्टेयर ज़मीन पर खनन का काम हो रहा था।

करीब 575 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ देहिंग पटकई एक एलिफेंट रिज़र्व है। इसे रिज़र्व रेनफॉरेस्ट भी कहते है. सालाना औसतन 250 सेंटीमीटर से 450 सेंटीमीटर तक बारिश होती है। विभिन्न जानवारों व पेड़-पौधों की भी कई सारी प्रजातियां डेहिंग पटकई में पाए जाते हैं।

डेहिंग पटकई में कोयला खनन के विस्तार को मंजूरी मिलने पर भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। छात्रों और पर्यावरणविदों को सिंगर और एक्टरों का भी साथ मिला। सबने एक सुर में डेहिंग पटकई को बचाने की मुहिम चलाई। नतीज़ा यह हुआ कि असम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट लगभग 16 वर्षों बाद एक्टिव हुआ। उसने कोल इंडिया पर 16 साल तक गैरकानूनी तरीके से कोयला खनन करने का आरोप लगाते हुए 43.25 करोड़ का फाइन लगा दिया। सवाल ये है कि जब सरकारी संस्थाओं के बीच ईआईए रहते हुए इस तरह की घोर अनियमितताएं होती रही हैं फिर सरकार को यह भरोसा कैसे है कि ड्राफ्ट ईआईए 2020 से पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा?

विशेषज्ञ बताते हैं कि नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स को 1973 से 2003 तक 30 साल के लिए लीज पर डेहिंग पटकई क्षेत्र में खनन के लिए मंजूरी मिली थी। लेकिन 2003 में जब ये लीज खत्म हो गई तब भी नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स गैर-कानूनी तरीके से कोयले का खनन करती रही और इसने अपने खनन का दायरा 13 हेक्टेयर से 57.20 हेक्टेयर तक बढ़ा लिया।

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, “शिलांग में मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा नवंबर 2019 में दायर एक साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स ने 2013 के बाद से अतिरिक्ट 16 हेक्टेयर वन को नष्ट कर दिया। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की टीम डेहिंग पटकई का दौरा करने गई थी तो कंपनी ने अपने प्रजेंटेशन में ये नहीं बताया कि उन्होंने 16 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में खनन चालू कर दिया है।”

हो रहा है जबरदस्त विरोध

असम की कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने मंगलवार को केंद्र से अनुरोध किया कि वह पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) 2020 का मसौदा वापस ले क्योंकि यह परियोजनाओं की एक लंबी सूची को सार्वजनिक परामर्श के दायरे से बाहर करता है। बोरा ने कहा कि सीमाई इलाकों में सड़क और पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं को किसी भी सार्वजनिक सुनवाई की आवश्यकता नहीं होगी और यह पूर्वोत्तर के अधिकांश हिस्से को प्रभावित करेगा जोकि देश की सबसे समृद्ध जैव विविधता में से एक का भंडार है।

असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने पर्यावरण मंत्रालय को अपने चिट्ठी में लिखा, “यह आदिवासी समुदायों पर पर्यावरण दोहन से होने वाले नुकसानों को दरकिनार करता है। ड्राफ्ट ईआईए आदिवासी समुदायों को उनके ही जमीन से उनके अधिकार को छिनता है। असम जैसे पर्यावरण के लिहाज से अति-संवेदनशील इलाके में पोस्ट-फैक्टो क्लियरेंस देना एक वाहियात कदम है। प्राइवेट कंपनियां निजी सलाहकारों से इंवॉयरमेंट क्लियरेंस रिपोर्ट तैयार कर लेंगी। यह नैचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने भी ड्राफ्ट ईआईए का विरोध किया है। उन्होंने कहा, ईआईए का नया ड्राफ्ट न सिर्फ़ अन्यायपूर्ण है बल्कि लोकतंत्र विरोधी, पर्यावरण विरोधी और यहां तक की पूर्वोत्तर के विरोध में भी है। यह आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित करने वाला ड्राफ्ट है।”

स्थानीय प्रेस को संबोधित करते हुए कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता मानस कुंवर ने कहा कि केंद्र सरकार असम और बाकी पूर्वोत्तर राज्यों के जमीन को लूटना चाहती है। ड्राफ्ट ईआईए 2020 पूर्वोत्तर के हितों के खिलाफ है।

असम के कई नागरिक संगठन और छात्रों की ओर से सोशल मीडिया पर ईआईए का विरोध जताया जा रहा है। गुवाहाटी यूनिवर्सिटी की सागारिका कालिता कहती हैं, असम का आधा से आधा हिस्सा हर साल बाढ़ में डूबता है। असम भारत के उन कुछ राज्यों में है जहां क्लाइमेट चेंज के भयावह बदलाव देखने को मिल रहे हैं। असम की बायो-डायवर्सिटी बहुत ही ज्यादा सेंसिटिव है। ऐसे में ड्राफ्ट ईआईए 2020 के जो प्रावधान हैं, वह असम का भारी नुकसान ही करने वाले हैं।”

इसके पहले 10 जुलाई 2020 को दिल्ली पुलिस के निर्देश पर FridaysforFuture.in की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया था। इस वेबसाइट पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना-2020 के मसौदे के खिलाफ अभियान चला रही थी। वेबसाइट ने लोगों से ईआईए पर राय मांगी थी और इसकी खामियों के बारे में लोगों को अवगत करना शुरू किया था। इस समूह ने अपने वेबसाइट पर पर्यावरण मंत्रालय और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की ई-मेल आईडी डाली थी जो कि पहले से ही सार्वजनिक थी। लोगों से कहा था कि वे अपनी राय इन पर भेजकर अपना विरोध या सुझाव दर्ज कराएं। पुलिस के मुताबिक वेबसाइट की गतिविधियां देश की अखंडता और शांति के लिए ठीक नहीं थी। हालांकि दिल्ली पुलिस ने बाद में इस पर सफाई देते हुए कहा था है कि वेबसाइट पर एंटी-टेरर यूएपीए के आरोप वाला नोटिस ‘गलती’ से चला गया था।

ताज़ा जानकारी के मुताबिक कर्नाटक हाई कोर्ट ने ईआईए 2020 को 22 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करवाने की समय सीमा बढ़ा दी है। इसके पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने ड्राफ्ट ईआईए पर सुझाव देने की आखिरी तारीख को 11 अगस्त तक बढ़ा दिया था। 

ये भी पढ़ें- पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिट्ठी लिखकर की पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदे को वापस लेने की अपील

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