पशुओं पर भी दिखेगा जलवायु परिवर्तन का असर, कम होगा दूध उत्पादन !

दूध

लखनऊ। दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश भारत में 2020 तक सालाना दूध उत्पादन में 30 लाख टन की हानि होने की आंशका है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन। इसका असर न सिर्फ इंसानों पर पड़ रहा बल्कि इससे कृषि और पशुधन दोनों ही प्रभावित हो रहे है।

” ज्यादा दूध के लिए विदेशी और संकर नस्ल की गायों को बढ़ावा तो दिया गया लेकिन ये गायें हमारी जलवायु और तापमान के पालने के लिए अनुरूप नहीं है। इसलिए अधिकतर किसान अब इन गायों को पालने से कतरा रहे है। विदेशों में किसानों के पास खुद की जमीन होती है जिसमें वो हरा चारा लगाते है और दिन भर गाय चरती है। पर यहां ऐसा नहीं किसान मुश्किल से हरा चारा किसानों को खिला पाता है।” ऐसा बताते हैं, केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान के पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन डॅा उमेश सिंह।

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देश में दूध की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ‘नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड’ (एनडीडीबी) के ‘राष्ट्रीय डेयरी प्लान’ में बताए गए अनुमानों के हिसाब से वर्ष 2020 तक देश को 20 करोड़ लीटर दूध की आवश्यकता पड़ सकती है। देश का 25 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन संकर प्रजातियों (विदेशी) के पशुओं से होता है, जर्सी और हॉलेस्टाइन फीशियन जैसी गयों से। ऐसे में लगतार बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से पशुओं का दुग्ध उत्पादन प्रभावित होना और पशुपालकों का इस तथ्य से अंजान बने रहना एक खामोश खतरा है, जो आने वाले वर्षों में डेयरी उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है।

“जलवायु परिवर्तन का असर उनके खाने-पीने में सबसे ज्यादा पड़ता है अगर पशु को कोई बीमारी है या यहां के तापमान को उसमें झेलने की क्षमता नहीं है तो पशुओें खान छोड़ देता है इससे सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है।” बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के न्यूट्रीशियन विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पुतान सिंह ने बताया, “दूसरा दूध उत्पादन की कमी का सबसे बड़ा कारण पशुओं का संतुलित आहार भी है। ज्यादा छोटे किसान के पास जो भी होता है वो अपने पशुओं को खिला देता है। जबकि एक वयस्क पशु के रोज 50 प्रतिशत हरा चारा और 50 प्रतिशत सूखा चारा तो देना ही चाहिए।”

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भारत अभी सालाना 16 करोड़ (वर्ष 2015-16) लीटर दूध का उत्पादन कर रही है। इसमें 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देशी प्रजाति की गायों से और 25 प्रतिशत विदेशी प्रजाति की गायों से आता है। शेष हिस्सा बकरी जैसे छोटे दुधारू पशुओं से आता है। देश के इस डेयरी व्यवसाय से छह करोड़ किसान अपनी जीविका कमाते हैं।

देश में पशुपालन ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आय का एक बड़ा जरिया।

अमरोहा जिले में डेयरी संचालक सुरेंद्र चंद्र पिछले पांच वर्षोँ से डेयरी चला रहे है। इनकी डेयरी में करीब 50 एचएफ गाय (होल्सटीन फ्रीजियन) और 15 साहीवाल गाय है। सुरेंद्र बताते हैं, “मैंने पास विदेशी और देसी नस्ल की गायें है। दूध उत्पादन भले ही साहीवाल से उतना दूध उत्पादनह नहीं हो पाता है जितना एचएफ से होता है लेकिन साहिवाल गाय पर खर्चा बहुत कम आता है। एचएफ पर जितना खर्च आता है उससे कहीं ज्यादा लागत लग जाती है।”

हमारे देश में पशुपालन ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आय का एक बड़ा जरिया है। भारत में सबसे ज्यादा दुधारु पशु हैं और दुनिया में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन भी देश में होता है। करीब 15 करोड़ टन दूध हम पैदा करते है। लेकिन विश्व में जितना दूध पैदा होता है यह उसका महज तकरीबन दस फीसदी ही है। अगर हम अपने दुधारु पशुओं की नस्लों को सुधारे तो दूध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन से स्थिति और भी बदतर होती जाएगी।राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ पशु वैज्ञानिक डॉ. एके चक्रवर्ती बताते हैं, “इससे निपटने के लिए देश को स्वदेशी नस्लों को अपनाने की ओर बढ़ना होगा। हमारी स्वदेशी नस्लें विपरीत मौसमी परिस्थितियों को झेलने में अधिक सक्षम होती हैं। साहिवाल प्रजाति की गाय एक उदाहरण है। इस स्वदेशी प्रजाति की गाय को देश के किसी भी हिस्से में पाला जा सकता है। इसी तरह भैंसों में भी मुर्रा प्रजाति की भैंस हर राज्य में पाली जा सकती है।”

डॉ. चक्रवर्ती ने आगे कहा, “लेकिन उनके पालने से पहले, पशुवैज्ञानिक से सलाह ज़रूरी होगी कि वह क्षेत्र विशेष में पाली जा सकती है या नहीं। उदाहरण के तौर पर गुजरात की गिर और राजस्थान की थारपारकर प्राजातियों की गाय भी अच्छा उत्पादन देती हैं लेकिन अब अगर कोई दक्षिण भारत में इन्हें पालना चाहे तो वो संभव नहीं हो पाएगा।”

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देश में 39 तरह की गायों की और 13 तरह की भैंसों की देशी प्रजातियां मौजूद हैं। लेकिन यह भी तथ्य है कि देश के अनुसंधान में देशी प्रजातियों का दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि बाहरी देशों में हमारे यहां से गई स्वदेशी नस्लों की गयों ने रिकॉर्ड उत्पादन दिया है। 19वीं पशुगणना के मुताबिक भारत में इस समय करीब 3 करोड़ क्रास-ब्रीड गायें हैं। हरियाणा में इनकी मौजूदगी करीब 60, पंजाब में 70 और केरल में 80 फीसदी तक हैं।

“दूध उत्पादन में सबसे आगे रहे इसके लिए विदेशी नस्लों पर लाना समस्या का समाधान नहीं है। क्योंकि जब आप किसी विदेशी गाय को यहां लाओगे तो उससे अधिक खिलाना जैसे( सूखा चारा, हरा चारा, दवा, अनाज, संतुलित आहार, खली)पड़ेगा। अगर उतना नहीं खिलाओगे तो उसके दूध उत्पादन पर असर पड़ेगा।” पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन डॅा उमेश सिंह ने बताया।

हांलाकि सरकार ने पशुपालकों व डेयरी उद्योग में लगे लोगों को कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरु की है,जिसमें राष्ट्रीय गोकुल मिशन एवं राष्ट्रीय गौजातीय प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम शामिल है। इसके अलावा चार नई परियोजनाओं में पशु संजीवनी, नकुल स्वास्थ्य पत्र, ई-पशुहाट और उन्नत प्रजनन तकनीक शामिल है। देश के उत्तर एंव दक्षिण क्षेत्र में दो राष्ट्रीय कामधेनु ब्रीडिंग केंद्रों की स्थापना भी की जा रही है।

गायों की नस्लों को सुधारने के लिए सरकार ने भी प्रयास करना शुरु कर दिया है। गौवंश में बछड़ों की बढ़ती संख्या को अमेरिकी तकनीक सेक्स सोर्टिड सीमन प्रोडक्शन (एसएसएसपी) से नियंत्रित करने का काम भी कर रही है। इस तकनीक के जरिए बछड़ों की जन्मदर को कम कर बछिया के जन्म को बढ़ाया जा सकेगा। यह तकनीक मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में अपनाई भी जा रही है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, लखीमपुर खीरी और जिलों में इसे पायलेट प्रोजेक्ट के रुप में शुरु भी कर दिया।

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