इस साल समय से पहले पड़ी भीषण गर्मी के कारण कम उत्पादन की वजह से भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। अब चार महीने बाद, प्रमुख धान उत्पादक राज्यों में वर्षा की कमी के कारण धान के रकबे में भी कमी की बात कही जा रही है. इसे लेकर व्यापारी वर्ग में काफी बेचैनी बनी हुई है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी खरीफ (ग्रीष्मकालीन) फसलों के रकबे की प्रोग्रेस रिपोर्ट के मुताबिक, 26 अगस्त तक देश में धान की बुवाई रकबे में पिछले साल की तुलना में 2,345,000 हेक्टेयर की कमी आई है. यानी वर्ष के रकबा में 7.56 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
भारत-गंगा के मैदानों में स्थित प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में बारिश की कमी के कारण बुवाई क्षेत्र में कमी आई है। देश में बड़ी संख्या में किसान फसल उगाने के लिए मानसूनी वर्षा पर निर्भर हैं क्योंकि उनके पास सिंचाई की अन्य सुविधाओं का अभाव है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक इस साल 1 जून से 2 सितंबर के बीच उत्तर प्रदेश में माइनस 44 फीसदी बारिश दर्ज की गई है। पड़ोसी राज्य बिहार में वर्षा की कमी शून्य से 38 फीसदी और झारखंड में शून्य से 26 प्रतिशत कम है।
पंजाब और हरियाणा में भी क्रमश: माइनस 14 फीसदी और माइनस 9 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
विश्व बैंक ने पिछले महीने खाद्य सुरक्षा स्थिति पर एक बयान जारी किया था. बयान के मुताबिक, भारत में चावल निर्यातक चिंतित हैं. उन्हें आशंका है कि धान के उत्पादन में कमी के कारण सरकार चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकती है।
11 अगस्त को जारी विश्व बैंक अपडेट में कहा गया, “निर्यातक चिंतित हैं कि कहीं निर्यात प्रतिबंध लागू न कर दिए जाएं (जैसा कि गेहूं के लिए किया गया था), वह साख पत्र खोलने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और जून से सितंबर 2022 तक 10 लाख टन चावल निर्यात करने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं।”
इसके अलावा, 26 अगस्त को रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत ‘सौ प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने’ पर विचार कर रहा है। 13 मई को गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के बाद, सरकार ने हाल ही में गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं के आटे और सूजी (रवा) के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. 28 अगस्त को विदेश व्यापार महानिदेशालय ने इसकी अधिसूचना जारी की थी।
इस साल की शुरुआत से, गांव कनेक्शन गेहूं की फसल पर समय से आने वाले हीटवेव के प्रभाव और गेहूं के निर्यात पर रोक के बारे में रिपोर्ट कर रहा है।
हालांकि, भारत द्वारा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध की संभावना पर लोगों की राय अलग-अलग है।
निर्यात प्रतिबंध का खतरा?
टोक्यो की फाइनेंस सर्विस कंपनी नोमुरा होल्डिंग्स के एक बाजार विश्लेषण के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से इंकार नहीं किया जा सकता है.
अर्थशास्त्री सोनल वर्मा और सी यिंग तोह द्वारा 30 अगस्त को लिखे गए एक मार्केट रिसर्च दस्तावेज में उल्लेख किया गया, “हमें लगता है कि प्रतिबंधों से इंकार नहीं किया जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, मक्के की बढ़ती कीमतों ने टूटे चावल को पशु आहार के रूप में इस्तेमाल करने की ओर जाने के लिए प्रेरित किया है। बढ़ती फ़ीड लागत के साथ-साथ मांस की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है। हो सकता है इस मौसम में भारत का चावल उत्पादन भी कम हो। कुछ प्रमुख चावल उगाने वाले राज्यों में कम बारिश के कारण चालू खरीफ सीजन के दौरान चावल की बुवाई पिछले साल की तुलना में 6 फीसदी कम है। इसकी वजह से भारत में घरेलू चावल की कीमतें बढ़ रही है। “
रिसर्च बताती है, हालांकि सरकार के पास चावल का पर्याप्त बफर स्टॉक है, लेकिन भीषण गर्मी के कारण गेहूं की फसल के नुकसान की वजह से इसकी कम सरकारी खरीद ने चावल पर बोझ बढ़ा दिया है।
भारत में चावल के कम रकबे को अफ्रीका के पूर्वी क्षेत्र में भीषण सूखे के साथ मिलाकर देखा जा सकता है। आगे लिखा गया, “… हमारे विचार में इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में चावल के बफर में कमी और स्थानीय चावल की कीमतों में बढ़ोतरी है।”
हालांकि, जब गाँव कनेक्शन ने नई दिल्ली स्थित ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक विनोद कौल से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि चावल के निर्यात पर प्रतिबंध की संभावना को लेकर आ रही खबरें न सिर्फ अटकलें हैं, बल्कि लोगों के बीच भ्रम भी पैदा कर रही हैं।
कौल ने गांव कनेक्शन को बताया, “यह मीडिया रिपोर्ट्स ही हैं जो दहशत पैदा कर रही हैं। सरकार चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने जा रही है। केंद्र सरकार का स्टॉक पर्याप्त हैं और सरकार को चावल का निर्यात पर किसी भी तरह का कोई प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है।”
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक चावल निर्यातक विशाल तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि गेहूं के निर्यात पर पहले से मौजूद प्रतिबंध की तर्ज पर चावल के निर्यात पर प्रतिबंध की संभावना बेहद कम है।
तिवारी ने कहा,”सरकार ने गेहूं पर प्रतिबंध तब लगाया था, जब मुफ्त राशन योजनाओं और पीडीएस के लिए कम स्टॉक पर चल रहा था। सरकार में मेरे सूत्रों ने मुझे बताया कि चावल का स्टॉक पर्याप्त है।”
निर्यातक ने कहा, “साथ ही देश में चावल की उतनी मांग नहीं है जितनी गेहूं की है, इसलिए हम इसे दूसरे देशों में निर्यात करते हैं। गेहूं न सिर्फ प्रमुख फूड है बल्कि इसके आटे (मैदा) का उपयोग बेकरी और कन्फेक्शनरी के सामानों में भी किया जाता है. जबकि चावल के मामले में ऐसा नहीं है। इन सभी कारकों के साथ, निर्यात पर प्रतिबंध की संभावना बहुत कम है।”
खाद्य सुरक्षा अनुमान
भोजन का अधिकार अभियान से झारखंड के एक खाद्य कार्यकर्ता बलराम ने गांव कनेक्शन को बताया कि गरीब तबके को मुफ्त भोजन राशन उपलब्ध कराने वाली कल्याण योजना – प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना – को और आगे बढ़ाने की जरूरत है और धान का कम रकबा देश की खाद्य सुरक्षा को झटका देने वाला है। फिलहाल मुफ्त राशन योजना सितंबर में समाप्त होने वाली है।
उन्होंने कहा,”हम गरीब परिवारों द्वारा खाने पर किए गए खर्च को समझने के लिए एक सर्वे कर रहे हैं। प्रारंभिक आकलन से पता चलता है कि कमाई का लगभग 80 प्रतिशत खाने पर खर्च किया जा रहा है। ऐसे में, सरकार को मुफ्त राशन योजना को आगे बढ़ाना चाहिए। योजना सितंबर में समाप्त होने वाली है।”
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना अप्रैल 2020 में समाज के उन गरीब वर्गों की मदद करने के लिए शुरू की गई थी जो अभी तक COVID-19 महामारी के कारण हुई आर्थिक तबाही से उबर नहीं पाए हैं। इस योजना के तहत समाज के गरीब तबके के लोगों को हर महीने पांच किलो अनाज बांटा जाता है।
खाद्य कार्यकर्ता ने कहा, “ऐसी स्थिति में, धान के रकबे में कमी से निश्चित रूप से केंद्र के खाद्य भंडार पर असर पड़ेगा। सरकार को प्रतिकूल जलवायु के कारण फसल के नुकसान के जोखिम को कम करने के लिए कृषि योजनाओं के साथ आने की जरूरत है, अन्यथा खाद्य संकट पैदा हो सकता है। और यह हर गुजरते साल के साथ बदतर होता चला जाएगा।”
वैश्विक चिंता
भारत में धान के कम उत्पादन का असर सिर्फ देश पर ही नहीं बल्कि यह दुनिया को भी प्रभावित कर सकता है। संयुक्त राज्य खाद्य प्रशासन के अनुसार, भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है और दुनिया भर में चावल की कुल मांग की 40 प्रतिशत आपूर्ति करता है।
भारत में चावल के कम रकबे की तुलना अफ्रीका के पूर्वी क्षेत्र में भीषण सूखे के साथ की जा सकती है। इस क्षेत्र में सूखे पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया, केन्या और सोमालिया देश अकाल की चपेट में हैं।
जुलाई, 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, “दुनिया भर में खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी – यूक्रेन में युद्ध से बदतर हो गई – और लगातार चार असफल बारिश के मौसम के चलते सूखे का संकट गहरा गया है. उसकी वजह से जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया, केन्या और सोमालिया जैसे देशों के लोग भोजन और पानी की तलाश में अपना सब कुछ पीछे छोड़ने के लिए मजबूर हैं. यह उनकी सेहत, सुरक्षा और शिक्षा को खतरे में डाल रहा है। अगर हमने अभी कार्रवाई नहीं की तो बच्चों को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ सकता है। अगर हमनें जीवन बचाने वाले भोजन को जल्द उनके हाथों तक नहीं पहुंचाया तो लाखों लोग अपनी जान गंवा सकते हैं।”