एनसीआरबी रिपोर्ट, 2019: हर रोज 38 बेरोजगार और 28 विद्यार्थी कर रहें आत्महत्या

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2019 में दिहाड़ी मजदूरों, विवाहिता महिलाओं के बाद बेरोजगारों और विद्यार्थियों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति सबसे अधिक देखी गई। ये आंकड़े देश में बेरोजगारी की बेकाबू होती स्थिति की गंभीरता को बयां करती हैं।
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“पूजनीय बड़े पिता जी, माता जी मुझे माफ कर देना, मैं आपका अच्छा बेटा नहीं बन पाया!”

शनिवार, 12 सितंबर की शाम उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के छोटा बघाड़ा इलाके में एक युवा प्रतियोगी छात्र की आत्महत्या ने सबको झकझोर दिया। सिविल सेवा प्रतियोगी छात्रों का हब कहे जाने वाले इस इलाके में राजीव पटेल नामक युवक ने अपने कमरे में फांसी लगाते हुए आत्महत्या कर ली। उनके कमरे से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें ऊपर लिखी हुई बातें उन्होंने मरने से ठीक पहले अपने लाल कलम से दर्ज की थी।

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के सिल्लो गांव के रहने वाले राजीव पटेल (30 वर्ष) पिछले 10 सालों से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। 11 सितंबर, शुक्रवार को आए यूपीपीसीएस की अंतिम सूची में वह जगह नहीं पाए थे, जिसकी वजह से वह काफी निराश थे। प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास कर इंटरव्यू तक पहुंचने वाले राजीव इस परिणाम से इतने हताश हुए कि उन्होंने अपने जीवन को ही खत्म करने का फैसला कर लिया। इस तरह से बेरोजगारी से आत्महत्या करने वालों की सूची में एक और नाम व नंबर बढ़ गया।

 

पिछले हफ्ते जारी हुई नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी, 2019) की रिपोर्ट कहती है कि 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की जिनका रिकॉर्ड दर्ज हुआ। इन 1,39,123 लोगों में से 10.1% यानी कि 14,051 लोग ऐसे थे, जो बेरोजगार थे। इसका अर्थ यह भी होता है हर रोज लगभग 38 बेरोजगारों ने आत्महत्या की।

बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 सालों में सबसे अधिक है और इन 25 सालों में पहली बार बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का प्रतिशत दहाई अंकों (10.1%) में पहुंचा है। 2018 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगार लोगों की संख्या 12,936 थी।

अगर हम एनसीआरबी के आंकड़ों को और गौर से देखें तो पता चलता है कि दिहाड़ी मजदूरों (23.4%), विवाहिता महिलाओं (15.4%) और स्व रोजगार करने वाले लोगों (11.6%) के बाद सबसे अधिक आत्महत्या बेरोजगारों (10.1%) ने ही की। यह आंकड़ा किसानों की आत्महत्या के भी प्रतिशत (7.4%) से कहीं ज्यादा है।

अगर हम इसमें आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत (7.4%) भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो जाता है। गौरतलब है कि आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में उनकी संख्या अधिक होती है जो या तो किसी परीक्षा में असफल हो जाते हैं या फिर किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास नहीं कर पाते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं।

राजीव पटेल भी अपने गृह जनपद बस्ती से स्नातक (बीएससी) करने के बाद 2010 से ही प्रयागराज में सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहे थे। उनके साथ उनका छोटा भाई भी रहता था, जो लॉकडाउन के वक्त घर चला आया था। उसके बाद से ही राजीव पटेल अकेले प्रयागराज के उस छोटे से कमरे में रह रहे थे।

उनके साथ बचपन से ग्रेजुएशन तक पढ़े राम बहादुर यादव ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया कि राजीव बहुत हंसमुख और खुले विचारों के थे। चार साल पहले उनका चयन दिल्ली पुलिस के सब इंस्पेक्टर (एसआई) पद पर हुआ था, लेकिन उनको विश्वास था कि वह सिविल सर्विस की परीक्षा निकाल लेंगे। इसलिए उन्होंने उस नौकरी को ज्वाइन ना करते हुए तैयारी जारी रखने का फैसला किया। बीते साल दिसंबर में उनके पिता जी की मौत हो गई थी, लेकिन उनके बड़े पिता जी और मां घर को संभाल रहे थे। हालांकि इसके बाद 5 बड़े-भाईयों में सबसे बड़े राजीव पर एक अतिरिक्त दबाव जरूर बन गया था।

हैदराबाद में रहकर नौकरी करने वाले राम बहादुर बताते हैं कि उनकी 20 दिन पहले ही राजीव से वीडियो कॉल पर बात हुई थी, तब राजीव ने बहुत ही विश्वास से कहा था कि इस बार उनका यूपीपीसीएस की परीक्षा अच्छी गई है और इस बार वह निकल जाएंगे और अगले साल तक शादी कर लेंगे। लेकिन रिजल्ट वाले दिन मेरिट सूची में अपना नाम ना देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई और उन्होंने अपने आप को खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। इस दौरान उनकी घर वालों से फोन पर बस एक बार संक्षिप्त बात हुई। अगले दिन तक जब राजीव का दरवाजा नहीं खुला तो आस-पास रहने वाले लड़कों को कुछ शक हुआ। उन्होंने पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने दरवाजा तोड़कर देखा तो राजीव की लाश फंदे से लटकी मिली।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2019 में अगर आत्महत्या के कारणों को देखें, तो 2 प्रतिशत लोगों ने परीक्षा में असफल होने के कारण, 2 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी के कारण, 1.2 प्रतिशत लोगों ने करियर को लेकर, 0.8 प्रतिशत लोगों ने गरीबी और 0.5 प्रतिशत लोगों ने सामाजिक प्रतिष्ठा गिरने के कारण आत्महत्या की। इन सभी कारणों को देखा जाए, तो कहीं ना कहीं यह बेरोजगारी से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा 11.1 प्रतिशत लोगों ने अन्य कारणों से आत्महत्या की जबकि 10.3 प्रतिशत लोगों की आत्महत्या का कारण ज्ञात नहीं था।

गौरतलब है कि देश में बेरोजगारी की समस्या पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ी है। यह संगठित और असंगठित, सरकारी और निजी सभी क्षेत्रों में है तथा इसमें शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के बेरोजगार शामिल हैं। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और फिर आर्थिक सुस्ती की वजह से भारत में बेरोजगारी की दर पहले से ही बहुत अधिक थी और कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने इस भीषण समस्या को और बढ़ा दिया है।

गांव कनेक्शन ने ही हाल ही में एक सर्वे किया था, जिसमें 93 फीसदी ग्रामीणों ने बेरोजगारी को अपने गांव, अपने क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बताई थी। कोरोना लॉकडाउन के कारण संगठित, असंगठित और निजी क्षेत्रों में लगातार नौकरियां जा रही हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार यह संख्या करोड़ों में है। सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल से अगस्त तक 2 करोड़ 10 लाख लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। इस दौरान जुलाई में सबसे अधिक 50 लाख लोगों का रोजगार छिना।

सीएमआईई के ही आंकड़ों के अनुसार अगस्त, 2020 में बेरोजगारी की दर 8.35 प्रतिशत हो गई है, जो कि जुलाई, 2020 में 7.43 प्रतिशत थी। वहीं लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में यह आंकड़ा बहुत अधिक बढ़कर 23.5 प्रतिशत तक जा चुका था। यही कारण है कि लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी के कारण देश के कई हिस्सों से आत्महत्या की खबर आई। इसमें दिहाड़ी मजदूर भी शामिल थे और महीने के लाखों कमाने वाले जॉब गवां चुके प्रोफेशनल्स भी और युवा शिक्षित बेरोजगार भी।

मैवरिक्स इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार लॉकडाउन के दौरान जो आत्महत्याएं हुईं, उसमें सबसे बड़ा कारण आर्थिक तंगी का होना था। लगभग 37 प्रतिशत लोगों ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या की, इसका मतलब यह हुआ कि लोगों की आय कम हुई या उनका रोजगार छीना। गांव कनेक्शन के राष्ट्रव्यापी सर्वे में भी निकलकर आया कि 10 में से 9 लोगों को लॉकडाउन के दौरान आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।

अगर हम सरकारी नौकरियों की बात करें तो साल दर साल आने वाली वैकेंसी लगातार कम होती जा रही हैं। वहीं जो भर्तियां निकलती हैं, वह कई सालों तक तमाम प्रशासनिक खामियों, लालफीताशाही और लेट-लतीफी के कारण लटकी रहती हैं। इससे देश के युवा बेरोजगार नाराज हैं और लगातार सोशल मीडिया और कई बार सड़कों पर आकर भी आंदोलन कर रहे हैं।

गौरतलब है कि भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय की गाइडलाइन और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ये भर्तियां 6 महीने से एक साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन ये भर्तियां तीन-तीन सालों में भी नहीं पूरी हो पा रही है। कुछ भर्तियां तो ऐसी हैं, जो पीएम नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल यानी 2014 के पहले की भी हैं। ऐसा सिर्फ केंद्र सरकार की भर्तियों एसएससी, रेलवे, सेना या बैंकिंग में ही नहीं है बल्कि कई राज्यों की भर्तियों में तो हालात इससे भी अधिक खराब हैं। ऐसे में सरकारी भर्तियों के तैयारी करने वाले छात्र उहापोह और अनिश्चितता की स्थिति में हैं और कई तो अवसाद में भी जा रहे हैं। बेरोजगारों की इन आत्महत्याओं का एक प्रमुख कारण यह अवसाद भी है।

एनसीआरबी 2019 के आंकड़ें कहते हैं कि आत्महत्या करने वाले लोगों में 5 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिनके पास डिप्लोमा, ग्रेजुएशन या पोस्टग्रेजुएशन की उच्च डिग्री थी। यह 2018 के मुकाबले 4.5 प्रतिशत के मुकाबले आधा प्रतिशत अधिक थी। वहीं जहां 2018 में 9.6 प्रतिशत बेरोजगार लोगों ने आत्महत्या की, 2019 में यह संख्या भी बढ़कर 10.1 प्रतिशत हो गई। ये आंकड़े भी दिखाते हैं कि देश में बेरोजगारी की समस्या साल दर साल गंभीर होती जा रही है और सरकार को इस पर बहुत ही गंभीरता से ध्यान देना होगा।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2017-2019 के बीच कुल 4,03,526 लोगों ने आत्महत्याएं की। 2019 में सबसे अधिक 1,39,123, 2018 में 1,34,516 और 2017 में 1,29,887 लोगों ने आत्महत्या की थी। इस तरह 2019 में प्रतिदिन औसतन 381, साल 2018 में 368 और साल 2017 में 355 लोगों ने आत्महत्या की।

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