“आप बताइए धरना देने से मामले जल्दी से हल हो जाते हैं न? आप तो पत्रकार हैं, आपको तो इन चीजों का अनुभव होगा। हम बहुत परेशान हैं। हमने इस परीक्षा के लिए प्राइवेट स्कूल में टीचर की अपनी नौकरी छोड़ी थी। लेकिन अब परिणाम के लिए भटक रहे हैं। अधिकारियों से मिल रहे हैं, धरना दे रहे हैं, कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।”
मेरठ की गीता रानी (32 वर्ष) अनिश्चितता से भरे ये सवाल रिपोर्टर से पूछती हैं। उनके सवालों में अनिश्चितता के साथ-साथ गुस्से, द्वंद और अवसाद का पुट भी शामिल है, जो व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते उपजा है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखऩऊ के बेसिक शिक्षा निदेशालय परिसर में गीता सहित प्रदेश के लगभग 5000 युवक-युवतियां 27 अगस्त को धरना देने पहुंचे थे। इन अभ्यर्थियों ने जनवरी, 2019 में आयोजित हुई प्राइमरी स्कूलों के लिए ‘सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा’ दी थी। 69000 सीटों के लिए आयोजित इस परीक्षा में 4 लाख से अधिक अभ्यर्थी बैठे थे, जिसमें शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षामित्र सहित बीएड और बीटीसी पास अभ्यर्थी शामिल थे।
मेरिट अंकों पर विवाद के कारण फिलहाल यह मामला कोर्ट में चला गया है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा कराने के लिए गंभीर नहीं दिख रही है। ऐसा तब है जब प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में एक लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है, जिसकी स्वीकारोक्ति स्वयं सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ कर चुके हैं। अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार की तरफ से कोर्ट में मामले की दमदार पैरवी नहीं हो रही है। राज्य के महाधिवक्ता इस मामले की सुनवाई के लिए सिर्फ एक बार उपस्थित हुए हैं, जबकि पिछली पांच बार की सुनवाई के दौरान कोर्ट में पहुंचे ही नहीं।
इन अभ्यर्थियों की एकमात्र मांग है कि सरकार अपने ही फैसले का बचाव करने के लिए अपने महाधिवक्ता को कोर्ट में भेजे और मुख्यमंत्री अपने वादे को पूरा करें। गौरतलब है कि जनवरी में जारी इस परीक्षा की अधिसूचना के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभ्यर्थियों को आश्वस्त किया था कि फरवरी, 2019 तक भर्ती की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इस धरना प्रदर्शन के बाद भी प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने अभ्यर्थियों को आश्वासन दिया है कि अगली सुनवाई में प्रदेश के महाधिवक्ता जरूर उपस्थित रहेंगे।
प्रदेश में है शिक्षकों की भारी कमी
शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून के अनुसार प्राइमरी स्कूलों में छात्रों और अध्यापकों का अनुपात 30:1 होना चाहिए। सेंटर फॉर बजट एंड गर्वनेंस एकाउंटबिलिटी (सीबीजीए) और चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) के एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यह अनुपात 50:1 है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में मिलाकर 4.2 लाख प्राइमरी शिक्षकों की कमी है। दिसंबर 2016 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया था कि प्राथमिक स्कूलों में 22.99 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली थे।
पिछले साल शिक्षक दिवस के अवसर (5 सितंबर, 2018) पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं माना था कि प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की कमी है। उन्होंने तब प्रदेश में 97000 प्राइमरी शिक्षकों की खाली पड़ी सीटों पर जल्द से जल्द भर्ती को पूरा कराने का आश्वासन दिया था। धरना दे रहे अभ्यर्थियों को भरोसा था कि अगले शिक्षक दिवस तक वे भी शिक्षक बन जाएंगे। लेकिन अब जब शिक्षक दिवस के आने में सिर्फ एक सप्ताह से भी कम का समय बचा है, ये अभ्यर्थी धरने और कोर्ट के चक्कर काटने में दौड़ लगा रहे हैं।
आखिर कहां फंसा है मामला?
एक दिसंबर, 2018 को उत्तर प्रदेश शासन ने 69000 सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा की अधिसूचना जारी की थी। छह जनवरी, 2019 को इसकी परीक्षा हुई। परीक्षा के एक दिन बाद सात जनवरी को शासन ने उत्तीर्ण अंक निर्धारित किया गया, जो कि 60-65 प्रतिशत था। यानी 150 अंकों की परीक्षा में से सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए 97 और अन्य आरक्षित वर्ग के लिए 90 अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया।
शासन द्वारा घोषित इस कट ऑफ के खिलाफ कुछ अभ्यर्थी कोर्ट में चले गए। ये अभ्यर्थी मुख्यतः शिक्षा मित्र थे। शिक्षा मित्रों ने उत्तीर्ण अंक कम करने की गुजारिश हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच से की। 29 मार्च को हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने उत्तीर्ण अंक को कम कर 40-45 प्रतिशत कर दिया।
बीएड और बीटीसी अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के इस फैसले के खिलाफ डबल बेंच में अपील की। तब से यह सुनवाई लगातार डबल बेंच में चल रही है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार इसके सुनवाई के लिए गंभीर नहीं है। इसलिए अभी तक सिर्फ एक बार सुनवाई के लिए राज्य के अटार्नी जनरल उपस्थित हुए हैं।
शिक्षामित्रों का पक्ष है कि पिछली भर्ती 40-45 प्रतिशत पर हुई थी इसलिए इस बार भी भर्ती उसी मेरिट पर होनी चाहिए। वहीं बीएड और बीटीसी अभ्यर्थियों का कहना है कि पिछली भर्ती की परीक्षा बहुवैकल्पिक आधार पर नहीं हुई थी जबकि इस बार परीक्षा में सिर्फ वैकल्पिक प्रश्न ही थे। इसलिए मेरिट ऊंचा होना स्वाभाविक है।
बीएड और बीटीसी अभ्यर्थियों का नेतृत्व कर रहे गाजीपुर के अभ्यर्थी शिवेंद्र सिंह समझाते हुए कहते हैं, “चूंकि इस परीक्षा में शिक्षामित्रों को उनके कार्य के अनुभव के आधार पर भारांक भी मिलेगा इसलिए शिक्षामित्रों को पहले से ही बढ़त प्राप्त है। मेरिट कम करने से बी.एड. और बीटीसी के लाखों अभ्यर्थी इस प्रतियोगी परीक्षा में पीछे छूट जाएंगे। इसलिए हम मांग कर रहे हैं कि शासन द्वारा निर्धारित 60-65 कटऑफ ही बना रहे। इससे योग्यतम अभ्यर्थी शिक्षक बनेंगे और प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरेगी।”
शिक्षा पर काम करने वाली संस्था ‘प्रथम’ अपने रिपोर्ट ‘असर’ (Annual Status of Education Report) में भी लगातार प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाती रही है। मसलन कक्षा पांच में पढ़ने वाले प्रदेश के लगभग आधे से अधिक छात्र कक्षा दो के पाठ को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार गणित के भाग और घटाने जैसे सवाल हल करने में भी प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों के छात्र काफी पिछड़े हैं। असर के साथ सेंटर फॉर बजट एंड गर्वनेंस एकाउंटबिलिटी (सीबीजीए) और चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की भी रिपोर्ट यही कहती है।
‘यह आखिरी मौका’
धरने में श्रावस्ती से आए 38 साल के शैलेंद्र वर्मा के लिए प्राइमरी टीचर बनने का यह संभवतः आखिरी मौका है। हाथ में तख्ती लिए शैलेंद्र कहते हैं, “पिछली बार प्राइमरी की जो भर्तियां आई थीं उसमें बी.एड. वालों को मौका नहीं दिया गया था। इस बार मौका मिला है तो लगातार कई तरह की बांधाएं आ रही हैं। अगर इस बार मौका हाथ से निकला तो फिर सरकारी नौकरी का सपना अधूरा रह जाएगा।”
शैलेंद्र ने बताया कि 2011 के बाद यह पहला मौका है जब प्रदेश में हुई प्राथमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बी.एड. अभ्यर्थी भी भाग ले रहे थे। इसलिए शैलेंद्र सहित धरनास्थल आए ऐसे सैकड़ों अभ्यर्थियों के लिए यह ‘करो या मरो’ जैसी स्थिति बन गई है। शैलेंद्र ने बताया कि यहां पर तो कम लोग आए हैं, लेकिन पूरे प्रदेश भर में ऐसे अभ्यर्थियों की संख्या हजारों में है जो तीस-पैंतीस की उम्र पार कर चुके हैं और जिनके लिए तुरंत रोजगार पाना बहुत बड़ा सामाजिक दबाव है।
तनाव से जूझ रहे कई अभ्यर्थी
शैलेंद्र के साथ ही खड़े बहराइच के विकास शुक्ला (25) ने बताया, “इस परीक्षा के बीच में फंसने से मैं और मेरे साथी तनाव में रहते हैं। धरना, ज्ञापन, कोर्ट के चक्कर में तैयारी प्रभावित हो रही है और कई परीक्षाएं खराब जा चुकी हैं। मैं नहीं चाहता कि विभाग मुझे इस परीक्षा में सफल ही घोषित कर दे। लेकिन कम से कम परीक्षा का परिणाम तो आए जिससे दिमाग से इस परीक्षा का बोझ कम हो और हम आगे की तैयारियां कर सकें।”
लंबी है श्रृंखला
भारत सरकार के कार्मिक विभाग ने 2016 में इस संबंध में एक सर्कुलर जारी किया था, जिसके अनुसार केंद्र सरकार की किसी भी सरकारी नौकरी की भर्ती प्रक्रिया विज्ञप्ति की तारीख से छः महीने के अन्दर पूरी कर देनी चाहिए। केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकारें भी लगातार दावा करती हैं कि वे खाली पदों को निश्चित प्रक्रिया के अनुसार, एक निश्चित समय में पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
लेकिन देश भर में ऐसे लाखों युवा हैं जो सरकारी भर्तियों की परीक्षा देने के बाद महीनों और कई बार वर्षों तक परिणाम का इंतजार करते हैं। बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया कहीं कोर्ट तो कहीं लाल फीताशाही में अटकी पड़ी है। इसी तरह विभिन्न राज्यों की पुलिस भर्ती परीक्षा, रेलवे परीक्षा, बैंक परीक्षा आदि में भी लगातार धांधली की खबर आती रहती हैं।
पहले ऐसा राज्य सरकार की भर्ती प्रक्रियाओं में होता था लेकिन अब यह केंद्र सरकार की प्रतिष्ठित संस्थाओं मसलन एसएससी, यूजीसी और यूपीएससी की प्रतियोगी परीक्षाओं और भर्ती प्रक्रियाओं में भी होने लगा है। एसएससी सीजीएल 2017 के लगभग 30 हजार से अधिक अभ्यर्थी दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी अभी तक अंतिम परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। एसएससी के अभ्यर्थी अंकित श्रीवास्तव कहते हैं, “भारत में सरकारी नौकरी पाने के लिए प्री, मेन्स, फिजिकल, इंटरव्यू के साथ-साथ पेपर लीक, कोर्ट स्टे, कोर्ट सुनवाई जैसी प्रक्रियाओं से भी गुजरना पड़ता है इसके बाद भी परिणाम कब आएगा इसका कुछ पता नहीं!”