23 सूत्रीय मांगों को लेकर एम्स के नर्सिंग स्टाफ से जुड़े लगभग 5000 कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गए हैं। आंदोलन कर रहे कर्मचारियों के संगठन एम्स नर्सेज यूनियन का कहना है कि जहां एक तरफ वे कोरोना काल में पूरे मनोयोग से देश भर से आए मरीजों की सेवा कर रहे हैं, वहीं एम्स प्रशासन और स्वास्थ्य मंत्रालय उन्हें ‘धोखा’ देने पर लगा हुआ है। यही कारण है कि उनके द्वारा दिए गए एक साल पहले के आश्वासन को भी अभी तक पूरा नहीं किया गया है।
क्या है एक साल पहले दिया गया आश्वासन?
एम्स का नर्सिंग स्टाफ जिन 23 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठा हैं, उसमें छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करने, एम्स में नर्सों के कॉन्ट्रैक्ट (संविदा) पर भर्ती खत्म करने, वेतन की अनियमितताओं को दूर करने, स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, स्वास्थ्य कर्मचारी योजना का लाभ मिलने और नर्सिंग में लिंग के आधार पर महिलाओं के 80:20 के आरक्षण को खत्म करने की मांग शामिल है। एम्स नर्सेज यूनियन पिछले 1.5 सालों से इन मांगों को लेकर एम्स प्रशासन और स्वास्थ्य मंत्रालय से बातचीत में लगा हुआ है।
पिछले साल 14 अक्टूबर को अपनी इन्हीं मांगों को लेकर एम्स नर्सिंग यूनियन के लोग धरने पर बैठे थे और 16 अक्टूबर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के आवास तक पैदल मार्च निकाला था। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन और नर्सिंग कर्मियों की वार्ता हुई थी और कई मांगों पर सहमति भी बनी थी।
एम्स नर्सिंग यूनियन के महासचिव फमीर सीके ने गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में बताया कि तब स्वास्थ्य मंत्रालय और एम्स दोनों ने माना था कि मामले का निपटारा हो चुका है और छठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करते हुए फिर सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को नियमानुसार लागू किया जाएगा।
“लेकिन इसके बाद से कभी भी इसे लागू नहीं किया गया और अभी भी हमें छठे वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह हमारे साथ एक तरह से धोखा है, हमें मुर्ख बनाया गया है क्योंकि मंत्रालय से भी आश्वासन मिलने के बाद भी हमें हमारा अधिकार नहीं दिया जा रहा,” फमीर सीके आगे कहते हैं।
क्या है अन्य मांगें?
फमीर ने बताया कि सिर्फ वेतन एकमात्र मसला नहीं है, हमें इस कोरोना काल में और उसके इतर भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कहने को तो हम केंद्रीय सरकारी कर्मचारी हैं, लेकिन हमें कई तरह की सुविधाएं नहीं मिलती और हमें उससे वंचित होना पड़ता है।
“जैसे- केंद्रीय स्वास्थ्य कर्मचारी योजना के तहत कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने व अपने परिवार का ईलाज देश के अलग-अलग शहरों के सरकारी अस्पतालों में करवा सकता है, सरकार उसका पूरा खर्च स्वास्थ्य बीमा के रूप में देती है। लेकिन एम्स के नर्सिंग स्टाफ के लोग अगर एम्स से बाहर कोई भी इलाज कराते हैं, तो उसका खर्च उन्हें वापस नहीं मिलता है। ऐसे में जिस कर्मचारी का परिवार दिल्ली से बाहर रहता है या जिन्हें एम्स के व्यस्त ओपीडी से समय नहीं मिल पाता, उनके लिए दूसरा कोई विकल्प बचता नहीं है। उस समय दूसरों का ईलाज और सेवा करने वाले हम नर्स खुद के लिए मजबूर महसूस करते हैं,” फमीर कहते हैं।
कोरोना काल में शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना कर रहे इन नर्सों की मांग है कि वेतन की अनियमितताओं को दूर कर उनकी स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और स्वास्थ्य कर्मचारी योजना का लाभ उन्हें बिना भेदभाव के पूरी तरह से मिले।
इन नर्सों की प्रमुख मांगों में से एक मांग यह भी है कि एम्स के नर्सिंग विभाग में लिंग के आधार पर महिलाओं के 80:20 के आरक्षण को खत्म किया जाए। यूनाइटेड नर्सिंग एशोसिएशन, दिल्ली के जोल्डिन फ्रांसिस कहते हैं कि सामान्य धारणा में नर्सिंग को पूरी तरह से महिलाओं का काम माना जाता है, जबकि लिंग से इतर पुरूष और महिला दोनों इस तरह के काम कर सकते हैं।
“इसलिए जरूरी है कि महिलाओं के लिए जो सामान्य आरक्षण के नियम हैं, उन्हें ही लागू किया जाए ना कि उन्हें विशेष आरक्षण दिया जाए। आजकल हजारों की संख्या में लड़के हैं, जो नर्सिंग की प्रोफेशनल पढ़ाई करते हैं। अगर 80:20 का ही अनुपात रहा, तो इस क्षेत्र में आने वाले लड़कों का उत्साह टूटेगा और उन्हें नौकरी के मौके कम मिलेंगे,” जोल्डिन कहते हैं। यूनाइटेड नर्सिंग एशोसिएशन के , दिल्ली के साथ-साथ देश भर के स्वास्थ्य संगठनों ने इन मांगों का समर्थन किया है।
एम्स नर्सेज यूनियन के प्रमुख हरीश कुमार काजला ने कहा जान-बूझकर एम्स प्रशासन ऐसा कर रहा है ताकि वे नर्सिंग कर्मचारियों पर अपने प्रभुत्व को चला सकें। अगर नर्सिंग स्टाफ में पुरुषों की संख्या अधिक होगी तो उनके प्रभुत्व को चुनौती देने वाले भी लोग अधिक होंगे और वे अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे। महिला सशक्तिकरण और आरक्षण के नाम पर एम्स प्रशासन जान-बूझकर ऐसा कर रहा है।
आंदोलन कर रहे नर्सों की एक प्रमुख मांग एम्स में नर्सों के कॉन्ट्रैक्ट (संविदा) पर भर्ती खत्म करना भी है। जोल्डिन फ्रांसिस ने बताया कि एम्स सहित तमाम सरकारी मेडिकल कॉलेज में सैकड़ों नर्सिंग पदों पर भर्तियां खाली है, लेकिन सरकार स्थायी नियुक्तियां करने की बजाय अब संविदा पर भर्तियां कर रही है। अभी जब कर्मचारियों ने हड़ताल का ऐलान किया तब फिर एम्स ने संविदा पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला है। यह एक खतरनाक संकेत है।
इस खतरनाक संकेत के बारे में विस्तार से बताते हुए एम्स रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के पूर्व महासचिव डॉक्टर श्रीनिवासन राजकुमार कहते हैं कि वर्तमान सरकार और उसके प्रशासक हर जगह पर निजीकरण चाहते हैं। एम्स में संविदा पर नर्सों की भर्तियां एम्स के निजीकरण की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है।
आज के अखबारों में संविदा पर नर्सों की भर्ती के लिए निकले विज्ञापन का हवाला देते हुए डॉक्टर श्रीनिवासन ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोरोना काल में जिन स्वास्थ्य कर्मियों ने अपने जान और परिवार का फिक्र किए बिना अपना 24 घंटे दिया, उनकी बात सुनने की बजाय एम्स प्रशासन उनका विकल्प ढूंढ़ने लग गई है। आपको बता दें कि डॉ. श्रीनिवासन ने जून महीने में एम्स प्रशासन पर स्वास्थ्य कर्मियों को खराब किस्म के मास्क, सेनेटाइजर और पीपीई देने का आरोप लगाया था।
क्या है एम्स प्रशासन का कहना?
एम्स प्रशासन ने नर्सों के इस आंदोलन को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया है। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश कोरोना से लड़ रहा है, उस समय नर्सों का यह हड़ताल दुःखद है। ऐसे समय जब अधिकतर लोगों की नौकरियां जा रही हैं, वेतनवृद्धि की मांग करना समझ से परे है।
Part 2: Now listen to Dr Randeep Guleria, #AIIMS, Director
I’m sure that even in COVID-19 real nurse will really never abandon her patients. I appeal to all the nurses all the nursing officers not to go on strike & not to make us feel embarrass about the dignity that we have. pic.twitter.com/m2s9RNrM63
— Priyanka Sharma (@journo_priyanka) December 14, 2020
गुलेरिया ने कहा कि नर्सों की अधिकतर मांगें पहले से ही मांग ली गई हैं। छठे वेतन आयोग को लेकर नर्सिंग यूनियन को थोड़ी सी गलतफहमी है, जिसे वित्त आयोग के सचिव ने भी बैठकों में दूर करने का प्रयास किया था। अब सातवां वेतन आयोग लागू है, फिर यह भी समझ से परे है कि छठे वेतन आयोग की मांग क्यों की जा रही है। यह एक तकनीकी पहलू है, जिसे यूनियन के लोग बार-बार समझाने पर भी नहीं समझ रहे हैं।
इस पर एम्स नर्सिंग यूनियन के महासचिव फमीर सीके ने कहा कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को ठीक ढंग से हमारे वेतन पर लागू नहीं किया गया और उसी पर सातवां वेतन आयोग का लाभ दिया जा रहा है। इससे जो हमें कुल वेतन मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है। हमारा हड़ताल इन्हीं विसंगतियों के खिलाफ है।