ऋषि मिश्र
लखनऊ। टिकटों के वितरण की रार का आगाज समाजवादी पार्टी के अंतर्कलह अध्याय-1 में ही हो गया था। अब अध्याय-2 में तो ये जमीन पर उतर रही है। सीएम अखिलेश यादव को जब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाया था तब से ये विवाद शुरू हो गया था। अखिलेश यादव ने तब सार्वजनिक तौर पर कहा था कि परीक्षा उनकी है। इसलिए टिकट बांटने का हक भी उनका ही होगा। मगर इसके विपरीत अखिलेश के समय में बांटे गये टिकटों को काट कर शिवपाल ने 175 टिकट बांट दिये।
जिसके बाद में अखिलेश ने वही कहा जो वे पहले से ही कहते चले आ रहे थे। यानी कि उन्होंने 403 उम्मीदवारों की सूची मुलायम सिंह यादव को सौंप दी। ऐसे में अखिलेश यादव ने अपनी पुरानी और सोची समझी चाल चली है। जिससे अब सपा सुप्रीमो पर दबाव है कि वे अखिलेश गुट टिकटों की एक सम्मानजनक संख्या देकर समझौता करे वरना आगामी चुनाव में अपने ही नेताओं के खिलाफ अखिलेश गुट के नेताओं को खड़ा होने का निमंत्रण भेज दें। ये सपा की सेहत के लिए सबसे अधिक नुकसानदेह होगा।
सपा के संविधान के मुताबिक मुख्यमंत्री केवल अपनी सलाह टिकटों को लेकर दे सकता है। उस पर अंतिम मुहर प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष ही लगाते हैं। मगर यहां पूरे पूरे टिकट की सूची ही मुख्यमंत्री ने मुलायम सिंह यादव को देकर एक बार फिर से चाचा के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलने का एलान कर दिया है। जिससे समाजवादी परिवार की रार फिर से सतह पर नजर आने लगी है।
मुलायम सिंह यादव अब एक बार फिर से संकटमोचक की भूमिका में हैं। प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल और मुख्यमंत्री अखिलेश दोनों ने अपनी अपनी चाल नेता जी के सामने खेली है। इसमें नेता जी या तो विजेता तय करेंगे। या फिर दोनों के बीच मैच को टाई घोषित कर के संयुक्त विजेता बना देंगे। जिसमें संयुक्त विजेता बनाने का विकल्प ही सपा की सेहत के लिए बेहतर होगा।