पिछले हफ्ते 28 अप्रैल को इंडोनेशिया ने पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप देश इंडोनेशिया, भारत में पाम तेल की मांग पूरी करने वाला सबसे बड़ा निर्यातक है। यह हमारे देश की 38% खाद्य तेल की जरूरत को पूरा करता है।
पाम तेल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध ने काफी चिंताएं बढ़ा दी हैं। यह प्रतिबंध एक ऐसे समय पर आया है जब भारत पहले से ही यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे युद्ध के कारण सूरजमुखी के तेल की कमी का सामना कर रहा है। हालात यह हैं कि देश में खाद्य तेलों की कीमत आसमान छूने लगी है। भारत अपनी सूरजमुखी तेल की मांग का एक बड़ा हिस्सा इन दोनों देशों से आयात के जरिए पूरा करता है।
क्षेत्र विशेषज्ञ कहते हैं कि खाद्य तेलों की बढ़ी हुई कीमतों और बढ़ती महंगाई के कारण भारत के ग्रामीण पहले से ही काफी मार झेल रहे हैं। अब इंडोनेशिया द्वारा पाम तेल पर लगाया गया प्रतिबंध उनकी परेशानियां को और बढ़ा सकता हैं। खाद्य तेलों की कीमतें अभी और बढ़ेंगी, इसकी पूरी संभावना है।
मुंबई स्थित सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने गांव कनेक्शन को बताया कि देश में प्रति माह 1.8 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत होती है। इसमें से एक मिलियन टन से अधिक की जरूरत को आयात के जरिए पूरा किया जाता है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया देश में विलायक निष्कर्षण उद्योग के प्रतिनिधियों में सबसे शीर्ष पर है। हमारे देश में वार्षिक खाद्य तेल की खपत 21-22 मिलियन टन है (देखें ग्राफ: 2020-21 में भारत में कुल खाद्य तेल की खपत और ग्राफ: आयातित खाद्य तेल)।
2020-21 में, भारत की कुल खाद्य तेल खपत 21.66 मिलियन मीट्रिक टन थी। इसमें से 8.23 मिलियन मीट्रिक टन की खपत अकेले पाम के तेल की थी जो कुल खाद्य तेल खपत का 38 प्रतिशत है। ताड़ के तेल पर भारत की निर्भरता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। आधिकारिक आंकड़े पाम तेल के आयात पर बढ़ती निर्भरता को साफ दर्शाते हैं (देखें ग्राफिक: भारत में पाम तेल की खपत)।
पाम तेल पर प्रतिबंध का प्रभाव
भारत में पाम ऑयल का ज़्यादातर इस्तेमाल डिब्बाबंद उपभोक्ता सामान बनाने वाले उद्योग ही करते हैं। कुकीज, ब्रेड का पैकेट, नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स और यहां तक कि लिपस्टिक भी इस सामान के अंतर्गत आते हैं। वैसे तो ग्रामीण भारत में सरसों के तेल को ही मुख्य रूप से खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो पाम ऑयल पर लगे प्रतिबंध का असर सरसों के तेल की कीमतों पर भी निश्चित ही पड़ेगा।
भरतपुर (राजस्थान) स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक प्रमोद राय बताते हैं, “पाम तेल पर लगे निर्यात प्रतिबंध की वजह से सरसों के तेल की कीमत सबसे अधिक प्रभावित होंगी।”
राय कहते हैं,” हमारे देश में खाद्य तेल की मांग और आपूर्ति में वैसे ही भारी अंतर है। अब इंडोनेशियाई प्रतिबंध के बाद ताड़ के तेल की आपूर्ति भी कम हो गई है।” उन्होंने आगे कहा, “सरसों के तेल से इस अंतर को पूरा किया जा सकता है। लेकिन देश में कुल खाद्य तेल की खपत के हिसाब से इसकी आपूर्ति पहले से ही कम है।”
हालांकि सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के बीवी मेहता की तरह कई और विशेषज्ञ का मानना है कि पाम ऑयल पर लगाया गया प्रतिबंध लंबे समय तक नहीं रहेगा। यह भारत के लिए चिंता का कारण है ही नहीं।
इसे समझाते हुए मेहता कहते हैं, पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लेने का यह फैसला ईद की वजह से भी लिया गया हो सकता है। हालांकि प्रतिबंध के बाद उनके यहां खुद तेल की घरेलू कीमतें बढ़ गई है। ऐसे में कीमतों को स्थिर करने के लिए उन्हें 2 से 4 हफ्ते का समय लगेगा। आखिर में उन्हें प्रतिबंध वापस लेना ही पड़ेगा क्योंकि उन्हें भी अपने अतिरिक्त उत्पाद को निर्यात करने की जरूरत है।”
प्रतिबंध की वजह से पाम तेल की कमी को समझाते हुए मेहता ने कहा कि भारत हर साल 21-22 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत करता है। इसका मतलब हुआ कि हमारी खाद्य तेल की मासिक आवश्यकता 1.8 मिलियन टन है।
मेहता ने गांव कनेक्शन को बताया, “1.8 मिलियन टन में से हम 1 – 1.1 मिलियन टन का आयात करते हैं। बाकी बची 0.7 मिलियन टन की मांग घरेलू उत्पादन से पूरी होती हैं।” वह आगे कहते हैं, ” आयात किए जाने वाले 1 – 1.1 मिलियन टन तेल में से 0.6 मिलियन टन की मात्रा पाम तेल की है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें से भारत 0.3 मिलियन टन पाम तेल का आयात इंडोनेशिया और मलेशिया से करता है और बहुत कम मात्रा थाईलैंड से आयात की जाती है।”
पाम तेल प्रतिबंध: “लंबे समय तक चिंता का विषय नहीं”
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक ने आगे बताया कि प्रतिबंध के कारण पैदा हुई 0.3 मिलियन टन की कमी को दीर्घकालिक समस्या के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि इंडोनेशिया वर्तमान में लगभग 48 से 49 मिलियन टन पाम तेल का सालाना उत्पादन करता है।
मेहता कहते हैं, “इंडोनेशिया की अपनी पाम तेल की खपत 17 मिलियन प्रतिवर्ष है। 30 मिलियन तेल का वह निर्यात करता है। उनका मासिक तेल उत्पादन 4 मिलियन है और घरेलू खपत 1.5 मिलियन है। मतलब, इंडोनेशिया के पास हर महीने अतिरिक्त 2.5 मिलियन टन पाम तेल होता है।”
एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया हालांकि इस बात को स्वीकार करती है कि “भारत में तेल के दामों पर निश्चित तौर पर फर्क पड़ा है। पिछले 10 साल में तेल के दाम दुगने हो गए हैं लेकिन इसका दोष इंडोनेशिया को नहीं दिया जा सकता। यूक्रेन-रूस युद्ध जैसे कई और कारण भी हैं जिसकी वजह से सूरजमुखी के तेलों का आयात रुक गया है।”
यूक्रेन-रूस युद्ध और खाद्य तेल की कीमतें
देश की कुल खाद्य तेल की मांग का दो मिलियन टन यानी नौ प्रतिशत सूरजमुखी तेल के माध्यम से पूरा किया जाता है। इसमें से भारत 1.744 मिलियन टन तेल का आयात यूक्रेन से करता है। बाकी बचा 0.348 मिलियन टन तेल रूस से आयात किया जाता है। यह आंकड़े ग्रामीण विकास और उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति द्वारा 23 मार्च, 2022 को लोकसभा में एक उत्तर के रूप में प्रस्तुत किए गए थे।
राज्य मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि 2022 में देश में सरसों के तेल का उत्पादन बेहतर रहा है। पाम तेल पर लगे प्रतिबंध के कारण पैदा हुए अंतर को यह पूरा कर देगा।
मंत्री ने कहा, “मुझे आने वाले दो से तीन हफ्तों में इस प्रतिबंध का कोई असर होती नहीं दिख रहा है। इंडोनेशिया से जो तेल पहले निर्यात हुआ है उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। और, मलेशिया और थाईलैंड से हम अभी भी तेल आयात कर सकते हैं।”
हालांकि वह इस बात से सहमत थे कि मांग और आपूर्ति के असंतुलन के कारण खाद्य तेल की कीमत बढ़ेंगी। उन्होंने कहा, “हमारे पास तेल की कमी नहीं है। हम बिल्कुल ठीक-ठाक स्थिति में है।”
खाद्य तेलों के बढ़ते दाम
वस्तुओं के दैनिक औसत खुदरा मूल्य पर नज़र रखने वाले डिपार्टमेंट ऑफ कंस्यूमर अफेयर्स ने कुछ आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार 1 किलो सरसों के तेल का पैकेट इस वर्ष 30 अप्रैल तक 184.62 रुपए में बिक रहा था। वहीं 1 साल पहले इस पैकेट की कीमत 163.69 रुपए थी। यह आंकड़े एक साल की अवधि में 12% वृद्धि की दिखाते हैं।
पिछले एक साल के दौरान सभी खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। एक किलो मूंगफली के तेल का पैकेट 172 रुपये से बढ़कर 185 रुपये का हो गया। एक किलो पाम तेल 130 रुपये से 20 प्रतिशत बढ़कर 157 रुपये हो गया। वहीं सूरजमुखी के तेल में इस दौरान 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसकी कीमत 164 रुपये से बढ़कर 189 रुपये हो गई है।
देश में पाम तेल की खपत जहां 38% है, वहीं सरसों के तेल की खपत 14.1% है।
समाचार रिपोर्टों के अनुसार, देश में वनस्पति तेल क्षेत्र पर नजर रखने वाले केंद्रीय तेल उद्योग और व्यापार संगठन (सीओओआईटी) ने 2021-22 में सरसों के बीज का उत्पादन 10.95 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया है।
भारत ने अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए 0.052 मिलियन टन खाद्य सरसों के तेल का आयात किया है। रेपसीड-सरसों अनुसंधान निदेशालय के राय का मानना है कि इंडोनेशिया द्वारा पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण पैदा हुई खाद्य तेल की कमी को पूरा करने में सरसों का तेल कम पड़ सकता है।
भारत के गांव में बढ़ती महंगाई
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मार्च 2022 का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 7.66 आंका गया जो इसी वर्ष फरवरी के 6.38 सीपीआई से काफी ज्यादा है। यह आंकड़े सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा 12 अप्रैल की अपनी हाल ही में दी गई प्रेस विज्ञप्ति में दिखाए गए थे।
भारत के ग्रामीण इलाकों में सीपीआई की भारी वृद्धि पर टिप्पणी करते हुए, मेहता और राय दोनों ने सहमति व्यक्त की कि इस बढ़ोतरी से भारत के गांव और शहर दोनों ही प्रभावित होंगे। मेहता ने कहा, “गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. जो तेल 90 रुपये प्रति लीटर था, वह अब 200 रुपये में मिल रहा है।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि गरीबों पर तेल की बढ़ती कीमतों के बोझ को कम करने के लिए, केंद्र सरकार को तमिलनाडु सरकार की तरह सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 25/30 रुपये प्रति लीटर की दर से सब्सिडी वाले तेल का प्रावधान सुनिश्चित करना चाहिए।