लखनऊ। फतेहपुर जिले के मालवा तहसील के आंग गाँव किसान रामबाबू पटेल (47 वर्ष) लहसुन की खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों को भी अपने साथ में जोड़कर उन्नत खेती करना सिखा रहे हैं।
दूसरे किसानों की तरह रामबाबू भी पहले धान गेहूं जैसी फसलों की खेती करते थे, साथ में सब्जियों की खेती भी करते थे। अपनी खेती की शुरुआत के बारे में रामबाबू पटेल बताते हैं, “पहले मैं भी अपने यहां के दूसरे किसानों की तरह खेती करता, सब्जियों के साथ ही लहसुन की भी खेती कर रहा था, लेकिन सही जानकारी न होने से सही पैदावार नहीं मिलती थी, जबकि लागत ज्यादा आती थी।”
अक्टूबर के महीने में लहसुन लगाना शुरु कर दिया जाता है। इसके खेत के मेड़ पर गोभी, मूली जैसी दूसरी सब्जियों की फसलें भी लगानी चाहिए। इससे भी आमदनी हो जाती है।
राम बाबू पटेल, किसान
वो आगे बताते हैं, “हमारे जिले के कृषि वैज्ञानिक से पुणे के लहसुन एवं प्याज अनुसंधान संस्थान में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में पता चला, वहां जाकर मैंने एक हफ्ते के प्रशिक्षण में लहसुन की उन्नत खेती के बारे में जानकारी ली।”
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पांच साल पहले तक रामबाबू के पास सिर्फ सवा बीघा जमीन थी, खेती से ही उन्होंने 10 बीघा जमीन खरीद ली है। लहसुन एवं प्याज अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षण लेने के बाद रामबाबू ने एक एकड़ खेत में लहसुन की लगाया। जिसकी कुल लागत 45 हजार रुपये आयी थी। छह महीने में लहसुन की फसल तैयार हो गयी और जिसे बेंचने पर सवा दो लाख रुपये की आमदनी हुई।
रामबाबू बताते हैं, “ट्रेनिंग में किसानों को बताया जाता है, कि किस समय कौन सी खाद डालनी चाहिए। जैसे नाइट्रोजन तब देना है जब पौधे की बढ़वार होती है। दिन के हिसाब से कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है। पहले सही जानकारी न होने से जड़ की बढ़वार होने के बजाय पौधों की बढ़वार हो जाती थी।”
उन्नत खेती के लिए रामबाबू को तीन बार फतेहपुर के जिलाधिकारी ने सम्मानित किया है। साथ ही पूसा दिल्ली में भी उन्हें सम्मानित किया गया है। फसल तैयार होने के बाद रामबाबू खुद ही मण्डी तक बेंचने भी ले जाते हैं। कानपुर की मण्डी में इन्होंने लहसुन की बिक्री की थी। “खुद से बेंचने पर व्यापारियों का झंझट नहीं होता, कई बार व्यापारी जल्द पैसा ही नहीं देते हैं जिससे परेशानी होती है, ऐसे में हम लोग खुद ही मंडी तक अपने उत्पाद पहुंचाते हैं, इससे तुरंत नगद पैसा मिल जाता है” वो बताते हैं।
रामबाबू ने पिछले वर्ष अप्रैल में अनार के 450 पौधे भी लगाए थे, जिसमें इस बार फल आ गए हैं। अनार की खेती के बारे में रामबाबू कहते हैं, “पिछले साल महाराष्ट्र से अनार के टिश्यू कल्चर के पौधे मंगाए थे, जो एक साल में ही तैयार हो गए हैं। अनार की बागवानी से ये फायदा है हम इसके साथ दूसरी खेती भी कर सकते हैं। अनार के फल को बाजार तक पहुंचाने में भी कोई परेशानी नहीं होती है।”
पिछली बार रामबाबू ने एक एकड़ में लहसुन लगाया था, इस बार वो दो एकड़ में लहसुन लगाने की तैयारी कर रहे हैं। रामबाबू बताते हैं, “अक्टूबर के महीने में लहसुन लगाना शुरु कर दिया जाता है, इस बार ज्यादा लहसुन लगाने जा रहा हूं। इसके खेत के मेड़ पर गोभी, मूली जैसी दूसरी सब्जियों की फसलें भी लगानी चाहिए। इससे भी आमदनी हो जाती है।”