बिजनौर/मुजफ्फरनगर/सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)। “मई महीने का मेरा 80 हजार रुपए बकाया है। कई बार गन्ना मिल का चक्कर काट चुका हूं। उधर तो कोई सुनता नहीं इधर बैंक अधिकारियों ने नोटिस भेज दिया है कि 1 लाख रुपए का बकाया भरिए नहीं तो आरसी काट देंगे। अब बताइये, जब हमें पैसा मिलेगा नहीं तो हम देंगे कैसे,” गन्ना किसान पीयूष कुमार कहते हैं।
उत्तर प्रदेश का जिला मुजफ्फरनगर गन्ने का गढ़ कहा जाता है। जिला मुख्यालय से दूर लगभग 20 किलोमीटर दूर चरथावर ब्लॉक के आखलोरा गाँव के 39 वर्षीय गन्ना किसान पीयूष कुमार बहुत परेशान हैं। ये पूरा गाँव ही गन्ना किसानों का है। जहां तक आपकी नजर पड़ेगी वहां तक गन्ना ही गन्ना दिखेगा। लेकिन अब गन्ने से लोगों का मोह भंग हो रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और बागपत जिला पूरे देश में गन्ना उत्पादन के लिए जाना जाता है।
पीयूष कुमार अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहते हैं, “पहले मैं 30 बीघा खेत में गन्ना लगाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से थोड़ा-थोड़ा कम करके अब 20 बीघे में गन्ना लगा रहा हूं। समय पर पैसा मिलता नहीं जिस कारण हम लोन का पैसा नहीं चुका पाते। साल 2014 में कृषि कार्यों के लिए एक लाख रुपए का कर्जा लिया था। कई बार पैसा जमा किया लेकिन ब्याज के कारण अभी भी एक लाख रुपए से ज्यादा बकाया है जिसके लिए बैंक वाले लगातार परेशान कर रहे हैं।”
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के अनुसार दो सितंबर 2019 तक उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर 6480 करोड़ रुपए बकाया है। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गन्ना आयुक्त मनीष चौहान ने पिछले दिनों कहा था कि 31 अगस्त तक गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान हर हाल में हो जायेगा। ऐसे में नाराज किसान अब प्रदर्शन कर रहे हैं। बिजनौर जिले में हजारों किसान कलेक्ट्रेट में धरना दे रहे हैं।
बिजनौर और मेरठ में गन्ना किसान अपने भुगतान के लिए धरना दे रहे हैं। जिला मेरठ के तहसील मवाना, गाँव माखननगर के किसान विक्की शर्मा ‘गाँव कनेक्शन’ से कहते हैं, “मेरा चीनी मिलों पर दो लाख रुपए बकाया है। अप्रैल महीने में ही पेमेंट मिलना था। लेकिन अभी तक मिला नहीं। मैं खेती के अलावा कुछ और नहीं करता ऐसे में मुझे अगली फसल के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। हम दूसरी खेती कर ही नहीं पा रहे हैं।”
नियम विरुद्ध काट रहे आरसी ?
आखलोरा गाँव के किसान डॉ. कृष्ण कुमार त्यागी (64 वर्ष) के ऊपर इस समय 10 लाख रुपए का कर्ज है। उन्होंने 2013 में कर्ज लिया था। जैविक खेती कि जिस कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ। समय पर पैसे नहीं भर पाये। बैंक ने उनका चालान काटा और पिछले साल अक्टूबर में उन्हें 14 दिन जेल भी बिताना पड़ा।
कृष्ण कुमार त्यागी बताते हैं, “मैंने डेयरी और खेती के लिए अलग-अलग लोन लिया था। डेयरी का तो चुका दिया लेकिन केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) पर लिया लोन नहीं चुका पाया क्योंकि मैंने जैविक खेती के लिए लोन लिया था। शुरू के कुछ वर्षों में फसल खराब हो गई। नुकसान हुआ जिस कारण पैसे नहीं जमा कर पाया।”
“अक्टूबर में बैंक वाले मुझे उठा ले गये। जबकि अभी सोहाना चीनी मिल पर मेरा 60 हजार रुपए बकाया है। जबकि कोर्ट के आदेश के बाद भी 1996 का बकाया लगभग 20 हजार रुपए (अंतर मूल्य) नहीं मिला है,” वह आगे कहते हैं।
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इस मामले पर गन्ना किसानों के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे किसान नेता और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह कहते हैं, “छह अगस्त 2012 का आदेश है कि जब तक गन्ना किसान को पेमेंट नहीं मिलेगा तब तक आरसी (Receivable Charges, प्राप्य शुल्क) नहीं कटेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बकाया राशि पर ब्याज देने का आदेश भी दिया, लेकिन प्रदेश सरकार ने आदेश नहीं माना।”
उप्र गन्ना आपूर्ति एवं खरीद अधिनियम के तहत गन्ना आपूर्ति के 14 दिन के अंदर गन्ना मूल्य भुगतान करने और नहीं करने पर विलंब ब्याज देने का नियम है।
“इसके बाद जब कोर्ट ने गन्ना कमिश्नर से पूछा तो उन्होंने कहा कि हम 15 नहीं 7 फीसदी तक ब्याज देंगे। इसके लिए गन्ना कमिश्नर ने पांच अप्रैल 2009 को हलफनामा भी दिया। चार महीने होने को आए लेकिन अभी तक किसी भी किसान को ब्याज का पैसा नहीं मिला है। सरकार ने तो यह भी कहा था कि जो मिल समय पर पैसा नहीं देंगे उनके खिलाफ कार्रवाई होगी,” वीएम सिंह आगे कहते हैं।
दो सितंबर से बिजनौर के किसान राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे हैं। संगठन के प्रदेश महासचिव कैलाश लांबा कहते हैं, “बकाया पैसे पर किसानों का हक है। चीनी मिल किसानों को न तो मूल पैसे दे रही है और न ही ब्याज। उधर किसान समय बिजली का बिल नहीं भर पा रहा, बैंक का कर्ज नहीं चुका पा रहा जिस कारण उसे डिफॉल्टर घोषित किया जा रहा है। किसानों की आरसी काटी जा रही है।”
बिजनौर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व अवधेश कुमार मिश्र इस मुद्दे पर कहते हैं, “देखिए जिन किसानों का लंबे समय से बकाया है आरसी उन्हीं का कट रहा है। सभी किसानों के साथ ऐसा नहीं किया जा रहा है। रही बात मिलों पर बकाया राशि की तो हम हर संभव प्रयास कर रहे हैं। रोज किसान नेताओं से मुलाकत हो रही है। कुछ चीनी मिल हमारे यहां डिफाल्टर हैं इसी की वजह से दिक्कत है बावजूद इसके हमारा बकाया अन्य जिलों की अपेक्षा बहुत कम है।”
वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के जिलाध्यक्ष विनोद कुमार बताते हैं, “कोर्ट का आदेश है कि अगर किसानों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा तो उन्हें ब्याज मिलना चाहिए। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिलों को आदेश दिया था कि वे 31 अगस्त तक सभी भुगतान करें लेकिन उनके ही आदेश को नहीं माना जा रहा।”
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का आरोप है कि बिजनौर के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर ब्याज सहित 572 करोड़ रुपए का बकाया है। विनोद कुमार कहते हैं कि तीन सितंबर को एसडीएम बृजेश कुमार और जिला गन्ना अधिकारी धरना स्थल पहुंचे थे और उन्होंने 25 करोड़ रुपए का बकाया भुगतान देने की बात कही और एसडीएम ने मिलों के अफसरों को गिरफ्तार करने की भी बात हुई लेकिन किसान इसे मानने को तैयार नहीं हैं।
इस मामले में बिजनौर के जिला गन्ना अधिकारी यशपाल सिंह से फोन पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन मीटिंग में हूं कहकर कुछ भी कहने मना कर दिया।
इस सत्र में अभी तक 26,642 करोड़ रुपए का भुगतान
उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन के मामला में देश में सबसे आगे है जबकि चीनी उत्पादन में यह देश में दूसरे स्थान पर है। प्रदेश के 44 जिलों में गन्ना उत्पादन होता है जिसमें 28 जिले तो ऐसे हैं जिनकी पहचान ही गन्ना उत्पादन के लिए है। प्रदेश में इस समय 119 चीनी मिलें चल रही हैं जिससे लगभग 35 लाख किसान जुड़े हैं।
वर्ष 2018-19 के पेराई सीजन में 33,047 करोड़ रुपए का कुल भुगतान होना था जिसमें से 6480 करोड़ रुपए का बकाया कुल राशि का 20 फीसदी से ज्यादा बैठता है। जबकि 2019-20 के अगले चक्र में दो महीने से भी कम समय बाकी है।
वहीं पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 2017-18 सीजन के लिए 10,000 करोड़ रुपए से अधिक के कुल भुगतान का 28 प्रतिशत बकाया शेष था। हालांकि तब भुगतान की स्थिति को काफी हद तक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग जारी की गई आसान ऋण योजनाओं से सहारा मिला था।
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इस मामले पर उत्तर प्रदेश चीनी उद्योग और गन्ना विकास विभाग के अतिरिक्त गन्ना आयुक्त वीके शुक्ला कहते हैं, ” इस सत्र में अभी तक 26642 करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है। जबकि मौजूदा सरकार अब तक 72701 करोड़ रुपए का भुगतान कर चुकी है।” 31 अगस्त तक किसानों का पैसा क्यों नहीं मिल पाया और क्या अब चीनी मिलों के खिलाफ प्रदेश सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी, इन सवालों का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
अब अगर सरकार के इन आंकड़ों की मानेंगे तो प्रदेश में कुल बकाया 6,605 करोड़ रुपए हो जाता है।
बिजनौर के अलावा मुजफ्फरनगर और मेरठ में भी किसानों का काफी पैसा रुका हुआ है। मुजफ्फरनगर के जिला गन्ना अधिकारी आरडी द्विवेदी ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, ” पिछले साल 31 अगस्त तक 686 करोड़ रुपए बकाया था। लेकिन आज की तारीख में 420 करोड़ रुपए है। इसमें से बजाज की मिल भैसाना पर ही 220 करोड़ रुपए बकाया है। मतलब कुल बकाया का 50 फीसदी एक ही मिल पर बकाया है। ये मिल ऐसी है जिसको बैंकों से कोई क्रेडिट नहीं मिलता। ऐसे में वे चीनी बेचने के बाद ही किसानों के पैसे का भुगतान करते हैं। ऐसे में अभी दो-तीन महीने बाद ही पूरे पैसे का भुगतान हो सकेगा।”
राष्ट्रीय लोक दल पार्टी के महासचिव अंकित शेरावत हमें मुजफ्फरनगर में गन्ना किसानों के बीच मिले। उन्होंने प्रदेश सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, ” प्रदेश सरकार को अपना वादा पूरा करना चाहिए। गन्ना किसान परेन है। बकाया जब मिलेगा तभी तो वे अगली खेती करेंगे लेकिन चीनी मिल भी मनमानी कर रहे हैं। आदेश के बाद भी वे भुगतान करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार को उनके खिलाफ सख्त रवैया अपनाना चाहिए।”
मेरठ मंडल की शुगर मिलों पर अभी भी 1554 करोड़ से ज्यादा का बकाया है। बात अगर बस मेरठ की करें तो इस जिले में कुल 6 चीनी मिले हैं। जिला गन्ना अधिकारी डॉ. दुष्यंत कुमार बताते हैं, ” हमारे यहां इस सत्र में अभी तक 1753 करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है जबकि 555 करोड़ रुपए का ही भुगतान रुका है। बजाज की मिल की वजह से ज्यादा दिक्कत हुई है वराना हमारा भुगतान 90 फीसदी के आसपास होता।”
हाल ही में उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त मनीष चौहान ने राज्य की मिलों की गन्ना भुगतान स्थिति की समीक्षा की थी जिसमें बिक्री का कोटा, चीनी निर्यात और निर्यात सब्सिडी की स्थिति भी शामिल थी। 2018-19 के सीजन में 94 निजी, 24 सहकारी और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम की एक इकाई समेत 119 राज्य मिलों ने पेराई परिचालन में भाग लिया था।
वर्ष 2017-18 में 1.2 करोड़ टन की तुलना में राज्य का चीनी उत्पादन लगभग 1.18 करोड़ टन रहा। उत्तर प्रदेश में अगला चीनी सीजन अक्टूबर के अंत से शुरू होने की संभावना है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मिलें अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में दीवाली के बाद काम शुरू कर देंगी। बाकि के मिलों में नवंबर के पहले और दूसरे सप्ताह के अंत तक काम शुरू करने के लिए कहा गया है। हाल ही में केंद्र ने देश भर की मिलों पर लगभग 12,000 करोड़ रुपए बकाये के मुकाबले इस क्षेत्र की मदद के लिए निर्यात सब्सिडी की घोषणा की है।