देश के कई राज्यों में मक्का किसान सही कीमत के लिए आंदोलन कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर से केंद्र सरकार ने दूसरे देश से सस्सी दरों में पर मक्का आयात करने का फैसला लिया है। इस फैसले के बाद देश की मंडियों में मक्के कीमत और गिर गई है। आने वाले समय में ये गिरावट और बढ़ सकती है।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने अधिसूचना जारी करके टैरिफ रेट कोटा (TRQ) के तहत 15 फीसदी के आयात शुल्क पर पोल्ट्री और स्टार्च मिलों को पचास लाख कुंतल मक्का आयात की इजाजत दे दी है। वैसे मक्के पर आयात शुल्क 60 फीसदी तक लगता है। आयात की अनुमति ऐसे समय दी गई है जब देश की मंडियो में मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,850 से काफी नीचे 800 से 1,000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच गया है। ऐसे में सरकार का आयात करने का फैसला किसानों के लिए और नुकसानदायक हो सकता है।
टैरिफ रेट कोटा के तहत दो देशों के बीच कम आयात शुल्क पर आयात करने का समझौता होता है। फिलहाल मक्के के अलावा, दूध पाउडर, सूरजमुखी के तेल सहित चार खाद्य सामग्रियां आयात की जाती है।
बिहार के जिला भागलपुर के नवगछिया ब्लॉक के गांव खगरा के रहने वाले अशोक सिंह ने इस साल 35 एकड़ में मक्का लगाया था। प्रति एकड़ में लगभग 35 से 40 कुंतल का उत्पादन भी हुआ है। वह अच्छी पैदावार से खुश तो हुए, लेकिन अभी जो कीमत उन्हें मिल रही है, वह उपज बेच ही नहीं पा रहे हैं।
वह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “पिछले साल जिस मक्के की कीमत 2,000 से 2,200 रुपए कुंतल थी, वही मक्का आज की डेट में 1,050 रुपए कुंतल में बिक रहा है। मैंने अभी बेचा नहीं था, लेकिन अब बेचना पड़ रहा है। कब तक सही कीमत का इंतजार करता।”
कृषि मंत्रालय के अनुसार बिहार में देश में सबसे ज्यादा 20 फीसदी जमीन पर मक्के की खेती दो बार होती है, जबकि रबी सीजन में कुल उत्पादन का 80 फीसदी मक्का बिहार में पैदा होता है। बिहार के 10 जिले समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और भागलपुर में देश के कुल मक्का उत्पादन का 30 से 40 प्रतिशत पैदावार होता है।
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वहीं उत्तर प्रदेश में 11 और राजस्थान में 10 फीसदी जमीन पर मक्के की खेती की जाती है। मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में आठ-आठ फीसदी जमीन पर किसान मक्के की खेती करते हैं। अन्य राज्यों की हिस्सेदारी 44 फीसदी है।
वर्ष 2019 में मक्के की कीमत एमएसपी से ज्यादा हो गई थी, लेकिन आयात से कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है। पिछले साल मंडियों में मक्के की कीमत 2,000 से 2,500 रुपए प्रति कुंतल थी। वर्ष 2019 में देश में 3.12 लाख टन मक्के का आयात हुआ था।
मक्के की कीमत के लिए बिहार ही नहीं, पूरे देश के किसान परेशान हैं। कई जगह तो मक्के की एमएसपी के लिए आंदोलन भी चल रहे हैं। मध्य प्रदेश में किसानों ने सोशल मीडिया पर सत्याग्रह आंदोलन भी किया, लेकिन कीमत अभी भी 1,000 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से ही मिल रही है।
मध्य प्रदेश के जिला सिवनी के मक्का किसान सतीश राय गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “सरकार ने मक्के एमएसपी 1850 रुपए घोषित की है, जबकि मध्य प्रदेश की मंडियों में मक्का 900 रुपए से लेकर 1000 रुपए कुंतल तक बिक रही है। किसानों को प्रति कुंतल 900 से 1000 रुपए तक घाटा हो रहा है। इसीलिए मजबूरी में हम लोगों को ये आंदोलन (किसान सत्याग्रह) करना पड़ा।”
मक्के के अलावा दूध पाउडर का आयात होगा
उत्तर प्रदेश में भी यही हाल है। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे के निकट कन्नौज जिले के रतापुरवा निवासी 67 वर्षीय किसान रामकुमार वर्मा बताते हैं, “तिर्वा मंडी समिति में मक्का 1,170 रुपए में मांगी जा रही है। पिछली साल 2000 रुपए में थी। आढ़ती कह रहे हैं कि लॉकडाउन में बाहर का व्यापारी कम है, इसलिए इतने में ही खरीदेंगे।”
नथापुरवा के रंजीत राजपूत कहते हैं, “इन दिनों कम से कम रेट हैं। कुछ दिनों पहले ही पांच बीघा जमीन में की मक्का 1130 रुपए कुंतल के हिसाब से बेचकर आए हैं। कोरोना की वजह से समस्या है। पिछले साल की अपेक्षा आधा अंतर है। उन्होंने पिछले साल 2170 से 2200 रुपए कुंतल मक्का बिक्री की थी। अब आढ़ती कह रहे हैं कि प्लांट बंद हैं, इसलिए रेट कम है।”
केंद्र सरकार ने दो जून को धान समेत 17 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया था। मक्का के लिए वर्ष 2020-21 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपए तक किया गया है। सरकार फसलों की कीमत और लागत तय करने वाले कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की रिपोर्ट के हवाले से 50 फीसदी मुनाफा देने की बात कह रही है उसके मुताबिक एक कुंतल मक्का पैदा करने में 1213 रुपए की लागत आती है, लेकिन मंडियों और बाजार में किसानों में मुनाफा तो दूर लागत से काफी नीचे अपनी फसल बेचनी पड़ रही है।
कृषि मामलों के जानकार और किसान नेता भगवान मीणा कहते हैं, “आयात के फैसले से लोकल बाजारों में कीमत बहुत घट गई है। व्यापारियों ने कीमत गिरा दी है जिससे किसानों नुकसान हो रहा है। सरकार का फैसला ही गलत समय पर लिया गया है। किसानों को लॉकडाउन की वजह से पहले से ही काफी नुकसान हुआ है। इससे किसानों का नुकसान और बढ़ेगा ही। सरकार चाहती है कि आम लोगों को मक्के के लिए ज्यादा कीमत न चुकानी पड़े, इसलिए भी आयात का फैसला ले लेती है।”
भगवान मीणा वर्ष 2007 में कपास की कीमत का उदाहरण देते हुए बताते हैं, “उस साल कपास की कीमत 6,000 से 7,000 रुपए कुंतल तक पहुंच गई थी। किसान फायदे में थे। तभी सरकार ने निर्यात रोकने का फैसला ले लिया, कीमत दो दिन में ही 4,000 रुपए में आ गई। सरकार को यह समझना होगा कि उसके फैसले का बाजार में क्या असर पड़ता है, किसानों पर क्या असर पड़ता है।”
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किसान कांग्रेस मध्य प्रदेश के कार्यवाहक अध्यक्ष केदार सिरोही भी यही कहते हैं। वे सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “आयात-निर्यात को लेकर सरकार की नीतियां स्पष्ट ही नहीं हैं। जब देश में पर्याप्त मक्के का उत्पादन हो रहा है तो स्टॉर्च या दूसरी कंपनियों को देश से ही मक्का देना चाहिए। लॉकडाउन की वजह से किसान वैसे ही परेशान है, ऐसे में इस फैसले से देश के लाखों किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। मंडियों में मक्के की कीमत 800 से 900 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच गई है।”
“सरकार को चाहिए कि वे मक्के को अनिवार्य खाने के रूप में शामिल करें। मोटे अनाज के बारे में प्रधानमंत्री ने कइ बार जिक्र किया, मक्का मोटा अनाज ही तो है। जब तक सरकार देश में इसकी खपत को सुनिश्चित नहीं करेगी, किसानों को उचित कीमत नहीं मिल पाएगा,” केदार सिरोही आगे कहते हैं।
हालांकि कमोडिटी व्यापार से जुड़ी वेबसाइट मोलतोल डॉट इन के संस्थापक कमल शर्मा का मानना है कि सरकार ने आयात की इजाजत दी तो हैं, लेकिन मक्का देश में आ नहीं पायेगा। वह कहते हैं, “आपसी संबंधों के कारण सरकार को यह फैसला लेना पड़ा है, लेकिन सच तो यह है कि आयात शुल्क कम करने के बावजूद दूसरे देशों से मक्का व्यापारी नहीं खरीदेंगे। यूक्रेन से मक्के के लिए बात हुई है। उनका मक्का हमारे यहां की कीमत के हिसाब से 2,000 से 2,200 रुपए प्रति कुंतल है। ऐसे में व्यापारी उनके मक्का क्यों खरीदेंगे।”
“अभी मक्का इसलिए भी नहीं आ पायेगा क्योंकि देश में पोल्ट्री उद्योग लगभग चौपट हो चुका है। हमारे देश में मक्के का ज्यादातर उपयोग उनके खाने के तौर पर किया जाता है। जब खपत ही नहीं होगी तो व्यापारी बाहर से सामान क्यों मंगायेंगे। इसलिए ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है,” वह आगे कहते हैं।