सुमित यादव/वीरेंद्र सिंह
रायबरेली/उन्नाव/बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) रायबरेली में वसौना खेड़ा गाँव के ओम प्रकाश यादव के गाँव का नजदीकी सरकारी खरीद केंद्र उनके धान की बेहतर कीमत लगा रहा था। लेकिन वह वहां नहीं गए, उन्होंने अपना 40 क्विंटल (1 क्विंटल = 100 किलोग्राम) धान एक निजी व्यापारी को बेचना पसंद किया।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को इसकी वजह बताते हुए कहा, “मुझे कहीं जाना नहीं पड़ा। मैंने सीधे अपने खेत से इसे व्यापारी को बेच दिया और तुरंत पैसा भी मिल गया। भले ही व्यापारी ने उपज को 1,900 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदा हो, जो कि सरकार के समर्थन मूल्य (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से 140 रुपये कम है।” 45 साल के यादव के पास चार बीघा (लगभग एक हेक्टेयर) खेत हैं।
यहां से 100 किलोमीटर से दूर बाराबंकी जिले में भी कुछ ऐसी ही कहानी दोहराई जा रही है। किसान सरकार की बजाय अपनी धान की फसल को निजी व्यापारियों को बेचना पसंद कर रहे हैं।
बाराबंकी के कैथा गाँव के एक किसान प्रेम कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पिछले साल एमएसपी और बाजार मूल्य के बीच का अंतर लगभग दोगुना था। समर्थन मूल्य 1,940 रुपये था और बाजार भाव 900 रुपये से 1,100 रुपये के आसपास चल रहा था। नतीजतन, लगभग हर किसान खरीद केंद्रों पर कतार लगाए खड़ा था।”
उन्होंने कहा, “लेकिन इस साल स्थिति इसके ठीक उलट है। किसानों को उनकी उपज का तकरीबन उतना ही मूल्य उनके घर की चौखट पर मिल रहा है, तो वह सरकारी केंद्र में क्यों जाएगा “
यह उत्तर प्रदेश में धान खरीद के लिए पीक सीजन है, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक राज्य है। लेकिन क्या वजह है कि किसान अपनी फसल को एमएसपी पर सरकारी केंद्रों को बेचने की तुलना में खुले बाजार में निजी व्यापारियों को बेचना पसंद कर रहे हैं, जबकि सरकार उन्हें निजी व्यापारियों की तुलना में धान की बेहतर कीमत दे रही है?
भारत सरकार के लिए दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) चलाने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए धान की खरीद महत्वपूर्ण है। 2013 के अधिनियम में अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और प्राथमिकता वाले परिवारों के तहत ग्रामीण आबादी का 75 प्रतिशत और शहरी आबादी का 50 प्रतिशत शामिल है। एएवाई परिवार, जो सबसे गरीब हैं, प्रति माह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न (चावल या गेहूं) के हकदार हैं, प्राथमिकता वाले परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम के हकदार हैं।
धान का संकट
भारत-गंगा क्षेत्र के प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में कम मानसूनी वर्षा (जून से सितंबर) के कारण इस साल धान का उत्पादन पहले से ही काफी प्रभावित था। रही सही कसर अक्टूबर की बाढ़ ने पूरी कर दी। बाढ़ में उत्तर प्रदेश के कई जिलों में तैयार धान की फसल बह गई, जिससे काफी फसल बर्बाद हो गई। ऐसे में किसानों का धान की फसल बेचने के लिए खरीद केंद्रों की बजाय निजी व्यापारियों की तरफ जाना सरकार की चिंता बढ़ा सकता है। इन केंद्रों पर एक नवंबर से खरीद शुरू हो गई है।
किसानों के अनुसार, धान को बिक्री केंद्रों तक ले जाने में खासी परेशानी होती है।
रायबरेली के प्रकाश यादव ने कहा, “बिक्री केंद्र लगभग 18 किलोमीटर दूर है। मुझे अपनी उपज को केंद्र तक ले जाने के लिए एक ट्रैक्टर ट्रॉली किराए पर लेनी पड़ती है और वहां के सरकारी अधिकारी उपज की गुणवत्ता पर कई सवाल उठाते हैं। दूसरी ओर व्यापारी मेरे खेतों में आकर उपज खरीद रहा है। ” किसान आगे कहता है, “खरीद केंद्र तक ले जाने का मेरा खर्चा बच गया। इस तरह से एमएसपी और व्यापारी से मिलने वाले पैसे के जो अंतर है, वो भी कवर हो गया।”
धान की खरीद में आ रही गिरावट की बात को सरकारी अधिकारी भी स्वीकार करते हैं। रायबरेली के जिला वितरण अधिकारी रामानंद जायसवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मानसून की कम बारिश और मौसम की अनिश्चितता के कारण इस बार धान की खरीद में देरी हुई है।”
जायसवाल ने कहा, “इस साल जिले में कुल 77 धान खरीद केंद्र स्थापित किए गए हैं, लेकिन अब तक ऐसे चार केंद्रों पर ही खरीद दर्ज की गई है। 213.60 क्विंटल धान की खरीद हो चुकी है। इस साल हमारा लक्ष्य 185,000 मीट्रिक टन का है।” वह आगे कहते हैं, “हमें कुछ निजी व्यापारियों द्वारा किसानों से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर धान खरीदने के बारे में जानकारी मिली है।”
इस साल धान की गुणवत्ता खराब होने की भी खबरें आ रही हैं। किसानों के सरकारी केंद्रों पर न जाने की एक वजह ये भी है।
बाराबंकी जिले के फतेहपुर ब्लॉक के वितरण अधिकारी जीत सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया कि खरीद केंद्रों में व्यापारियों की तुलना में उपज की गुणवत्ता के लिए सख्त नियम हैं। सिंह ने कहा, “इस साल उत्पादित धान की गुणवत्ता वास्तव में अच्छी नहीं है। कम मानसूनी बारिश और अक्टूबर में बाढ़ इसके लिए जिम्मेदार है।”
वह आगे बताते हैं, “इसके अलावा यह रबी (सर्दियों) की बुवाई का मौसम है, किसानों के पास खरीद केंद्रों पर लंबी कतारों में खड़े होने और इंतजार करने का समय नहीं है। इन केंद्रों पर कम फुटफॉल का एक कारण यह भी है।”
बाराबंकी के जिला वितरण अधिकारी रमेश कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, खरीद के लिए लक्षित 185,000 मीट्रिक टन धान में से अब तक कुल 3,985 मीट्रिक टन धान की खरीद हो चुकी है। जिले में कुल 63 खरीद केंद्र हैं।
बुवाई क्षेत्र में गिरावट के बावजूद उच्च खरीद लक्ष्य
दिलचस्प बात यह है कि कृषि मंत्रालय के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय ने इस साल धान के उत्पादन में कमी को दर्ज करते हुए 112 मिलियन टन के लक्ष्य को 104.99 मीट्रिक टन तक सीमित रह जाने की बात कही है। इसके बावजूद केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने 30 अगस्त की एक प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया है कि इस वर्ष 51.8 मीट्रिक टन चावल की खरीद का अनुमान लगाया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है।
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “वर्तमान KMS (खरीफ बाजार मौसम) 2022-23 की खरीफ फसल के लिए 771 LMT (लाख मीट्रिक टन) धान (चावल के मामले में 518 एलएमटी) की मात्रा का अनुमान लगाया गया है। वास्तव में पिछले KMS 2021-22 (खरीफ फसल) के दौरान 759 एलएमटी धान (चावल के मामले में 510 एलएमटी) खरीदा गया था।
गाँव कनेक्शन खरीफ सीजन में प्रमुख धान उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में धान की बुवाई के मौसम के दौरान व्याप्त सूखे जैसी स्थितियों पर रिपोर्ट करता रहा है।
इन राज्यों में कम बारिश ने धान की बुवाई पर खासा असर डाला था और 30 सितंबर को कृषि मंत्रालय की ओर से फसल की स्थिति पर जारी एक आधिकारिक दस्तावेज ने बताया कि इसका रकबा कम हो गया है।
यह दर्शाता है कि पिछले साल की तुलना में धान की बुआई में माइनस 20.16 प्रतिशत की कमी आई है। 2021 में 423.04 लाख हेक्टेयर बुवाई रकबे से धान की खेती का रकबा इस साल घटकर 402.88 लाख हेक्टेयर रह गया है।
बाराबंकी जिले के फतेहपुर ब्लॉक के वितरण अधिकारी जीत सिंह के अनुसार, उन्होंने किसानों को खरीद केंद्रों पर आने के लिए मनाने के लिए ग्राम प्रधानों और कोटेदारों (सार्वजनिक राशन वितरकों) को लगाया है। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में और अधिक किसान अपने धान बेचने के लिए केंद्रों पर आएंगे।”
किसानों के लिए यह जरूरी है कि उनके हाथ में अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों को भुगतान करने के लिए पैसे हों।
उन्नाव के साहब खेड़ा गाँव के किसान आदित्य यादव ने गांव कनेक्शन को बताया, “जितनी जल्दी हमारे हाथ में नकदी आएगी, उतना ही अच्छा है। मुझे अपने खेतों में काम कर रहे मजदूरों को जल्द से जल्द पैसा देना होगा, नहीं तो मुझे अगले सीजन में उन्हें अपने खेत में काम करने के लिए लाने में परेशानी होगी।”
क्या धान की कम खरीद से देश की खाद्य सुरक्षा को खतरा होगा? रोज़ी रोटी फाउंडेशन के लिए काम करने वाले झारखंड के एक खाद्य कार्यकर्ता बलराम ने गांव कनेक्शन को बताया, “खाद्य सुरक्षा के मामले में, एक साल कम खरीद से शायद ही कोई फर्क पड़ता हो। क्योंकि भारतीय खाद्य निगम द्वारा किया गया स्टॉक कम से कम चार-पांच साल तक की मांग को ध्यान में रखकर बनाया गया होता है। लेकिन आने वाले महीनों में चावल की कीमतें निश्चित रूप से बढ़ जाएंगी।”
लखनऊ, यूपी में प्रत्यक्ष श्रीवास्तव के इनपुट्स के साथ।