नीतीश तोमर
स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
पीलीभीत। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत ज़िले के गाँव कुरैया कलां के साधारण से किसान राम औतार मौर्य किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन में वह करिश्मा कर दिखाया जो बड़े-बड़े किसान अपने फार्मों पर नहीं कर पाते हैं।
सीमित संसाधनों से खेती करने वाले राम औतार मौर्य की इंटरमीडिएट तक की शिक्षा जनपद के ड्रमंड राजकीय इंटर कॉलेज में हुई। इसके बाद मेधावी छात्र होने के कारण सन 1974-75 में उत्तराखंड के पंतनगर विश्वविद्यालय से बीएससी कृषि की परीक्षा पास की। पिता की बीमारी के चलते यह एमएससी नहीं कर पाए। पिछले 20 वर्षों से खुद ही जैविक खाद एवं कीटनाशक तैयार कर अपनी 18 बीघा जमीन में गेहूं, धान के अलावा औषधीय फसलों की खेती के साथ-साथ मशरूम उत्पादन और रेशम कीट पालन भी कर रहे हैं।
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राम औतार मौर्य मंडल में लगने वाले विभिन्न कृषि मेलों में करीब 40 से अधिक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। साथ ही करीब 20 साल से खेती कर रहे राम औतार ने अपनी फसलों में कभी रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि अपने फॉर्म हाउस पर ही गोबर से कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट नीम व गोमूत्र से कीटनाशक तैयार कर और उसको ही अपनी फसलों में प्रयोग किया करते हैं।
राम औतार मौर्य रासायनिक खादों व कीटनाशकों की अपेक्षा कंपोस्ट खाद के प्रयोग से फसल का उत्पादन के बारे में बताते हैं, “ऐसा नहीं है, फसल में वर्मी कंपोस्ट खाद डालने पर उत्पादन बढ़ता है। घटता नहीं है। प्रतिवर्ष एक एकड़ में गेहूं की फसल करता हूं। जिसमें केवल अपने यहां तैयार कंपोस्ट व वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करता हूं। जिसमें करीब 15 कुंटल गेहूं पैदा हो जाता है। जिसका रेट रासायनिक खादों से तैयार किए गए गेहूं से दोगुना होता है। जागरूक लोग फसल कटने से पहले ही हमारे यहां गेहूं की एडवांस बुकिंग करा लेते हैं।”
वो आगे कहते हैं, “इसी तरह एक एकड़ में गन्ने की फसल पैदा करता हूं। इसमें भी कंपोस्ट खाद का प्रयोग किया जाता है। जिसका मैं बाद में गुड़ बनवाता हूं। इस गुड़ में किसी भी प्रकार के मसालों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस गुड़ का रेट सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है। इसके अलावा मैं अपनी जमीन के कुछ हिस्से में औषधीय फसलें भी उगाता हूं। जिनमें सर्पगंधा, अश्वगंधा, पीपली, पुनर्नवा, शतावरी, मुलेठी कागलन, सीवी गुड़मार आदि को पैदा करके इनसे विभिन्न रोगों के उपचार के लिए औषधियों का निर्माण भी करता हूं।
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नाबार्ड के सहयोग से एक मशरूम पैदा करने की कंपनी लिवार्ड गोल्डन मशरूम किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड भी चला रहा हूं। जिसमें करीब 250 सदस्य हैं।इसमें एक साल में करीब 4-5 लाख रुपए का मशरूम पैदाकर जनपद के आसपास की मंडियों में बिक्री कर लेते हैं।”
इसके साथ-साथ राम औतार मौर्य ने अपनी जमीन पर ही नाबार्ड के सहयोग से आठ लाख रुपए के अनुदान से एक फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किया है। जिसमें किसानों को कृषि कार्य के लिए कृषि यंत्र किराए पर दिए जाते हैं। इसमें हैरो 700 रुपए प्रति एकड़, रोटावेटर 720 रुपए प्रति एकड़, मिट्टी पलटा हल 720 रुपए प्रति एकड़, कल्टीवेटर 700 रुपए प्रति एकड़, लेवलर 400 रुपए प्रति घंटा, गन्ना बुवाई, हरी (तीन फाल) 800 रुपए प्रति एकड़, खेत में मेड़बंदी करने के लिए मेढ़ फ्लो 150 रुपए प्रति एकड़, स्प्रे करने के लिए स्प्रे मशीन 400 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से किराए पर दिए जाते हैं।
भविष्य की तैयारियों के बारे वो बताते हैं, “मशरूम का बीज लेने हमें जनपद से बाहर जाना पड़ता है, जिसके लिए अब हम पीलीभीत में ही एक लैब बनवा रहे हैं। अब मशरूम का बीज इसी लैब में तैयार किया करेंगे। मेरा उद्देश्य जनपद पीलीभीत को मशरूम उत्पादन करने वाले जनपदों में प्रथम स्थान दिलाना है।”
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